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{{दाँयाबक्सा|पाठ='जब तक जीना, तब तक सीखना' - अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।|विचारक=[[स्वामी विवेकानन्द]]}}
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{{दाँयाबक्सा|पाठ=बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है।|विचारक=आईजक दिसराली}}
* हम '''अनमोल वचन ( Priceless Words)''' उन बातों और लेखों को कहते हैं, जिन्हें संसार के अनेकानेक विद्वानों ने कहे और लिखे हैं, जो जीवन उपयोगी हैं। इन अनमोल वचनों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन में नई उंमग एवं उत्साह का संचार कर सकते हैं। अनमोल वचन को हम '''सूक्ति (सु + उक्ति) या सुभाषित (सु + भाषित)''' भी कहते हैं। इन बातों को अनमोल इसलिए भी कहा जाता हैं क्योंकि यदि हम इन बातों का अर्थ या सार समझेगें, तो हम पायेंगे की इन बातों का कोई मोल नहीं लगा सकता। इन बातों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन की दिशा को बदल सकते हैं और जीवन की दिशा बदलनें वाली बातों का कभी कोई मोल नहीं लगा सकता हैं क्योकि ये बातें तो अनमोल होती हैं।
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* हम '''अनमोल वचन ( Priceless Words / Quotes)''' (अमृत वचन/ सुविचार/ सुवचन/ सत्य वचन/ सूक्ति/ सुभाषित/ उत्तम (उत्‍तम) वाणी/ उद्धरण/ धीर गंभीर मृदु वाक्‍य)उन बातों और लेखों को कहते हैं, जिन्हें संसार के अनेकानेक विद्वानों ने कहे और लिखे हैं, जो जीवन उपयोगी हैं। इन अनमोल वचनों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन में नई उंमग एवं उत्साह का संचार कर सकते हैं। अनमोल वचन को हम '''सूक्ति (सु + उक्ति) या सुभाषित (सु + भाषित)''' भी कहते हैं। जिसका अर्थ है “सुन्दर भाषा में कहा गया”। इन बातों को अनमोल इसलिए भी कहा जाता हैं क्योंकि यदि हम इन बातों का अर्थ या सार समझेगें, तो हम पायेंगे की इन बातों का कोई मोल नहीं लगा सकता। इन बातों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन की दिशा को बदल सकते हैं और जीवन की दिशा बदलनें वाली बातों का कभी कोई मोल नहीं लगा सकता हैं क्योकि ये बातें तो अनमोल होती हैं।
* वक्ता हो या संत हो, विद्वान हो या लेखक हो, राजनेता हो या फिर कोई प्रशासक — अपनी बात कहने के साथ-साथ वह उसे सार-रूप में कहता हुआ एक माला के रूप में पिरोता चलता है। इस सार-रूप में कहे गए वाक्यों में ऐसे सूत्र छिपे रहते हैं, जिन पर चिंतन करने से विचारों की एक व्यवस्थित श्रृंखला का सहज रूप से निर्माण होता है। उस समय ऐसा लगता है मानो किसी विशिष्ट विषय पर लिखी गई पुस्तक के पन्ने एक-एक करके पलट रहे हों।
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* वक्ता हो या संत हो, विद्वान् हो या लेखक हो, राजनेता हो या फिर कोई प्रशासक — अपनी बात कहने के साथ-साथ वह उसे सार-रूप में कहता हुआ एक माला के रूप में पिरोता चलता है। इस सार-रूप में कहे गए वाक्यों में ऐसे सूत्र छिपे रहते हैं, जिन पर चिंतन करने से विचारों की एक व्यवस्थित श्रृंखला का सहज रूप से निर्माण होता है। उस समय ऐसा लगता है मानो किसी विशिष्ट विषय पर लिखी गई पुस्तक के पन्ने एक-एक करके पलट रहे हों।
 
* सूत्ररूप में कहे गए ये कथन आत्मविकास के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। इसीलिए व्यक्तित्व विकास पर कार्य कर रहे अनुसंधानकर्ताओं और विद्वानों का कहना है कि प्रत्येक आत्मविकास के इच्छुक को चाहिए कि वह अपने लिए आदर्शवाक्य चुनकर उसे ऐसे स्थान पर रख या चिपका ले, जहाँ उसकी नज़र ज़्यादातर पड़ती हो। ऐसा करने से वह विचार अवचेतन में बैठकर उसके व्यक्तित्व को गहराई तक प्रभावित करेगा। इन वाक्यों का आपसी बातचीत में, भाषण आदि में प्रयोग करके आप अपने पक्ष को पुष्ट करते हैं। ऐसा करने से आपकी बातों में वजन तो आता ही है लोगों के बीच आपकी साख भी बढ़ती है।
 
* सूत्ररूप में कहे गए ये कथन आत्मविकास के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। इसीलिए व्यक्तित्व विकास पर कार्य कर रहे अनुसंधानकर्ताओं और विद्वानों का कहना है कि प्रत्येक आत्मविकास के इच्छुक को चाहिए कि वह अपने लिए आदर्शवाक्य चुनकर उसे ऐसे स्थान पर रख या चिपका ले, जहाँ उसकी नज़र ज़्यादातर पड़ती हो। ऐसा करने से वह विचार अवचेतन में बैठकर उसके व्यक्तित्व को गहराई तक प्रभावित करेगा। इन वाक्यों का आपसी बातचीत में, भाषण आदि में प्रयोग करके आप अपने पक्ष को पुष्ट करते हैं। ऐसा करने से आपकी बातों में वजन तो आता ही है लोगों के बीच आपकी साख भी बढ़ती है।
<poem>{{दाँयाबक्सा|पाठ=ख़ंजर की क्या मजाल जो इक ज़ख़्म कर सके।<br />तेरा ही है ख़याल कि घायल हुआ है तू।|विचारक=स्वामी रामतीर्थ}}</poem>
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<poem>{{दाँयाबक्सा|पाठ=सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नहीं हो सकती।|विचारक=राबर्ट हेमिल्टन}}</poem>
 
* लोग जीवन में कर्म को महत्त्व देते हैं, विचार को नहीं। ऐसा सोचने वाले शायद यह नहीं जानते कि विचारों का ही स्थूल रूप होता है कर्म अर्थात् किसी भी कर्म का चेतन-अचेतन रूप से विचार ही कारण होता है। '''जानाति, इच्छति, यतते—जानता है (विचार करता है), इच्छा करता है फिर प्रयत्न करता है।''' यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे आधुनिक मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है। जानना और इच्छा करना विचार के ही पहलू हैं । आपने यह भी सुना होगा कि विचारों का ही विस्तार है आपका अतीत, वर्तमान और भविष्य। दूसरे शब्दों में, आज आप जो भी हैं, अपने विचारों के परिमामस्वरूप ही हैं और भविष्य का निर्धारण आपके वर्तमान विचार ही करेंगे। तो फिर उज्ज्वल भविष्य की आकांक्षा करने वाले आप शुभ-विचारों से आपने दिलो-दिमाग को पूरित क्यों नहीं करते।
 
