राखीगढ़ी

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राखीगढ़ी
राखीगढ़ी के अवशेष
विवरण राखीगढ़ी सिन्धु सभ्यता का भारतीय क्षेत्रों में धौलावीरा के बाद दूसरा विशालतम ऐतिहासिक नगर है।
राज्य हरियाणा
ज़िला हिसार
उत्खनन राखीगढ़ी का उत्खनन व्यापक पैमाने पर 1997-1999 ई. के दौरान अमरेन्द्र नाथ द्वारा किया गया।
कुल टीले राखीगढ़ी में कुल नौ टीले हैं। उनका नामकरण, शोध की सूक्ष्मता के मद्देनजर आरजीआर से आरजीआर-9 तक किया गया है। आरजीआर-5 का उत्खनन बताता है कि इस क्षेत्र में सर्वाधिक घनी आबादी थी।
संबंधित लेख हड़प्पा, धौलावीरा, सिंधु घाटी सभ्यता
अन्य जानकारी राखीगढ़ी से महत्त्वपूर्ण स्मारक एवं पुरावशेष प्राप्त हुए हैं, जिनमें दुर्ग-प्राचीर, अन्नागार, स्तम्भयुक्त वीथिका या मण्डप, जिसके पार्श्व में कोठरियाँ भी बनी हुई हैं, ऊँचे चबूतरे पर बनाई गई अग्नि वेदिकाएँ आदि मुख्य हैं।
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राखीगढ़ी (अंग्रेज़ी:Rakhigarhi) हरियाणा के हिसार ज़िले में सरस्वती तथा दृषद्वती नदियों के शुष्क क्षेत्र में स्थित एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है। राखीगढ़ी सिन्धु सभ्यता का भारतीय क्षेत्रों में धोलावीरा के बाद दूसरा विशालतम ऐतिहासिक नगर है। राखीगढ़ी का उत्खनन व्यापक पैमाने पर 1997-1999 ई. के दौरान अमरेन्द्र नाथ द्वारा किया गया। राखीगढ़ी से प्राक्-हड़प्पा एवं परिपक्व हड़प्पा युग इन दोनों कालों के प्रमाण मिले हैं। राखीगढ़ी से महत्त्वपूर्ण स्मारक एवं पुरावशेष प्राप्त हुए हैं, जिनमें दुर्ग-प्राचीर, अन्नागार, स्तम्भयुक्त वीथिका या मण्डप, जिसके पार्श्व में कोठरियाँ भी बनी हुई हैं, ऊँचे चबूतरे पर बनाई गई अग्नि वेदिकाएँ आदि मुख्य हैं।

प्राचीनतम सभ्यता के साक्ष्य

राखीगढ़ी में दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता के साक्ष्य मिले हैं। हरियाणा सरकार ने राखीगढ़ी को सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा शहर होने का दावा किया है। उल्लेखनीय है कि यह सभ्यता ईसा पूर्व 7500 वर्ष तक पुरानी है। हरियाणा के पुरातत्व विभाग के अब तक हुए शोध के आधार पर राखीगढ़ी की बसावट का कुल क्षेत्र सात किलोमीटर में फैले होने की संभावना है। पुरातन शहर राखीगढ़ी की आबादी दस से पचास लाख के बीच हो सकती है। इस सभ्यता पर शोध जारी है, कार्य पूरा होने के बाद और महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक जानकारियां सामने आ सकती हैं। इस सभ्यता के पाकिस्तान, बलूचिस्तान, पंजाब, हरियाणा और राजस्थानअफ़ग़ानिस्तान में होने के भी संकेत हैं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में पुरातन सभ्यता के मिले साक्ष्यों से यह इलाका बड़ा हो सकता है। राखीगढ़ी में खुदाई से प्राप्त अवशेषों से माना जा रहा है कि यह सिंधु घाटी सभ्यता का दुनिया का सबसे बड़ा चौथा शहर रहा होगा। राखीगढ़ में सड़कें, जल निकासी व्यवस्था और उम्दा किस्म के बर्तन मिले हैं। इससे उस काल के लोगों के जीवन स्तर के बारे में जानकारी मिलती है। वर्ष 1922 से 2015 के बीच सिंधु घाटी सभ्यता के जितने भी साक्ष्य सामने आये हैं, उनमें ज्यादातर सरस्वती नदी के इर्द-गिर्द बसे होने के सबूत मिले हैं। इसलिए सिंधु घाटी सभ्यता को सरस्वती नदी सभ्यता का नाम भी दिया जा सकता है।

