हिमालय का मानचित्र

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हिमालय का मानचित्र

हिमालय का कुछ हद तक सटीक मानचित्र मुग़ल बादशाह अकबर के दरबार के स्पेनी दूत एंतोनियों मौनसेरेट ने 1590 में तैयार किया था। फ़्रांसीसी भू-वैज्ञानिक ज्यां बैपतिस्त बॉरगुईग्नोन डी ऑरविले ने व्यवस्थित पर्यवेक्षण के आधार पर तिब्बत और हिमालय पर्वतश्रेणी का पहला मानचित्र तैयार किया। 19वीं सदी के मध्य में सर्वे ऑफ़ इंडिया ने हिमालय की चोटियों की ऊँचाई के सही आकलन के लिए व्यवस्थित कार्यक्रम का आयोजन किया। 1849 से 1855 के बीच नेपाल और उत्तराखंड की चोटियों का सर्वेक्षण कर उनका मानचित्र बनाया गया। नंगा पर्वत और उत्तर में कराकोरम श्रेणी की चोटियों को 1855 से 1859 के बीच सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षकों ने इन खोई गई असंख्य चोटियों को अलग-अलग नाम नहीं दिया, बल्कि अंकों और रोमन संख्याओं से उनकी पहचान की। इस प्रकार, माउंट एवरेस्ट को सर्वप्रथम सिर्फ़ एच नाम दिया गया। 1849 स 1850 में इसे शिखर x.v कर दिया गया। 1865 में शिखर x.v. का नाम भारत के महासर्वेक्षक रहे सर जार्ज एवरेस्ट (1830 से 1843 तक) के नाम पर रखा गया। 1852 में गणना का इस हद तक विकास नहीं हुआ था कि शिखर x.v. दुनिया के अन्य किसी भी शिखर से ऊँचा है, इसकी जानकारी हो सके। 1862 तक, 5,486 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले 40 शिखरों पर सर्वेक्षण कार्य के लिए आरोहण हो चुका था।

वैज्ञानिक शोध

सर्वेक्षण अभियानों के अलावा 19वीं शताब्दी में हिमालय में कई वैज्ञानिक अध्ययन भी किए गए। 1848 से 1849 के बीच अंग्रेज़ वनस्पतिशास्त्री जोज़ेफ़ डाल्टन हूकर ने सिक्किम हिमालय क्षेत्र के वनस्पति जीवन का सर्वप्रथम अध्ययन किया। उसके बाद कई लोगों ने उनका अनुसरण किया, जिसमें हिमालय की ऊँचाइयों में रहने वाले जंतुओं के प्राकृतिक इतिहास के महत्त्वपूर्ण विवरण के लेखक, ब्रिटिश प्रकृतिविद् रिचर्ड डब्ल्यू. जी. हिंग्स्टन (आरंभिक 20वीं शताब्दी) भी शामिल थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से सर्वे ऑफ़ इंडिया ने हवाई चित्रों की मदद से हिमालय के कुछ व्यापक पैमाने के मानचित्र बनाए हैं। जर्मन भूगोलविदों और मानचित्रकारों ने भू-फ़ोटोग्रामेट्री की मदद से हिमालय के कुछ हिस्सों का मानचित्र तैयार किया है। साथ ही, उपग्रहीय सर्वेक्षण का इस्तेमाल ज़्यादा सटीक और ब्योरेवार मानचित्रों के निर्माण में किया जा रहा है।

ब्रिटेन के डब्ल्यू.डब्ल्यू. ग्राहम द्वारा 1883 में कई शिखरों पर चढ़ने के दावे के साथ ही 1880 के दशक में हिमालय पर्वतरोहण की शुरुआत हुई। हालांकि उनकी रिपोर्ट को संशय की दृष्टि से देखा गया, लेकिन इससे अन्य यूरोपीय पर्वतारोहियों में भी रुचि उत्पन्न हुई। 20वीं सदी के आरंभ में कराकोरम श्रृंखला पर और हिमालय के कुमाऊँ तथा सिक्किम क्षेत्र में पर्वतीय अभियानों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बीच के काल में विभिन्न चोटियों के प्रति विभिन्न देशों की प्राथमिकता का विकास हुआ। जर्मनों ने नंगा पर्वत और कंचनजंगा, अमेरिकियों ने के-2[1] और ब्रिटिश लोगों ने माउंट एवरेस्ट को चुना। 1921 तक माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के दर्जनों प्रयास हो चुके थे। मई, 1953 में न्यूज़ीलैंड के पर्वतरोही एडमंड हिलेरी और उनके सहयोगी शेरपा तेनज़िंग नोर्गे द्वारा सफलता प्राप्त करने से पहले लगभग दर्जन भर प्रयास हो चुके थे। इसी वर्ष कार्ल-मारिया हेरलिगकोफ़र के नेतृत्व वाली ऑस्ट्रो-जर्मन टीम ने नंगा पर्वत के शिखर तक पहुँचने में सफलता पाई। जैसे-जैसे ऊँचे शिखरों पर सफलता मिलने लगी, पर्वतारोही अपनी निपुणता और उपकरणों की जाँच के लिए बड़ी चुनौतियाँ ढूंढने लगे तथा उन्होंने अपेक्षाकृत ज़्यादा ख़तरनाक रास्तों से शिखर पर चढ़ने का प्रयास किया। 20 वीं शताब्दी के अंत तक हिमालय पर सालाना पर्वतारोहण अभियानों और पर्यटन यात्राओं की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि कुछ क्षेत्रों में लोगों द्वारा छोड़े गए कचरे के बढ़ते ढेर तथा वनस्पति और जंतु जीवन के विनाश से पर्वतीय पर्यावरण के नाज़ुक संतुलन के ख़तरा उत्पन्न हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इसे माउंट गॉडविन ऑस्टिन भी कहते हैं

बाहरी कड़ियाँ

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