जैसी परै सो सहि रहे -रहीम
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जैसी परै सो सहि रहे , कहि ‘रहीम’ यह देह ।
धरती ही पर परग है , सीत, घाम औ’ मेह ॥
- अर्थ
जो कुछ भी इस देह पर आ बीते, वह सब सहन कर लेना चाहिए। जैसे, जाड़ा, धूप और वर्षा पड़ने पर धरती सहज ही सब सह लेती है। सहिष्णुता धरती का स्वाभाविक गुण है।
रहीम के दोहे |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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