राखीगढ़ी में मिले सात स्तूप

राखीगढ़ी में खुदाई के दौरान कुल सात स्तूप मिले हैं। इनमें चार और पांच नंबर स्तूप के नीचे सबसे बड़ी आबादी होने के प्रमाण मिले हैं। सात नंबर स्तूप में अंतिम संस्कार ग्राउंड में मिले सभी नरकंकाल के सिर उत्तर की तरफ हैं। इन कंकाल से यह जानने की कोशिश की जा रही है कि राखीगढ़ी में कितने साल पहले आबादी की बसावट थी।[1]

राखी शाहपुर

राखीगढ़ी को राखी शाहपुर के नाम से जाना जाता है और राखी ख़ास, हिसार जिले का एक गांव है। इसका ऐतिहासिक महत्व, 1963 में पहली खुदाई और 1997 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के माध्यम से की खुदाई के दौरान खोज की गयी थी। माना जाता है कि वर्तमान में गांव उस जगह पर है जहाँ 2,000 ईसा पूर्व के आसपास सरस्वती नदी सूख गयी थी। यह गाँव 2.2 कि.मी. वर्ग में फैला हुआ है और हड़प्पा और सिंधु घाटी सभ्यता का एक हिस्सा भी है। ऐतिहासिक राखीगढ़ी 224 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है और देश में सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है और सबसे बड़ी साइट मोहनजोदड़ो से भी बड़ा है। खुदाई में सिंधु घाटी सभ्यता की उन दिनों में उन्नति का खुलासा हुआ। उत्खनन में ईंट से बनी सीवेज लाइन, मिट्टी की मूर्तियां, पीतल की कलाकृतियां, वजन, पीतल और सुइयों से बने मछली हुक और नालियों को पाया गया। अन्य महत्वपूर्ण खोज थीं- पीतल के बर्तन पर सोने और चांदी का काम, लगभग 3,000 अर्द्ध कीमती पत्थरों से युक्त एक सोने की ढलाई, कब्रिस्तान में 11 कंकाल, टेराकोटा चूड़ियाँ, शंख, सोने के आभूषण और कई और अधिक चीज़ें, उनमें से कुछ 5000 साल से अधिक पुराने थे।[2]

राखीगढ़ी में मिले अवशेष
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एक सभ्यता की संभावना

डेक्कन कॉलेज, पुणे के खुदाई व पुरातत्त्व विशेषज्ञ प्रोफेसर वसंत शिंदे और हरियाणा के पुरातत्त्व विभाग द्वारा किए गए शोध और खुदाई के अनुसार लगभग 5500 हेक्टेअर में फैली यह राजधानी ईसा से लगभग 3300 वर्ष पूर्व मौजूद थी। इन प्रमाणों के आधार पर यह तो तय हो ही गया है कि राखीगढ़ी की स्थापना उससे भी सैकड़ों वर्ष पूर्व हो चुकी थी। खुदाई के मध्य पाए गए नरकंकालों से लिए गए डीएनए नमूनों का अध्ययन जारी है और अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राखीगढ़ी के अवशेषों का विश्लेषण किया जा रहा है। अब तक यही माना जाता रहा है कि इस समय पाकिस्तान में स्थित हड़प्पा और मुअनजोदड़ो ही सिंधुकालीन सभ्यता के मुख्य नगर थे। इस गांव में खुदाई और शोध का काम रुक-रुक कर चल रहा है। पहली बार यहाँ 1963 में खुदाई हुई थी और तब इसे सिंधु-सरस्वती सभ्यता का सबसे बड़ा नगर माना गया। उस समय के शोधार्थियों ने सप्रमाण घोषणाएं की थीं कि यहां दफ्न नगर, कभी मुअनजोदड़ो और हड़प्पा से भी बड़ा रहा होगा। पुरातत्त्वविदों का मानना है कि हड़प्पा सभ्यता का प्रारंभ इसी राखीगढ़ी से माना जा सकता है। 1997 में यहाँ से, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग को जो कुछ भी उत्खनन के मध्य मिला, उससे पहला तथ्य यह उभरा कि ‘राखीगढ़ी’ शहर लगभग साढ़े तीन किलोमीटर की परिधि में फैला हुआ था। यहाँ से जो भी पुराने अवशेष मिले उनकी उम्र पांच हज़ार वर्ष से भी अधिक है।

