जलचिकित्सा

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जलचिकित्सा (अंग्रेज़ी: Hydropathy) अनेक रोगों की चिकित्सा करने की एक निश्चित चिकित्सा पद्धति है, जिसमें शीतल तथा उष्ण जल का बाह्याभ्यंतर प्रयोग सर्वश्रेष्ठ औषधि होती है, और उपचारार्थ प्रयुक्त अन्य सभी औषधि प्राय: हानिकारक समझी जाती हैं। इसमें पीने के लिये शीतल या उष्ण जल दिया जाता है।

इतिहास

जलोपचार 1829 ई. से प्रचलित है। इसका श्रेय साइलीज़ा (आस्ट्रिया) के विनसेंट प्रीसनिट्स [1] नामक एक किसान को है, जिसने सर्वप्रथम इसका व्यवहार प्रचलित किया। बाद में अनेक डाक्टरों ने आंतज्वर, अतिज्वर[2] इत्यादि में शीतकारी स्नान बहुत उपयोगी माना जाता है। अब इसका प्रयोग अधिक व्यापक हो गया है।

जलचिकित्सा में जल का प्रयोग

जलचिकित्सा में जल का प्रयोग निम्नलिखित विधियों द्वारा किया जाता है-

  1. एकांग तथा सर्वांग के लिये शीतल तथा उष्ण आवेष्टन [3]। आर्द्रवस्त्रावेष्टन चिकित्सा व्यवसाय का एक महत्व का अंग हो गया है।
  2. उष्ण वायु तथा वाष्पस्नान- टर्किश बाथ उष्णवायुस्नान का उत्तम उदाहरण है। डेविड उर्गुंहर्ट [4] ने पौर्वात्य देशों से लौटने पर इंग्लैंड में इसको खूब प्रचलित किया। अब टर्किश बाथ एक स्वतंत्र सर्वमान्य सार्वजनिक प्रथा ही बन गई है।[5]</ref>
  3. शीतल और उष्ण जल का सर्वांग स्नान।
  4. शीतल या उष्ण जल से पाद, कटि, शीर्ष, मेरुदंड आदि, एकांगस्नान।
  5. आर्द्र तथा शुष्क पटबंधन और कंप्रेस[6]
  6. शीतल तथा उष्ण सेंक एवं पूल्टिस[7]
  7. प्रक्षालन[8]- इसमें 15 डिग्री - 21 डिग्री तक के ताप का पानी हाथों से शरीर पर लगाया जाता है।
  8. आसेक[9]- इसमें रोगी टब में बैठा या खड़ा रहता है और उसके सर्वांग या एकांग पर बाल्टी से पानी डाला जाता है।
  9. इसमें पाइप[10] के द्वारा शरीर पर पानी छोड़ा जाता है।[5]
  10. जलपान- इसमें पीने के लिये शीतल या उष्ण जल दिया जाता है।


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Vincent Priessnitz
  2. Hyperpyrexia
  3. packings
  4. David Urguhart
  5. 5.0 5.1 जलचिकित्सा (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 31 जुलाई, 2015।
  6. compresses
  7. poultices
  8. Ablution
  9. Affusion
  10. hose pipe

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