बंजर अश्रुबिन्दु -एक अवस्था -वंदना गुप्ता

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बंजर अश्रुबिन्दु -एक अवस्था -वंदना गुप्ता
वंदना गुप्ता
कवि वंदना गुप्ता
मुख्य रचनाएँ 'बदलती सोच के नए अर्थ', 'टूटते सितारों की उड़ान', 'सरस्वती सुमन', 'हृदय तारों का स्पंदन', 'कृष्ण से संवाद' आदि।
विधाएँ कवितायें, आलेख, समीक्षा और कहानियाँ
अन्य जानकारी वंदना जी के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- कादम्बिनी, बिंदिया, पाखी, हिंदी चेतना, शब्दांकन, गर्भनाल, उदंती, अट्टहास, आधुनिक साहित्य, नव्या, सिम्पली जयपुर आदि के अलावा विभिन्न ई-पत्रिकाओं में रचनाएँ, कहानियां, आलेख आदि प्रकाशित हो चुके हैं।
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वंदना गुप्ता की रचनाएँ


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सुनो कान्हा
आज राधा का स्वर चिन्तित था
ये अलौकिक प्रीत का डर था
प्रियतम निकट था मगर फिर भी
बिछड जाने का भय था
गज़ब का समर्पण था
सम्मोहन था
प्रेम का अद्भुत रंग था
ना जाने कौन सी छाया ने घेरा था
जो राधे के मुखमंडल पर छायी
विषाद की रेखा थी
यूँ ही नही आज राधा का मन आधा था
यूँ ही नही आज राधा ने थामा
कान्हा का कान्धा था
 
 
आह! प्रीत भी कैसी होती है
भय से जिसकी नज़दीकी होती है
प्रेमी के बिछडने के भय मे ही
एक ज़िन्दगी बसर होती है
मगर ये महज एक कोरा भ्रम तो ना था
राधा को कुछ तो अंदेशा हो गया था
तभी तो आज कान्हा के कांधे पर
थकित उदास राधा का मन
श्यामली चितवन मे खो गया था
जैसे पी जाना चाहती हो आज ही
सारा प्रेमरस एक ही घूंट मे
जैसे जी जाना चाहती हो आज ही
उम्र की हर घडी एक ही पल मे
जैसे समा जाना चाहती हो आज ही
मोहन की मोहिनी मोहन मे
उफ़ ! ये नारी हृदय कितना व्याकुल था
जो एक अंदेसा मन मे उपजा था
उसी मे चिन्तातुर था
प्रीत की शायद यही तो रीत होती है
प्रेमी से बिछडने की कल्पना भी असह्य होती है
वहाँ राधा ने जैसे सब जान लिया था
शायद आने वाले कल को भांप लिया था
तभी तो आज अपने श्याम के कांधे पर
मुरलिया की छांव मे
अश्रु तो ना ढलकाया था 
 
 
मगर
शब्दों से परे मोहन भी जान गये थे
तभी तो आज वो भी व्याकुल हुये थे
और राधा को यूँ निहार रहे थे
जैसे समा लेना चाहता हो सागर
अपने आगोश मे सारे जहान के जलप्रपात को
जैसे मिलन और बिछडने की अन्तिम वेला
के बीच की महीन लकीर को
पार करना चाहकर भी पार ना करते हों
और अपनी अपनी हदों मे खडे
सिर्फ़ प्रेम की छिटकी चाँदनी को पीते हों
एक दूजे के होने पर भी
ना होने की लक्ष्मण रेखा
के बीच जैसे आज चाँद सुलगा हो
और मोहन को जैसे आज चाँद ने ठगा हो
 
ये कैसी सागर की असीम शांति थी
जो तूफ़ान का संकेत बनी थी
कल की ना जिसे खबर थी
वो आज ही कुछ लम्हों मे सिमटी थी
अन्तिम विदाई की बेला मे
शायद ये ही अन्तिम मिलन रहा होगा
तभी तो श्याम ने ना कुछ कहा होगा
यूँ ही नही राधा का मुख कुम्हलाया होगा
यूँ ही नही लम्हा वहाँ ठिठका होगा
 
तभी तो देखो ना
हर पत्ते , हर बूंटे , हर डाल और पात पर
कैसी खामोश उदासी छायी है
मधुबन भी ये देख सकपकाया होगा
सुना है कुछ अघटित घटित होता है
तो उससे पहले अपशकुन होने लगते हैं
है ना मोहन! देखो ना
यूँ ही नही राधा की खामोश खामोशी ने सब ताड लिया है
 
शायद तभी

सौ साल के बिछोह की अव्यक्त अभिव्यक्ति थी राधा के मुखकमल पर छायी उदासी

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