नन्दोत्सव

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नन्दोत्सव
रंग नाथ जी मन्दिर वृन्दावन
अनुयायी हिन्दू
तिथि भाद्रपद कृष्ण पक्ष नवमी
उत्सव यह उत्सव 'दधिकांदों' के रूप मनाया जाता है, 'दधिकांदो' का अर्थ है दही की कीच। हल्दी मिश्रित दही फेंकने की परम्परा आज भी निभाई जाती है।
प्रसिद्धि हिन्दू धार्मिक महोत्सव
संबंधित लेख ब्रज, मथुरा, वृन्दावन, कृष्ण, राधा, नंद, यशोदा, नंदगाँव, बरसाना
अन्य जानकारी मथुरा ज़िले में वृंदावन के विशाल श्री रंगनाथ मंदिर में ब्रज के नायक श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नन्दोत्सव की धूम रहती है।
अद्यतन‎

नन्दोत्सव भगवान श्रीकृष्ण के जन्म (कृष्ण जन्माष्टमी) के दूसरे दिन समूचे ब्रजमण्डल में मनाया जाने वाला प्रमुख उत्सव है। ब्रज क्षेत्र के गोकुल और नंदगांव में श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नंदोत्सव या नंद उत्सव का विशेष आयोजन होता है। शास्त्रों के अनुसार कंस की नगरी मथुरा में अर्धरात्रि में श्रीकृष्ण के जन्म के बाद सभी सैनिकों को नींद आ जाती है और वसुदेव की बेड़ियां खुल जाती हैं। तब वसुदेव कृष्णलला को गोकुल में नंदराय के यहां छोड़ आते हैं। नंदराय जी के घर लाला का जन्म हुआ है, धीरे-धीरे यह बात पूरे गोकुल में फैल जाती है। अतः श्रीकृष्ण जन्म के दूसरे दिन गोकुल में 'नंदोत्सव' पर्व मनाया जाता है। भाद्रपद मास की नवमी पर समस्त ब्रजमंडल में नंदोत्सव की धूम रहती है। इस दिन सुप्रसिद्ध 'लठ्ठे के मेले' का आयोजन किया जाता है। मथुरा ज़िले में वृंदावन के विशाल श्री रंगनाथ मंदिर में ब्रज के नायक भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नन्दोत्सव की धूम रहती है।

उत्सव

अर्धरात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागार में होने के बाद उनके पिता वसुदेव कंस के भय से बालक को रात्रि में ही यमुना नदी पार कर नन्द बाबा के यहाँ गोकुल में छोड़ आये थे। इसीलिए कृष्ण जन्म के दूसरे दिन गोकुल में 'नन्दोत्सव' मनाया जाता है। भाद्रपद नवमी के दिन समस्त ब्रजमंडल में नन्दोत्सव की धूम रहती है।

दधिकांदों

यह उत्सव 'दधिकांदों' के रूप मनाया जाता है। 'दधिकांदो' का अर्थ है दही की कीच। हल्दी मिश्रित दही फेंकने की परम्परा आज भी निभाई जाती है। मंदिर के पुजारी नन्द बाबा और जसोदा के वेष में भगवान कृष्ण को पालने में झुलाते हैं। मिठाई, फल, मेवा व मिश्री लुटायी जाती है। श्रद्धालु इस प्रसाद को पाकर अपने आपको धन्य मानते हैं।

