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(1905), [[भारत]] के ब्रिटिश वाइसरॉय [[लॉर्ड कर्ज़न]] द्वारा भारतीय राष्ट्रवादियों के भारी विरोध के बावजूद बंगाल का विभाजन किया गया था। इसके बाद [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] ने मध्यमवर्गीय दबाब समूह से बढ़कर राष्ट्रीय स्तर के जन आंदोलन का रूप ले लिया। 1755 ई. में [[डेनिश ईस्ट इंडिया कम्पनी]] ने बंगाल में श्रीरामपुर में अपनी बस्ती स्थापित की। 1765 से ब्रिटिश [[भारत]] में बंगाल, [[बिहार]] और [[उड़ीसा]] संयुक्त रूप से एक ही प्रांत थे।  
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[[मुग़ल काल]] के दौरान बंगाल का सूबा सबसे पहले स्वतन्त्र हुआ, और सबसे पहले ब्रिटिश शासन के अधीन भी हुआ। मुर्शीद कुली ख़ाँ को बंगाल के स्वतंत्र सूबे का संस्थानक माना जाता है। मुग़ल सम्राट [[फ़र्रुख़सियर]] ने उसे 1719 ई. में [[उड़ीसा]] की सूबेदारी सौंपी थी। मुर्शीद कुली ख़ाँ ने अपनी राजधानी [[ढाका]] से [[मुर्शिदाबाद]] स्थानान्तरित कर ली थी। 1727 ई. में उसकी मृत्यु के बाद उसका दामाद '[[शुजाउद्दौला]]' गद्दी पर बैठा। 1733 ई. में मुग़ल सम्राट [[मुहम्मदशाह रौशन अख़्तर|मुहम्मदशाह]] ने शुजाउद्दौला को [[बिहार]] की सूबेदारी प्रदान की। शुजाउद्दौला के 1739 ई. तक शासन करने के बाद उसका बेटा 'सरफ़राज ख़ाँ' बंगाल की गद्दी पर बैठा।
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1740 ई. में बिहार के नायब सूबेदार 'अर्लीवर्दी ख़ाँ' ने विद्रोह कर सरफ़राज ख़ाँ को 'घिरिया' के स्थान पर हराकर मार डाला। उसने 2 करोड़े रुपये सम्राट को भेंट कर उसकी अनुमति प्राप्त कर ली, किन्तु जब सम्राट ने धन की मांग पुनः की तो उसने कोई ध्यान नहीं दिया। 1757 ई. में ही अलीवर्दी ख़ाँ का उत्तराधिकारी [[सिराजुद्दौला]] गद्दी पर बैठा। इसके समय में ही [[प्लासी]] का प्रसिद्ध युद्ध हुआ। यह बंगाल का अन्तिम स्वतंत्र शासक था। इसके बाद के शासक [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] के अधीन शासन करते थे।
 
