इश्क की दस्तक : पनामा सिगरेट -नीलम प्रभा

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इश्क की दस्तक : पनामा सिगरेट -नीलम प्रभा
नीलम प्रभा
कवि नीलम प्रभा
जन्म 12 जुलाई
जन्म स्थान बक्सर, बिहार
अन्य नीलम प्रभा की वर्ष 1971 से वर्ष 1979 तक रचनाएं साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादम्बिनी, धर्मयुग में नियमित प्रकाशित हुई।
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नीलम प्रभा की रचनाएँ

इश्क की दस्तक : पनामा सिगरेट : आखिरी कश तक मज़ा देती है

कौन बेअक्ल कहता है
कि सत्तर के दरवाज़े पर
इश्क दस्तक नहीं देता ... !
और सत्तर के आगे निकल गए
तो वह दिखाई भी नहीं देता ...
क्यों भला ?
किसी हमसिन के दिल की जलन का
धुआं तो नहीं फैला,
ना ही जवां लैला मजनूओं की आह से
नज़र का शीशा हुआ है मैला
तो फिर क्यों न दिखे ?
ना कोई चलती सड़क सत्तर की उमर है,
ना ही इश्क सरे राह लगा मील का पत्थर है
कि उधर आगे निकले नहीं
और इधर पत्थर का दिखना बंद हो जाए...
इश्क तो साथ साथ चलता
शम्स है, कमर है,
साथ साथ चलती धूप की सदा,
चांदनी का स्वर, हवाओं का असर है,
साथ साथ जागती सहर है,
साथ में दिन का खाना खाती दोपहर है
साथ साथ उतरती शाम है
फिर भी,
इश्क का किस्सा होता नहीं तमाम है ...
रात घिर आने पर भी
बिछौने की चादर से
सलवटों के न निकल पाने पर भी
वह साथ साथ करवट बदलता है,
शहर के सारे चराग जब बुझ जाते हैं
तो वह इश्क ही है
जो शुक्र तारे के उगने तक
शमा की मानिंद पिघलता है,
हमारे - आपके सिरहाने
बुरे सायों की मुख़ालफत करता
दीये की तरह जलता है...!
अगर वो जलने का हौसला रखता है
तो उसे ताउम्र जलने दो,
दिल की छत पे अलगनी से टंगी है जो
जवां उम्र की चादर,
उसे उतार कर तह न करो...
और रोशनी की मोहताज हो चली आंखों में
सोलह साल का एक सपना
आखिरी दम तक पलने दो।

नीलम प्रभा

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