विक्रमादित्य प्रथम

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विक्रमादित्य प्रथम पुलकेशी द्वितीय का पुत्र था, तथा पिता की मृत्यु के बाद राज्य का वास्तविक उत्तराधिकारी था। पुलकेशी द्वितीय की मृत्यु के बाद बादामी सहित कुछ अन्य दक्षिणी प्रान्तों की कमान पल्लवों के हाथों में रही। इस दौरान 642 से 655 ई. तक चालुक्यों की राजगद्दी ख़ाली रही। 655 में विक्रमादित्य प्रथम राजगद्दी पर विराजित होने में कामयाब हुआ। उसने बादामी को पुन: हासिल किया और शत्रुओं द्वारा विजित कई अन्य क्षेत्रों को भी पुन: अपने साम्राज्य में जोड़ा। उसने 681 ई. तक शासन किया था।

  • पल्लवराज नरसिंह वर्मन प्रथम से युद्ध करते हुए पुलकेशी द्वितीय की मृत्यु हो गई थी और वातापी पर भी पल्लवों का अधिकार हो गया था।
  • संकट के इस समय में भी चालुक्यों की शक्ति का पूरी तरह से अन्त नहीं हुआ था।
  • विक्रमादित्य प्रथम अपने पिता के समान ही वीर और महात्वाकांक्षी था।
  • उसने लगभग 655 से 681 ई. में चालुक्य राजगद्दी प्राप्त की थी।
  • उसके सिंहासनारूढ़ होने के समय चोलों, पाण्ड्यों एवं केरलों ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया था।
  • विक्रमादित्य प्रथम ने न केवल वातापी को पल्लवों की अधीनता से मुक्त किया, अपितु तेरह वर्षों तक निरन्तर युद्ध करने के बाद पल्लवराज की शक्ति को बुरी तरह कुचलकर 654 ई. में कांची की भी विजय कर ली।
  • उसने पल्लवों के राज्य कांची पर अधिकार कर अपने पिता की पराजय का बदला लिया था।
  • उसने 'श्रीपृथ्वीवल्लभ', 'भट्टारक', 'महाराजाधिराज', 'परमेश्वर', 'रण रसिक' आदि उपाधियाँ धारण की।
  • विक्रमादित्य प्रथम सम्भवतः अपने शासन काल के अन्तिम दिनों में पल्लव नरेश परमेश्वर वर्मन प्रथम से पराजित हो गया था।
  • यह विजय संदिग्ध है, क्योंकि पल्लवकालीन अभिलेख परमेश्वर वर्मन की विजय तथा चालुक्यों के अभिलेख में विक्रमादित्य प्रथम की विजय का उल्लेख मिलता है।
  • वैसे निष्कर्षतः यही अनुमान लगाया जाता है कि, अन्तिम रूप से पल्लव ही विजयी रहे थे।


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