* लोग जीवन में कर्म को महत्त्व देते हैं, विचार को नहीं। ऐसा सोचने वाले शायद यह नहीं जानते कि विचारों का ही स्थूल रूप होता है कर्म अर्थात् किसी भी कर्म का चेतन-अचेतन रूप से विचार ही कारण होता है। '''जानाति, इच्छति, यतते—जानता है (विचार करता है), इच्छा करता है फिर प्रयत्न करता है।''' यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे आधुनिक मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है। जानना और इच्छा करना विचार के ही पहलू हैं । आपने यह भी सुना होगा कि विचारों का ही विस्तार है आपका अतीत, वर्तमान और भविष्य। दूसरे शब्दों में, आज आप जो भी हैं, अपने विचारों के परिमामस्वरूप ही हैं और भविष्य का निर्धारण आपके वर्तमान विचार ही करेंगे। तो फिर उज्ज्वल भविष्य की आकांक्षा करने वाले आप शुभ-विचारों से आपने दिलो-दिमाग को पूरित क्यों नहीं करते।
 
<blockquote>ख़ंजर की क्या मजाल जो इक ज़ख़्म कर सके। <br />
 
तेरा ही है ख़याल कि घायल हुआ है तू।।  ---  '''स्वामी रामतीर्थ'''</blockquote>
 
 
 
* शब्द ब्रह्म है। भारतीय दर्शकों में [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] को उत्तम प्रमाण माना गया है। इस संदर्भ में एक अत्यंत प्रचलित कथा का उल्लेख करना यहां युक्तिसंगत होगा। कथा इस प्रकार है —  दस व्यक्तियों ने बरसाती नदी पार की। पार पहुँचने पर यह जांचने के लिए कि दसों ने नदी पार कर ली है, कोई नदी में डूब तो नहीं गया, एक ने गिनना शुरू किया। उसके अनुसार उनका एक साथी नदी में बह गया था। एक-एक करके सभी ने गिनती की, प्रत्येक का यही मानना था कि कोई बह गया है। सभी उस दसवें व्यक्ति के लिए रोने और विलाप करने लगे। वहाँ से गुज़र रहे एक बुद्धिमान व्यक्ति ने जब उनसे रोने तथा विलाप करने का कारण पूछा, तो उन्होंने सारी बात कह सुनाई। उस व्यक्ति ने उनको एक पंक्ति में खड़ा होने को कहा। जब सब पंक्ति में खड़े हो गए, तब उनमें से एक को बुलाकर उससे गिनने को कहा। उस व्यक्ति ने नौ तक गिनती गिनी और चुप हो गया। तब आगन्तुक ने कहा दसवें तुम हो’ इतना सुनते ही सारा रोना-विलाप करना अपने आप, बिना किसी प्रयास के समाप्त हो गया। आगंतुक ने क्या किया ? उसके शब्दों ने ही रोने-बिलखने को विदाई दिलवा दी।
 
* शब्द ब्रह्म है। भारतीय दर्शकों में [[शब्द (व्याकरण)|शब्द]] को उत्तम प्रमाण माना गया है। इस संदर्भ में एक अत्यंत प्रचलित कथा का उल्लेख करना यहां युक्तिसंगत होगा। कथा इस प्रकार है —  दस व्यक्तियों ने बरसाती नदी पार की। पार पहुँचने पर यह जांचने के लिए कि दसों ने नदी पार कर ली है, कोई नदी में डूब तो नहीं गया, एक ने गिनना शुरू किया। उसके अनुसार उनका एक साथी नदी में बह गया था। एक-एक करके सभी ने गिनती की, प्रत्येक का यही मानना था कि कोई बह गया है। सभी उस दसवें व्यक्ति के लिए रोने और विलाप करने लगे। वहाँ से गुज़र रहे एक बुद्धिमान व्यक्ति ने जब उनसे रोने तथा विलाप करने का कारण पूछा, तो उन्होंने सारी बात कह सुनाई। उस व्यक्ति ने उनको एक पंक्ति में खड़ा होने को कहा। जब सब पंक्ति में खड़े हो गए, तब उनमें से एक को बुलाकर उससे गिनने को कहा। उस व्यक्ति ने नौ तक गिनती गिनी और चुप हो गया। तब आगन्तुक ने कहा दसवें तुम हो’ इतना सुनते ही सारा रोना-विलाप करना अपने आप, बिना किसी प्रयास के समाप्त हो गया। आगंतुक ने क्या किया ? उसके शब्दों ने ही रोने-बिलखने को विदाई दिलवा दी।
* [[शंकराचार्य]] से जब उनके शिष्यों ने पूछा कि इस संसार - चक्र से मुक्त होने का क्या उपाय है, तो उनका जवाब था - केवल विचार ही। इसीलिए प्रत्येक धर्म-संप्रदाय और जाति के महान पुरुषों ने सुझाव दिया कि जिस दिशा में आप अपने व्यक्तित्व को विकसित करना चाहते हैं, उससे संबंधित विचार को आप किसी ऐसी जगह रखे या चिपकाएं, जहां आपकी नज़र बार-बार जाती हो। वाक्य का अर्थ आपके भीतर बूस्टर की सी प्रतिक्रिया करेगा। श्रीमद्भागवद्ग [[गीता]] में [[श्रीकृष्ण]] ने स्पष्ट कहा कि मनुष्य को स्वयं से स्वयं का उद्धार करना होगा। कोई किसी की अवनति के लिए न तो उत्तरदायी है, न ही कोई किसी की उन्नति में अवरोध पैदा कर सकता है। [[मंथरा]] ने [[कैकेयी]] में परिवर्तन कैसे किया ? कैसे वह [[राम]] के राजा बनने में विरोधी बन गई ? कैसे उसने अपने पति [[दशरथ]] की मृत्यु और अपने वैधव्य की परवाह नहीं की ? इन सभी सवालों का जवाब आपको विचारों के परिवर्तन के इर्द-गिर्द ही घूमता मिलेगा।  
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* [[शंकराचार्य]] से जब उनके शिष्यों ने पूछा कि इस संसार - चक्र से मुक्त होने का क्या उपाय है, तो उनका जवाब था - केवल विचार ही। इसीलिए प्रत्येक धर्म-संप्रदाय और जाति के महान् पुरुषों ने सुझाव दिया कि जिस दिशा में आप अपने व्यक्तित्व को विकसित करना चाहते हैं, उससे संबंधित विचार को आप किसी ऐसी जगह रखे या चिपकाएं, जहां आपकी नज़र बार-बार जाती हो। वाक्य का अर्थ आपके भीतर बूस्टर की सी प्रतिक्रिया करेगा। श्रीमद्भागवद्ग [[गीता]] में [[श्रीकृष्ण]] ने स्पष्ट कहा कि मनुष्य को स्वयं से स्वयं का उद्धार करना होगा। कोई किसी की अवनति के लिए न तो उत्तरदायी है, न ही कोई किसी की उन्नति में अवरोध पैदा कर सकता है। [[मंथरा]] ने [[कैकेयी]] में परिवर्तन कैसे किया ? कैसे वह [[राम]] के राजा बनने में विरोधी बन गई ? कैसे उसने अपने पति [[दशरथ]] की मृत्यु और अपने वैधव्य की परवाह नहीं की ? इन सभी सवालों का जवाब आपको विचारों के परिवर्तन के इर्द-गिर्द ही घूमता मिलेगा।  
 
