शतद्रु

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

शतद्रु अथवा शतद्रू पंजाब की सतलुज नदी का प्राचीन नाम। ऋग्वेद के नदीसूक्त मे इसे 'शुतुद्रि' कहा गया है-

'इमं मे गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परुषण्या असिक्न्यामरुद्वृधे वितस्तयर्जीकीये शृणृह्या सुषोमया।'[1]

'ह्लादिनीं दूरपारां च प्रत्यक् स्रोतस्तरंगिणीम् शतद्रुमतस्छीमान्नदीभिक्ष्वाकुनन्दनः।'[5]

अर्थात "इक्ष्वाकुनन्दन भरत ने प्रसन्नता प्रदान करने वाली, चौड़े पाट वाली और पश्चिम की ओर बहने वाली नदी शतद्रु पार की।"

'शतद्रुंचन्द्रभागां च यमुनां च महानदीम्, दृषद्वतीं विपाशां च विपांप स्थूलवालुकाम्।'

'सुषोमा शतद्रूश्चन्द्रभागामरुद्वुधा वितस्ता।'

'शतद्रुचन्द्रभागाद्या हिमवत्पादनिर्गताः।'

  • वास्तव में सतलुज का स्रोत 'रावणह्रद' नामक झील है, जो मानसरोवर के पश्चिम मे है। वर्तमान समय में सतलुज 'बियास' (विपाशा) में मिलती है। किंतु ‘द मिहरान ऑफ सिंध एंड इट्रज ट्रिब्यूटेरीज’ के लेखक रेबर्टी का मत है कि 1790 ई. के पहले सतलुज, बियास में नहीं मिलती थी। इस वर्ष बियास और सतलुज दोनों के मार्ग बदल गये और वे सन्निकट आकर मिल गईं।
  • शतद्रु वैदिक 'शुतुद्रि' का रूपांतरण है तथा इसका अर्थ "शत धाराओं वाली नदी" किया जा सकता है, जिससे इसकी अनेक उपनदियों का अस्तित्व इंगित होता है।[3]
  • ग्रीक लेखकों ने सतलुज को 'हेजीड्रेस'[9] कहा है; किंतु इनके ग्रंथों मे इस नदी का उल्लेख बहुत कम आया है, क्योंकि अलक्षेंद्र (सिकंदर) की सेनायें बियास नदी से ही वापस चली गई थीं और उन्हें बियास के पूर्व में स्थित देश की जानकारी बहुत थोड़ी हो सकी थी।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋग्वेद, नदीसूक्त 10,75,5
  2. मेकडानाल्ड- हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिट्रेचर, पृ. 142
  3. 3.0 3.1 ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 887 |
  4. सौ शाखाओं वाली
  5. वाल्मीकि रामायण, अयोध्या काण्ड 71,2
  6. भीष्मपर्व 9,15
  7. श्रीमद्भागवत 5,18,18
  8. विष्णुपुराण 2,3,10
  9. Hesidrus

संबंधित लेख