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*[[वीर राजेन्द्र]] के बाद उसका पुत्र अधिराजेन्द्र राजा बना।
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*[[वीर राजेन्द्र]] की मृत्यु के बाद '''अधिराजेन्द्र''' (1070 ई.) [[चोल राजवंश|चोल]] की गद्दी पर बैठा।
*पर वह [[चोल साम्राज्य]] की शक्ति को अक्षुण्ण रखने में असमर्थ रहा।  
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*अधिराजेन्द्र परान्तक का वंशधर था।
*उसके शासन काल में सर्वत्र विद्रोह शुरू हो गए, और इन्हीं के विरूद्ध संघर्ष करते हुए अपने राज्य के पहले साल में ही उसकी मृत्यु हो गई।
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*वह [[चोल साम्राज्य]] की शक्ति को अक्षुण्ण रखने में असमर्थ रहा।
*चोलवंश का अन्तिम राजा था।
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*अधिराजेन्द्र [[शैव धर्म]] का अनुयायी था और प्रसिद्ध [[वैष्णव]] आचार्य [[रामानुज]] से इतना द्वेष करता था कि, रामानुज को उसके राज्य काल में श्रीरंगम छोड़कर अन्यत्र चले जाना पड़ा।
*अधिराजेन्द्र परांतक का वंशधर था।
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*उसके शासन काल में सर्वत्र विद्रोह शुरू हो गए और इन्हीं के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अपने राज्य के पहले साल में ही उसकी मृत्यु हो गई।
*अधिराजेन्द्र ने केवल तीन वर्ष (1072-74 ई.) तक राज्य किया और उसकी हत्या कर दी गई।
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*उसकी मृत्यु के साथ ही [[विजयालय]] द्वारा स्थापित [[चोल वंश]] समाप्त हो गया।
*अधिराजेन्द्र शैव धर्मावलम्बी था और प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य रामानुज से इतना द्वेष करता था कि उन्हें उसके राज्य काल में श्रीरंगम छोड़कर अन्यत्र चला जाना पड़ा।
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*इस अशांतिमय परिस्थिति का फ़ायदा उठाकर [[कुलोत्तुंग प्रथम]] चोल राजसिंहासन पर बैठा।
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15:26, 17 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

  • वीर राजेन्द्र की मृत्यु के बाद अधिराजेन्द्र (1070 ई.) चोल की गद्दी पर बैठा।
  • अधिराजेन्द्र परान्तक का वंशधर था।
  • वह चोल साम्राज्य की शक्ति को अक्षुण्ण रखने में असमर्थ रहा।
  • अधिराजेन्द्र शैव धर्म का अनुयायी था और प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य रामानुज से इतना द्वेष करता था कि, रामानुज को उसके राज्य काल में श्रीरंगम छोड़कर अन्यत्र चले जाना पड़ा।
  • उसके शासन काल में सर्वत्र विद्रोह शुरू हो गए और इन्हीं के विरुद्ध संघर्ष करते हुए अपने राज्य के पहले साल में ही उसकी मृत्यु हो गई।
  • उसकी मृत्यु के साथ ही विजयालय द्वारा स्थापित चोल वंश समाप्त हो गया।
  • इस अशांतिमय परिस्थिति का फ़ायदा उठाकर कुलोत्तुंग प्रथम चोल राजसिंहासन पर बैठा।
  • इसके बाद का चोल इतिहास चोल-चालुक्य वंशीय इतिहास के नाम से जाना जाता है।

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