धान

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धान की फ़सल

धान (अंग्रेज़ी : Paddy) सम्पूर्ण विश्व में पैदा होने वाली प्रमुख फ़सलों में से एक है। प्रमुख खाद्यान्न चावल इसी से प्राप्त होता है। धान भारत सहित एशिया और विश्व के अधिकांश देशों का मुख्य खाद्य है। मक्का के बाद धान की फ़सल ही मुख्य रूप से विश्व में बड़े पैमाने पर उत्पन्न की जाती है। किसी अन्य खाद्यान्न की अपेक्षा धान की खपत विश्व में सर्वाधिक है। चीन के बाद भारत का चावल के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। धान की अच्छी उपज के लिए 100 से.मी. वर्षा की आवश्यक होती है। धान भारत एक प्रमुख फसल है, जिससे चावल निकाला जाता है।  यह भारत सहित एशिया एवं विश्व के बहुत से देशों का मुख्य भोजन है। विश्व में मक्का के बाद धान ही सबसे अधिक उत्पन्न होने वाला अनाज है।

इतिहास

धान की खेती 1500-800 ईसा पूर्व से होती आ रही है और यजुर्वेद में भी इसका उल्‍लेख मिलता है। इतिहासकारों के अनुसार बर्मा, थाइलैण्ड, लाओस, वियतनाम और दक्षिण चीन के रास्‍ते उत्तर भारत में पूर्वी हिमालय की छोटी पहाड़ियों पर चावल की खेती की जाती थी। धान भारत के साथ-साथ आधे विश्‍व के भोजन का मुख्‍य अन्‍न है। भारत सफेद चावल के उत्पादन में विश्व के अग्रणी उत्पादकों में से एक है, जिसमें समग्र उत्पादन का 20 प्रतिशत का उत्पादन होता है। चावल भारत की एक महत्वपूर्ण फसल है और देश के पूर्वी और दक्षिणी भाग की जनसंख्या के भोजन का एक मुख्य पदार्थ है। देश में चावल की खेती के लिए सबसे अधिक उपजाऊ भूमि है।

भारत में धान की कृषि

धान एक सर्वव्‍यापी फसल है और अंटार्कटिका को छोड़कर सभी महाद्वीपों में इसकी खेती की जाती है। 3.83 टन/हेक्‍टेयर के औसत उत्‍पादन की दर से 150 मिलियन हेक्‍टेयर क्षेत्र में 573 मिलियन टन धान का उत्‍पादन होता है। एशिया की खाद्य रक्षा के लिए इसका उत्‍पादन अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है, जहाँ विश्‍व भर का 90 प्रतिशत धान का उत्‍पादन होता है और उपभोग किया जाता है। भारत में धान मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु आदि में उगाया जाता है। भारत में झारखण्ड राज्य की बहुसंख्यक आबादी का प्रमुख आहार चावल है। इस क्षेत्र में धान 71 प्रतिशत भूमि में उगाया जाता है। परन्तु इसकी उत्पादकता अन्य विकसित राज्यों की तुलना में बहुत कम है। अत: यह आवश्यक है कि उत्पादकता बढ़ाने के लिये धान की उन्नत कृषि तकनीक का ज्ञान किसानों को कराया जाये। धान कि उत्पादकता को प्रभावित करने के विभिन्न कारणों में भूमि के अनुसार किस्मों का चुनाव प्रमुख है। साधारणतया ऊँची जमीन में 80-100 दिनों तक की अवघि वाली किस्म, मध्यम भूमि में 100 दिनों से अधिक एवं 135 दिनों तक की अवघि वाली किस्मों एवं नीची जमीन में 135 दिनों तक की अवघि वाली किस्मों की अनुशंसा की जाती है।

धान उत्पादन

धान की खेती भारत में पिछले सैकड़ों वर्षो से होती रही है। भारत तथा पाकिस्तान को धान का जनक माना जाता है। हरित क्रन्ति के बाद भारत में खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता प्राप्त करके धान की विश्व में मॉग तथा भविष्य में इसके निर्यात की अत्यधिक संभावनाओं को देखते हुए इसकी वैज्ञानिक खेती काफ़ी महत्वपूर्ण हो गयी है। किसी भी फसल के अधिक उत्पादान के साथ साथ अच्छी गुणवत्ता में फ़सल की किस्मों का अत्यधिक महत्व है। बासमती चावल में विशिष्टि सुगंध एवं स्वाद होने के कारण इसकी विभिन्न किस्मों का अलग अलग महत्व है। धान की पारस्परिक प्रजातियॉ  प्रकाश संवेदनशील, लम्बी अवधि तथा अपेक्षाकृत अधिक ऊचाई वाली होती है जिससे धान की उपज काफ़ी कम होती है परन्तु बासमती धान की नयी उन्नत किस्में अपेक्षाकृत कम ऊँचाई, अधिक खाद एवं उर्वरक चाहने वाली तथा अधिक उपज देने वाली है। 

खेत तैयार करना

धान की खेती के लिए ग्रीष्म की जुताई करने के बाद 2-3 जुताइयाँ और करके खेत को तैयार करना चाहिए। इसके साथ ही मजबूत मेड़बन्‍दी भी होनी चाहिए, जिससे खेत में वर्षा का पानी अधिक समय तक संचित किया जा सके। हरी खाद के रूप में यदि ढैचा या सनई का प्रयोग कर रहे हैं तो धान की बुवाई के समय ही फ़ॉस्फ़ोरस का प्रयोग भी कर लेना चाहिए। धान की रोपाई के लिए एक सप्ताह पूर्व ही खेत की सिंचाई कर दें, जिससे की खरपतवार न उगने पायें। इसके बाद रोपाई के समय खेत में पानी भर कर जुताई करना चाहिए।[1]