राखीगढ़ी में टीलें

राखीगढ़ी में कुल नौ टीले हैं। उनका नामकरण, शोध की सूक्ष्मता के मद्देनजर आरजीआर से आरजीआर-9 तक किया गया है। आरजीआर-5 का उत्खनन बताता है कि इस क्षेत्र में सर्वाधिक घनी आबादी थी। वैसे भी इस समय यहां पर आबादी घनी है इसलिए आरजीआर-5 में ज्यादा उत्खनन संभव नहीं है। लेकिन आरजीआर-4 के कुछ भागों में उत्खनन संभव है। 2014 में राखीगढ़ी की खुदाई से प्राप्त वस्तुओं की ‘रेडियो-कार्बन डेटिंग’ के अनुसार इन अवशेषों का संबंध हड़प्पा-पूर्व और प्रौढ़-हड़प्पा काल के अलावा उससे भी हज़ारों वर्ष पूर्व की सभ्यता से भी है। आरजीआर-6 से प्राप्त अवशेष इस सभ्यता को लगभग 6500 वर्ष पूर्व तक ले जाते हैं।

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सभी शोध विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि राखीगढ़, भारत-पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान का आकार और आबादी की दृष्टि सबसे बड़ा शहर था। इस क्षेत्र में विकास की तीन-तीन परतें मिलीं हैं। लेकिन अभी भी इस क्षेत्र का विस्तृत उत्खनन बकाया है। प्राप्त विवरणों के अनुसार इस समुचित रूप से नियोजित शहर की सभी सड़कें 1.92 मीटर चौड़ी थीं। यह चौड़ाई काली बंगा की सड़कों से भी ज्यादा है।

कुछ चारदीवारियों के मध्य कुछ गड्ढे भी मिले हैं, जो संभवत: किन्हीं धार्मिक आस्थाओं से जुड़ी बलि-प्रथा के लिए प्रयुक्त होते थे। एक ऐसा बर्तन भी मिला है, जो सोने और चांदी की परतों से ढका है। इसी स्थल पर एक ‘फाउंड्री’ के भी चिह्न मिले हैं, जहां संभवत: सोना ढाला जाता होगा। इसके अलावा टेराकोटा से बनी असंख्य प्रतिमाएं तांबे के बर्तन और कुछ प्रतिमाएं और एक ‘फर्नेस’ के अवशेष भी मिले हैं। एक श्मशान-गृह के अवशेष भी मिले हैं, जहां 8 कंकाल भी पाए गए हैं। उन कंकालों का सिर उत्तर दिशा की ओर था। उनके साथ कुछ बर्तनों के अवशेष भी हैं। शायद यह उन लोगों की कब्रगाह थी, जो मुर्दों को दफ्नाते थे।

अप्रैल 2015 में आरजीआर-7 की खुदाई के मध्य चार नर कंकाल भी मिले। इनमें से तीन की पहचान पुरुष और एक की स्त्री के रूप में की जा सकी है। इनके पास से भी कुछ बर्तन और कुछ खाद्य-अवशेष मिले। इस सारी खुदाई के मध्य नवीनतम टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया गया ताकि संभव हो तो इन अवशेषों का डीएनए टैस्ट भी हो सके। इससे यह भी पता चल पाएगा कि लगभग 4500 वर्ष पहले हड़प्पन लोगों की शारीरिक संरचना कैसी थी। राखीगढ़ी में ‘हाकड़ा वेयर’ नाम से चिह्नित ऐसे अवशेष भी मिले हैं, जिनका निर्माण काल सिंधु घाटी सभ्यता और सूख चुकी सरस्वती नदी घाटी के काल से मेल खाता है। इस क्षेत्र में आठ ऐसी समाधियां और कब्रें भी मिली हैं, जिनका निर्माण काल लगभग पांच हज़ार वर्ष पूर्व तक तो ले ही जाता है। एक कंकाल तो लकड़ी के भुरभुरे हो चुके ताबूत में मिला। कुछ विशिष्ट समाधियों और कब्रों पर छतरियां बनाने की प्रथा भी थी।