==बंगाल का विभाजन==
 
==बंगाल का विभाजन==
1900 तक यह प्रांत इतना बड़ा हो गया के इसे एक प्रशासन के अंतर्गत रखने में परेशानी होने लगी। अलग-अलग होने और संचार-साधनों के अभाव में [[पश्चिम बंगाल]] तथा बिहार की तुलना में पूर्वी बंगाल की उपेक्षा होने लगी। कर्ज़न ने विभाजन के कई तरीक़ों में से एक को चुना: [[असम]] को, जो 1874 तक इस प्रांत का एक हिस्सा था, पूर्वी बंगाल के 15 ज़िलों के साथ मिलाकर 3 करोड़ 10 लाख की आबादी वाला नया प्रांत बनाया। इसकी राजधानी [[ढाका]] थी और जनता मुख्यत: मुसलमान थी।पश्चिम बंगाल के हिंदुओं ने, जो बंगाल के अधिकांश वाणिज्य, व्यवसाय और ग्रामीण जीवन पर नियंत्रण रखते थे, शिकायत की कि बंगाल क्षेत्र के दो भागों में बंट जाने से वे बिहार और उड़ीसा समेत बचे हुए प्रांत में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। उन्होंने इसे बंगाल में राष्ट्रीयता का गला घोटने की कोशिश माना, जहाँ यह अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक विकसित थी।  
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(1905), [[भारत]] के ब्रिटिश वाइसरॉय [[लॉर्ड कर्ज़न]] द्वारा भारतीय राष्ट्रवादियों के भारी विरोध के बावजूद बंगाल का विभाजन किया गया था। इसके बाद [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] ने मध्यमवर्गीय दबाब समूह से बढ़कर राष्ट्रीय स्तर के जन आंदोलन का रूप ले लिया। 1755 ई. में [[डेनिश ईस्ट इंडिया कम्पनी]] ने बंगाल में श्रीरामपुर में अपनी बस्ती स्थापित की। 1765 से ब्रिटिश [[भारत]] में बंगाल, [[बिहार]] और [[उड़ीसा]] संयुक्त रूप से एक ही प्रांत थे। 1900 तक यह प्रांत इतना बड़ा हो गया के इसे एक प्रशासन के अंतर्गत रखने में परेशानी होने लगी। अलग-अलग होने और संचार-साधनों के अभाव में [[पश्चिम बंगाल]] तथा बिहार की तुलना में पूर्वी बंगाल की उपेक्षा होने लगी।
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कर्ज़न ने विभाजन के कई तरीक़ों में से एक को चुना: [[असम]] को, जो 1874 तक इस प्रांत का एक हिस्सा था, पूर्वी बंगाल के 15 ज़िलों के साथ मिलाकर 3 करोड़ 10 लाख की आबादी वाला नया प्रांत बनाया। इसकी राजधानी [[ढाका]] थी और जनता मुख्यत: मुसलमान थी।पश्चिम बंगाल के हिंदुओं ने, जो बंगाल के अधिकांश वाणिज्य, व्यवसाय और ग्रामीण जीवन पर नियंत्रण रखते थे, शिकायत की कि बंगाल क्षेत्र के दो भागों में बंट जाने से वे बिहार और उड़ीसा समेत बचे हुए प्रांत में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। उन्होंने इसे बंगाल में राष्ट्रीयता का गला घोटने की कोशिश माना, जहाँ यह अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक विकसित थी।  
 
==आन्दोलन==
 
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विभाजन के ख़िलाफ़ आंदोलन के लिए जनसभाएं, ग्रामीण आंदोलन और ब्रिटिश वस्तुओं के आयात के बहिष्कार के लिए स्वदेशी आंदोलन छेड़ा गया। तमाम आंदोलनों के बावजूद विभाजन हुआ और चरमपंथी विरोधी आतंकवादी आंदोलन चलाने के लिए भूमिगत हो जए। 1911 में जब देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाई गई, तो पूर्व और पश्चिम बंगाल पुन: एक हो गए, असम एक बार फिर अलग मुख्य प्रांत बन गया और बिहार व उड़ीसा को अलग करके नया प्रांत बना दिया गया। इसका उद्देश्य प्रशासनिक सुविधा के साथ-साथ बंगालियों की भावनाओं को तुष्ट करना भी था। कुछ समय तक तो इस लक्ष्य की प्राप्ति हो गई, लेकिन विभाजन से लाभान्वित हुए बंगाली मुसलमान नाराज़ और निराश थे।
 
विभाजन के ख़िलाफ़ आंदोलन के लिए जनसभाएं, ग्रामीण आंदोलन और ब्रिटिश वस्तुओं के आयात के बहिष्कार के लिए स्वदेशी आंदोलन छेड़ा गया। तमाम आंदोलनों के बावजूद विभाजन हुआ और चरमपंथी विरोधी आतंकवादी आंदोलन चलाने के लिए भूमिगत हो जए। 1911 में जब देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाई गई, तो पूर्व और पश्चिम बंगाल पुन: एक हो गए, असम एक बार फिर अलग मुख्य प्रांत बन गया और बिहार व उड़ीसा को अलग करके नया प्रांत बना दिया गया। इसका उद्देश्य प्रशासनिक सुविधा के साथ-साथ बंगालियों की भावनाओं को तुष्ट करना भी था। कुछ समय तक तो इस लक्ष्य की प्राप्ति हो गई, लेकिन विभाजन से लाभान्वित हुए बंगाली मुसलमान नाराज़ और निराश थे।
 
  
 
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Disamb2.jpg बंगाल एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- बंगाल (बहुविकल्पी)

