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भारत की राजभाषा नीति और उसका कार्यान्वयन -देवेंद्रचरण मिश्र

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लेखक- देवेंद्रचरण मिश्र

किसी भी प्रजातांत्रिक देश में राजकाज की भाषा उसकी जनता की भाषा होती है। इस विशाल भारत में 1652 भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें से 15 भाषाओं को संविधान में राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता दी गई है। संघ सरकार के राजकाज के कार्य तथा केंद्र एवं राज्यों के बीच संपर्क भाषा की भूमिका निभाने का उत्तरदायित्व हिन्दी को ही सौंपा गया, क्योंकि इसे भारत देश के अधिकांश लोग बोलते और समझते हैं तथा यह भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपराओं से जुड़ी हुई है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार देवनागरी में लिखित हिन्दी संघ की राजभाषा है, लेकिन 343 (2) के अंतर्गत यह भी व्यवस्था की गई है कि संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक, अर्थात् सन 1965 तक संघ के सभी सरकारी कार्यों के लिए पहले की भांति अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग होता रहेगा। यह व्यवस्था इसलिए की गई थी कि इस बीच हिन्दी न जानने वाले हिन्दी सीख जायेंगे और हिन्दी भाषा को प्रशासनिक कार्यों के लिए सभी प्रकार से सक्षम बनाया जा सकेगा। उपर्युक्त 15 वर्षों की अवधि में भी, अर्थात् 1965 के पहले भी राष्ट्रपति आदेश द्वारा किसी काम के लिए अंग्रेज़ी के अलावा हिन्दी के प्रयोग की अनुमति दे सकते थे। अनुच्छेद 334 (3) में संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह 1965 के बाद भी सरकारी कामकाज में अंग्रेज़ी का प्रयोग जारी रखने के बारे में व्यवस्था कर सकती है। अनुच्छेद 344 में यह कहा गया कि संविधान प्रारंभ होने के 5 वर्षों के बाद और फिर उसके 10 वर्ष बाद राष्ट्रपति एक आयोग बनाएँगे, जो अन्य बातों के साथ साथ संघ के सरकारी कामकाज में हिन्दी भाषा के उत्तरोत्तर प्रयोग के बारे में और संघ के राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिए अंग्रेज़ी भाषा के प्रयोग पर रोक लगाए जाने के बारे में राष्ट्रपति को सिफारिश करेगा। आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के लिए इस अनुच्छेद के खंड 4 के अनुसार 30 संसद सदस्यों की एक समिति के गठन की भी व्यवस्था की गई।
1950 में हिन्दी को संघ की राजभाषा घोषित किए जाने पर यह अनुभव किया गया कि हिन्दी के माध्यम से प्रकाशन का कार्य चलाने के लिए कुछ प्रारंभिक तैयारियों की आवश्यकता पड़ेगी, जैसे- प्रशासनिक, वैज्ञानिक, तकनीकी एवं विधि-शब्दावली का निर्माण, प्रशासनिक एवं विधि-साहित्य का हिन्दी में अनुवाद, अहिन्दी भाषी सरकारी कर्मचारियों का हिन्दी प्रशिक्षण और हिन्दी टाइपराइटरों एवं अन्य साधनों की व्यवस्था आदि।
 

शब्दावली निर्माण

शब्दावली निर्माण के लिए शिक्षा मंत्रालय ने 1950 में वैज्ञानिक तथा तकनीकी बोर्ड की स्थापना की। इसके मार्गदर्शन में शिक्षा मंत्रालय के हिन्दी विभाग ने तकनीकी शब्दावली के निर्माण का कार्य चालू किया। बाद में हिन्दी विभाग का विस्तार होते होते सन 1960 में केंद्रीय हिन्दी निदेशालय की स्थापना हुई। इसके कुछ समय बाद 1961 में राष्ट्रपति के आदेशानुसार वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग की भी स्थापना की गई। निदेशालय तथा आयोग ने अब तक विज्ञान, मानविकी, आयुर्विज्ञान, इंजीनियरी, कृषि तथा प्रशासन आदि के लगभग 4 लाख अंग्रेज़ी के तकनीकी शब्दों के हिन्दी पर्याय प्रकाशित कर दिए हैं। इसी प्रकार राजभाषा (विधायी आयोग) तथा राजभाषा खंड ने विधि शब्दावली का निर्माण कार्य लगभग पूरा कर लिया है।
 

प्रशासनिक साहित्य का अनुवाद

केंद्रीय सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के मैनुअलों, संहिताओं, फार्मों आदि का अनुवाद कार्य पहले शिक्षा मंत्रालय के केंद्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा किया जाता था। बाद में मार्च, 1971 में यह कार्य गृह मंत्रालय के अधीन स्थापित केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो को सौंपा गया। ब्यूरो ने निदेशालय द्वारा अनूदित साहित्य के अतिरिक्त अब तक अनेक मैनुअलों/फार्मों/निपोर्टों आदि का अनुवाद करके विभिन्न मंत्रालयों को उपलब्ध करा दिया है। इस समय ब्यूरो मंत्रालयों/विभागों के अतिरिक्त अन्य सरकारी कार्यालयों/उपक्रमों आदि के मैनुअलों का भी अनुवाद कर रहा है। उसी प्रकार विधि मंत्रालय के राजभाषा खंड ने भी अब तक अधिकांश केंद्रीय अधिनियमों एवं नियमों आदि का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत कर दिया है और यह कार्य निरंतर चल रहा है।
 

हिन्दी शिक्षण योजना

केंद्रीय सरकार के हिन्दी न जानने वाले सरकारी कर्मचारियों के हिन्दी शिक्षण का कार्य शिक्षा मंत्रालय की देखरेख में 1952 में प्रारंभ हुआ था, किंतु बाद में लिए गए निर्णय के अनुसार अक्टूबर, 1955 से यह कार्य गृह मंत्रालय के तत्वावधान में हो रहा है। प्रारंभ में यह प्रशिक्षण पाठ्यक्रम उन लोगों के लिए था, जो स्वेच्छा से हिन्दी पढ़ना चाहते थे। बाद में अप्रैल, 1960 में राष्ट्रपति के आदेश के अधीन हिन्दी का सेवा कालीन प्रशिक्षण उन सभी केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया जो 1.1.1961 को 45 वर्ष के नहीं हुए थे। इसी प्रकार टंककों और आशुलिपिकों के लिए भी टाइपिंग और हिन्दी आशुलिपि का प्रशिक्षण अनिवार्य कर दिया गया। इस समय देश भर में हिन्दी, हिन्दी टाइपिंग तथा हिन्दी आशुलिपि प्रशिक्षण के लगभग 150 केंद्र चल रहे हैं।
उपर्युक्त प्रयत्नों के परिणामस्वरूप हिन्दी के विकास एवं प्रसार में अच्छी प्रगति हुई है, किंतु जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि इस प्रगति का जायजा लेने के लिए संविधान की धारा 344 के अनुसार 1955 में एक राजभाषा आयोग बनाया गया था, जिसने अपनी रिपोर्ट 1956 में प्रस्तुत की। उसकी सिफारिशों पर विचार करने के लिए 1957 में एक संसदीय समिति बनाई गई थी। इन दोनों की राय यह थी कि 1965 के बाद भी अंग्रेज़ी का प्रयोग चलते रहना चाहिए, तदनुसार 1963 में राजभाषा अधिनियम बनाया गया, जिसका 1967 में संशोधन किया गया। इसकी प्रमुख विशेषताएँ नीचे दी जा रही हैं-

