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− | अन्तकाल में जिसका स्मरण करते हुए मनुष्य मरता है, उसी को प्राप्त होता है; और अन्तकाल में प्राय: उसी भाव का स्मरण होता है, जिसका जीवन में अधिक स्मरण किया जाता | + | अन्तकाल में जिसका स्मरण करते हुए मनुष्य मरता है, उसी को प्राप्त होता है; और अन्तकाल में प्राय: उसी भाव का स्मरण होता है, जिसका जीवन में अधिक स्मरण किया जाता है। यह निर्णय हो जाने पर भगवत्प्राप्ति चाहने वाले के लिये अन्तकाल में भगवान् का स्मरण रखना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है और अन्तकाल अचानक ही कब आ जाय, इसका कुछ पता नहीं है; अतएव अब भगवान् निरन्तर भजन करते हुए ही युद्ध करने के लिये [[अर्जुन]] को आदेश करते हैं- |
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− | इसलिये हे < | + | इसलिये हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! तू सब समय में निरन्तर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर। इस प्रकार मुझ में अर्पण किये हुए मन- बुद्धि से युक्त होकर तू नि:सन्देह मुझ को ही प्राप्त होगा ।।7।। |
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+ | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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+ | ==संबंधित लेख== | ||
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08:47, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-8 श्लोक-7 / Gita Chapter-8 Verse-7
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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