मेरी भव बाधा हरो -रांगेय राघव

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मेरी भव बाधा हरो -रांगेय राघव
'मेरी भव बाधा हरो' उपन्यास का आवरण पृष्ठ
लेखक रांगेय राघव
प्रकाशक राजपाल एंड संस
ISBN 81-7028-394-9
देश भारत
भाषा हिन्दी
प्रकार उपन्यास

मेरी भव बाधा हरो भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार, कहानीकार और उपन्यासकार रांगेय राघव द्वारा लिखा गया एक श्रेष्ठ उपन्यास है। यह उपन्यास 'राजपाल एंड संस' प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया था। राघव जी का यह उपन्यास महाकवि बिहारीलाल के जीवन पर आधारित अत्यंत रोचक मौलिक रचना है। यह उपन्यास उस युग के समाज, राजनीति और धार्मिक जीवन का भी सजीव चित्रण करता है। 'मेरी भव बाधा हरो' का द्वितीय संस्करण 1976 में प्रकाशित हुआ।

रीतिकालीन श्रेष्ठ कवि बिहारीलाल के जीवन पर डॉ. रांगेय राघव ने मेरी भव बाधा हरो नामक यह उपन्यास रचा है। संस्कृताचार्यों ने कविता को नौ रसों में बाँटा है। ये कविता के रंग होते हैं। प्रेम, भक्ति, क्रोध, हास्य, सौंदर्य आदि हिन्दी साहित्य में तुलसी भक्ति रस के, सूर वात्सल्य के हैं तो बिहारी सौंदर्य एवं प्रेम के कवि हैं। इस उपन्यास में लेखक ने बिहारी युगीन समाज की स्थिति का चित्रण किया है। बिहारी युगीन नारी का दुहिता, भगिनी, माता का रूप समाप्त हो गया था, वह केवल विलासिता की मूर्ति बन गई थी। इस उपन्यास के माध्यम से रांगेय राघव ने युगीन परिस्थितियों का भी चित्रण किया है। बिहारी के माध्यम से उपन्यासकार ने मुग़ल कालीन अनेक प्रसिद्ध सम्राटों की गतिविधियों पर प्रकाश डाला है। -

जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सु बीति वहार।
अब अलि रही गुलाब में, अफ्त कंटीली डार॥ [1]

लेखक बिहारीलाल के साहित्य एवं कविता के माध्यम से उपन्यास में देशकाल और वातावरण की करवट को दर्शाया है।[2]

उपन्यास का नाम

मेरी भव बाधा हरो राधा नागर सोय,
जा तन की झाईं परे स्याम हरित द्युति होय।

उपर्युक्त सुप्रसिद्ध पद से इस उपन्यास का नाम लिया गया है। अपनी एकमात्र कृति 'बिहारी सतसई' के ही सहारे अमर हुए सरस हृदय वाले कवि बिहारीलाल का जीवन इस उपन्यास में बहुत सरल तथा सफल रूप से जीवंत किया गया है। कवि बिहारी की श्रृंगार कविताओं ने प्राचीन हिन्दी साहित्य में नवीन मानक स्थापित किये। इस उपन्यास में बिहारी जी के साथ ही कविवर केशवदास, अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना तथा अन्य समकालीन कवियों के रोचक प्रसंग उस बीते हुए युग को एक बार फिर पाठकों के सामने साकार कर देते हैं।[3]

भूमिका

प्राचीन कवियों के जीवन पर उपन्यास लिखना कठिन काम है। क्योंकि उनके संबंध में अधिक सामग्री प्राप्त नहीं होती है। उपलब्ध थोड़ी-बहुत जानकारी के आधार पर ही काफ़ी कुछ कल्पना का सहारा लेकर ही काम चलाना पड़ता है। लेखक रांगेय राघव स्वयं इतिहास के अच्छे विद्वान् रहे हैं और उन्होंने बड़ी योग्यतापूर्वक कविवर बिहारीलाल को तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाओं के बीच प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। उस समय के राजा महाराजा और मुग़ल बादशाह विद्वानों तथा कवियों का विशेष स्वागत करते थे और उन्हें सम्मान तथा संपत्ति इत्यादि देकर समाज में प्रतिष्ठित नागरिक बना देने की भूमिका निभाते थे। बिहारी जी को भी यह सब प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुआ हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। इनके बहुत से संकेत उनके कवित्व में ही प्राप्त होते हैं-

नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहि विकास यहि काल
अली कली ही स्यों बँध्यों, आगे कौन हवाल।

उपन्यासकार रांगेय राघव ने कवि के अन्य अनेक दोहों को उनके साथ घटी अनेक घटनाओं के साथ जोड़ने का सफल प्रयत्न किया है, जैसे- उपर्युक्त दोहा उन्होंने आमेर के राजा को सुन्दरियों के साथ विलास करना छोड़कर राजकाज में ध्यान दिलाने के लिए प्रयुक्त किया है। इन विवरणों में उस समय की राजनीतिक स्थिति तो आती ही है जो हर दिन बदलती रहती थी। ये सब विवरण भी बहुत आकर्षण और प्रभावशाली बन पड़े हैं। ऐतिहासिक व्यक्तियों पर उपन्यास लिखना कठिन काम भले ही हो, यह एक बहुत आवश्यक कार्य भी है। इसका कारण यह है कि पाठक की रुचि सपाट ढंग से लिखी जीवनियों में उतनी नहीं हो सकती, जितनी उसे कथा रूप में पढ़ने में हो सकती है। अंग्रेज़ी में इस प्रकार के प्रयोग बहुत हुए हैं, परन्तु हिन्दी में कम हुए हैं। रांगेय राघव सम्भवतः ऐसे व्यक्तियों पर उपन्यास लिखने वाले प्रथम लेखक थे, जिनकी ओर लेखकों का ध्यान प्रायः कम ही जाता है। उन्होंने इस उपन्यास में बहुत कम पृष्ठों में कविवर बिहारीलाल और उस समय के समाज, जीवन और राजनीति की बहुत रोचक तस्वीर प्रस्तुत की है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हे अलि, अब तो इस गुलाब में कांटे ही रह गये हैं। वे दिन बीत गये जब इनमें फूल थे।
  2. जीवनीपरक साहित्यकारों में डॉ. रांगेय राघव (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2013।
  3. 3.0 3.1 मेरी भव बाधा हरो (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2013।

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