राजभाषा के संबंध में सांवैधानिक व्यवस्थाएँ
  1. अधिनियम की धारा 3 के अनुसार (क) संघ के उन सभी सरकारी प्रयोजनों के लिए, जिनके लिए 26 जनवरी, 1965 से तत्काल पूर्व अंग्रेज़ी का प्रयोग किया जा रहा था और (ख) संसद में कार्य निष्पादन के लिए 26 जनवरी, 1965 के बाद भी हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेज़ी का प्रयोग जारी रखा जा सकेगा।
  2. केंद्र सरकार और हिन्दी को राजभाषा के रूप में न अपनाने वाले किसी राज्य के बीच पत्राचार अंग्रेज़ी में होगा, बशर्ते उस राज्य ने इसके लिए हिन्दी का प्रयोग करना स्वीकार न किया हो। उसी प्रकार, हिन्दी भाषी राज्यों की सरकारें ऐसे राज्यों की सरकारों के साथ अंग्रेज़ी में पत्राचार करेंगी और यदि वे ऐसे राज्यों को कोई पत्र हिन्दी में भेजती हैं तो साथ साथ उसका अंग्रेज़ी अनुवाद भी भेजेंगी। पारस्परिक समझौते से यदि कोई भी दो राज्य आपसी पत्राचार में हिन्दी का प्रयोग करें तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी।
  3. केंद्रीय सरकार के कार्यालयों आदि के बीच पत्र व्यवहार के लिए हिन्दी अथवा अंग्रेज़ी का प्रयोग किया जा सकता है। लेकिन जब तक संबंधित कार्यालयों, आदि के कर्मचारी हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त न कर लें, तब तक पत्रादि का दूसरी भाषा में अनुवाद उपलब्ध कराया जाता रहेगा।
  4. राजकाज अधिनियम की धारा 3 (3) के अनुसार निम्नलिखित कागज-पत्रों के लिए हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों का प्रयोग अनिवार्य है-
    1. संकल्प,
    2. सामान्य आदेश,
    3. नियम,
    4. अधिसूचनाएँ,
    5. प्रशासनिक तथा अन्य रिपोर्ट,
    6. प्रेस विज्ञप्तियाँ,
    7. संसद के किसी सदन या सदनों के समक्ष रखी जाने वाली प्रशासनिक तथा अन्य रिपोर्ट एवं
    8. सरकारी कागज-पत्र,
    9. संविदाएँ,
    10. करार,
    11. सुनज्ञप्तियाँ,
    12. अनुज्ञापन,
    13. टेंडर नोटिस और
    14. टेंडर फार्म।
  5. धारा 3 (4) के अनुसार अधिनियम के अधीन नियम बनाते समय यह सुनिश्चित कर लेना होगा कि यदि केंद्रीय सरकार का कोई कर्मचारी हिन्दी या अंग्रेज़ी में से किसी एक ही भाषा में प्रवीण हो, तो अपना सरकारी कामकाज उसी भाषा में कर सकता है और केवल इस आधार पर कि वह दोनों भाषाओं में प्रवीण नहीं है, उसका कोई अहित नहीं होना चाहिए।
  6. राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 1967 द्वारा अधिनियम की धारा 3 (5) के रूप में यह उपबंध किया गया है कि उपर्युक्त विभिन्न कार्यों के लिए अंग्रेज़ी का प्रयोग जारी रखने संबंधी व्यवस्था तब तक जारी रहेगी, जब तक हिन्दी को राजभाषा के रूप में न अपनाने वाले सभी राज्यों के विधान मंडल अंग्रेज़ी का प्रयोग खत्म करने के लिए आवश्यक संकल्प पारित न करें और इन संकल्पों पर विचार करने के बाद संसद का प्रत्येक सदन भी इसी आशय का संकल्प पारित न कर दे।
  7. अधिनियम की धारा 7 के अनुसार किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से, उस राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा दिए अथवा पारित किसी निर्णय, डिक्री अथवा आदेश के लिए, अंग्रेज़ी भाषा के अलावा, हिन्दी अथवा राज्य की राजभाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकता है। तथापि यदि कोई निर्णय, डिक्री या आदेश अंग्रेज़ी से भिन्न किसी भाषा में दिया या पारित किया जाता है तो उसके साथ साथ संबंधित उच्च न्यायालय के प्राधिकार से अंग्रेज़ी भाषा में उसका अनुवाद भी किया जायेगा। अब तक उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार के राज्यपालों ने अपने उच्च न्यायालयों में उपर्युक्त उद्देश्यों के लिए राष्ट्रपति से हिन्दी के प्रयोग की अनुमति ली है।

राजभाषा अधिनियम पारित करने के साथ साथ दिसम्बर 1967 में संसद के दोनों सदनों ने सरकार की भाषा नीति के संबंध में एक सरकारी संकल्प भी पारित किया। इस संकल्प के पैरा-1 के अनुसार केंद्रीय सरकार हिन्दी के प्रसार तथा विकास और संघ के विभिन्न सरकारी प्रयोजनों के लिए, उसके प्रयोग में तेज़ीलाने के लिए एक अधिक गहन और विस्तृत कार्यक्रम तैयार करेगी और उसे कार्यान्वित करेगी। इसके अतिरिक्त इस संबंध में किये गए उपायों तथा उसमें हुई प्रगति का ब्यौरा देते हुए एक वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट संसद के दोनों सदनोंके सभा पटल पर प्रस्तुत करेगी। सब 1968 से निरंतर वार्षिक कार्यक्रम बनाया जा रहा है, जिसमें केंद्रीय सरकार के मंत्रालयों/विभागों से अनुरोध किया जाता है कि हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए, उसके अनुसार कार्यवाई करे। अब तक इस प्रकार की 12 रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की जा चुकी हैं और 13वीं रिपोर्ट मुद्रणाधीन है
 

राजभाषा नियम 1976

सरकारी कामकाज में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिए 1976 में राजभाषा नियम बनाए गए। यह एक महत्त्वपूर्ण कदम था, जिससे हिन्दी के प्रयोग में काफ़ी सहायता मिली है। इस नियम की महत्त्वपूर्ण व्यवस्थाएँ इस प्रकार हैं-

  • केंद्र सरकार के कार्यालयों से 'क' क्षेत्र के किसी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश राज्य और संघ राज्य क्षेत्र दिल्ली) को या ऐसे राज्यों में स्थित किसी अन्य कार्यालय या व्यक्ति को भेजे जाने वाले पत्र आदि हिन्दी में भेजे जायेंगे। यदि किसी ख़ास मामले में ऐसा कोई पत्र अंग्रेज़ी में भेजा जाता है तो उसका हिन्दी अनुवाद भी साथ में भेजा जायेगा।
  • केंद्र सरकार के कार्यालयों से 'ख' क्षेत्र के किसी राज्य संघ राज्य क्षेत्र (पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र राज्य तथा चंडीगढ़ और अंडमान निकोबार द्वीप समूह संघ राज्य क्षेत्र) के प्रशासनों को भेजे जाने वाले पत्र आदि सामान्यत: हिन्दी में भेजे जायेंगे। यदि ऐसा कोई पत्र अंग्रेज़ी में भेजा जाता है तो उसका हिन्दी अनुवाद भी साथ भेजा जायेगा। इन राज्यों में रहने वाले किसी व्यक्ति को भेजे जाने वाले पत्रादि हिन्दी या अंग्रेज़ी, किसी भी भाषा में हो सकते हैं।
  • केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में 'ग' क्षेत्र के किसी राज्य का संघ क्षेत्र ('क' और 'ख' क्षेत्र में शामिल न होने वाले सभी राज्य और संघ राज्य क्षेत्र) के किसी कार्यालय या व्यक्ति को पत्रादि अंग्रेज़ी में भेजे जायेंगे। यदि ऐसा कोई पत्र हिन्दी में भेजा जाता है तो उसका अंग्रेज़ी अनुवाद भी साथ भेजा जायेगा।
  • केंद्रीय सरकार के एक मंत्रालय या विभाग और दूसरे मंत्रालय या विभाग के बीच पत्र व्यवहार हिन्दी या अंग्रेज़ी में हो सकता है। किंतु केंद्र सरकार के किसी मंत्रालय/विभाग और 'क' क्षेत्र में स्थित सम्बद्ध और अधीनस्थ कार्यालयों के बीच होने वाला पत्र व्यवहार सरकार द्वारा निर्धारित अनुपात में हिन्दी में होगा। वर्तमान व्यवस्था के अनुसार कम से कम दो तिहाई पत्र व्यवहार हिन्दी में होना चाहिए। क' क्षेत्र में स्थित केंद्र सरकार के किन्हीं दो कार्यालयों के बीच सभी पत्र व्यवहार हिन्दी में ही किए जाने का प्रावधान है।
  • हिन्दी में प्राप्त पत्रादि के उत्तर अनिवार्य रूप से हिन्दी में ही दिए जायेंगे। हिन्दी में लिखे या हिन्दी में हस्ताक्षर किये गए आवेदनों या अभ्यावेदनों के उत्तर भी हिन्दी में दिए जायेंगे।
  • राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3 में निर्दिष्ट सभी दस्तावेजों के लिए हिन्दी और अंग्रेज़ी, दोनों भाषाओं का प्रयोग किया जाएगा और इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी ऐसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति की होगी।
  • केंद्रीय सरकार का कोई कर्मचारी फ़ाइलों में हिन्दी या अंग्रेज़ी में टिप्पणी या मसौदे लिख सकता है और उससे यह अपेक्षा नहीं की जाएगी कि वह उसका अनुवाद दूसरी भाषा में भी प्रस्तुत करे।
  • केंद्रीय सरकार के कार्यालयों से संबंधित सभी मैनुअल, संहिताएँ और अन्य प्रक्रिया साहित्य हिन्दी और अंग्रेज़ी, दोनों में द्विभाषिक रूप में तैयार और प्रकाशित किए जायेंगे। सभी फ़ार्मों और रजिस्टरों के शीर्ष, नापमट्ट, स्टेशनरी आदि की अन्य मदें भी हिन्दी और अंग्रेज़ी में द्विभाषिक रूप में होंगी।
  • जिन कार्यालयों के 80 प्रतिशत या उससे अधिक कर्मचारियों को हिन्दी या कार्य साधक ज्ञान है, उन्हें अधिसूचित किया जायेगा। इस प्रकार अधिसूचित कार्यालयों को विनिर्दिष्ट करके उनमें काम करने वाले हिन्दी में प्रवीण कर्मचारियों को नोटिंग, ड्राफ़्टिंग आदि में केवल हिन्दी का इस्तेमाल करने के लिए कहा जा सकता है।
  • प्रत्येक कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह दायित्व होगा कि वह राजभाषा अधिनियम और उसके अधीन बने नियमों का समुचित रूप से अनुपालन सुनिश्चित करें।

