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[[मुग़ल]] साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले प्रान्तों में '''बंगाल''' सर्वाधिक सम्पन्न था। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने बंगाल में अपनी प्रथम कोठी 1651 ई. में हुगली में तत्कालीन बंगाल के सूबेदार 'शाहशुजा' ([[शाहजहाँ]] के दूसरे पुत्र) की अनुमति से बनायी तथा बंगाल से शोरे, रेशम और चीनी का व्यापार आरम्भ किया। ये बंगाल के निर्यात की प्रमुख वस्तुऐं थीं। उसी वर्ष [[मुग़ल वंश|मुग़ल राजवंश]] की एक स्त्री की, डाक्टर बौटन द्वारा चिकित्सा करने पर उसने अंग्रेज़ों को 3,000 रु. वार्षिक में बंगाल, [[बिहार]] तथा [[उड़ीसा]] में मुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान की। शीघ्र ही अंग्रेज़ों ने [[कासिम बाज़ार]], [[पटना]] तथा अन्य स्थानों पर कोठियाँ बना लीं। | [[मुग़ल]] साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले प्रान्तों में '''बंगाल''' सर्वाधिक सम्पन्न था। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने बंगाल में अपनी प्रथम कोठी 1651 ई. में हुगली में तत्कालीन बंगाल के सूबेदार 'शाहशुजा' ([[शाहजहाँ]] के दूसरे पुत्र) की अनुमति से बनायी तथा बंगाल से शोरे, रेशम और चीनी का व्यापार आरम्भ किया। ये बंगाल के निर्यात की प्रमुख वस्तुऐं थीं। उसी वर्ष [[मुग़ल वंश|मुग़ल राजवंश]] की एक स्त्री की, डाक्टर बौटन द्वारा चिकित्सा करने पर उसने अंग्रेज़ों को 3,000 रु. वार्षिक में बंगाल, [[बिहार]] तथा [[उड़ीसा]] में मुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान की। शीघ्र ही अंग्रेज़ों ने [[कासिम बाज़ार]], [[पटना]] तथा अन्य स्थानों पर कोठियाँ बना लीं। | ||
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1658 ई. में [[औरंगज़ेब]] ने 'मीर जुमला' को बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया। उसने अंग्रेज़ों के व्यापार पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिया, परिणामस्वरूप 1658 से 1663 ई. तक अंग्रेज़ों को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा। किन्तु 1698 ई. में सूबेदार अजीमुश्शान द्वारा अंग्रेज़ों को सूतानाती, कालीघाट एवं गोविन्दपुर की ज़मींदारी दे दी गयी, जिससे अंग्रेज़ों को व्यापार करने में काफ़ी लाभ प्राप्त हुआ। 18वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दौर में यहाँ के सूबेदारों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर नवाब की उपाधि धारण की। मुर्शीदकुली जफ़र ख़ाँ, जो औरंगज़ेब के समय में बंगाल का [[दीवान]] तथा [[मुर्शिदाबाद]] का फ़ौजदार था, बादशाह की मुत्यु के बाद 1717 में बंगाल का स्वतंत्र शासक बन गया। मुर्शीदकुली ख़ाँ ने बंगाल की राजधानी को [[ढाका]] से मुर्शिदाबाद हस्तांतरित कर दिया। उसके शासन काल में तीन विद्रोह हुए- | 1658 ई. में [[औरंगज़ेब]] ने 'मीर जुमला' को बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया। उसने अंग्रेज़ों के व्यापार पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिया, परिणामस्वरूप 1658 से 1663 ई. तक अंग्रेज़ों को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा। किन्तु 1698 ई. में सूबेदार अजीमुश्शान द्वारा अंग्रेज़ों को सूतानाती, कालीघाट एवं गोविन्दपुर की ज़मींदारी दे दी गयी, जिससे अंग्रेज़ों को व्यापार करने में काफ़ी लाभ प्राप्त हुआ। 18वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दौर में यहाँ के सूबेदारों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर नवाब की उपाधि धारण की। मुर्शीदकुली जफ़र ख़ाँ, जो औरंगज़ेब के समय में बंगाल का [[दीवान]] तथा [[मुर्शिदाबाद]] का फ़ौजदार था, बादशाह की मुत्यु के बाद 1717 में बंगाल का स्वतंत्र शासक बन गया। मुर्शीदकुली ख़ाँ ने बंगाल की राजधानी को [[ढाका]] से मुर्शिदाबाद हस्तांतरित कर दिया। उसके शासन काल में तीन विद्रोह हुए- | ||
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विभाजन के ख़िलाफ़ आंदोलन के लिए जनसभाएं, ग्रामीण आंदोलन और ब्रिटिश वस्तुओं के आयात के बहिष्कार के लिए स्वदेशी आंदोलन छेड़ा गया। तमाम आंदोलनों के बावजूद विभाजन हुआ और चरमपंथी विरोधी आतंकवादी आंदोलन चलाने के लिए भूमिगत हो जए। 1911 में जब देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाई गई, तो पूर्व और पश्चिम बंगाल पुन: एक हो गए, असम एक बार फिर अलग मुख्य प्रांत बन गया और बिहार व उड़ीसा को अलग करके नया प्रांत बना दिया गया। इसका उद्देश्य प्रशासनिक सुविधा के साथ-साथ बंगालियों की भावनाओं को तुष्ट करना भी था। कुछ समय तक तो इस लक्ष्य की प्राप्ति हो गई, लेकिन विभाजन से लाभान्वित हुए बंगाली मुसलमान नाराज़ और निराश थे। | विभाजन के ख़िलाफ़ आंदोलन के लिए जनसभाएं, ग्रामीण आंदोलन और ब्रिटिश वस्तुओं के आयात के बहिष्कार के लिए स्वदेशी आंदोलन छेड़ा गया। तमाम आंदोलनों के बावजूद विभाजन हुआ और चरमपंथी विरोधी आतंकवादी आंदोलन चलाने के लिए भूमिगत हो जए। 1911 में जब देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाई गई, तो पूर्व और पश्चिम बंगाल पुन: एक हो गए, असम एक बार फिर अलग मुख्य प्रांत बन गया और बिहार व उड़ीसा को अलग करके नया प्रांत बना दिया गया। इसका उद्देश्य प्रशासनिक सुविधा के साथ-साथ बंगालियों की भावनाओं को तुष्ट करना भी था। कुछ समय तक तो इस लक्ष्य की प्राप्ति हो गई, लेकिन विभाजन से लाभान्वित हुए बंगाली मुसलमान नाराज़ और निराश थे। | ||
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11:04, 13 जून 2012 का अवतरण
बंगाल | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- बंगाल (बहुविकल्पी) |
मुग़ल साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले प्रान्तों में बंगाल सर्वाधिक सम्पन्न था। अंग्रेज़ों ने बंगाल में अपनी प्रथम कोठी 1651 ई. में हुगली में तत्कालीन बंगाल के सूबेदार 'शाहशुजा' (शाहजहाँ के दूसरे पुत्र) की अनुमति से बनायी तथा बंगाल से शोरे, रेशम और चीनी का व्यापार आरम्भ किया। ये बंगाल के निर्यात की प्रमुख वस्तुऐं थीं। उसी वर्ष मुग़ल राजवंश की एक स्त्री की, डाक्टर बौटन द्वारा चिकित्सा करने पर उसने अंग्रेज़ों को 3,000 रु. वार्षिक में बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में मुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान की। शीघ्र ही अंग्रेज़ों ने कासिम बाज़ार, पटना तथा अन्य स्थानों पर कोठियाँ बना लीं।