वर्तमान में उत्खनन बंद

वर्तमान में राखीगढ़ी में कुछ समय से उत्खनन बंद है, क्योंकि इस क्षेत्र में राजकीय अनुदानों का दुरुपयोग संबंधी आरोपों की जांच इन दिनों सीबीआई कर रही है। मई 2012 में ‘ग्लोबल हैरिटेज फंड’ ने इसे, एशिया के दस ऐसे ‘विरासत-स्थलों’ की सूची में शामिल किया है, जिनके नष्ट हो जाने का खतरा है। एक अख़बार की विशेष रिपोर्ट के अनुसार इस क्षेत्र में कुछ ग्रामीणों और कुछ पुरातत्त्व-तस्करों ने अवैध रूप से कुछ क्षेत्रों में खुदाई की थी और यहां से कुछ दुर्लभ अवशेष अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी बेचे गए हैं। आसपास के कुछ क्षेत्रों में नए निजी निर्माण भी देखे जा सकते हैं। वैसे, 1997 से लेकर अब तक सर्दियों के मौसम में तीन बार अधिकृत रूप में भी खुदाइयां हो चुकी हैं और जो कुछ भी मिला है, वह सिंधु-सरस्वती सभ्यता को एक खुली और विस्तृत दृष्टि से देखने पर विवश करता है। राखीगढ़ी का पुरातात्त्विक महत्त्व विशिष्ट है। इस समय यह क्षेत्र पूरे विश्व के पुरातत्त्व-विशेषज्ञों की दिलचस्पी और जिज्ञासा का केंद्र है। यहां बहुत से काम बकाया हैं, जो अवशेष मिले हैं, उनका समुचित अध्ययन अभी शेष है। उत्खनन का काम अब भी अधूरा है।

स्थापत्य कला

भारतीय स्थापत्य कला के इतिहास का अध्ययन सैंधव सभ्यता से जोड़ता है। मुअनजोदड़ो और हड़प्पा के भग्नावशेष गवाही देते हैं कि ये दोनों सभ्यताएं लगभग समकालीन थीं। मुअनजोदड़ो, पाकिस्तान सिंध प्रदेश के ज़िला लरकाना में स्थित है और हड़प्पा ज़िला मौंटगुमरी[3] में रावी के किनारे स्थित है। अवशेष बताते हैं कि ये दोनों सभ्यताएं ईरान के एलाम क्षेत्र और इराक के दजला-फरात की घाटी में बसे नगरों- सुमेरी, कीश, ऊर बाबुल और असूरी तक फैली हुई थीं। इन सारे अवशेषों में एकरूपता है। विकास के क्षेत्र के साथ-साथ इनका स्वरूप भी बदलता रहा। अध्ययन में एक तथ्य यह भी उभरता है कि इस काल की सभ्यता मातृसत्तात्मक थी। वैसे भी उस काल के महातृरूपेण देवी की पूजा की ओर विशेष रुझान इसी व्यवस्था का संकेत देते हैं। सिंधु सभ्यता के विषय में प्राप्त जानकारी का इतिहास भी बेहद रोचक है। पिछली सदी में एक प्रख्यात भारतीय पुरातत्त्व विशेषज्ञ राखालदास वंद्योपाध्याय को सबसे पहले कुषाण कालीन स्तूप और बौद्ध अवशेष मिले थे। उन्हीं अवशेषों के नीचे सोया था एक विशाल नगर।