रंगनाथजी मंदिर

वृंदावन में विशाल उत्तर भारत के श्री रंगनाथ मंदिर में ब्रज के नायक भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नन्दोत्सव की धूम रहती है। नन्दोत्सव में सुप्रसिद्ध 'लठ्ठे के मेले' का आयोजन किया जाता है। धार्मिक नगरी वृंदावन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी जगह-जगह मनाई जाती है। उत्तर भारत के सबसे विशाल मंदिर में नन्दोत्सव की निराली छटा देखने को मिलती है। दक्षिण भारतीय शैली में बना प्रसिद्ध श्री रंगनाथ मंदिर में नन्दोत्सव के दिन श्रद्धालु लठ्ठा के मेला की एक झलक पाने को खड़े होकर देखते रहते हैं। जब भगवान 'रंगनाथ' रथ पर विराजमान होकर मंदिर के पश्चिमी द्वार पर आते हैं तो लठ्ठे पर चढ़ने वाले पहलवान भगवान रंगनाथ को दण्डवत कर विजयश्री का आर्शीवाद लेते हैं और लठ्ठे पर चढ़ना प्रारम्भ करते हैं। 35 फुट ऊंचे लठ्ठे पर जब पहलवान चढ़ना शुरू करते हैं उसी समय मचान के ऊपर से कई मन तेल और पानी की धार अन्य ग्वाल-वाल लठ्ठे पर गिराते हैं, जिससे पहलवान फिसलकर नीचे ज़मीन पर आ गिरते हैं। इसको देखकर श्रद्धालुओं में रोमांच की अनुभूति होती है। भगवान का आर्शीवाद लेकर ग्वाल-वाल पहलवान पुन: एक दूसरे को सहारा देकर लठ्ठे पर चढ़ने का प्रयास करते हैं और तेज़ पानी की धार और तेल की धार के बीच पूरे यत्न के साथ ऊपर की ओर चढ़ने लगते हैं। कई घंटे की मेहनत के बाद आख़िर ग्वाल-वालों को भगवान के आर्शीवाद से लठ्ठे पर चढ़कर जीत प्राप्त करने का अवसर मिलता है। इस रोमांचक मेले को देखकर देश-विदेश के श्रद्धालु श्रृद्धा से अभिभूत हो जाते हैं। ग्वाल-वाल खम्भे पर चढ़कर नारियल, लोटा, अमरुद, केला, फल मेवा व पैसे लूटने लगते हैं। इसी प्रकार वृंदावन में ही नहीं भारत के अन्य भागों में भी भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर नन्दोत्सव मनाया जाता है।

शुभदर्शन

श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन भाद्रपद मास की नवमी को नंदोत्सव मनाया जाता है। इस दिन कृष्ण भक्त नाच-गाकर कन्हैया की बलैया लेते हैं, भगवान कृष्ण को गाय बहुत पसंद थी, इसीलिए उन्हें गोपाल भी कहा जाता है। नंदोत्सव के दिन अगर गायों की पूजा के साथ ही गाय से जुड़ी छोटी-छोटी चीजों के दर्शन किए जाएं तो इससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

गाय-

आज के दिन गाय के दर्शन कर उसकी पूजा-अर्चना करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं।

गौमूत्र-

गौमूत्र में गंगा मईया वास करती हैं। गंगा को सभी पापों का हरण करने वाली माना गया है। गाय को मूत्र करते देखने से ही पुण्य-लाभ होता है।

गोबर-

ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार गौ के पैरों में समस्त तीर्थ व गोबर में साक्षात माता लक्ष्मी का वास माना गया है। मन में श्रद्धा रखकर गाय के गोबर को देखने से पुण्य की प्राप्ति हो जाती है।

गौदुग्ध-

गाय को माता माना गया है, इसलिए गौमाता का दूध पवित्र और पूजनीय है। आयुर्वेद में देशी गाय के ही दूध, दही और घी व अन्य तत्त्वों का प्रयोग होता है। जो व्यक्ति गाय को दूध देते हुए देख ले उसे शुभ फल प्राप्त होते हैं।

गौधूली-

जब गाय अपने पैरों से जमीन खुरचती है तो जो धूल उड़ती है, उसे गोधूली कहा जाता है। वह धूल पावन होती है उसे देखने मात्र से ही व्यक्ति पुण्य का भागी बन जाता है।

गौशाला-

भगवान श्रीकृष्ण के धाम जाने का सरलतम माध्यम है प्रतिदिन गौ सेवा करना। गौशाला को मंदिर समान भाव से नमन करने से अक्षय पुण्य मिलता है।

गोखुर-

जब गौ अपने पैर के नीचे से जमीन खुरचती है, उस प्रक्रिया को गोखुर कहा जाता है। गौ माता के पैरों में लगी मिट्टी का जो व्यक्ति नंदोत्सव के दिन तिलक लगाता है, उसे किसी भी तीर्थ में जाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसे सारा फल उसी समय वहीं प्राप्त हो जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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