संतोष यादव

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संतोष यादव

संतोष यादव (अंग्रेज़ी: Santosh Yadav, जन्म- जनवरी, 1969, रेवाड़ी, हरियाणा) भारत की एक पर्वतारोही हैं। वे एक ऐसी आत्मविश्वास से भरी महिला हैं, जिन्होंने एक बार नहीं, दो बार माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करके विश्व रिकार्ड बनाया है। यद्यपि उन्होंने बचपन में यह कभी नहीं सोचा था कि वह पर्वतारोहण करेंगी और विश्वविख्यात हो जाएंगी। वह एकमात्र ऐसी महिला हैं, जिन्होंने दो बार एवरेस्ट पर चढ़ाई की है। उनकी इसी उपलब्धि के लिए भारत सरकार की ओर से उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया है।

परिचय

संतोष यादव का जन्म जनवरी, 1969 में हरियाणा राज्य के रेवाड़ी में जोनियावास नामक गाँव में हुआ था। भारतीय समाज में प्राय: सभी परिवार व माता-पिता पुत्र की कामना करते हैं। लड़की का जन्म आज अभिशाप नहीं, परन्तु उसके जन्म की कामना नहीं की जाती। यह बात संतोष यादव के मामले में सर्वथा भिन्न है। उन्होंने जन्म के पूर्व ही पुरानी मान्यताओं को बदलना शुरू कर दिया था। उनके जन्म के पूर्व उनकी माँ को एक साधु ने जब पुत्र का आशीर्वाद दिया तो उनकी दादी ने कहा कि हमें तो पुत्र नहीं, पुत्री चाहिए और तब संतोष यादव जैसी पुत्री का जन्म हुआ। उन्हें यह नाम ‘संतोष’ इसी कारण दिया गया, क्योंकि उनके जन्म से घर वाले संतुष्ट व खुश थे। संतोष के परिवार में पांच भाई हैं। उनका बचपन से ही सपना था कि वह खूब पढ़ाई-लिखाई करें और आगे बढ़ें। उन्हें बचपन में लड़कों के कपड़े पहनना अच्छा लगता था। उनका परिवार जमींदारों का परिवार है, जो आज व्यापार करता है।[1]

शिक्षा

अच्छे स्कूल जाने की चाह और जिद ने उन्हें दिल्ली के स्कूल में दाखिला दिला दिया और वह अपनी माँ व भाइयों के साथ दिल्ली में शिक्षा लेने लगीं। पढ़ाई के दौरान हैंड राइटिंग प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार भी जीता था। यद्यपि पढ़ाई के दौरान वह तेज गति से नहीं लिख पाती थीं, अत: सब उत्तर ज्ञात होने के बावजूद वह सब उत्तर नहीं लिख पाती थीं। जिस गति से वह सोचती थीं, उस गति से लिख नहीं पाती थीं। इसी कारण उनकी कुछ सहपाठियों के उनसे ज्यादा अंक आ जाते थे, जबकि वे संतोष से ही सीखती थीं। बाद में रेवाड़ी में केन्द्रीय विद्यालय खुल जाने पर वह रेवाड़ी वापस लौट गईं। इस प्रकार वह 12वीं पास कर गईं। इस समय उन पर विवाह का दबाव बढ़ने लगा, लेकिन संतोष ने स्पष्ट कह दिया कि स्नातक किए बिना विवाह नहीं करेंगी। उनका कहना था कि ”ऊपर वाले ने मेरी सुन ली और जयपुर के प्रसिद्ध महारानी कॉलेज में मुझे प्रवेश मिल गया इस कॉलेज में नामांकन होने से अच्छे कॉलेज में पढ़ने का मेरा सपना पूरा हो गया। लेकिन मुझे मालूम नहीं था कि इकोनॉमिक्स आनर्स की पढ़ाई करते-करते जिंदगी की गाड़ी अचानक किसी दूसरी ओर मुड़ जाएगी।”