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वंद्योपाध्याय से पूर्व एक युवा पुरातत्त्व विशेषज्ञ ननिगोपाल मजूमदार ने उत्खनन का जोखिम उठाया था, मगर उसकी खोदाई के मध्य ही बलोच डाकुओं के एक दल ने उसे गोली मार दी। वैसे भी उत्खनन का इतिहास बताता है कि इन दोनों प्राचीन सम्यताओं के साथ तोड़फोड़, लूटमार और छेड़छाड़ करने के आरोपी दूसरी तीसरी सदी के बौद्ध भिक्षु भी थे और उस काल के वे पंजाबी ग्रामीण व ब्रिटिश इंजीनियर भी दोषी थे, जिन्होंने पुराने गड़े खजानों की तलाश में अवशेषों से छेड़छाड़ की। मगर जो भी अब तक मिला है वह बताता है कि अविभाजित भारत के उस भाग में लगभग चार हजार वर्ष पूर्व भी सभ्यता एवं निर्माण कलाएं, पूर्णतया विकसित थीं। मुअनजोदड़ो के भग्नावशेषों से प्राप्त उत्तरकालीन मुहरों का ईसा से लगभग छाई हजार वर्ष पुराना काल इसी तथ्य की पुष्टि करता है। हड़प्पा की खोदाई में एक कोण के आकार का शृंगारदान उन शृंगारदानों की तरह का है जो इस खोदाई में राजाओं की कब्रों पर भी मौजूद पाए गए। इसी क्रम में (वर्तमान) पाकिस्तान में अनेक ऐसे हिंदू मंदिरों के अवशेष मौजूद हैं जो उस काल की सभ्यता, संस्कृति और आध्यात्मिक आचरण की गवाही देते हैं।[4]

प्राचीन सभ्यता का विकसित नगर

हरियाणा के हिसार से करीब 42 किलोमीटर हांसीजींद रोड पर राखीगढ़ी गांव में मिले हजारों साल पुरानी सभ्यता के अवशेष उत्सुकता जगाने वाले हैं। पुरातत्त्व में रुचि रखने वाले कुछ लोग दूरदूर से यहां आ रहे हैं। आबादी से सटे हुए एक टीले पर उत्खनन का काम चल रहा है। पुरातत्त्ववेत्ता टीले के नीचे 3-3 सभ्यताओं का दावा कर रहे हैं। इस उत्खनन से पुरातत्त्ववेत्ताओं को 2,500 से 5 हजार साल पुरानी सभ्यताओं के प्रमाण मिल रहे हैं। पुरातत्त्ववेत्ता भारतीय उपमहाद्वीप में हड़प्पा सभ्यता की 5 बड़ी आबादी में से एक राखीगढ़ी के होने का दावा कर रहे हैं। सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन नदीघाटी सभ्यताओं में से एक है। इस का विकास सिंधु और घग्घर के किनारे हुआ। मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इस के प्रमुख केंद्र माने जाते हैं। ब्रिटिशकाल में हुई खुदाई के आधार पर इतिहासकारों और पुरातत्त्ववेत्ताओं का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे व उजड़े थे। इस सभ्यता के खोजे गए केंद्रों में से ज्यादातर स्थल सरस्वती नदी और उस की सहायक नदियों के आसपास हैं। अभी तक कुल खोजों में से 3 फीसदी का भी उत्खनन नहीं हो पाया है।

राखी शाहपुर और राखीखास

पुरातत्त्ववेत्ताओं का मानना है कि इस सभ्यता का क्षेत्र विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताओं के क्षेत्र से कई गुना विशाल था। दरअसल, राखी-गढ़ी 2 जुड़वां गांव हैं। राज्य सरकार के राजस्व रिकार्ड में राखी शाहपुर और राखीखास 2 अलग-अलग गांव हैं, लेकिन दोनों गांवों के क्षेत्र में पुरानी विरासत मिलने के कारण पुरातत्त्व विभाग ने इन गांवों को अंतर्राष्ट्रीय विरासत के लिए एक ही नाम राखीगढ़ी दे दिया है। गांव के करीब 350 एकड़ में 9 टीले मिले हैं जो विशाल क्षेत्र में फैले हुए हैं। पुरातत्त्व विभाग ने इन टीलों को 1 से 9 नंबर तक नाम दे रखे हैं। हरेक टीले की अपनी अलग विशेषता है। इन में से 5 टीले एकदूसरे से जुड़े हुए हैं। इन में 2 टीले कम घनत्व आबादी क्षेत्र के हैं।

