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हिमतक्षेस

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हिमतक्षेस
हिमतक्षेस
विवरण 'हिमतक्षेस' हिन्द महासागर के तटवर्ती देशों द्वारा स्थापित किया गया संगठन है। इसके अंतर्गत आने वाले क्षेत्र की आबादी करीब दो अरब साठ करोड़ है।
स्थापना 6 मार्च, 1997
मुख्यालय मॉरीशस में
सदस्य देश 20
कार्यकारी भाषा अंग्रेज़ी
प्रधान सचिव के. वी. भगीरथ
अन्य जानकारी हिमतक्षेस से जुड़े सभी अहम निर्णय 'काउंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स' (सीओएम) की बैठक में लिये जाते हैं। प्रत्येक वर्ष इस बैठक का आयोजन किया जाता है।

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हिमतक्षेस (पूरा नाम- हिन्द महासागर तटीय क्षेत्रीय सहयोग संगठन) हिन्द महासागर के तटवर्ती देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से स्थापित एक संगठन है। इस संगठन के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र की आबादी करीब दो अरब साठ करोड़ है, जो दुनिया की आबादी का करीब एक तिहाई है। वैश्विक जीडीपी में इसका योगदान करीब 10 फीसदी है। हिमतक्षेस का सचिवालय मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुइस में है।

स्थापना तथा सदस्य

हिन्द महासागर के तटवर्ती देश आपस में आर्थिक संबंधों को और सशक्त बनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसी रणनीति के तहत गठित 'इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फ़ॉर रीजनल को-ऑपरेशन' (आइओआर-एआरसी) अथवा 'हिन्द महासागर तटीय क्षेत्रीय सहयोग संगठन' (हिमतक्षेस) की स्थापना 6 मार्च, 1997 में भारत और 13 अन्य देशों ने की थी। संगठन में एशिया, अफ़्रीका और ऑस्ट्रेलिया के वे देश शामिल हैं, जो हिन्द महासागर के तट पर बसे हुए हैं। फिलहाल 20 देश इसके सदस्य हैं- भारत, ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, ईरान, केन्या, मलेशिया, मेडागास्कर, मॉरीशस, मोजाम्बिक, ओमान, सेशल्स, सिंगापुर, दक्षिण अफ़्रीका, श्रीलंका, तंजानिया, थाईलैंड, यमन, संयुक्त अरब अमीरातवर्ष 2012 में गुड़गांव में आयोजित सम्मेलन में इस संगठन में कोमोरोस को भी शामिल कर लिया गया था।[1]

डायलॉग पार्टनर

कई देशों की हिन्द महासागर से जुड़ी घटनाओं में पूरी रुचि है। हिन्द महासागर के तटवर्ती देश नहीं होने के बावजूद वे इस संगठन से जुड़ने में दिलचस्पी रखते हैं। इसीलिए सदस्य देशों के अलावा इसके निम्नलिखित छह डायलॉग पार्टनर भी हैं-

  1. चीन
  2. मिस्र
  3. फ़्राँस
  4. जापान
  5. ब्रिटेन
  6. अमेरिका

इनमें से कई देश सदस्य बनने के भी इच्छुक हैं। इसके अलावा हिमतक्षेस में दो प्रेक्षक भी हैं- 'इंडियन ओसन रिसर्च ग्रुप' और 'इंडियन ओसन टूरिज्म ऑर्गेनाइजेशन'। पाकिस्तान की कोशिशों और हिन्द महासागर के तटवर्ती देश होने के बावजूद उसे इसका सदस्य या डायलॉग पार्टनर नहीं बनाया गया है। ऐसा हिमतक्षेस को द्विपक्षीय की जगह बहुपक्षीय संबंधों का केंद्र बनाने के लिए किया गया है।

निर्णय के लिए सीओएम

हिमतक्षेस से जुड़े सभी अहम निर्णय 'काउंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स' (सीओएम) की बैठक में लिये जाते हैं। प्रत्येक वर्ष इस बैठक का आयोजन किया जाता है। नवंबर, 2012 में सीओएम की 12वीं बैठक गुड़गांव, हरियाणा में हुई थी। बैठक में सदस्य देशों के बीच व्यापार और वाणिज्य बढ़ाने के लिए 'बिजनेस टू बिजनेस' बैठक आयोजित करने पर सहमति हुई थी।

महासचिव

सीओएम हिमतक्षेस के महासचिव की नियुक्ति तीन वर्ष के लिए करता है, जिसे और एक वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है। सदस्य देशों द्वारा नामित व्यक्तियों में से योग्यता, अनुभव और पात्रता के आधार पर महासचिव की नियुक्ति की जाती है। भारत के के. वी. भगीरथ इसके महासचिव हैं।[1]

