किसी गुमाँ पे तवक़्क़ो ज़ियादा रखते हैं
फिर आज कू-ए-बुताँ का इरादा रखते हैं
बहार आएगी जब आएगी, यह शर्त नहीं
कि तश्नागकम रहें गर्चा बादा रखते हैं
तेरी नज़र का गिला क्या जो है गिला दिल को
तो हमसे है कि तमन्ना ज़ियादा रखते हैं
नहीं शराब से रंगी तो ग़र्क़े-ख़ूँ हैं के हम
ख़याले-वजहे-क़मीसो-लबादा रखते हैं
ग़मे-जहाँ हो, ग़मे-यार हो कि तीरे-सितम
जो आए, आए कि हम दिल कुशादा रखते हैं
जवाबे-वाइज़े-चाबुक-ज़बाँ में 'फ़ैज़' हमें
यही बहुत है जो दो हर्फ़े-सादा रखते हैं