राजभाषा नीति के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों पर है। इस नीति के समन्वय का कार्य राजभाषा विभाग करता है। यह विभाग समन्वय के लिए वार्षिक कार्यक्रमों को जारी करने के अलावा अन्य कई समितियों के माध्यम से यह कार्य कर रहा है, जिनका विवरण इस प्रकार है-

  1. केंद्रीय हिन्दी समिति – हिन्दी के विकास और प्रसार तथा सरकारी कामकाज में हिन्दी के अधिकाधिक प्रयोग के संबंध में भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे कार्यक्रमों का समन्वय करने और नीति संबंधी दिशा-निर्देश देने वाली यह सर्वोच्च समिति है। प्रधानमंत्री जी की अध्यक्षता में गठित इस समिति में केंद्रीय सरकार के 11 मंत्री एवं राज्य मंत्री, राज्यों के 8 मुख्यमंत्री, 7 संसद सदस्य तथा हिन्दी के 10 विशिष्ट विद्वान् शामिल हैं। राजभाषा विभाग के सचिव एवं भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार इसके सदस्य सचिव हैं।
  2. हिन्दी सलाहकार समितियाँ – सरकार का यह निर्णय है कि राजभाषा नीति का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने और इस संबंध में आवश्यक सलाह देने के लिए जनता के साथ अधिक संपर्क में आने वाले विभिन्न मंत्रालयों/विभागों में हिन्दी सलाहकार समितियाँ गठित की जाएँ। इस निर्णय के अनुसार अब तक 27 मंत्रालयों में उनके मंत्रियों की अध्यक्षता में हिन्दी सलाहकार समितियों का गठन किया गया है। इन समितियों में संसद सदस्यों तथा हिन्दी विद्वानों के अतिरिक्त मंत्रालय विशेष के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होते हैं। वे अपने-अपने मंत्रालय में हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के संबंध में आवश्यक विचार-विमर्श करके निर्णय लेते हैं।
राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ –

केंद्रीय सरकार के जिन कार्यालयों में कर्मचारियों की संख्या (चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को छोड़कर) 25 या इससे अधिक है, वहाँ राजभाषा कार्यान्वयन समितियाँ बनाई गई हैं। 1976 में लिए गए एक निर्णय के अनुसार ऐसे 58 नगरों में भी, जहाँ 10 या इनसे अधिक केंद्रीय कार्यालय हैं, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों का गठन किया गया है। मंत्रालयों/विभागों की राजभाषा कार्यान्वयन समिति बनाई गई है, जो उनकी समस्याओं पर आंतरिक रूप से विचार करके उनका समाधान ढूँढती है।
राजभाषा के प्रयोग, प्रचार और प्रसार में यांत्रिक साधनों का अत्यन्त महत्त्व है। अब तक ये साधन केवल अंग्रेज़ी के लिए ही उपलब्ध थे, परंतु राजभाषा विभाग के सतत प्रयास से इस क्षेत्र में आशाजनक प्राप्ति हुई है। कुछ वर्ष पहले देवनागरी के टाइपराइटरों का उत्पादन मांग के अनुसार नहीं था। किंतु अब औद्योगिक विकास विभाग, पूर्ति तथा निपटान महानिदेशालय एवं टाइपराइटर बनाने वाली कंपनियों के प्रतिनिधियों के सहयोग से देवनागरी टाइपराइटरों के उत्पादन में प्रगति हुई है। इस समय देवनागरी टाइपराइटरों का उत्पादन मांग के अनुसार है।
कंप्यूटर में देवनागरी लिपि तथा भारतीय भाषाओं के प्रयोग की सुविधाओं के विकास के संबंध में इलैक्ट्रानिकी विभाग तथा इलैक्ट्रानिकी आयोग द्वारा विशेष कदम उठाए जा रहे हैं। ई. सी. आई. एल., बिरला इंस्टीट्यूट पिलानी, टाटा ब्रदर्स बंबई ने ऐसे कंप्यूटरों के प्रोटोटाइप बनाए हैं, जिनमें हिन्दी का प्रयोग किया जा सकेगा।
संचार मंत्रालय के अधीन एक सरकारी उपक्रम हिन्दुस्तान टेलीप्रिंटर्स लिमिटेड द्वारा इलैक्ट्रानिकी टेलीप्रिंटर्स बनाए जाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं। इलैक्ट्रानिक टेलीप्रिंटर्स के देवनागरी कुंजी पटल की डिजाइन निश्चित करने के लिए एक समिति का गठन किया जा चुका है।
सभी प्रकार के इलैक्ट्रानिक टाइपराइटरों, पतालेखी मशीनों और पिनप्वाइंट टाइपराइटरों के निर्माण के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं।
भारत सरकार के ऐसे प्रेसों की हिन्दी मुद्रण क्षमता कुछ समय पहले तक संतोषजनक नहीं थी। आवास तथा निर्माण मंत्रालय के सहयोग से मुद्रण निदेशालय ने हिन्दी मुद्रण क्षमता बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास किए, जिससे इस दिशा में काफ़ी प्रगति हुई है। पहले हिन्दी मुद्रण क्षमता केवल 400 पृष्ठ प्रतिदिन थी, अब यह बढ़कर 1200 पृष्ठ प्रतिदिन तक पहुँच गई है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होगा कि राजभाषा के रूप में हिन्दी के प्रगामी प्रयोग में पर्याप्त वृद्धि हुई है, किंतु अब भी इसके मार्ग में बहुत सी रूकावटें हैं। यद्यपि अब तक पर्याप्त संख्या में सांविधानिक एवं गैर सांविधानिक साहित्य का अनुवाद हो चुका है, फिर भी अभी अनेक मैनुअलों, नियमों, अधिनियमों आदि का हिन्दी अनुवाद नहीं हो पाया है, और सभी अनूदित साहित्य का अभी तक न तो प्रकाशन हो पाया है और न प्रचार ही। परिणाम स्वरूप उनसे संबंधित क्षेत्रों में हिन्दी का प्रयोग करने में कठिनाइयाँ आ रही हैं। जो सरकारी कर्मचारी हिन्दी जानते भी हैं, वे भी द्विभाषिक रूप में कार्य करने की छूट होने के कारण हिन्दी के बजाए अंग्रेज़ी में ही काम करना पसन्द करते हैं। इसका कारण यह है कि एक तो वे पहले से ही अंग्रेज़ी में काम करने के अभ्यस्त रहे हैं, दूसरे हिन्दी में काम करने में वे कुछ हीनता अथवा संकोच का अनुभव करते हैं।
हिन्दी भाषी राज्य सरकारें भी, जहाँ पर अधिकांश कर्मचारी हिन्दी जानते हैं, अभी तक संपूर्ण कार्य हिन्दी में नहीं कर रही हैं। इससे अन्य राज्यों में हिन्दी का प्रयोग करने पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
यद्यपि राजभाषा अधिनियम एवं राजभाषा नियम के अनुसार अनेक कागज पत्रों एवं प्रकाशनों को द्विभाषिक रूप में अथवा हिन्दी और अंग्रेज़ी में अलग अलग जारी करना पड़ता है, तथापि सरकारी प्रेसों की हिन्दी की मुद्रण क्षमता अभी भी संतोषजनक नहीं है। इससे न तो हिन्दी के प्रकाशन समय पर निकल पाते हैं और न ही समुचित मात्रा में हिन्दी का प्रयोग बढ़ पाता है। जिन सरकारी कर्मचारियों ने हिन्दी, हिन्दी आशुलिपि अथवा हिन्दी टाइपिंग की विभिन्न परीक्षाएँ पास कर ली हैं, वे भी हिन्दी में काम करने में संकोच करते हैं। राजभाषा नीति के कार्यान्वयन के लिए अभी तक मंत्रालयों/विभागों, कार्यालयों आदि में समुचित हिन्दी स्टाक की व्यवस्था नहीं हो पाई है। हिन्दी में काम करने का अभी तक अच्छा वातावरण नहीं बन पाया है और प्राय: सभी यह सोचते हैं कि उनके बजाए किसी और को हिन्दी में काम करना है।
इन कठिनाइयों के बावजूद, विविध प्रयासों के परिणामस्वरूप, हिन्दी का प्रयोग दिन पर दिन बढ़ रहा है। भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों, कार्यालयों, उपक्रमों आदि से बराबर यह अनुरोध किया जा रहा है कि वार्षिक कार्यक्रमों को पूरा करने का भरसक प्रयास करें। हिन्दी में सर्वाधिक काम करने वाले मंत्रालयों/विभागों को शील्ड देने की व्यवस्था की गई है। अंग्रेज़ी के अतिरिक्त हिन्दी में सरकारी काम करने के लिए आशुलिपिकों तथा टाइपिस्टों को प्रोत्साहन भत्ता देने के आदेश जारी किए गए हैं। हिन्दी कार्यशालाओं के आयोजन से भी कर्मचारियों की झिझक दूर करके उन्हें हिन्दी में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। राजभाषा विभाग तथा अन्य मंत्रालयों आदि के अधिकारियों और भिन्न भिन्न कार्यालयों में जाकर वहाँ हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के मामले में अनुभव की जाने वाली कठिनाइयों के समाधान का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रकार हिन्दी में काम करने का वातावरण बनाने के लिए हर संभव उपाय किए जा रहे हैं।
राजभाषा के प्रगामी प्रयोग के संबंध में छठी पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत वर्ष 1983-84 की वार्षिक योजना के लिए 8 योजनाएँ –

