न आने वाला कल -मोहन राकेश

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न आने वाला कल -मोहन राकेश
'न आने वाला कल' उपन्यास का आवरण पृष्ठ
लेखक मोहन राकेश
मूल शीर्षक न आने वाला कल
प्रकाशक राजपाल एंड सन्स
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 2005
देश भारत
भाषा हिन्दी
प्रकार उपन्यास
मुखपृष्ठ रचना सजिल्द

न आने वाला कल प्रसिद्ध साहित्यकार, उपन्यासकार और नाटककार मोहन राकेश द्वारा रचित उपन्यास है। इसका प्रकाशन 1 जनवरी, 2005 को 'राजपाल एंड सन्स' द्वारा हुआ था।

कथावस्तु

‘न आनेवाला कल’ आधुनिक तेज़ीसे बदलते जीवन तथा व्यक्ति और उनकी प्रतिक्रियाओं पर बहुत प्रसिद्ध उपन्यास है जो आर्थिक संघर्ष, स्त्री-पुरुष संबंध तथा साहित्य और कला की दुनिया को बड़ी सूक्ष्मता से चित्रित करता है। मोहन राकेश की रचनाओं का आधुनिक हिन्दी साहित्य में विशेष स्थान है क्योंकि उन्होंने नई परम्पराओं का सूत्रपात किया है। 'न आने वाला कल' उनका प्रसिद्ध उपन्यास है जिसमें एक विशेष परिस्थिति में व्यक्ति की प्रतिक्रियाओं को बहुत सूक्ष्म रूप में वर्णित किया गया है। यह न केवल समाज में फैली अनैतिकता को अभिव्यक्ति देता है बल्कि उसको झेलते व्यक्ति की त्रासदी का भी मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करता है। घटना और अनुभूति का इतना उत्तम संगम अन्यत्र उपलब्ध नहीं है।

लोकप्रियता

प्रख्यात लेखक मोहन राकेश ने उपन्यास बहुत कम लिखे हैं परंतु वे बहुत ही लोकप्रिय हुए हैं। ‘न आने वाला’ कल आधुनिक तेज़ीसे बदलते जीवन तथा व्यक्ति और उनकी प्रतिक्रियाओं पर बहुत प्रसिद्ध उपन्यास है जो आर्थिक संघर्ष स्त्री-पुरुष संबंध तथा साहित्य और कला की दुनिया को बड़ी सूक्ष्मता से चित्रित करता है। यह उपन्यास प्रकाशित होते ही चर्चा का विषय बन गया था और अनेक युवक युवती इसके चरित्रों में अपनी जीवन की झांकी पाते थे। आज भी यह उपन्यास, उतना ही पठनीय तथा रोचक है, और लेखन के क्षेत्र में एक मानक का स्थान ग्रहण कर चुका है।


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