हर टीले की अपनी विशेषता

टीला नंबर 6 हड़प्पनों का आवासीय क्षेत्र था। इससे पता चलता है कि वे लोग कैसे रहते थे। टीला नंबर 4 से अनुमान है कि वे यहाँ कब, कैसे स्थापित हुए। पुरातत्त्ववेत्ताओं का अनुमान है कि जब ये बाशिंदे यहां आए थे तो टीला नंबर 6 पर बसे थे। यहाँ हड़प्पाकाल से पूर्व के तथ्य भी मिले हैं। टीला नंबर 7 में हाल ही में 4 नर कंकाल मिले हैं। इन में से 2 पुरुषों के 1 स्त्री का और 1 बच्चे का है। कंकाल के पास मिट्टी के बरतन और अनाज मिले हैं। चूडि़यां भी मिली हैं। कहा जा रहा है कि उस समय के लोग पुनर्जन्म में यकीन रखते थे। मृत आदमी की लंबाई 5 फुट 7 इंच, उम्र करीब 50 साल, औरत की लंबाई 5 फुट 4 इंच, उम्र करीब 30 साल और बच्चे की उम्र लगभग 10 साल होने का अनुमान है। यहाँ और भी कंकाल हैं। यह जगह शहर के बाहरी हिस्से में कब्रगाह थी। करीब 50 एकड़ क्षेत्र में फैले इस टीले में स्मारक भी मिले हैं। टाइगर की आकृति वाली मुहर भी मिली है जो व्यापार के लिए इस्तेमाल की जाती थी। विभिन्न प्रकार के औजार मिले हैं जो शिकार और मछली पकड़ने के काम आते थे। मछली पकड़ने के लिए तांबे के बने हुक मिले हैं। पौराणिक चरित्र वाले खिलौने प्राप्त हुए हैं। दरअसल, 1993 में पुरातत्त्व विभाग ने राखीगढ़ी की यह जमीन ले ली थी। इस से कुछ वर्ष पहले पता चला था कि राखीगढ़ी प्राचीन हड़प्पा, मोहनजोदड़ो सभ्यता का विशाल हिस्सा है। 2012 से पुरातत्त्व विभाग के साथ डेक्कन कालेज एवं रिसर्च इंस्टिट्यूट, पुणे मिल कर खनन करवा रहा है। बीच बीच में विदेशी विश्वविद्यालयों के शोधार्थी भी आते जाते हैं। इन में दक्षिण कोरिया की सिओल यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कौलर भी उत्खनन के लिए आ चुके हैं। खुदाई से जाहिर हुआ है कि यहां सुव्यवस्थित नगरीय व्यवस्था थी। हड़प्पा काल के अन्य शहरों की भी बसावट नियोजित तरीके से थी। यहाँ बनाई गई पक्की ईंटों के मकान मिल रहे हैं और समुचित ड्रेनेज व्यवस्था थी। घरों में बड़े कमरे, अनाज भंडारण, स्नानागार बने हैं। मिट्टी के फर्श पर जानवरों की बलि के गड्ढे, तिकोने और गोल हवनकुंड आदि उस काल के रीति-रिवाजों के प्रमाण खुदाई में मिले हैं। उस काल में सिरेमिक उद्योग पनप चुका था। प्रमाण के तौर पर भांड, तश्तरी, गुलदान, पानदान, जाम, जार, प्लेटें, कप, प्याले, हांडी आदि चीजें मिल रही हैं। इस सभ्यता के विनाश के कारणों पर पुरातत्त्ववेत्ता एकमत नहीं हैं। बर्बर आक्रमण, बाढ़, भूकंप, महामारी जैसे अलग-अलग तर्क हैं।[5]