  1. हिन्दी के प्रगामी प्रयोग के बारे में यांत्रिक साधनों के विकास के लिए यांत्रिक कक्ष की स्थापना,
  2. बंबई में एक क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय की स्थापना,
  3. संगोष्ठियाँ और प्रदशर्नियाप,
  4. नई दिल्ली में केंद्रीय राजभाषा संस्थान की स्थापना,
  5. वर्तमान हिन्दी शिक्षण योजना का सुदृढ़ बनाना – सर्वकार्यकारी अधिकारियों का मानदेय बढ़ाना,
  6. अनुसंधान एकक को सुदृढ़ बनाना,
  7. केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो को सुदृढ़ बनाना – अनुवाद कार्य की क्षमता शक्ति बढ़ाने की योजना और
  8. अनुवाद प्रशिक्षण कार्यक्रम का विस्तार करने से संबंधित ये योजना आयोग के विचारार्थ भेजी गई। प्रसन्नता की बात है कि योजना आयोग ने इन योजनाओं को गुण-अवगुण के आधार पर उसका अनुमोदन कर दिया है। इसके अतिरिक्त हमारी मंजिल अभी कुछ दूर है, किंतु हम सशक्त और संतुलित कदमों से उसकी ओर बढ़ रहे हैं। यही आशा है कि हम उस मंजिल तक शीघ्र ही पहुँच जायेंगे।



टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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39. नेपाल में हिन्दी और हिन्दी साहित्य श्री सूर्यनाथ गोप
विविधा
40. तुलनात्मक भारतीय साहित्य एवं पद्धति विज्ञान का प्रश्न डॉ. इंद्रनाथ चौधुरी
41. भारत की भाषा समस्या और हिन्दी डॉ. कुमार विमल
42. भारत की राजभाषा नीति श्री कृष्णकुमार श्रीवास्तव
43. विदेश दूरसंचार सेवा श्री के.सी. कटियार
44. कश्मीर में हिन्दी : स्थिति और संभावनाएँ प्रो. चमनलाल सप्रू
45. भारत की राजभाषा नीति और उसका कार्यान्वयन श्री देवेंद्रचरण मिश्र
46. भाषायी समस्या : एक राष्ट्रीय समाधान श्री नर्मदेश्वर चतुर्वेदी
47. संस्कृत-हिन्दी काव्यशास्त्र में उपमा की सर्वालंकारबीजता का विचार डॉ. महेन्द्र मधुकर
48. द्वितीय विश्व हिन्दी सम्मेलन : निर्णय और क्रियान्वयन श्री राजमणि तिवारी
49. विश्व की प्रमुख भाषाओं में हिन्दी का स्थान डॉ. रामजीलाल जांगिड
50. भारतीय आदिवासियों की मातृभाषा तथा हिन्दी से इनका सामीप्य डॉ. लक्ष्मणप्रसाद सिन्हा
51. मैं लेखक नहीं हूँ श्री विमल मित्र
52. लोकज्ञता सर्वज्ञता (लोकवार्त्ता विज्ञान के संदर्भ में) डॉ. हरद्वारीलाल शर्मा
53. देश की एकता का मूल: हमारी राष्ट्रभाषा श्री क्षेमचंद ‘सुमन’
विदेशी संदर्भ
54. मारिशस: सागर के पार लघु भारत श्री एस. भुवनेश्वर
55. अमरीका में हिन्दी -डॉ. केरीन शोमर
56. लीपज़िंग विश्वविद्यालय में हिन्दी डॉ. (श्रीमती) मार्गेट गात्स्लाफ़
57. जर्मनी संघीय गणराज्य में हिन्दी डॉ. लोठार लुत्से
58. सूरीनाम देश और हिन्दी श्री सूर्यप्रसाद बीरे
59. हिन्दी का अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य श्री बच्चूप्रसाद सिंह
स्वैच्छिक संस्था संदर्भ
60. हिन्दी की स्वैच्छिक संस्थाएँ श्री शंकरराव लोंढे
61. राष्ट्रीय प्रचार समिति, वर्धा श्री शंकरराव लोंढे
सम्मेलन संदर्भ
62. प्रथम और द्वितीय विश्व हिन्दी सम्मेलन: उद्देश्य एवं उपलब्धियाँ श्री मधुकरराव चौधरी
स्मृति-श्रद्धांजलि
63. स्वर्गीय भारतीय साहित्यकारों को स्मृति-श्रद्धांजलि डॉ. प्रभाकर माचवे