टुसू पर्व

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टुसू पर्व

टुसू पर्व झारखंड के कुड़मी और आदिवासियों का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। यह जाड़ों में फसल कटने के बाद पौष के महीने में मनाया जाता है। टूसू का शाब्दिक अर्थ 'कुँवारी' है। इस पर्व के इतिहास का कुछ खास लिखित स्त्रोत नहीं है लेकिन इस पर्व में बहुत से कर्मकांड होते हैं। यह अत्यंत ही रंगीन और जीवन से परिपूर्ण त्यौहार है। मकर संक्राति के अवसर पर मनाये जाने वाले इस त्यौहार के दिन पूरे कूड़मी, आदिवासी समुदाय द्वारा अपने नाच-गानों एवं मकर संक्रांति पर सुबह नदी में स्नान कर उगते सूर्य की प्रार्थना करके टुसू (लक्ष्मी या सरस्वती) की पूजा की जाती है।

टुसू पर्व और मकर संक्रांति

सूर्य के उत्तरायण यानी सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश शुभ माना जाता है। इसी दौरान दिन बड़े होने लगते हैं और प्रमुख पर्व के रूप में मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है। मकर संक्रांति का पर्व पूरे देश में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। इसी क्रम में झारखंड में मकर संक्रांति को टुसू पर्व या मकर पर्व के नाम से मनाया जाता है। खेतों में तैयार हुई नयी फसल के स्वागत में जब भारत के अधिकांश लोग मकर सक्रांति का त्यौहार मनाते है तब जंगलों और पहाड़ों के राज्य झारखण्ड के ग्रामीण, आदिवासी अपनी बेटी टुसू मनी के बलिदान की याद में राज्य का पारंपरिक त्यौहार टुसू मनाते हैं। यह मुख्य रूप से झारखंड का त्यौहार है, लेकिन उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में भी इसकी धूम होती है।

कथा

झारखंड में प्रचलित लोक कथा के मुताबिक टुसू मनी का जन्म पूर्वी भारत के एक कुर्मी किसान परिवार में हुआ था। झारखंड की सीमा के नजदीक उड़ीसा के मयूरभंज की रहने वाली दीनी टुसू मनी की खूबसूरती के चर्चे हर तरफ थे। 18वीं सदी में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के कुछ सैनिक भी उसकी खूबसूरती के दीवाने थे। एक दिन उन्होंने गलत नियत से टुसू मनी का अपहरण कर लिया। जैसे ही यह खबर नवाब सिराजुद्दौला को मिली, तो उन्होंने इस घटना के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की और सैनिकों को सजा देने के साथ ही टुसू मनी को सम्मान के साथ वापस घर भेज दिया। घर वापस जाने पर तत्कालीन रूढ़ीवादी समाज ने टुसू मनी की पवित्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाकर उसे स्वीकारने से मना कर दिया। इस घटना से दुखी टुसू मनी ने स्थानीय दामोदर नदी में जान देकर अपनी पवित्रता का प्रमाण दिया। जिस दिन टुसू मनी ने अपनी जान दी, उस दिन मकर संक्राति थी। इस घटना ने पूरे कुर्मी समाज खासकर महिलाओं और लड़कियों को उद्वेलित कर दिया। तभी से कुर्मी समाज अपनी बेटी के बलिदान की याद में टुसू पर्व मनाता आ रहा है। आज झारखंड के आदिवासियों के साथ ही अन्य जनजाति के अलावा क्षेत्र के अन्य लोग भी मना रहे हैं।

ऐसे मनाते हैं पर्व

टुसू पर्व

झारखंड खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में मकर संक्रांति से करीब एक माह पहले पौष से ही टुसू मनी की मिट्टी की मूर्ति बना कर उसकी पूजा शुरू हो जाती है। मकर संक्रांति के दिन इस पर्व का समापन मूर्ति को स्थानीय नदी में प्रवाहित कर किया जाता है। इस दौरान टुसू और चौड़ल (एक पारंपरिक मंडप) सजाने का काम भी होता है। इस काम को केवल कुंवारी लड़कियां ही करती हैं। विसर्जन के लिए नदी पर ले जाने के दौरान स्थानीय लोग टुसू के पारंपरिक गीत गाते और नाचते हुए चलते हैं।

इस मौके पर स्थानीय लोग अपने घरों में गुड़, पीठा और चावल आदि बनाया जाता है। व्यंजन में नारियल का भी प्रयोग होता है। टुसू पर्व के दौरान जगह-जगह पर मुर्गा लड़ाई की प्रतियोगिता भी होती है। कई स्थानों पर टुसू मेला का आयोजन भी किया जाता है।

भारत में मकर संक्रांति

यह पर्व भारत के साथ ही नेपाल व अन्य क्षेत्रों में विभिन्न नाम और परंपरा के साथ मनाया जाता है-


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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