राधा रानी मंदिर बरसाना

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राधा रानी मंदिर, बरसाना
Radha Rani Temple, Barsana

बरसाना के बीचो-बीच एक पहाड़ी है जो कि बरसाने के मस्तिष्‍क पर आभूषण के समान है। उसी के ऊपर राधा रानी मंदिर है और इस मंदिर को बरसाने की लाड़ली जी का मंदिर भी कहा जाता है। राधा का प्राचीन मंदिर मध्यकालीन है जो लाल और पीले पत्थर का बना है। राधा-कृष्ण को समर्पित इस भव्य और सुन्दर मंदिर का निर्माण राजा वीर सिंह] 1675 में करवाया था। बाद में स्थानीय लोगों द्वारा पत्थरों को इस मंदिर में लगवाया। राधा जी को प्यार से बरसाना के लोग ललि जी और वृषभानु दुलारी भी कहते हैं। राधाजी के पिता का नाम वृषभानु और उनकी माताजी का नाम कीर्ति था। राधा रानी का मंदिर बहुत ही सुन्दर और मनमोहक है। राधा रानी मंदिर क़रीब ढाई सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना है और इस मंदिर में जाने के लिए सैकड़ों सीढ़ियां चढ़नी पढ़ती है। राधा श्री कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति एवं निकुच्जेश्वरी मानी जाती है। इसलिए राधा किशोरी के उपासकों का यह अतिप्रिय तीर्थ है। बरसाने की पुण्यस्थली बड़ी हरी-भरी तथा रमणीक है। इसकी पहाड़ियों के पत्थर श्याम तथा गौरवर्ण के हैं जिन्हें यहाँ के निवासी कृष्णा तथा राधा के अमर प्रेम का प्रतीक मानते हैं। बरसाने से 4 मील पर नन्दगांव है, जहाँ श्रीकृष्ण के पिता नंद जी का घर था। बरसाना-नंदगांव मार्ग पर संकेत नामक स्थान है। जहाँ किंवदंती के अनुसार कृष्ण और राधा का प्रथम मिलन हुआ था। (संकेत का शब्दार्थ है पूर्वनिर्दिष्ट मिलने का स्थान) यहाँ भाद्र शुक्ल अष्टमी (राधाष्टमी) से चतुर्दशी तक बहुत सुन्दर मेला होता हैं। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, नवमी एवं दशमी को आकर्षक लीला होती है। लाड़ली जी के मंदिर में राधाष्टमी का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार भद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।

राधाष्टमी

बरसाने में राधाष्टमी का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। राधाष्टमी के दिन राधा रानी मंदिर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। राधाष्टमी का पर्व जन्माष्टमी के 15 दिन बाद भद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। राधाष्टमी पर्व बरसाना वासियों के लिए अति महत्त्वपूर्ण है। राधाष्टमी के दिन राधा जी के मंदिर को फूलों और फलों से सजाया जाता है। पूरे बरसाने में इस दिन उत्सव का महौल होता है। राधाष्टमी के उत्सव में राधाजी को लड्डुओं का भोग लगाया जाता है और उस भोग को मोर को खिला दिया जाता है। राधा रानी को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और इसे बाद में मोर को खिला दिया जाता है। मोर को राधा-कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। बाकी प्रसाद को श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है। राधा रानी मंदिर में श्रद्धालु बधाई गान गाते है और नाच गाकर राधाष्टमी का त्योहार मनाते हैं। राधाष्टमी के उत्सव के लिए राधाजी के महल को काफ़ी दिन पहले से सजाया जाता है। राधाष्टमी के पर्व पर श्रद्धालु गहवरवन की परिक्रमा भी लगाते हैं। राधाष्टमी के अवसर पर राधा रानी मंदिर के सामने मेला लगाता है।

मंदिर में होली

बरसाने में होली का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। बरसाना में लट्ठमार होली की शुरुआत सोलहवीं शताब्दी में हुई थी। तब से बरसाना में यह परंपरा यूं ही निभाई जा रही है, जिसके अनुसार बसंत पंचमी के दिन मंदिर में होली का डांढ़ा गड़ जाने के बाद हर शाम गोस्वामी समाज के लोग धमार गायन करते हैं। प्रसाद में दर्शनार्थियों पर गुलाल बरसाया जाता है। इस दिन राधा जी के मंदिर से पहली चौपाई निकाली जाती है जिसके पीछे-पीछे गोस्वामी समाज के पुरुष झांडा-मंजीरे बजाते हुए होली के पद गाते चलते हैं। बरसाना की रंगीली गली से होकर बाज़ारों से रंग उड़ाती हुई यह चौपाई सभी को होली के आगमन का एहसास करा देती है। मंदिर में पंडे की अच्छी ख़ासी खातिर की जाती है। यहाँ तक कि उस पर क्विंटल के हिसाब से लड्डू बरसाए जाते हैं जिसे पांडे लीला कहा जाता है। श्रद्धालु राधा जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंदिर में होती हैं तो उन पर वहाँ के सेवायत चारों तरफ से केसर और इत्र पडे टेसू के रंग और गुलाल की बौछार करते हैं। मंदिर का लंबा चौड़ा प्रांगण रंग-गुलाल से सराबोर हो जाता है।

वीथिका

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