पंकज सिंह

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पंकज सिंह
पंकज सिंह
पूरा नाम पंकज सिंह
जन्म 22 दिसम्बर, 1948
जन्म भूमि मुजफ्फरपुर ज़िला, बिहार
मृत्यु 26 दिसम्बर, 2015
मृत्यु स्थान दिल्ली
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ 'आहटें आसपास', 'जैसे पवन पानी' और 'नहीं'।
भाषा हिन्दी
विद्यालय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
पुरस्कार-उपाधि 'मैथिलीशरण गुप्त सम्मान' (2003), 'शमशेर सम्मान' (2007), 'नई धारा सम्मान' (2008)।
प्रसिद्धि कवि
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी पंकज सिंह ने कई वर्षों तक 'जनसत्ता' में नियमित कला-समीक्षा की। उन्होंने 'नवभारत टाइम्स' में एक वर्ष तक साप्ताहिक स्तंभ 'विमर्श' का उल्लेखनीय सम्पादन कार्य भी किया।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

पंकज सिंह (अंग्रेज़ी: 'Pankaj Singh', जन्म- 22 दिसम्बर, 1948, बिहार; मृत्यु- 26 दिसम्बर, 2015, दिल्ली) समकालीन हिन्दी कविता के महत्त्वपूर्ण कवि थे। हिन्दी कविता के क्षेत्र में बिहार का प्रतिनिधित्व करने वाले महत्वपूर्ण कवियों में वे गिने जाते थे। नक्सलवादी दौर में उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से उस यथार्थ को प्रकट किया था। काफ़ी समय उन्होंने जर्मनी में भी बिताया। पंकज सिंह ने अनेक पत्रिकाओं का संपादन सफलतापूर्वक किया था।

जन्म तथा शिक्षा

पंकज सिंह का जन्म 22 दिसम्बर, सन 1948 को उनके पैतृक गाँव चैता (पूर्वी चम्पारण), मुजफ्फ़रपुर ज़िला, बिहार में हुआ था। रामबाग़ के रहने वाले पंकज सिंह की प्रारंभिक पढ़ाई मुजफ्फरपुर में हुई। सत्तर के दशक में पंकज राजधानी दिल्ली स्थित 'जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय' आए थे, जहां से उन्होने अपनी पढ़ाई पूरी की। पंकज यहां आने से पहले से ही कविताएं लिख रहे थे।[1]

कविता संग्रह

पंकज सिंह लंबे समय तक नवगीत के रचनाकार कवि राजेंद्र प्रसाद सिंह के साथ साहित्य सर्जना करते रहे। बिहार का प्रतिनिधित्व करने वाले महत्वपूर्ण कवियों में वे जाने जाते थे। कवि पंकज सिंह ने कई प्रसिद्ध कविताओं की रचना की है। उनके तीन कविता संग्रह- 'आहटें आसपास' (1981) और 'जैसे पवन पानी' (2001) व 'नहीं' (2009) पूर्व में प्रकाशित हो चुकी हैं। हालांकि 'राजकमल प्रकाशन' ने फिर से तीनों काव्य संग्रह प्रकाशित किये हैं। कवि पंकज सिंह ने अनेक बार विदेश यात्राएं की थीं।[2] अपनी कविताओं में कवि पंकज ने जोखिम उठाते हुए अन्याय की सत्ताओं के खिलाफ सांस्कृतिक प्रतिरोध के साहस का शानदार परिचय दिया है। उनकी कविता 'नरक में बारिश' एक दार्शनिक नजरिए से जिन्दगी की चुनौतियों से दो-चार कराती है। पंकज सिंह ने अनेक देशी-विदेशी संकलनों में कविताएँ लिखी हैं। उन्होंने उर्दू, बांग्ला, अंग्रेज़ी, जापानी, रूसी तथा फ्रेंच आदि में भी कविताओं के अनुवाद किये।

कार्यक्षेत्र

अनुभव
  1. कई वर्षों तक 'जनसत्ता' में नियमित कला-समीक्षा।
  2. 'नवभारत टाइम्स' में एक वर्ष तक साप्ताहिक स्तंभ 'विमर्श' उल्लेखनीय सम्पादन।
  3. फ्रेंच एन्साइक्लोपीडीया 'लारूस' में हिंदी साहित्य पर टिप्पणी।
  4. अनेक पाण्डुलिपियों का संपादन।
  5. ऑस्फोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, एन. सी. ई. आर. टी. और साहित्य अकादमी आदि के लिए अनुवाद।
  6. डाक्यूमेन्टरी और कथा फ़िल्मों के लिए पटकथा लेखन।
  7. डाक्यूमेन्टरी फ़िल्मों का निर्माण और निर्देशन।
  8. रेडियो और टेलीविज़न के प्रसारक और प्रस्तोता के रूप में बहुख्यात।
  9. संपादक की हैसियत से दूरदर्शन समाचार, ब्रिटिश उच्चायोग और कई पत्र-पत्रिकाओं से संबद्ध रहे।
  10. पेरिस के पौवार्त्य भाषा और सभ्यता संस्थान तथा सीपा प्रेस इंटरनेशनल के भारतीय विभागों में काम किया।
  11. बी.बी.सी. लंदन की विश्व सेवा में साढ़े चार वर्ष तक प्रोड्यूसर रहे।
  12. यात्राओं और प्रवास के दौरान विश्वविद्यालयों और संस्थानिक आयोजनों में व्याख्यान और काव्यपाठ।
  13. पेरिस के अंतर्राष्टीय कैता उत्सव में भारत का प्रतिनिधित्व किया।[3]
सामजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियाँ
  1. क्रांतिकारी वाम राजनीति और पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय।
  2. रचनात्मक लेखन के अतिरिक्त राजनीति और साहित्य, कला-संस्कृति पर निबंध और समीक्षा चर्चित।
  3. 'जनहस्तक्षेप' नामक संगठन के संस्थापक सदस्य और उसके कार्यक्रमों में निरंतर भागीदारी।
विदेश यात्राएँ