* महापुरुषों के वाक्यों को पढ़ते समय उनके व्यक्तित्व की गरिमा भी आपको प्रभावित करती है, जिससे अचेतन मन वैसा करने या न करने को विवश हो जाता है। इस प्रकार की बेबसी की स्थिति व्यक्तित्व के विकास के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करती है, क्योंकि तब आपके मन के पास मनमानी करने का न तो अवसर होता है, न ही सामर्थ्य। अनुभव में एक बात और आई है कि कभी - कभी आपकी ऐसी शंका का समाधान एक छोटा-सा वाक्य कर जाता है, जिसके लिए आप लंबे समय से भटक रहे होते हैं। ‘'''देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर'''’ वाली इन वाक्यों के साथ लागू होती है। बातचीत करते समय, भाषण देते समय, बहस करते वक़्त या लिखते समय जब आप इन वाक्यों द्वारा अपने कथन की पुष्टि करते हैं तो आपकी बात में वजन आ जाता है, आपके व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने में इनसे सहायता मिलती है।  
 
* महापुरुषों के वाक्यों को पढ़ते समय उनके व्यक्तित्व की गरिमा भी आपको प्रभावित करती है, जिससे अचेतन मन वैसा करने या न करने को विवश हो जाता है। इस प्रकार की बेबसी की स्थिति व्यक्तित्व के विकास के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करती है, क्योंकि तब आपके मन के पास मनमानी करने का न तो अवसर होता है, न ही सामर्थ्य। अनुभव में एक बात और आई है कि कभी - कभी आपकी ऐसी शंका का समाधान एक छोटा-सा वाक्य कर जाता है, जिसके लिए आप लंबे समय से भटक रहे होते हैं। ‘'''देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर'''’ वाली इन वाक्यों के साथ लागू होती है। बातचीत करते समय, भाषण देते समय, बहस करते वक़्त या लिखते समय जब आप इन वाक्यों द्वारा अपने कथन की पुष्टि करते हैं तो आपकी बात में वजन आ जाता है, आपके व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने में इनसे सहायता मिलती है।  
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* हमें विश्वास है कि यह संकलन आपके व्यक्तित्व को विकसित कर आपके जीवन में नई स्फूर्ति का संचार करते हुए आपमें आत्मविश्वास पैदा करेगा कि आपसे श्रेष्ठ कोई नहीं है और कौन-सा काम ऐसा है, जिसे आप नहीं कर सकते।
  
हमें विश्वास है कि यह संकलन आपके व्यक्तित्व को विकसित कर आपके जीवन में नई स्फूर्ति का संचार करते हुए आपमें आत्मविश्वास पैदा करेगा कि आपसे श्रेष्ठ कोई नहीं है और कौन-सा काम ऐसा है, जिसे आप नहीं कर सकते।
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{{seealso|कहावत लोकोक्ति मुहावरे|सूक्ति और कहावत|अनमोल वचन 2|अनमोल वचन 3|अनमोल वचन 4|अनमोल वचन 5|अनमोल वचन 6|अनमोल वचन 7|अनमोल वचन 8|महात्मा गाँधी के अनमोल वचन}}
 
 
{{seealso|कहावत लोकोक्ति मुहावरे|सूक्ति और कहावत|अनमोल वचन 2|अनमोल वचन 3|अनमोल वचन 4}}
 
  
 