मुग़ल काल के दौरान बंगाल का सूबा सबसे पहले स्वतन्त्र हुआ, और सबसे पहले ब्रिटिश शासन के अधीन भी हुआ। मुर्शीद कुली ख़ाँ को बंगाल के स्वतंत्र सूबे का संस्थानक माना जाता है। मुग़ल सम्राट फ़र्रुख़सियर ने उसे 1719 ई. में उड़ीसा की सूबेदारी सौंपी थी। मुर्शीद कुली ख़ाँ ने अपनी राजधानी ढाका से मुर्शिदाबाद स्थानान्तरित कर ली थी। 1727 ई. में उसकी मृत्यु के बाद उसका दामाद 'शुजाउद्दौला' गद्दी पर बैठा। 1733 ई. में मुग़ल सम्राट मुहम्मदशाह ने शुजाउद्दौला को बिहार की सूबेदारी प्रदान की। शुजाउद्दौला के 1739 ई. तक शासन करने के बाद उसका बेटा 'सरफ़राज ख़ाँ' बंगाल की गद्दी पर बैठा।

1740 ई. में बिहार के नायब सूबेदार 'अर्लीवर्दी ख़ाँ' ने विद्रोह कर सरफ़राज ख़ाँ को 'घिरिया' के स्थान पर हराकर मार डाला। उसने 2 करोड़े रुपये सम्राट को भेंट कर उसकी अनुमति प्राप्त कर ली, किन्तु जब सम्राट ने धन की मांग पुनः की तो उसने कोई ध्यान नहीं दिया। 1757 ई. में ही अलीवर्दी ख़ाँ का उत्तराधिकारी सिराजुद्दौला गद्दी पर बैठा। इसके समय में ही प्लासी का प्रसिद्ध युद्ध हुआ। यह बंगाल का अन्तिम स्वतंत्र शासक था। इसके बाद के शासक अंग्रेजों के अधीन शासन करते थे।

बंगाल का विभाजन

(1905), भारत के ब्रिटिश वाइसरॉय लॉर्ड कर्ज़न द्वारा भारतीय राष्ट्रवादियों के भारी विरोध के बावजूद बंगाल का विभाजन किया गया था। इसके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मध्यमवर्गीय दबाब समूह से बढ़कर राष्ट्रीय स्तर के जन आंदोलन का रूप ले लिया। 1755 ई. में डेनिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल में श्रीरामपुर में अपनी बस्ती स्थापित की। 1765 से ब्रिटिश भारत में बंगाल, बिहार और उड़ीसा संयुक्त रूप से एक ही प्रांत थे। 1900 तक यह प्रांत इतना बड़ा हो गया के इसे एक प्रशासन के अंतर्गत रखने में परेशानी होने लगी। अलग-अलग होने और संचार-साधनों के अभाव में पश्चिम बंगाल तथा बिहार की तुलना में पूर्वी बंगाल की उपेक्षा होने लगी।

कर्ज़न ने विभाजन के कई तरीक़ों में से एक को चुना: असम को, जो 1874 तक इस प्रांत का एक हिस्सा था, पूर्वी बंगाल के 15 ज़िलों के साथ मिलाकर 3 करोड़ 10 लाख की आबादी वाला नया प्रांत बनाया। इसकी राजधानी ढाका थी और जनता मुख्यत: मुसलमान थी।पश्चिम बंगाल के हिंदुओं ने, जो बंगाल के अधिकांश वाणिज्य, व्यवसाय और ग्रामीण जीवन पर नियंत्रण रखते थे, शिकायत की कि बंगाल क्षेत्र के दो भागों में बंट जाने से वे बिहार और उड़ीसा समेत बचे हुए प्रांत में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। उन्होंने इसे बंगाल में राष्ट्रीयता का गला घोटने की कोशिश माना, जहाँ यह अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक विकसित थी।

आन्दोलन

विभाजन के ख़िलाफ़ आंदोलन के लिए जनसभाएं, ग्रामीण आंदोलन और ब्रिटिश वस्तुओं के आयात के बहिष्कार के लिए स्वदेशी आंदोलन छेड़ा गया। तमाम आंदोलनों के बावजूद विभाजन हुआ और चरमपंथी विरोधी आतंकवादी आंदोलन चलाने के लिए भूमिगत हो जए। 1911 में जब देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाई गई, तो पूर्व और पश्चिम बंगाल पुन: एक हो गए, असम एक बार फिर अलग मुख्य प्रांत बन गया और बिहार व उड़ीसा को अलग करके नया प्रांत बना दिया गया। इसका उद्देश्य प्रशासनिक सुविधा के साथ-साथ बंगालियों की भावनाओं को तुष्ट करना भी था। कुछ समय तक तो इस लक्ष्य की प्राप्ति हो गई, लेकिन विभाजन से लाभान्वित हुए बंगाली मुसलमान नाराज़ और निराश थे।


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