मछलियां पकड़ने के शौकीन थे राखीगढ़ी के पूर्वज

खुदाई के दौरान मिले नेट सिंकर व अन्य सामान

हड़प्पाकाल में सरस्वती और दृष्टवती नदियों के शुष्क क्षेत्रों में बसे राखीगढ़ी में रहने वाले लोगों को मछलियां पकड़ने का भी शौक था। वे इसके लिए मछलियां पकड़ने के जाल व नेट सिंकर (मछली पकड़ने के लिए जाल को पानी में डुबोने वाला भारी पत्थर) का इस्तेमाल करते थे। इस बात का खुलासा इस समय राखीगढ़ी गांव में चल रही खुदाई के दौरान हुआ है। यहां पर पुणे की डेक्कन यूनिवर्सिटी, हरियाणा के पुरातत्व विभाग व दक्षिणी कोरिया की सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी एक पंचवर्षीय परियोजना के तहत खुदाई कर रही है और अब इस योजना का तीसरा साल चल रहा है। राखीगढ़ी की खुदाई के दौरान अन्य सामानों के साथ ही नेट सिंकर भी मिले हैं। यह नेट सिंकर मछलियां पकड़ने के जाल को पानी में डुबोने के काम आता था। इससे सिद्ध होता है कि उस समय के लोग मछलियां पकड़ने का शौक रखते थे और मछलियां उनके भोजन का एक हिस्सा थी। राखीगढ़ी में मिला सामान इतना ज्यादा है कि उससे एक नहीं बल्कि कई म्यूजियम बन सकते हैं। इन सामानों में मिट्टी के बर्तन, टेरेकोटा के केक, क्ले बॉल, खिलौने, आभूषण, चूड़ियां, स्टैपू, बाट के अलावा नेट सिंकर प्रमुख हैं।[5]

हड़प्पा सभ्यता का मेगा सिटी

हड़प्पा संस्कृति को लेकर राखीगढ़ी दुनिया का सबसे बड़ा स्थल है। अब तक हड़प्पा संस्कृति की ये साइट 5 हजार वर्ष पुरानी मानी जाती थी लेकिन अब इतिहास बदलने वाला है। इस साइट की खुदाई व यहाँ मिले नरकंकालों के डीएनए से वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि ये साइट 7 हजार वर्ष पुरानी है। खुदाई के दौरान निकले घरों व नालियों से ये साबित होता है कि राखीगढ़ी उस समय का मेगा सिटी शहर था और इस शहर को काफी आधुनिक तरीके से बसाया गया था। इस सभ्यता से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं क्योंकि उस समय के लोग हर कार्य में काफी विकसित थे। अध्ययन में यह भी पता चला कि आज के समय जो मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं वो उसी सभ्यता जैसे हैं। उस समय बर्तनों पर की गई चित्रकारी आज भी वैसी ही है।

14 पीढ़ियों के होने के सबूत मिले

ये साइट 550 हेक्टेयर में फैली हुई है और सबसे पहली खुदाई 1997 में यहां की गई थी। खुदाई के बाद पुरातत्व विशेषज्ञों का मानना था कि ये साइट 5 हजार वर्ष पुरानी है लेकिन पिछले साल हुई खुदाई के दौरान कुछ अहम तथ्य सामने आए थे। खुदाई के दौरान ऊपर से नीचे तल तक की मिट्टी के सैम्पल लिए गए थे। उससे साबित हुआ था कि इस संस्कृति के यहां पर 14 पीढ़ियों के होने के सबूत मिले हैं। मिट्टी के नमूनों की जांच के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि ये साइट पूरी दुनिया की सबसे बड़ी और अहम साइट है और यह 5 हजार साल पुरानी नहीं बल्कि 7 हजार साल पुरानी है।[6]