==अनमोल वचन संग्रह==
 
==अनमोल वचन संग्रह==
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*जीवन भगवान की सबसे बड़ी सौगात है। मनुष्य का जन्म हमारे लिए भगवान का सबसे बड़ा उपहार है।
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'''तीन बातें'''
*जीवन को छोटे उद्देश्यों के लिए जीना जीवन का अपमान है।
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* तीन बातें कभी न भूलें - प्रतिज्ञा करके, क़र्ज़ लेकर और विश्वास देकर। - महावीर
*अपनी आन्तरिक क्षमताओं का पूरा उपयोग करें तो हम पुरुष से महापुरुष, युगपुरुष, मानव से महामानव बन सकते हैं।
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* तीन बातें करो - उत्तम के साथ संगीत, विद्वान् के साथ वार्तालाप और सहृदय के साथ मैत्री। - विनोबा
*मैं परमात्मा का प्रतिनिधि हूँ।
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* तीन अनमोल वचन - धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और चरित्र गया तो सब गया। - अंग्रेजी कहावत
*मेरे मस्तिष्क में ब्रह्माण्ड सा तेज़, मेधा, प्रज्ञा व विवेक है।
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* तीन से घृणा न करो - रोगी से, दुखी से और निम्न जाती से। - मुहम्मद साहब
*मैं माँ भारती का अमृतपुत्र हूँ, “माता भूमि: पुत्रोहं प्रथिव्या:”।
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* तीन के आंसू पवित्र होते हैं - प्रेम के, करुना के और सहानुभूति के। - बुद्ध
*प्रत्येक जीव की आत्मा में मेरा परमात्मा विराजमान है।
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* तीन बातें सुखी जीवन के लिए- अतीत की चिंता मत करो, भविष्य का विश्वास न करो और वर्तमान को व्यर्थ मत जाने दो।
*मैं पहले माँ भारती का पुत्र हूँ, बाद में सन्यासी, ग्रहस्थ, नेता, अभिनेता, कर्मचारी, अधिकारी या व्यापारी हूँ।
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* तीन चीज़ें किसी का इन्तजार नहीं करती - समय, मौत, ग्राहक।
*“इदं राष्ट्राय इदन्न मम” मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है।
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* तीन चीज़ें जीवन में एक बार मिलती है - मां, बांप, और जवानी।
*मैं सदा प्रभु में हूँ, मेरा प्रभु सदा मुझमें है।
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* तीन चीज़ें पर्दे योग्य है - धन, स्त्री और भोजन।
*मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मैंने इस पवित्र भूमि व देश में जन्म लिया है।
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* तीन चीजों से सदा सावधान रहिए - बुरी संगत, परस्त्री और निन्दा।
*मैं अपने जीवन पुष्प से माँ भारती की आराधना करुँगा।
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* तीन चीजों में मन लगाने से उन्नति होती है - ईश्वर, परिश्रम और विद्या।
*मैं पुरुषार्थवादी, राष्ट्रवादी, मानवतावादी व अध्यात्मवादी हूँ।
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* तीन चीजों को कभी छोटी ना समझे - बीमारी, कर्जा, शत्रु।
*कर्म ही मेरा धर्म है। कर्म ही मेरी पूजा है।
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* तीनों चीजों को हमेशा वश में रखो - मन, काम और लोभ।
*मैं मात्र एक व्यक्ति नहीं, अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र व देश की सभ्यता व संस्कृति की अभिव्यक्ति हूँ।
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* तीन चीज़ें निकलने पर वापिस नहीं आती - तीर कमान से, बात जुबान से और प्राण शरीर से।
*निष्काम कर्म, कर्म का अभाव नहीं, कर्तृत्व के अहंकार का अभाव होता है।
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* तीन चीज़ें कमज़ोर बना देती है - बदचलनी, क्रोध और लालच।
*पराक्रमशीलता, राष्ट्रवादिता, पारदर्शिता, दूरदर्शिता, आध्यात्मिक, मानवता एवं विनयशीलता मेरी कार्यशैली के आदर्श हैं।
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* तीन चीज़े असल उद्धेश्य से रोकता हैं - बदचलनी, क्रोध और लालच।
*जब मेरा अन्तर्जागरण हुआ, तो मैंने स्वयं को संबोधि वृक्ष की छाया में पूर्ण तृप्त पाया।
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* तीन चीज़ें कोई चुरा नहीं सकता - अकल, चरित्र, हुनर।
*इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह, अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है।
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* तीन व्यक्ति वक़्त पर पहचाने जाते हैं - स्त्री, भाई, दोस्त।
*ध्यान-उपासना के द्वारा जब तुम ईश्वरीय शक्तियों के संवाहक बन जाते हो, तब तुम्हें निमित्त बनाकर भागवत शक्ति कार्य कर रही होती है।
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* तीनों व्यक्ति का सम्मान करो - माता, पिता और गुरु।
*बाह्य जगत में प्रसिद्धि की तीव्र लालसा का अर्थ है-तुम्हें आन्तरिक सम्रध्द व शान्ति उपलब्ध नहीं हो पाई है।
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* तीनों व्यक्ति पर सदा दया करो - बालक, भूखे और पागल।
*ज्ञान का अर्थ मात्र जानना नहीं, वैसा हो जाना है।
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* तीन चीज़े कभी नहीं भूलनी चाहिए - कर्ज़, मर्ज़ और फर्ज़।
*दृढ़ता हो, जिद्द नहीं। बहादुरी हो, जल्दबाजी नहीं। दया हो, कमज़ोरी नहीं।
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* तीन बातें कभी मत भूलें - उपकार, उपदेश और उदारता।
*मेरे भीतर संकल्प की अग्नि निरंतर प्रज्ज्वलित है। मेरे जीवन का पथ सदा प्रकाशमान है।
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* तीन चीज़े याद रखना ज़रुरी हैं - सच्चाई, कर्तव्य और मृत्यु।
*सदा चेहरे पर प्रसन्नता व मुस्कान रखो। दूसरों को प्रसन्नता दो, तुम्हें प्रसन्नता मिलेगी।
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* तीन बातें चरित्र को गिरा देती हैं - चोरी, निंदा और झूठ।
*माता-पिता के चरणों में चारों धाम हैं। माता-पिता इस धरती के भगवान हैं।
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* तीन चीज़ें हमेशा दिल में रखनी चाहिए - नम्रता, दया और माफ़ी।
*“मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव” की संस्कृति अपनाओ!
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* तीन चीज़ों पर कब्ज़ा करो - ज़बान, आदत और गुस्सा।
*अतीत को कभी विस्म्रत न करो, अतीत का बोध हमें ग़लतियों से बचाता है।
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* तीन चीज़ों से दूर भागो - आलस्य, खुशामद और बकवास।
*यदि बचपन व माँ की कोख की याद रहे, तो हम कभी भी माँ-बाप के कृतघ्न नहीं हो सकते। अपमान की ऊचाईयाँ छूने के बाद भी अतीत की याद व्यक्ति के ज़मीन से पैर नहीं उखड़ने देती।
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* तीन चीज़ों के लिए मर मिटो - धेर्य, देश और मित्र।
*सुख बाहर से नहीं भीतर से आता है।
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* तीन चीज़ें इंसान की अपनी होती हैं - रूप, भाग्य और स्वभाव।
*भगवान सदा हमें हमारी क्षमता, पात्रता व श्रम से अधिक ही प्रदान करते हैं।
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* तीन चीजों पर अभिमान मत करो – ताकत, सुन्दरता, यौवन।
*हम मात्र प्रवचन से नहीं अपितु आचरण से परिवर्तन करने की संस्कृति में विश्वास रखते हैं।
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* तीन चीज़ें अगर चली गयी तो कभी वापस नहीं आती - समय, शब्द और अवसर।
*विचारवान व संस्कारवान ही अमीर व महान है तथा विचारहीन ही कंगाल व दरिद्र है।
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* तीन चीज़ें इन्सान कभी नहीं खो सकता - शान्ति, आशा और ईमानदारी।
*भीड़ में खोया हुआ इंसान खोज लिया जाता है, परन्तु विचारों की भीड़ के बीहड़ में भटकते हुए इंसान का पूरा जीवन अंधकारमय हो जाता है।
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* तीन चीज़ें जो सबसे अमूल्य है - प्यार, आत्मविश्वास और सच्चा मित्र।
*बुढ़ापा आयु नहीं, विचारों का परिणाम है।
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* तीन चीजे जो कभी निश्चित नहीं होती - सपनें, सफलता और भाग्य।
*विचार शहादत, कुर्बानी, शक्ति, शौर्य, साहस व स्वाभिमान है। विचार आग व तूफ़ान है, साथ ही शान्ति व सन्तुष्टी का पैगाम है।
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* तीन चीजें, जो जीवन को संवारती है - कड़ी मेहनत, निष्ठा और त्याग।
*पवित्र विचार-प्रवाह ही जीवन है तथा विचार-प्रवाह का विघटन ही मृत्यु है।
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* तीन चीज़ें किसी भी इन्सान को बरबाद कर सकती है - शराब, घमन्ड और क्रोध।
*विचारों की अपवित्रता ही हिंसा, अपराध, क्रूरता, शोषण, अन्याय, अधर्म और भ्रष्टाचार का कारण है।
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* तीन चीजों से बचने की कोशिश करनी चाहिये – बुरी संगत, स्वार्थ और निन्दा।
*विचारों की पवित्रता ही नैतिकता है।
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* कोई भी कार्य करने से पहले – सोचो, समझो, फिर करो।
*विचार ही सम्पूर्ण खुशियों का आधार हैं।
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*सदविचार ही सद्व्यवहार का मूल है।
 
