सौंह कियें ढरकौहे से नैन, टकी न टटै हिलकी हलियै। मुँह आगै हू आये न सूझयौ कछू, सु कहयौ कछु ये सुति साँभल ए। भौर ते साँझि भई न अजौं, घरि भतिर बाहर कौ ढलिए। रहे गेह की देहरी ठाढ़े दोऊ, उर लागी दुहून चलौ चलिए।।