संगठन के उद्देश्य

इस संगठन का उद्देश्य है, सदस्य देशों में सतत और संतुलित विकास को प्रोत्साहन, साझे हित व लाभ से जुड़े आर्थिक क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना| इसके साथ ही, व्यापारिक उदारीकरण की संभावनाओं को तलाशना और क्षेत्र में वस्तुओं, सेवाओं, निवेश तथा तकनीकों के प्रवाह में बाधाओं को कम करना, व्यापार और उद्योग, शैक्षिक संस्थाओं, विद्वानों और सदस्य देशों की जनता के बीच मेलजोल को प्रोत्साहन देना आदि।

सहयोग के छह अहम क्षेत्र

सदस्य देशों ने मौजूदा वैश्विक परिस्थिति के लिहाज से छह अहम क्षेत्रों को अपनी प्राथमिकता में शामिल किया है-

  1. समुद्री सुरक्षा, जिसके तहत हिन्द महासागर में नौवहन की स्वतंत्रता और सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
  2. व्यापार और निवेश सरलीकरण है।
  3. मत्स्य प्रबंधन
  4. आपदा से जुड़े खतरों को कम करना, जिसके तहत समुद्र में तेल रिसाव की स्थिति में सहयोग करना भी शामिल है।
  5. शिक्षा और विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में सहयोग।
  6. पर्यटन प्रोत्साहन समेत सांस्कृतिक आदान-प्रदान।

अहमियत

हिन्द महासागर की अहमियत भारत के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण है। रणनीतिक तौर पर हिन्द महासागर की स्थिति भारत के लिए महत्वपूर्ण है ही, आर्थिक दृष्टिकोण से भी यह बहुत अहम है। इसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार और अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा कहा जाता है। 'जर्नल ऑफ़ द इंडियन ओसन रीजन' के मुताबिक़, पेट्रोलियम पदार्थों से लदे विश्व के 80 प्रतिशत से अधिक जहाज़ हिन्द महासागर से होकर गुजरते हैं। खाड़ी क्षेत्र से पेट्रोलियम और दूसरे सामानों को लेकर चीन, जापान समेत विभिन्न देशों के जहाज़ इसी रास्ते से जाते हैं। मात्रा के हिसाब से भारत का करीब 97 प्रतिशत व्यापार हिन्द महासागर के जरिये ही होता है। इसके अलावा यह महासागर बहुमूल्य धातुओं, खनिजों और दूसरे प्राकृतिक व समुद्री संसाधनों से परिपूर्ण है। हिन्द महासागर में समुद्री लुटेरों द्वारा व्यापारिक जहाज़ों पर क़ब्ज़ा और फिरौती की मांग से जुड़ी घटनाओं को भी नजरअंदाज़नहीं किया जा सकता। 'इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गेनाइजेशन' और 'विश्व खाद्य कार्यक्रम' समेत अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने समुद्री लूटपाट की घटनाओं पर चिंता जतायी है।

'ओसन बियोंड पाइरेसी' (ओबीपी) के मुताबिक़, समुद्री लूटपाट की वजह से समुद्री परिवहन लागत बढ़ता जा रहा है और सालाना छह से सात अरब डॉलर अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है। समुद्री मार्गों को सुरक्षित करना एक बड़ी चुनौती है। भारत की सुरक्षा के लिहाज से भी हिन्द महासागर का व्यापक महत्व है। मुंबई में  26/11 आतंकी हमले को अंजाम देने वाले भी अरब सागर के जरिये ही दाखिल हुए थे। भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भी हिमतक्षेस देशों से और घनिष्टता की उम्मीद कर सकता है। इसके अलावा ऐसे समय में जब म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान में बंदरगाह और दूसरे बुनियादी ढांचे के निर्माण और आर्थिक सहयोग के नकाब में चीन ‘स्ट्रिंग आफ पल्स’ के जरिये भारत को घेरने की फिराक में है, इस संगठन का महत्व और बढ़ जाता है।[1]

महत्त्वपूर्ण बिन्दु

  • वर्ष 1997 में हिमतक्षेस की स्थापना के चार्टर को अपनाया गया था।
  • हिमतक्षेस का अंतर- क्षेत्रीय व्यापार 777 बिलियन डॉलर का है।
  • वर्ष 1994 में इसका 233 बिलियन डॉलर का अंतरक्षेत्रीय व्यापार था।
  • 33 फीसदी गैस भंडार हिमतक्षेस में मौजूद है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 हिमतक्षेस, समृद्धि और सुरक्षा के लिए सहयोग (हिन्दी) प्रभातखबर.कॉम। अभिगमन तिथि: 07 फरवरी, 2014।

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