*विचारों का ही परिणाम है-हमारा सम्पूर्ण जीवन। विचार ही बीज है, जीवनरुपी इस व्रक्ष का।
 
*विचारशीलता ही मनुष्यता और विचारहीनता ही पशुता है।
 
*पवित्र विचार प्रवाह ही मधुर व प्रभावशाली वाणी का मूल स्त्रोत है।
 
*अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुद्ध सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है।
 
*हमारे सुख-दुःख का कारण दूसरे व्यक्ति या परिस्थितियाँ नहीं अपितु हमारे अच्छे या बूरे विचार होते हैं।
 
*वैचारिक दरिद्रता ही देश के दुःख, अभाव पीड़ा व अवनति का कारण है। वैचारिक दृढ़ता ही देश की सुख-समृद्धि व विकास का मूल मंत्र है।
 
*हमारा जीना व दुनियाँ से जाना ही गौरवपूर्ण होने चाहिए।
 
*आरोग्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।
 
*उत्कर्ष के साथ संघर्ष न छोड़ो!
 
*बिना सेवा के चित्त शुद्धि नहीं होती और चित्तशुद्धि के बिना परमात्मतत्व की अनुभूति नहीं होती।
 
*आहार से मनुष्य का स्वभाव और प्रकृति तय होती है, शाकाहार से स्वभाव शांत रहता है, मांसाहार मनुष्य को उग्र बनाता है।
 
*जहाँ मैं और मेरा जुड़ जाता है, वहाँ ममता, प्रेम, करुणा एवं समर्पण होते हैं।
 
*“न” के लिए अनुमति नहीं है।
 
*स्वधर्म में अवस्थित रहकर स्वकर्म से परमात्मा की पूजा करते हुए तुम्हें समाधि व सिद्धि मिलेगी।
 
*प्रेम, वासना नहीं उपासना है। वासना का उत्कर्ष प्रेम की हत्या है, प्रेम समर्पण एवं विश्वास की परकाष्ठा है।
 
*माता-पिता का बच्चों के प्रति, आचार्य का शिष्यों के प्रति, राष्ट्रभक्त का मातृभूमि के प्रति ही सच्चा प्रेम है।<ref>{{cite web |url=http://patanjaliyogkarjan.blogspot.com/ |title=स्वामी रामदेव- अनमोल  |accessmonthday=30 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=पंतजलि योग कर्ज़न |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
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*गुण और दोष प्रत्येक व्यक्ति में होते हैं, योग से जुड़ने के बाद दोषों का शमन हो जाता है और गुणों में बढ़ोत्तरी होने लगती है।
 
*घृणा करने वाला निन्दा, द्वेष, ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को यह डर भी हमेशा सताये रहता है, कि जिससे मैं घृणा करता हूँ, कहीं वह भी मेरी निन्दा व मुझसे घृणा न करना शुरू कर दे।
 
*निन्दक दूसरों के आर-पार देखना पसन्द करता है, परन्तु खुद अपने आर-पार देखना नहीं चाहता।
 
*असंयम की राह पर चलने से आनन्द की मंजिल नहीं मिलती।
 
*मेरे पूर्वज, मेरे स्वाभिमान हैं।
 
*गुणों की वृद्धि और क्षय तो अपने कर्मों से होता है।
 
*सज्जन व कर्मशील व्यक्ति तो यह जानता है, कि शब्दों की अपेक्षा कर्म अधिक ज़ोर से बोलते हैं। अत: वह अपने शुभकर्म में ही निमग्न रहता है।
 
*जो किसी की निन्दा स्तुति में ही अपने समय को बर्बाद करता है, वह बेचारा दया का पात्र है, अबोध है।
 
*आयुर्वेद हमारी मिट्टी हमारी संस्कृति व प्रकृती से जुड़ी हुई निरापद चिकित्सा पद्धति है।
 
*शरीर स्वस्थ और निरोग हो, तो ही व्यक्ति दिनचर्या का पालन विधिवत कर सकता है, दैनिक कार्य और श्रम कर सकता है।
 
*आयुर्वेद वस्तुत: जीवन जीने का ज्ञान प्रदान करता है, अत: इसे हम धर्म से अलग नहीं कर सकते। इसका उद्देश्य भी जीवन के उद्देश्य की भाँति चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति ही है।
 
*आनन्द प्राप्ति हेतु त्याग व संयम के पथ पर बढ़ना होगा।
 
*जब आत्मा मन से, मन इन्द्रिय से और इन्द्रिय विषय से जुडता है, तभी ज्ञान प्राप्त हो पाता है।
 
*जो मनुष्य मन, वचन और कर्म से, ग़लत कार्यों से बचा रहता है, वह स्वयं भी प्रसन्न रहता है।।<ref>{{cite web |url=http://www.bharatswabhimantrust.org/bharatswa/H_Anmolwachan.aspx |title=आचार्य बालकृष्ण |accessmonthday=30 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=ए.एस.पी |publisher=भारत स्वाभिमान |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
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|'''महापुरूषों के प्रेरक-वचन एवं कहावतें'''
 
*मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - [[महात्मा गांधी]]
 
*ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए, जहाँ न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा। - [[विनोबा भावे]]
 
*स्वतंत्र वही हो सकता है, जो अपना काम अपने आप कर लेता है। - [[विनोबा भावे]]
 
*द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है।  -  [[विनोबा भावे]]
 
*अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है, कायरों की नहीं।  - [[ जवाहरलाल नेहरू]]
 
*सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने पर भी बहुत देश सेवा कर सकता है।  -  [[पं. मोतीलाल नेहरू]]
 
*नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है।  -  [[वेदव्यास]]
 
*जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर हो जाता है, वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएँ शांत हो जाती हैं।  -  [[अमृतलाल नागर]]
 
*जैसे उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई देता, वैसे ही दुष्ट को सौजन्य दिखाई नहीं देता।  -   [[स्वामी भजनानंद]]
 
*मनुष्‍य के पूर्व कर्मों से प्रारब्‍ध का निर्माण होता है और प्रारब्‍ध से भाग्‍य बनता है, मनुष्‍य के वर्तमान कर्म उसके भविष्‍य का निर्धारण करते हैं । अत: प्राप्ति जितनी सहज हो उसे सहेजना उससे कई गुना दुष्‍कर होता है ।  -  '''संस्‍कृत की प्राचीन कहावत'''
 
*तपेश्‍वरी सो राजेश्‍वरी और राजेश्‍वरी सो नरकेश्‍वरी। अर्थात तपस्‍या से राज्‍य अर्थात शासकीय पद प्राप्‍त होता है और राजकीय पद या राज्‍य से नरक की प्राप्ति होती है – '''एक प्राचीन भारतीय कहावत'''
 
