राधेश्याम बारले

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राधेश्याम बारले

राधेश्याम बारले (अंग्रेज़ी: Radheshyam Barle) छत्तीसगढ़ के ख्याति प्राप्त पंथी नृत्य के नर्तक हैं। उनको देश के प्रतिष्ठित सम्मान 'पद्मश्री' (2021) से सम्मानित किया गया है। अब तक इस पुरस्कार से छत्तीसगढ़ में 16 लोगों को नवाजा जा चुका है। राधेश्याम बारले ने अपनी कला साधना से छत्तीसगढ़ और देश को गौरवान्वित किया है। डॉ. बारले लोक कला पंथी नृत्य के ख्यात नर्तक हैं। पंथी नृत्य के माध्यम से उन्होंने बाबा गुरु घासीदास के संदेशों को देश-दुनिया में प्रचारित और प्रसारित करने में अमूल्य योगदान दिया है।

परिचय

डॉ. राधेश्याम बारले का जन्म दुर्ग जिले के पाटन तहसील के खोला गांव में 9 अक्टूबर, 1966 को हुआ। डॉ. बारले ने एम।बी।बी।एस। के साथ ही इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से लोक संगीत में डिप्लोमा किया है। उनको उनकी कला साधना के लिए कई सम्मान पहले प्राप्त हो चुके हैं। इस कड़ी में भारत सरकार की ओर से मिला पद्म सम्मान सबसे नया है।

योगदान

डॉ. बारले ने अपने पंथी नृत्य के साथ देश-दुनिया में लोगों को इसका प्रशिक्षण भी दिया है। बारले ने बाबा घासीदास के संदेशों को लोगों तक पहुंचाने के साथ दुनिया के अलग-अलग देशों के कलाकारों को पंथी नृत्य की ट्रेनिंग दी है। अमेरिका और मॉस्को के कई कलाकारों को राधेश्याम बारले ने पंथी नृत्य से अवगत कराया है और उन्हें छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृत से परिचय कराया है। डॉ. बारले को बचपन से इस नृत्य के बारे में जानकारी है क्योंकि बहुत कम उम्र में ही उन्होंने यह नृत्य शुरू कर दिया था। पंथी नृत्य में होने वाले नाटकों में डॉ. बारले महिला नर्तक का रूप धारण करते थे और नृत्य करते थे। डॉ. बारले के नाम ही यह रिकॉर्ड कायम है जिन्होंने देश के अलग-अलग चार राष्ट्रपतियों के समक्ष अपनी नृत्य कला का परिचय दिया है।

दूरदर्शन और आकाशवाणी के कार्यक्रमों में डॉ. बारले को अक्सर देखा और सुना जा सकता है जहां वे अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा देश-विदेश के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी उनकी भागीदारी देखी जाती है। भोरमदेव, सीरपुर, खजुराहो और देश में अन्य जगहों पर होने वाले महोत्सवों में डॉ. राधेश्याम बारले अपनी नृत्य शैली से लोगों का मन मोह लेते हैं। राज्य या राष्ट्रीय स्तर के लगभग हर कार्यक्रम में उनके नृत्य को देखा जा सकता है। यहां तक कि नक्सल प्रभावित इलाकों में भी डॉ. वारले ने अपनी नृत्य शैली से शांति का संदेश दिया है और युवाओं को हिंसा का रास्ता छोड़ मुख्यधारा में शामिल होने की अपील की है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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