सूबेदारों की स्वतंत्रता
नवाब | शासन काल |
---|---|
मुर्शीदकुली ख़ाँ | 1717-1727 ई. |
शुजाउद्दीन | 1727-1739 ई. |
सरफ़राज ख़ाँ | 1739-1740 ई. |
अलीवर्दी ख़ाँ | 1740-1756 ई. |
सिराजुद्दौला | 1756-1757 ई. |
मीर ज़ाफ़र | 1757-1760 ई. |
मीर कासिम | 1760-1763 ई. |
मीर ज़ाफ़र (दूसरी बार) | 1763-1765 ई. |
नजमुद्दौला | 1765-1766 ई. |
शैफ-उद्-दौला | 1766-1770 ई. |
मुबारक-उद्-दौला | 1770-1775 ई. |
1658 ई. में औरंगज़ेब ने 'मीर जुमला' को बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया। उसने अंग्रेज़ों के व्यापार पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिया, परिणामस्वरूप 1658 से 1663 ई. तक अंग्रेज़ों को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा। किन्तु 1698 ई. में सूबेदार अजीमुश्शान द्वारा अंग्रेज़ों को सूतानाती, कालीघाट एवं गोविन्दपुर की ज़मींदारी दे दी गयी, जिससे अंग्रेज़ों को व्यापार करने में काफ़ी लाभ प्राप्त हुआ। 18वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दौर में यहाँ के सूबेदारों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर नवाब की उपाधि धारण की। मुर्शीदकुली जफ़र ख़ाँ, जो औरंगज़ेब के समय में बंगाल का दीवान तथा मुर्शिदाबाद का फ़ौजदार था, बादशाह की मुत्यु के बाद 1717 में बंगाल का स्वतंत्र शासक बन गया। मुर्शीदकुली ख़ाँ ने बंगाल की राजधानी को ढाका से मुर्शिदाबाद हस्तांतरित कर दिया। उसके शासन काल में तीन विद्रोह हुए-
- सीतारात राय, उदय नारायण तथा ग़ुलाम मुहम्मद का विद्रोह,
- शुजात ख़ाँ का विद्रोह,
- नजात ख़ाँ का विद्रोह, इसको हराने के बाद मुर्शीदकुली ख़ाँ ने उसकी जमीदारियों को अपने कृपापात्र रामजीवन को दे दिया।
भू-राजस्व बन्दोबस्त
मुर्शीदकुली ख़ाँ ने नए सिरे से बंगाल के वित्तीय मामले का प्रबन्ध किया। उसने नए भू-राजस्व बन्दोबस्त के जरिए जागीर भूमि के एक बड़े भाग को खालसा भूमि बना दिया तथा 'इजारा व्यवस्था' (ठेके पर भू-राजस्व वसूल करने की व्यवस्था) आरम्भ की। 1732 ई. में बंगाल के नवाब द्वारा अलीवर्दी ख़ाँ को बिहार का सूबेदार नियुक्त किया गया। 1740 ई. में अलीवर्दी ख़ाँ ने बंगाल के नवाब शुजाउद्दीन के पुत्र सरफ़राज को घेरिया के युद्ध में परास्त कर बंगाल की सूबेदारी प्राप्त कर ली ओर वह अब बंगाल, बिहार और उड़ीसा के सम्मिलित प्रदेश का नवाब बन गया। यही नहीं, इसने तत्कालीन मुग़ल सम्राट मुहम्मदशाह से 2 करोड़ रुपये नज़राने के बदलें में स्वीकृति भी प्राप्त कर लिया। उसने लगभग 15 वर्ष तक मराठों से संघर्ष किया। अलीवर्दी ख़ाँ ने यूरोपियों की तुलना मधुमक्खियों से करते हुए कहा कि 'यदि उन्हें छेड़ा न जाय, तो वे शहद देंगी और यदि छेड़ा जाय तो काट-काट कर मार डालेंगी।'
