उपनयन संस्कार

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  • हिन्दू धर्म संस्कारों में उपनयन संस्कार दशम संस्कार है।
  • मनुष्य जीवन के लिए यह संस्कार विशेष महत्वपूर्ण है।
  • इस संस्कार के अनन्तर ही बालक के जीवन में भौतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • इस संस्कार में वेदारम्भ-संस्कार का भी समावेश है।
  • इसी को यज्ञोपवीत-संस्कार भी कहते हैं। इस संस्कार में वटुक को गायत्री मंत्र की दीक्षा दी जाती है और यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है। विशेषकर अपनी-अपनी शाखा के अनुसार वेदाध्ययन किया जाता है।
  • यह संस्कार ब्राह्मण बालक का आठवें वर्ष में, क्षत्रिय बालक का ग्यारहवें वर्ष में और वैश्य बालक का बारहवें वर्ष में होता है।
  • कन्याओं को इस संस्कार का अधिकार नहीं दिया गया है।
  • केवल विवाह-संस्कार ही उनके लिये द्विजत्व के रूप में परिणत करनेवाला संस्कार माना गया है।

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