बीज शोधन

धान की नर्सरी बनाने से पहले बीजों का भली प्रकार से शोधन अवश्य करें। इसके लिए जहाँ पर जीवाणु झुलसा या जीवाणुधारी रोग की समस्या हो, वहाँ 25 किग्रा. बीज के लिए 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाक्लीन या 40 ग्राम प्लान्टोमाइसीन को मिलाकर बीजों को पानी में रात भर भिगोकर रख देना चाहिए। अगले दिन बीजों को छाया में सुखाकर नर्सरी डालनी चाहिए। यदि शाकाणु झुलसा की समस्या क्षेत्रों में नहीं है तो 25 किग्रा. बीज को रातभर पानी में भिगोने के बाद अगले दिन निकालकर अतिरिक्त पानी निकल जाने के बाद 75 ग्राम थीरम या 50 ग्राम कार्बेन्डाजिम को 8-10 लीटर पानी में घोलकर बीज मे मिला दें। इसके बाद बीजों को छाया में अंकुरित करके नर्सरी में डालें।

पौधों की रोपाई

पौधों को रोपने के लिए स्क्रपर की सहायता से पौधे इस प्रकार निकाले जायें, जिससे की छनी हुई मिट्टी की मोटाई तक का हिस्सा उठकर आये। इन पौधों को पैडी ट्रान्सप्लान्टर की ट्रे में रखें। मशीन में लगे हत्थे को ज़मीन की ओर हल्के झटके के साथ दबायें।

धान की बालियाँ

ऐसा करने से ट्रे में रखी पौध की स्लाइस 6 पिकर काटकर 6 स्थानों पर खेत में लगा दें। इसके बाद हत्थे को अपनी ओर खींच कर पीछे की ओर कदम बढाकर मशीन को उतना खींचना चाहिए, जितना पौधे से पौधे की दूरी रखना चाहते हैं। सामान्यत: यह दूरी 10 सेमी. होनी चाहिए। फिर से हत्थे को ज़मीन की ओर हल्के झटके से दबाना चाहिए। इस प्रकार ही पौधों को रोपित करते जायें। पौधे रोपे जाने के बाद जो पौधे मर जायें, उनके स्थान पर जल्द ही दूसरे पौधों को लगा देना चाहिए, जिससे प्रति इकाई पौधों की संख्या कम न हो पाये। धान की अच्छी पैदावार के लिए उपज के प्रति वर्ग मीटर में 250 से 300 बालियाँ अवश्य होनी चाहिए।[1]

सिंचाई

उत्तर प्रदेश में सिंचाई की क्षमता के अच्छे अवसर मौजूद हैं, फिर भी धान का लगभग 60-62 प्रतिशत क्षेत्र ही सिंचित है, जबकि धान की फ़सल के लिए सबसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है। फ़सल की कुछ विशेष अवस्थाओं में रोपाई के बाद एक सप्ताह तक किल्ले फूटने, बाली निकलने, फूल खिलने तथा दाना भरते समय खेत में पानी बना रहना चाहिए। फूल खिलने की अवस्था पौधे के लिए अति संवेदनशील होती है। परीक्षणों के आधार पर यह पाया गया है कि धान की अधिक उपज लेने के लिए लगातार पानी भरा रहना आवश्यक नहीं है। इसके लिए खेत की सतह से पानी अदृश्य होने के एक दिन बाद 5 से 7 सेमी. सिंचाई करना अच्छा रहता है। खेत में पानी रहने से फ़ॉस्फ़ोरस, लोहा तथा मैंगनीज आदि तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है और खरपतवार भी कम उगते हैं।

रोग

धान की फ़सल को कई रोगों से हानि पहुँचती है, जिनके नाम निम्नलिखित हैं-

  1. सफ़ेद रोग
  2. पत्तियों का भूरा रोग
  3. जीवाणु झुलसा रोग
  4. शीथ झुलसा रोग
  5. जीवाणुधारी रोग
  6. झोंका रोग

रोग से बचाव के उपाय

धान की फ़सल को प्रमुख रोगों के प्रभाव से बचाने के लिए निम्न उपाये अपनाये जा सकते हैं-

  1. गर्मी में गहरी जुताई एवं मेड़ों तथा खेत के आस-पास के क्षेत्र को खरपतवार से सदैव मुक्त रखना चाहिये।
  2. समय-समय पर रोग प्रतिरोध प्रजातियों के मानक बीजों की बुवाई करनी चाहिये।
  3. नर्सरी डालने से पहले क्षेत्र विशेष की समयानुसार बीज शोधन अवश्य कर लेना चाहिये।
  4. जीवाणु झुलसा की समस्या वाले क्षेत्रों में 25 किग्रा. बीज के लिए 38 ग्राम ई.एम.सी. तथा 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन को 45 लीटर पानी में रात भर भिगो दें। दूसरे दिन छाया में सुखाकर नर्सरी डालें।
  5. तराई एवं पहाड़ी वाले क्षेत्रों में बीज को 3 ग्राम थाइरस, 1.5 ग्राम /कार्बेन्डाजिम मिश्रण से उपचारित करना चाहिये।
  6. नर्सरी, सीधी बुवाई अथवा रोपाई के बाद खैर रोग के लिए एक सुरक्षात्मक छिड़काव 5 किग्रा. ज़िंक सल्फ़ेट को 20 किग्रा. यूरिया और 1000 लीटर पानी में साथ मिलाकर प्रति हेक्टर की दर से हफ़्ते बाद छिड़काव करना चाहिये।
  7. बड़े क्षेत्र में रोग की महामारी से बचने के लिए एकाधिक प्रजातियों को लगाना चाहिए।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 धान की खेती (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 सितम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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