पहाड़ों में दिलचस्पी

जयपुर के हॉस्टल में रहते वक्त संतोष यादव को खिड़की से अरावली की पहाड़ियां देखने में बहुत आनन्द आता था। उन्होंने बताया- ”मैं हॉस्टल से एक दिन सुबह झालाना डंगरी पहाड़ी की ओर निकल पड़ी। वहां कुछ स्थानीय लोग काम कर रहे थे।” संतोष को उन स्थानीय लोगों से मिलना, उनसे बात करना व उनके बारे में जानना अच्छा लगा। वह उन लोगों का स्केच बनाने लगीं। उन्हें पेंटिंग का शौक बचपन से ही था, अत: उन्हें इस प्रकार स्केच बनाने में आनन्द आने लगा। दूसरे दिन संतोष वहां गईं तो वहां कोई नहीं था। इसके बाद उन्हें उन पहाड़ियों के प्रति आकर्षण हो गया। वह वहाँ पहाड़ियों पर चढ़ने व घूमने का आनन्द लेने लगीं। एक दिन चढ़ते-चढ़ते शीर्ष पर पहुँच गईं और वहां से नीचे का सुन्दर दृश्य देखकर भावविभोर हो गईं। सूर्योदय हो रहा था और ऊँचाई पर यूं लग रहा था कि पहाड़ियों में से सूरज निकल रहा है। लेकिन कुछ ही देर में उन्हें वहां अकेले डर लगने लगा और वह नीचे उतरने लगीं। उतरते वक्त उन्हें कुछ लड़कों का दल मिला जो रॉक क्लाइम्बिंग कर रहा था। उन्हें वह सब देखकर बहुत अच्छा लगा। उन्होंने उनमें से एक से पूछा- ”क्या मैं भी यह कर सकती हूँ ?” लड़कों के लीडर ने उत्साहपूर्वक उत्तर दिया ”हां, क्यों नहीं ?” तब उन्हें पता लगा कि यह माउंटेनियरिंग है। यहाँ से ट्रेनिंग लेकर वह भी पर्वतारोहण कर सकती हैं।[1]

एवरेस्ट विजय

तब संतोष ने पर्वतारोहण का इरादा कर लिया। उनके परिवार के लिए यह बात स्वीकार करना अत्यन्त कठिन था। जब उन्हें यह पता लगा कि संतोष ने अपनी सारी जमा पूंजी ‘नेहरू पर्वतारोहण संस्थान’ के पाठ्‌यक्रम में खर्च कर दी है, तो उन्हें बहुत क्रोध आया। उनके पिता ने उन्हें वापस लाने का निश्चय किया, परन्तु वह जल्दबाजी में सीढ़ियों से फिसल गए और उनके टखने में चोट लग गई। 1986 में नेहरू इंस्टीट्‌यूट ऑफ इंजीनियरिंग में प्रवेश उनके पिता की इच्छा के विरुद्ध था। संतोष का कहना है- ”इतना आत्मविश्वास मुझे उन्हीं के प्यार से मिला था, जिस कारण मैं सोच-विचार कर निर्णय ले लेती थी। यह मेरा आत्मविश्वास ही था, जिसके बूते मैं उस कोर्स में अव्वल आई।” संतोष ने इसके बाद एडवांस कोर्स भी कर लिया। उनकी मेहनत रंग लाई। अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति, शारीरिक सहन शक्ति के दम पर सर्दी व ऊँचाई पर विजय हासिल कर ली। तब संतोष ने 1993 में पहली बार एवरेस्ट पर चढ़ाई कर विजय हासिल की। वह एवरेस्ट पर विजय पाने वाली सबसे कम उम्र की महिला थीं। फिर उन्होंने 1994 में पुन: पर्वतारोहण किया और एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में सफलता प्राप्त की। वह विश्व की एकमात्र महिला हैं, जिन्होंने दो बार एवरेस्ट पर चढ़ाई की है। वह अपनी शारीरिक सक्षमता और फिटनेस के दम पर ही यह सफलता प्राप्त कर सकीं। उन्होंने बताया- ”मेरे लिए वह बेहद खुशी का पल था, जब मैं अवॉर्ड लेकर आई तो पिताजी ने मुझे एक मारुति कार गिफ्ट में दी थी।”

बाद में संतोष यादव ने पुलिस ज्वाइन कर ली। इस नौकरी में वह छुट्टियों में क्लाइम्बिंग का शौक भी पूरा कर सकती हैं। संतोष आज एक अच्छी वक्ता हैं, जो लोगों को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। वह शिक्षा के बढ़ाने के लिए भी कार्य करती हैं। उनका कहना है- ”जीवन में उद्देश्य होना आवश्यक है। उसके लिए कठिन मेहनत करो, कुछ भी बनने का उद्देश्य अवश्य होना चाहिए, तभी तुम जिंदगी का आनंद उठा सकते हो।” संतोष की उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें ‘पद्मश्री’ प्रदान किया गया है। उन्होंने 25 वर्ष की आयु में विवाह कर लिया। अब उनके माता-पिता भी उनकी स्वतन्त्र जीवन की आदत व उपलब्धियों से खुश हैं और उनके सेलिब्रिटी बन जाने से गौरवान्वित हैं।[1]

उपलब्धियाँ

  1. संतोष यादव ने बहुत कम उम्र में एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की।
  2. वह दो बार एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ाई करने वाली विश्व की प्रथम महिला हैं।
  3. संतोष यादव आत्मविश्वास से भरपूर हैं, इसलिए वह ऐसे कठिन क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकीं।
  4. संतोष यादव को सरकार द्वारा ‘पद्‌मश्री’ प्रदान किया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 संतोष यादव का जीवन परिचय (हिंदी) क्या और कैसे। अभिगमन तिथि: 08 सितम्बर, 2016।

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