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13:07, 14 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • प्रद्युम्न के पुत्र तथा कृष्ण के पौत्र अनिरूद्ध की पत्नी के रूप में उषा की ख्याति है।
  • वह शोणितपुर के राजा वाणासुर की कन्या थी। पार्वती के वरदान से उषा ने स्वप्न में अनिरूद्ध के दर्शन किये तथा उन पर रीझ गयी।
  • उषा की मनोदशा जानकर चित्रलेखा ने अनेक राजकुमारों के चित्र के साथ उनका भी चित्र निर्मित किया।
  • उषा ने हाव-भाव द्वारा चित्रलेखा के सामने प्रकट कर दिया कि अनिरूद्ध ही उसका प्रेम-पात्र है।
  • चित्रलेखा ने योग बल से सुप्तावस्था में उनका अपहरण किया और दोनों का गान्धर्व-विवाह कराकर चार मास तक दोनों को गुप्त स्थान में रखा।
  • वाण को सेवकों द्वारा जब यह रहस्य ज्ञात हुआ तो उसने अनिरूद्ध को पकड़ने के लिए उन्हे भेजा किन्तु अनिरूद्ध ने उन सबको गदा से मार गिराया।
  • इस पर वाण ने उन्हें माया युद्ध में पराजित कर बन्दी कर लिया।
  • यह समाचार मालूम होने पर कृष्ण, बलराम तथा प्रद्युम्न ने वाण को पराजित किया।
  • वाण की माता कोटरा की प्रार्थना पर कृष्ण ने वाण को जीवनदान दिया। इस पर वाण ने विधिवत उषा अनिरुद्ध का विवाह कर इन्हें विदा किया।
  • सूरसागर में उषा-अनिरूद्ध की कथा संक्षेप में दी गयी है। [1]
  • परन्तु इस कथा को लेकर अनेक प्रेमाख्यान रचे गये हैं। भारतीय साहित्य में कदाचित यह एक अनोखी प्रेम-कथा है जिसमें एक प्रेमिका स्त्री द्वारा पुरुष का हरण वर्णित है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सूरसागर (पद 4815-4816)

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