1756 ई. में अलीवर्दी ख़ाँ के मरने के बाद उसके पौत्र सिराजुद्दौला ने गद्दी को ग्रहण किया। पूर्णिया का नवाब 'शौकतजंग' (सिराज की मौसी का लडका) तथा घसीटी बेगम (सिराज की मौसी), दोनों ही सिराजुद्दौला के प्रबल विरोधी थे। उसका सबसे 'प्रबल शत्रु' बंगाल की सेना का सेनानायक और अलीवर्दी ख़ाँ का बहनाई-मीरजाफ़र अली था। दूसरी ओर, चूंकि अंग्रेज़, फ़्राँसीसियों से भयभीत थे, अतः उन्होंने कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) की फ़ोर्ट विलियम कोठी की क़िलेबन्दी कर डाली। अंग्रेज़ों ने शौकतजंग एवं घसीटी बेगम का समर्थन किया। अंग्रेज़ों के इस कार्य से रुष्ट होकर सिराजुद्दौला ने 15 जून, 1756 को फ़ोर्ट विलियम का घेराव कर अंग्रेज़ों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। अन्ततः नवाब ने कलकत्ता मानिकचन्द्र को सौंप दिया और स्वयं मुर्शिदाबाद आ गया। यही वह समय था, जब बंगाल में 'ब्लैक होल घटना' (कालकोठरी) घटी, जिसके लिये नवाब सिराजुद्दौला को ज़िम्मेदार ठहराया गया।
बंगाल का विभाजन
(1905), भारत के ब्रिटिश वाइसरॉय लॉर्ड कर्ज़न द्वारा भारतीय राष्ट्रवादियों के भारी विरोध के बावजूद बंगाल का विभाजन किया गया था। इसके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मध्यमवर्गीय दबाब समूह से बढ़कर राष्ट्रीय स्तर के जन आंदोलन का रूप ले लिया। 1755 ई. में डेनिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल में श्रीरामपुर में अपनी बस्ती स्थापित की। 1765 से ब्रिटिश भारत में बंगाल, बिहार और उड़ीसा संयुक्त रूप से एक ही प्रांत थे। 1900 तक यह प्रांत इतना बड़ा हो गया के इसे एक प्रशासन के अंतर्गत रखने में परेशानी होने लगी। अलग-अलग होने और संचार-साधनों के अभाव में पश्चिम बंगाल तथा बिहार की तुलना में पूर्वी बंगाल की उपेक्षा होने लगी।
कर्ज़न ने विभाजन के कई तरीक़ों में से एक को चुना: असम को, जो 1874 तक इस प्रांत का एक हिस्सा था, पूर्वी बंगाल के 15 ज़िलों के साथ मिलाकर 3 करोड़ 10 लाख की आबादी वाला नया प्रांत बनाया। इसकी राजधानी ढाका थी और जनता मुख्यत: मुसलमान थी।पश्चिम बंगाल के हिंदुओं ने, जो बंगाल के अधिकांश वाणिज्य, व्यवसाय और ग्रामीण जीवन पर नियंत्रण रखते थे, शिकायत की कि बंगाल क्षेत्र के दो भागों में बंट जाने से वे बिहार और उड़ीसा समेत बचे हुए प्रांत में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। उन्होंने इसे बंगाल में राष्ट्रीयता का गला घोटने की कोशिश माना, जहाँ यह अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक विकसित थी।
आन्दोलन
विभाजन के ख़िलाफ़ आंदोलन के लिए जनसभाएं, ग्रामीण आंदोलन और ब्रिटिश वस्तुओं के आयात के बहिष्कार के लिए स्वदेशी आंदोलन छेड़ा गया। तमाम आंदोलनों के बावजूद विभाजन हुआ और चरमपंथी विरोधी आतंकवादी आंदोलन चलाने के लिए भूमिगत हो जए। 1911 में जब देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाई गई, तो पूर्व और पश्चिम बंगाल पुन: एक हो गए, असम एक बार फिर अलग मुख्य प्रांत बन गया और बिहार व उड़ीसा को अलग करके नया प्रांत बना दिया गया। इसका उद्देश्य प्रशासनिक सुविधा के साथ-साथ बंगालियों की भावनाओं को तुष्ट करना भी था। कुछ समय तक तो इस लक्ष्य की प्राप्ति हो गई, लेकिन विभाजन से लाभान्वित हुए बंगाली मुसलमान नाराज़ और निराश थे।
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