*हम अमन चाहते हैं जुल्‍म के खिलाफ़, फैसला ग़र जंग से होगा, तो जंग ही सही।  - [[ रामप्रसाद विस्मिल]]
 
*हर अच्‍छे, श्रेष्‍ठ और महान कार्य में तीन चरण होते हैं, प्रथम उसका उपहास उड़ाया जाता है, दूसरा चरण उसे समाप्‍त या नष्‍ट करने की हद तक विरोध किया जाता है और तीसरा चरण है, स्‍वीकृति और मान्‍यता, जो इन तीनों चरणों में बिना विचलित हुये अडिग रहता है, वह श्रेष्‍ठ बन जाता है और उसका कार्य सर्व स्‍वीकृत होकर अनुकरणीय बन जाता है –  [[स्वामी विवेकानन्द]]
 
*यदि सदगुरु मिल जाये तो जानो सब मिल गया, फिर कुछ मिलना शेष नहीं रहा! यदि सदगुरु नहीं मिले तो समझों कोई नहीं मिला, क्योंकि माता-पिता, पुत्र और भाई तो घर-घर में होते हैं! ये सांसारिक नाते सभी को सुलभ है, परन्तु सदगुरु की प्राप्ति दुर्लभ है!  --  [[कबीरदास]]
 
*जिनके हाथ ही पात्र हैं, भिक्षाटन से प्राप्त अन्न का निस्वादी भोजन करते हैं, विस्तीर्ण चारों दिशाएं ही जिनके वस्त्र हैं, पृथ्वी पर जो शयन करते हैं, अन्तकरण की शुद्धता से जो संतुष्ट हुआ करते हैं और देने भावों को त्याग कर जन्मजात कर्मों को नष्ट करते हैं, ऐसे ही मनुष्य धन्य है!  --  [[भर्तृहरी शतक]]
 
*जो नसीहतें नहीं सुनता, उसे लानत-मलामत सुनने का सुख होता है! --  [[शेख़ सादी]]
 
*आपदर्थे धनं रक्षेद दारान रक्षेद धनैरपि! आत्मान सतत रक्षेद दारैरपि धनैरपि!!<br>
 
विपत्ति के समय काम आने वाले धन की रक्षा करें! धन से स्त्री की रक्षा करें और अपनी रक्षा धन और स्त्री से सदा करें!  --  [[चाणक्य]]
 
*प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजा के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजा की प्रियता में ही राजा का हित है।  -  चाणक्य
 
*ईमानदार के लिए किसी छद्म वेश-भूषा या साज-श्रृंगार की आवश्यकता नहीं होती! इसके लिए सादगी ही प्रर्याप्त है!  --  औटवे
 
*शब्द धरती, शब्द आकाश, शब्द शब्द भया परगास! <br>
 
सगली शब्द के पाछे, नानक शब्द घटे घाट आछे !!  --  [[गुरु नानक]] <ref>{{cite web |url=http://roshan.himdhara.in/2010/03/blog-post.html |title=अनमोल वचन |accessmonthday=30 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=आधारशिला  |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
*लोहा गरम भले ही हो जाए पर हथौड़ा तो ठंडा रह कर ही काम कर सकता है।  -   [[सरदार पटेल]]
 
*कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है, जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है।  -  [[वीर सावरकर]]
 
*संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता, निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास। -  [[काका कालेलकर]]
 
*चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए। क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं।  -  [[समर्थ रामदास]]
 
*असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाए, तो वह ख़तरनाक भी हो सकती है।  -   [[इंदिरा गांधी]]
 
*साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है, बल्कि एक नया वातावरण देना भी है।  -  [[ डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन]]
 
*लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी क़िस्म का क्यों न हो, तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है।  -   [[जयप्रकाश नारायण]]
 
*सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिए उतने ही आवश्यक हैं, जितने संतुलन और मर्यादित चेतना।  -  [[डॉ. शंकर दयाल शर्मा]]
 
*धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है, पर पाप करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं।  -   [[महाभारत]]
 
*दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिए, लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए।  -  [[रामायण]]
 
*शाश्वत शांति की प्राप्ति के लिए शांति की इच्छा नहीं, बल्कि आवश्यक है, इच्छाओं की शांति।  -  स्वामी ज्ञानानंद
 
*'''धर्म''' का अर्थ तोड़ना नहीं, बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है।  -  [[डॉ. शंकरदयाल शर्मा]]<ref>{{cite web |url=http://mahashakti.bharatuday.in/2010/06/blog-post_06.html |title=महापुरूषों के प्रेरक-वचन एवं कहावतें |accessmonthday=30 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=महाशक्ति  |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
*दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते।  -  [[प्रेमचंद]]
 
*अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है।  - [[प्रेमचंद]]
 
*कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं।  -  [[प्रेमचंद]]
 
*अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है।  -  [[जयशंकर प्रसाद]]
 
*सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है, फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है।  -  श्री अरविंद
 
*अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं।  -  [[महर्षि अरविंद]]
 
*वही उन्नति करता है, जो स्वयं अपने को उपदेश देता है।  -  स्वामी रामतीर्थ
 
*जंज़ीरें, जंज़ीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें गुलाम बनाती हैं।  -  [[स्वामी रामतीर्थ]]
 
*त्याग निश्चय ही आपके बल को बढ़ा देता है, आपकी शक्तियों को कई गुना कर देता है, आपके पराक्रम को दृढ कर देता है, वही आपको ईश्वर बना देता है! वह आपकी चिंताएं और भय हर लेता है, आप निर्भय तथा आनंदमय हो जाते हैं!  - स्वामी रामतीर्थ
 
*जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और आँखों वाले के लिए प्रकाशमय है, वैसे ही अज्ञानी के लिए जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिए आनंदमय।  -  [[संपूर्णानंद]]
 
*नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं।  -   [[संत तिरुवल्लुर]]
 
*अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है, क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को।  -  [[महादेवी वर्मा]]
 
*करुणा में शीतल अग्नि होती है, जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है।  -  [[सुदर्शन]]
 
*तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं।  -  [[वाल्मीकि]]
 
*हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मों में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है।  -   वाल्मीकि
 
*मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम को खंडित करना है।  -  [[राम प्रताप त्रिपाठी]]
 
*नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हँस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना, उससे भी बुरा है।  -  संत तिरुवल्लुवर
 
*कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है।  -   [[डॉ. रामकुमार वर्मा]]
 
*तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की।  -  [[गुरु गोविंद सिंह]]
 
*मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से, लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है।  -  गौतम बुद्ध
 
*स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है- [[ लोकमान्य तिलक]]
 
*जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है, वही सबसे बड़ा विजयी है।  -  [[गौतम बुद्ध]]
 
*मनुष्य का जीवन एक महानदी की भाँति है, जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है।  -  रबीन्द्रनाथ ठाकुर
 
*प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है, कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है।  -  [[रबीन्द्रनाथ ठाकुर]]
 
*विश्वास वह पक्षी है, जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है।  -  रबीन्द्रनाथ ठाकुर
 
*जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है, वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए।  -  [[वेदव्यास]] <ref>{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/vichar/amarvani1.htm |title=सूक्तियाँ|accessmonthday=30 जनवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=अभिव्यक्ति  |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
 
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Blockquote-open.gif बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है। Blockquote-close.gif

- आईजक दिसराली
  • हम अनमोल वचन ( Priceless Words / Quotes) (अमृत वचन/ सुविचार/ सुवचन/ सत्य वचन/ सूक्ति/ सुभाषित/ उत्तम (उत्‍तम) वाणी/ उद्धरण/ धीर गंभीर मृदु वाक्‍य)उन बातों और लेखों को कहते हैं, जिन्हें संसार के अनेकानेक विद्वानों ने कहे और लिखे हैं, जो जीवन उपयोगी हैं। इन अनमोल वचनों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन में नई उंमग एवं उत्साह का संचार कर सकते हैं। अनमोल वचन को हम सूक्ति (सु + उक्ति) या सुभाषित (सु + भाषित) भी कहते हैं। जिसका अर्थ है “सुन्दर भाषा में कहा गया”। इन बातों को अनमोल इसलिए भी कहा जाता हैं क्योंकि यदि हम इन बातों का अर्थ या सार समझेगें, तो हम पायेंगे की इन बातों का कोई मोल नहीं लगा सकता। इन बातों को हम अपने जीवन में अपनाकर अपने जीवन की दिशा को बदल सकते हैं और जीवन की दिशा बदलनें वाली बातों का कभी कोई मोल नहीं लगा सकता हैं क्योकि ये बातें तो अनमोल होती हैं।
  • वक्ता हो या संत हो, विद्वान् हो या लेखक हो, राजनेता हो या फिर कोई प्रशासक — अपनी बात कहने के साथ-साथ वह उसे सार-रूप में कहता हुआ एक माला के रूप में पिरोता चलता है। इस सार-रूप में कहे गए वाक्यों में ऐसे सूत्र छिपे रहते हैं, जिन पर चिंतन करने से विचारों की एक व्यवस्थित श्रृंखला का सहज रूप से निर्माण होता है। उस समय ऐसा लगता है मानो किसी विशिष्ट विषय पर लिखी गई पुस्तक के पन्ने एक-एक करके पलट रहे हों।
  • सूत्ररूप में कहे गए ये कथन आत्मविकास के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। इसीलिए व्यक्तित्व विकास पर कार्य कर रहे अनुसंधानकर्ताओं और विद्वानों का कहना है कि प्रत्येक आत्मविकास के इच्छुक को चाहिए कि वह अपने लिए आदर्शवाक्य चुनकर उसे ऐसे स्थान पर रख या चिपका ले, जहाँ उसकी नज़र ज़्यादातर पड़ती हो। ऐसा करने से वह विचार अवचेतन में बैठकर उसके व्यक्तित्व को गहराई तक प्रभावित करेगा। इन वाक्यों का आपसी बातचीत में, भाषण आदि में प्रयोग करके आप अपने पक्ष को पुष्ट करते हैं। ऐसा करने से आपकी बातों में वजन तो आता ही है लोगों के बीच आपकी साख भी बढ़ती है।

Blockquote-open.gif सुभाषितों की पुस्तक कभी पूरी नहीं हो सकती। Blockquote-close.gif

- राबर्ट हेमिल्टन
  • लोग जीवन में कर्म को महत्त्व देते हैं, विचार को नहीं। ऐसा सोचने वाले शायद यह नहीं जानते कि विचारों का ही स्थूल रूप होता है कर्म अर्थात् किसी भी कर्म का चेतन-अचेतन रूप से विचार ही कारण होता है। जानाति, इच्छति, यतते—जानता है (विचार करता है), इच्छा करता है फिर प्रयत्न करता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे आधुनिक मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है। जानना और इच्छा करना विचार के ही पहलू हैं । आपने यह भी सुना होगा कि विचारों का ही विस्तार है आपका अतीत, वर्तमान और भविष्य। दूसरे शब्दों में, आज आप जो भी हैं, अपने विचारों के परिमामस्वरूप ही हैं और भविष्य का निर्धारण आपके वर्तमान विचार ही करेंगे। तो फिर उज्ज्वल भविष्य की आकांक्षा करने वाले आप शुभ-विचारों से आपने दिलो-दिमाग को पूरित क्यों नहीं करते।
  • शब्द ब्रह्म है। भारतीय दर्शकों में शब्द को उत्तम प्रमाण माना गया है। इस संदर्भ में एक अत्यंत प्रचलित कथा का उल्लेख करना यहां युक्तिसंगत होगा। कथा इस प्रकार है — दस व्यक्तियों ने बरसाती नदी पार की। पार पहुँचने पर यह जांचने के लिए कि दसों ने नदी पार कर ली है, कोई नदी में डूब तो नहीं गया, एक ने गिनना शुरू किया। उसके अनुसार उनका एक साथी नदी में बह गया था। एक-एक करके सभी ने गिनती की, प्रत्येक का यही मानना था कि कोई बह गया है। सभी उस दसवें व्यक्ति के लिए रोने और विलाप करने लगे। वहाँ से गुज़र रहे एक बुद्धिमान व्यक्ति ने जब उनसे रोने तथा विलाप करने का कारण पूछा, तो उन्होंने सारी बात कह सुनाई। उस व्यक्ति ने उनको एक पंक्ति में खड़ा होने को कहा। जब सब पंक्ति में खड़े हो गए, तब उनमें से एक को बुलाकर उससे गिनने को कहा। उस व्यक्ति ने नौ तक गिनती गिनी और चुप हो गया। तब आगन्तुक ने कहा दसवें तुम हो’ इतना सुनते ही सारा रोना-विलाप करना अपने आप, बिना किसी प्रयास के समाप्त हो गया। आगंतुक ने क्या किया ? उसके शब्दों ने ही रोने-बिलखने को विदाई दिलवा दी।
  • शंकराचार्य से जब उनके शिष्यों ने पूछा कि इस संसार - चक्र से मुक्त होने का क्या उपाय है, तो उनका जवाब था - केवल विचार ही। इसीलिए प्रत्येक धर्म-संप्रदाय और जाति के महान् पुरुषों ने सुझाव दिया कि जिस दिशा में आप अपने व्यक्तित्व को विकसित करना चाहते हैं, उससे संबंधित विचार को आप किसी ऐसी जगह रखे या चिपकाएं, जहां आपकी नज़र बार-बार जाती हो। वाक्य का अर्थ आपके भीतर बूस्टर की सी प्रतिक्रिया करेगा। श्रीमद्भागवद्ग गीता में श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा कि मनुष्य को स्वयं से स्वयं का उद्धार करना होगा। कोई किसी की अवनति के लिए न तो उत्तरदायी है, न ही कोई किसी की उन्नति में अवरोध पैदा कर सकता है। मंथरा ने कैकेयी में परिवर्तन कैसे किया ? कैसे वह राम के राजा बनने में विरोधी बन गई ? कैसे उसने अपने पति दशरथ की मृत्यु और अपने वैधव्य की परवाह नहीं की ? इन सभी सवालों का जवाब आपको विचारों के परिवर्तन के इर्द-गिर्द ही घूमता मिलेगा।
  • महापुरुषों के वाक्यों को पढ़ते समय उनके व्यक्तित्व की गरिमा भी आपको प्रभावित करती है, जिससे अचेतन मन वैसा करने या न करने को विवश हो जाता है। इस प्रकार की बेबसी की स्थिति व्यक्तित्व के विकास के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करती है, क्योंकि तब आपके मन के पास मनमानी करने का न तो अवसर होता है, न ही सामर्थ्य। अनुभव में एक बात और आई है कि कभी - कभी आपकी ऐसी शंका का समाधान एक छोटा-सा वाक्य कर जाता है, जिसके लिए आप लंबे समय से भटक रहे होते हैं। ‘देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर’ वाली इन वाक्यों के साथ लागू होती है। बातचीत करते समय, भाषण देते समय, बहस करते वक़्त या लिखते समय जब आप इन वाक्यों द्वारा अपने कथन की पुष्टि करते हैं तो आपकी बात में वजन आ जाता है, आपके व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने में इनसे सहायता मिलती है।
  • हमें विश्वास है कि यह संकलन आपके व्यक्तित्व को विकसित कर आपके जीवन में नई स्फूर्ति का संचार करते हुए आपमें आत्मविश्वास पैदा करेगा कि आपसे श्रेष्ठ कोई नहीं है और कौन-सा काम ऐसा है, जिसे आप नहीं कर सकते।

