एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

महाभारत विराट पर्व अध्याय 4 श्लोक 48-58

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

चतुर्थ (4) अध्याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)

महाभारत: विराट पर्व: चतुर्थ अध्याय: श्लोक 48-58 का हिन्दी अनुवाद

राजा के समान वेशभूषा न धारण करे। उसके अत्यन्त निकट न रहे। उसके सामने उच्च आसन पर न बैठे। अपने साथ राजा ने जो गुप्त सलाह की हो उसें दूसरों पर प्रकट न करें। ऐसा करने से ही मनुष्य राजा का प्रिय हो सकता है । यदि राजा ने किसी काम पर नियुक्त किया हो, तो उसमें घूस के रूप में थोड़ा भी धन न लें; क्योंकि जो इस प्रकार चोरी से धन लेता है, उसे एक दिन बन्धन अथवा वध का दण्ड भोगना पड़ता है। राजा प्रसन्न होकर सवारी, वस्त्र, आभूषण तथा और भी जो कोई वस्तु दे, उसी को सदा धारण करें या उपयोग में लायें। ऐसा करने से वह राजा का अधिक प्रिय होता है। तात युधिष्ठिर एवं पाण्डवों ! इस प्रकार प्रयत्नपूर्वक अपने मन को वश में रखकर पूर्वोक्त रीति से उत्तम बर्ताव करते हुए इस तेरहवें वर्ष को व्यतीत करो और इसी रूप में रहकर एश्वर्य पाने की इच्छा करो। तदनन्तर अपने राज्य में आकर इच्छानुसार व्यवहार करना। युधिष्ठिर बोले- ब्रह्मन् ! आपका भला हो। आपने हमें बहुत अच्छी शिक्षा दी। हमारी माता कुन्ती तथा महाबु0िमान् विदुरजी को छोडत्रकर दूसरा कोई नहीं है, जो हमें ऐसी बात बताये। अब हमें इस दुःख सागर से पार होने, यहाँ से प्रस्थान करने और विजय पाने के लिये जो कर्तव्य आवश्यक हो, उसे आप पूर्ण करें। वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! राजा युधिष्ठिर के ऐसा कहने पर विप्रवर धौम्यजी ने यात्रा के समय जो आवश्यक शास्त्रविहित कर्तव्य है, वह सब विधिपूर्वक सम्पन्न किया। पाण्डवों की अग्निहोत्र सम्बन्धी अग्नि को प्रज्वलित करके उन्होंने उनकी समृद्धि, वृद्धि राज्यलाभ तथा पृथ्वी पर विजय प्राप्ति के लिये वेदमन्त्र पढ़कर होम किया। तत्पश्चात् पाण्डवों ने अग्नि तथा तपस्वी ब्राह्मणों की परिक्रमा करके द्रौपदी को आगे रखकर वहाँ से प्रस्थान किया। कुल छह व्यक्ति ही आसन छोड़कर एक साथ चले गये। उन पाण्डववीरों के चले जाने पर जपयज्ञ करने वालों में श्रेष्ठ धौम्यजी उस अग्निहोत्र सम्बन्धी अग्नि को साथ लेकर पान्चाल देश में चले गये। इन्द्रसेन आदि सेवक भी पूर्वोक्त आदेश पाकर यदुवंशियों की नगरी द्वारका में जा पहुँचे और वहाँ स्वयं सुरक्षित हो रथ और घोड़ो की रक्षा करते हुए सुखपूर्वक रहने लगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत पाण्डव प्रवेशपर्व में धौम्योपदेश सम्बन्धी चौथा अध्याय पूरा हुआ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख