रोहिणी खादिलकर

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रोहिणी खादिलकर
रोहिणी खादिलकर
पूरा नाम रोहिणी खादिलकर
जन्म 10 नवंबर, 1963
जन्म भूमि मुम्बई, महाराष्ट्र
कर्म भूमि भारत
खेल-क्षेत्र शतरंज
पुरस्कार-उपाधि अर्जुन पुरस्कार (1980), छत्रपति पुरस्कार (1977)
प्रसिद्धि एशियाई शतरंज चैम्पियनशिप (1981) जीतने वाली प्रथम भारतीय महिला
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी रोहिणी खादिलकर मात्र 13 साल की उम्र में 1976 में राष्ट्रीय महिला शतरंज चैंपियन बनीं और लगातार तीन वर्षों में यह चैंपियनशिप जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी थीं।
अद्यतन‎

रोहिणी खादिलकर (अंग्रेज़ी: Rohini Khadilkar, जन्म- 10 नवंबर, 1963, मुम्बई, महाराष्ट्र) शतरंज की दुनिया का वह नाम है, जो शतरंज खिलाड़ियों के लिए और ख़ासकर लडकियों के लिए एक प्रेरणा है। मात्र 13 साल की उम्र में 'राष्ट्रीय महिला शतरंज चैंपियन' बनने वाली रोहिणी खादिलकर को 'वुमन इंटरनेशनल मास्टर' होने का भी ख़िताब प्राप्त है। शतरंज की वह ऐसी महिला खिलाड़ी रही हैं, जिसने पुरुषों को शतरंज में हराकर महिलाओं के लिये भी जगह बनाई। शतरंज की पुरुष प्रतियोगिता में रोहिणी खादिलकर की भागीदारी ने काफ़ी सवाल उठाये, जिसके कारण उच्च न्यायालय में भी अपील हुई। सन 1981 में 'एशियाई शतरंज चैम्पियनशिप' जीतने वाली रोहिणी खादिलकर प्रथम भारतीय महिला रहीं। उन्होंने पांच बार भारतीय महिला चैंपियनशिप, दो बार एशियाई महिला चैम्पियनशिप जीती। 56 बार शतरंज में भारत का प्रतिनिधित्व किया। सन 1980 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया।

परिचय

10 नवंबर, 1963 को जन्मी रोहिणी खादिलकर उस वक्त पहली भारतीय महिला शतरंज खिलाड़ी रहीं, जिस जमाने में इस खेल में महिलाओं का बिल्कुल भी दबदबा नहीं था। उनके पिता ‘नवकाल’ नामक एक अख़बार चलाते थे और बाद में उन्होंने एक संध्या-अख़बार ‘संध्याकाल’ भी शुरू किया। रोहिणी के अलावा उनकी दोनों बहनें, जयश्री और वासंती भी शतरंज खेलती थीं और वे भी इस क्षेत्र में काफी सफल रहीं। हालांकि, रोहिणी ने जो मुकाम हासिल किया, उसे शायद ही कोई भारतीय महिला शतरंज में हासिल कर पाई हो।[1]

कॅरियर

रोहिणी खादिलकर मात्र 13 साल की उम्र में 1976 में राष्ट्रीय महिला शतरंज चैंपियन बनीं और लगातार तीन वर्षों में यह चैंपियनशिप जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी थीं। उन्होंने पाँच अवसरों पर यह खिताब अपने नाम किया। 1981 में, जब हैदराबाद में प्रतियोगिता हुई थी, तब रोहिणी एशियाई महिला शतरंज चैंपियन भी बनी थीं। वह उस प्रतियोगिता में अजेय रहीं और संभावित 12 अंकों में से 11.5 अंक हासिल किए।

उसी वर्ष, वह वुमन इंटरनेशनल मास्टर बन गईं और नवंबर 1983 में, उन्होंने फिर से एशियाई महिला का खिताब जीता, जब प्रतियोगिता कुआलालंपुर, मलेशिया में आयोजित की गई थी। रोहिणी खादिलकर 1976 में भारतीय पुरुषों की चैम्पियनशिप में प्रतिस्पर्धा करने वाली पहली महिला बनी एक पुरुष प्रतियोगिता में उनकी भागीदारी के कारण उच्च न्यायालय में उनके खिलाफ अपील की गई थी और जिसके बाद विश्व शतरंज महासंघ के अध्यक्ष मैक्स यूवे ने यह नियम बनाया कि महिलाओं को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय चैंपियनशिप से वर्जित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने प्रतियोगिता में तीन राज्य चैंपियन- गुजरात के गौरांग मेहता, महाराष्ट्र के अब्दुल जब्बार और पश्चिम बंगाल के ए. के. घोष को हराया।

शतरंज का सफ़र रोहिणी खादिलकर के लिए आसन नहीं था। द हिन्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक़- रोहिणी ने बताया था कि, "जब मैंने पुरुषों के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन करना शुरू किया तो उन्होंने मुझे हराने के लिए सब कुछ किया। वे सिगरेट पीकर मेरे चेहरे पर धुंआ उड़ाते थे"।

भारत का प्रतिनिधित्व

रोहिणी खादिलकर ने दुबई (1986) में ब्यूनस आयर्स (1978), वालेटा (1980), ल्यूसर्न (1982), थेसालोनिकी (1984) में शतरंज ओलंपियाड में भाग लिया। खंडिलकर ने दुबई और मलेशिया में दो बार जोनल चैंपियनशिप जीती और वर्ल्ड नंबर 8 खिलाड़ी बनी। वह 1989 में लंदन में शतरंज के कंप्यूटर को हराने वाली पहली एशियाई खिलाड़ी थीं। रोहिणी ने 56 देशों में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए कई देशों का दौरा किया। प्रत्येक अवसर पर वह भारत सरकार द्वारा एक शतरंज राजदूत के रूप में प्रायोजित की गई थी। उनकी यात्राओं में पोलैंड, यूएसएसआर और यूगोस्लाविया के तत्कालीन कम्युनिस्ट देशों की यात्राएं शामिल थीं, जिन्हें उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा प्रोत्साहित किया गया था।

सन 1993 में रोहिणी खादिलकर शतरंज से सेवानिवृत्त हुईं और उन्होंने मुद्रण प्रौद्योगिकी संस्थान में एक छात्र के रूप में दाखिला लिया। वह अपने सहकर्मी में प्रथम स्थान पर आयीं, उन्होंने स्वर्ण पदक अर्जित किया और 'मुद्रण डिप्लोमा' प्राप्त किया।

पुरस्कार और सम्मान

सन 1977 में रोहिणी खादिलकर ने शतरंज में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए 'छत्रपति पुरस्कार' जीता। इसके बाद उन्हें खेलों में भारत के सर्वोच्च सम्मान 'अर्जुन पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। उन्हें शतरंज के कारनामों के लिए 'महाराष्ट्र कन्या' भी घोषित किया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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