इन्हें भी देखें: कहावत लोकोक्ति मुहावरे, सूक्ति और कहावत, अनमोल वचन 2, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8 एवं महात्मा गाँधी के अनमोल वचन

अनमोल वचन संग्रह

अनमोल वचन

तीन बातें

  • तीन बातें कभी न भूलें - प्रतिज्ञा करके, क़र्ज़ लेकर और विश्वास देकर। - महावीर
  • तीन बातें करो - उत्तम के साथ संगीत, विद्वान् के साथ वार्तालाप और सहृदय के साथ मैत्री। - विनोबा
  • तीन अनमोल वचन - धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और चरित्र गया तो सब गया। - अंग्रेजी कहावत
  • तीन से घृणा न करो - रोगी से, दुखी से और निम्न जाती से। - मुहम्मद साहब
  • तीन के आंसू पवित्र होते हैं - प्रेम के, करुना के और सहानुभूति के। - बुद्ध
  • तीन बातें सुखी जीवन के लिए- अतीत की चिंता मत करो, भविष्य का विश्वास न करो और वर्तमान को व्यर्थ मत जाने दो।
  • तीन चीज़ें किसी का इन्तजार नहीं करती - समय, मौत, ग्राहक।
  • तीन चीज़ें जीवन में एक बार मिलती है - मां, बांप, और जवानी।
  • तीन चीज़ें पर्दे योग्य है - धन, स्त्री और भोजन।
  • तीन चीजों से सदा सावधान रहिए - बुरी संगत, परस्त्री और निन्दा।
  • तीन चीजों में मन लगाने से उन्नति होती है - ईश्वर, परिश्रम और विद्या।
  • तीन चीजों को कभी छोटी ना समझे - बीमारी, कर्जा, शत्रु।
  • तीनों चीजों को हमेशा वश में रखो - मन, काम और लोभ।
  • तीन चीज़ें निकलने पर वापिस नहीं आती - तीर कमान से, बात जुबान से और प्राण शरीर से।
  • तीन चीज़ें कमज़ोर बना देती है - बदचलनी, क्रोध और लालच।
  • तीन चीज़े असल उद्धेश्य से रोकता हैं - बदचलनी, क्रोध और लालच।
  • तीन चीज़ें कोई चुरा नहीं सकता - अकल, चरित्र, हुनर।
  • तीन व्यक्ति वक़्त पर पहचाने जाते हैं - स्त्री, भाई, दोस्त।
  • तीनों व्यक्ति का सम्मान करो - माता, पिता और गुरु।
  • तीनों व्यक्ति पर सदा दया करो - बालक, भूखे और पागल।
  • तीन चीज़े कभी नहीं भूलनी चाहिए - कर्ज़, मर्ज़ और फर्ज़।
  • तीन बातें कभी मत भूलें - उपकार, उपदेश और उदारता।
  • तीन चीज़े याद रखना ज़रुरी हैं - सच्चाई, कर्तव्य और मृत्यु।
  • तीन बातें चरित्र को गिरा देती हैं - चोरी, निंदा और झूठ।
  • तीन चीज़ें हमेशा दिल में रखनी चाहिए - नम्रता, दया और माफ़ी।
  • तीन चीज़ों पर कब्ज़ा करो - ज़बान, आदत और गुस्सा।
  • तीन चीज़ों से दूर भागो - आलस्य, खुशामद और बकवास।
  • तीन चीज़ों के लिए मर मिटो - धेर्य, देश और मित्र।
  • तीन चीज़ें इंसान की अपनी होती हैं - रूप, भाग्य और स्वभाव।
  • तीन चीजों पर अभिमान मत करो – ताकत, सुन्दरता, यौवन।
  • तीन चीज़ें अगर चली गयी तो कभी वापस नहीं आती - समय, शब्द और अवसर।
  • तीन चीज़ें इन्सान कभी नहीं खो सकता - शान्ति, आशा और ईमानदारी।
  • तीन चीज़ें जो सबसे अमूल्य है - प्यार, आत्मविश्वास और सच्चा मित्र।
  • तीन चीजे जो कभी निश्चित नहीं होती - सपनें, सफलता और भाग्य।
  • तीन चीजें, जो जीवन को संवारती है - कड़ी मेहनत, निष्ठा और त्याग।
  • तीन चीज़ें किसी भी इन्सान को बरबाद कर सकती है - शराब, घमन्ड और क्रोध।
  • तीन चीजों से बचने की कोशिश करनी चाहिये – बुरी संगत, स्वार्थ और निन्दा।
  • कोई भी कार्य करने से पहले – सोचो, समझो, फिर करो।


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