पंकज सिंह ने पेरिस (1978-80), लंदन (1987- 91), फ़्राँस और ब्रिटेन के अलावा बेल्ज़ियम, ज़र्मनी, हॉलैण्ड, ईराक़, पाकिस्तान, नेपाल आदि कई एशियाई- यूरोपीय देशों की यात्राएँ की थीं।

सम्मान व पुरस्कार

  • 'मैथिलीशरण गुप्त सम्मान' (2003)
  • 'शमशेर सम्मान' (2007)
  • 'नई धारा सम्मान' (2008)

'साहित्य अकादमी' द्वारा दिया गया 2008-09 का साहित्यकार सम्मान लेने से उन्होंने इनकार कर दिया था। उन्हें 'रामजीवन शर्मा जीवन सम्मान' से भी सम्मानित किया गया था।

निधन

कवि पंकज सिंह का निधन 26 दिसम्बर, 2015, शनिवार को दिल्ली में हुआ। वे काफ़ी समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने शनिवार की दोपहर पत्नी सविता सिंह से सिर दर्द की शिकायत की थी। हृदय गति रुकने से उनका निधन हुआ था।

आत्मकथ्य

कविता के संदर्भ में पंकज सिंह अक्सर मुक्तिबोध की काव्य पंक्तियों... "नही होती खत्म कविता नही होती /वह तो आवेग -- त्वरित कालयात्री है" ... को स्मरण करते हुए कहते हैं कि उनकी कविताओं का आवेग देने वाला तत्व है भारतीय समाज के शोषित - उत्पीड़ित समुदायों के संघर्ष की चेतना के साथ उनके व्यावहारिक जीवन और रचना संसार की प्रतिबद्द सम्बद्दता। पंकज सिंह के लिए कविता अभिजनों की रुचि से अनुकूलित कला - कौशल नहीं बल्कि अपने ऐतिहासिक समय की सामूहिक चेतना का कलात्मक विस्तार है, वे यह मानते हैं कि काव्य रचना उनके व्यक्तित्व का सत्व है।[3]

पंकज सिंह ने अपने पिछले काव्य-संगर्हों, 'आहटें आसपास' और जैसे 'पवन पानी', की कविताओं में सार्थक जोखिम उठाते हुए भारतीय समाज में पिछली शताब्दी के सातवें दशक की 'वसंत गर्जना' से उत्प्रेरित प्राण-शक्ति को भाषा के अनूठे रूपाकार दिये, अन्याय की सत्ताओं के बरक्स सांस्कृतिक संरचना में प्रतिरोध के साहस की अभिव्यक्ति और परिवर्तन के महास्वप्न की अर्थ-सक्रियता उन कविताओं की उदग्र पहचान बनी। उन तत्वों से हिन्दी में अनुभव-सघन तथा अभिप्राय की गरिमा से भरी, जिस मौलिक राजनीतिक कविता को पंकज सिंह के कवि ने सम्भव किया, उसके नये और अधिक क्षिप्र रूप उनके नए काव्य संग्रह 'नहीं' की कविताओं में हैं। इन कविताओं में अनुभव-अनुकूलित शिल्प का सुघड़पन है। कहने के ऐसे अनेके लहज़े हैं, जो काव्य-औज़ारों, हिकमतों और समग्र प्रविधि के मामले में हिन्दी काव्य के नये विस्तार के सूचक हैं।

पंकज सिंह की जीवन्त अनुभव-राशि में अगर अन्तविरोधों और द्दुन्द्दों में शामिल विडम्बनाएँ और कई प्रकार के सामूहिक बोध के समुच्चय हैं, तो निजी आवेग- संवेग, प्रेम और आसक्ति, आघात-संघात और अवसाद-विषाद भी हैं, जो पंकज सिंह की कविताओं में व्यापक और तीव्र संवेदकों की उपस्थिति को गहराई देने वाली चीज़े हैं और इस अर्थ में चकित करने वाली भी कि वे तर्क और विवेक की शक्लें अख़्तियार करके सार्वजनिक संलाप का हिस्सा मालूम होने लगती हैं। अगर काव्य के कुछ शाश्वत मापक होते हों तो उनके सम्मुख भी पंकज सिंह की जीवन विश्वासी कविता सार्थक और सामाजिक-सांस्कृतिक उपयोग की बनी रहेगी, क्योंकि इसकी आत्मा में करुणा और प्रेम की सुनिशिचत लय है। वह उसी महस्वप्न से आबद्ध-प्रतिबद्ध है, जो उसे जीवन और भाषा में चतुर्दिक फैले विचलनों के बीच सन्तुलित और ऊर्जस्व बनाये हुए है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नहीं रहे जाने-माने कवि व प्रत्रकार पंकज सिंह (हिन्दी) हरिभूमि। अभिगमन तिथि: 29 दिसम्बर, 2015।
  2. हिन्दी साहित्य के मशहूर कवि पंकज सिंह का निधन (हिन्दी) प्रभात खबर। अभिगमन तिथि: 29 दिसम्बर, 2015।
  3. 3.0 3.1 3.2 पंकज सिंह (हिन्दी) अर्गला। अभिगमन तिथि: 29 दिसम्बर, 2015।

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