राष्ट्रीय धरोहर

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पुरातत्त्व विभाग ने राखीगढ़ी को राष्ट्रीय धरोहर के तौर पर संरक्षित किया है। संरक्षण के लिए इन टीलों को लोहे की रेलिंग से घेरा गया है पर कुछ टीलों के 2 या 3 तरफ से ही रेलिंग लगी हुई है। टीलों की कुछ जमीन गांव वालों के कब्जे में है। कहीं मकान बने हुए हैं तो कहीं उपलों के ढेर लगे हैं। पुरातत्त्व विभाग के अधिकारी कहते हैं कि हम ने किसानों को प्राचीन सभ्यता के महत्त्व के बारे में समझाया तो वे इस बात पर सहमत हुए कि समुचित मुआवजा मिलने पर वे जमीन छोड़ देंगे। राखीगढ़ी गांव के शिक्षित लोगों को यहां दबी प्राचीन सभ्यता मिलने पर गर्व है। वे खुश हैं और खुदाई स्थलों को दिखाने के लिए खुशी से साथ चल पड़ते हैं। गांव के लोगों का कहना है कि कुछ समय पूर्व इन साइटों की खुदाई में भ्रष्टाचार की शिकायतों के चलते मामला सीबीआई के पास गया था।मजदूरी में बड़े पैमाने पर घपला हुआ था। राखीगढ़ी में निकले सामान को डेक्कन यूनिवर्सिटी में भेज दिया जाता है जबकि मकान, सड़क, श्मशान आदि को फिर से प्लास्टिक शीट से ढक कर ऊपर मिट्टी से भर दिया जाता है। दूसरे कुछ स्थलों की तरह ऊपर शैड बना कर संरक्षित नहीं किया गया है। अगर लोग खुदाई में निकले स्थल को देखना चाहें तो वे नहीं देख पाते। 1997 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने करीब 3 किलोमीटर क्षेत्र में खुदाई की रूपरेखा तैयार की और 5 हजार साल पुराने ऐतिहासिक तथ्य इकट्ठे किए। धीरे-धीरे पता चला कि यहाँ सड़कें, ड्रेनेज सिस्टम, बारिश के पानी का संग्रहण, अन्न भंडारण, पक्की ईंटों, मूर्ति निर्माण और तांबे व कीमती धातुओं पर कारीगरी के अवशेष प्राप्त होने शुरू हुए। 1997 से 2000 के बीच हुई खुदाई की रेडियो कार्बन डेटिंग के अनुसार क्षेत्र में 3 काल की सभ्यताएं दबी हुई हैं। पहला, हड़प्पा काल से पूर्व, दूसरा, परिपक्व हड़प्पा काल और तीसरा सिंधु घाटी सभ्यता का अंतिम काल। राखीगढ़ी एक नियोजित शहर था. चौड़ी सड़कें, घर से बाहर पानी निकासी के लिए ईंटों की नालियां बनी हुई थीं। अभी क्षेत्र के बड़े हिस्से का उत्खनन नहीं हुआ है। राखीगढ़ी में मिली सभ्यताओं से जाहिर है कि यहां के लोग बुद्धिमान थे। उन लोगों ने बुनियादी विज्ञान और तकनीक विकसित कर ली थी और वह लगातार जारी थी। 5 हजार साल पुरानी सभ्यता एवं संस्कृति को अपने भीतर दफन किए यह स्थल यहां आने वाले शख्स के अंदर एक उत्सुकता, उत्कंठा व रोमांच जगाता है कि उस काल के लोग कैसे थे, क्या करते थे, कैसा जीवन था। शहर, गांव किस तरह से विकसित थे। ज्ञानविज्ञान की समझ कैसी थी? लोगों की कदकाठी, रंगरूप कैसा था?[5]


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राखीगढ़ी में प्राचीनतम सभ्यता के साक्ष्य (हिंदी) जागरण डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 18 जनवरी, 2018।
  2. राखीगाढ़ी, हिसार (हिंदी) नेटिव प्लेनेट। अभिगमन तिथि: 17 जनवरी, 2018।
  3. जिला साहीवाल
  4. राखीगढ़ी : एक सभ्यता की संभावना (हिंदी) जनसत्ता। अभिगमन तिथि: 18 जनवरी, 2018।
  5. 5.0 5.1 5.2 प्राचीन सभ्यता का विकसित नगर : राखीगढ़ी (हिंदी) सरिता। अभिगमन तिथि: 17 जनवरी, 2018। सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "सरिता" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  6. हड़प्पा सभ्यता का मेगा सिटी था राखीगढ़ी (हिंदी) eenaduindia। अभिगमन तिथि: 17 जनवरी, 2018।

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