"अश्वतीर्थ" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
*अश्वतीर्थ का वर्णन [[वन पर्व महाभारत|महाभारत, वन पर्व]] के तीर्थपर्व के अंतर्गत है-  
 
*अश्वतीर्थ का वर्णन [[वन पर्व महाभारत|महाभारत, वन पर्व]] के तीर्थपर्व के अंतर्गत है-  
<poem>'तत्रदेवान् पितृन विप्रांस्तर्पयित्वा पुन: पुन:,  
+
<blockquote><poem>'तत्रदेवान् पितृन विप्रांस्तर्पयित्वा पुन: पुन:,  
कन्यातीर्थेऽश्वतीर्थे च गवां तीर्थे च भारत।'<ref>[[वन पर्व महाभारत]] 95, 3</ref></poem>
+
कन्यातीर्थेऽश्वतीर्थे च गवां तीर्थे च भारत।'<ref>[[वन पर्व महाभारत]] 95, 3</ref></poem></blockquote>
*यह स्थान [[कान्यकुब्ज]] या कन्नौज ([[उत्तर प्रदेश]]) के निकट गंगा कालिंदी संगम पर स्थित था।  
+
*यह स्थान [[कान्यकुब्ज]] या कन्नौज, [[उत्तर प्रदेश]] के निकट [[गंगा]] कालिंदी संगम पर स्थित था।  
 
*कान्यकुब्ज को इस उल्लेख में कन्यातीर्थ कहा गया है। यहाँ गाधि का तपोवन था।  
 
*कान्यकुब्ज को इस उल्लेख में कन्यातीर्थ कहा गया है। यहाँ गाधि का तपोवन था।  
*[[स्कंद पुराण]], नगरंखण्ड 165,37 के अनुसार ऋचीक मुनि को [[वरुण]] ने एक सहस्त्र अश्व दिए थे जिनको लेकर उन्होंने गाधि की पुत्री [[सत्यवती]] से विवाह किया था।  
+
*[[स्कंद पुराण]]<ref> स्कंद पुराण, नगरखण्ड 165,37</ref> के अनुसार ऋचीक मुनि को [[वरुण]] ने एक सहस्त्र अश्व दिए थे जिनको लेकर उन्होंने गाधि की पुत्री [[सत्यवती]] से विवाह किया था।  
 
*इसी कारण इसे अश्वतीर्थ कहा जाता था-  
 
*इसी कारण इसे अश्वतीर्थ कहा जाता था-  
<poem>'तत: प्रभृति विख्यातमश्वतीर्थं धरातले,  
+
<blockquote><poem>'तत: प्रभृति विख्यातमश्वतीर्थं धरातले,  
गंगातीरे शुभे पुण्ये कान्यकुब्जसमीपगम्'।</poem>  
+
गंगातीरे शुभे पुण्ये कान्यकुब्जसमीपगम्'।</poem></blockquote>  
*[[अनुशासन पर्व महाभारत|महाभारत, अनुशासन पर्व]] 4,17 में भी इसी कथा के प्रसंग में यह उल्लेख है-  
+
*[[अनुशासन पर्व महाभारत|महाभारत, अनुशासन पर्व]]<ref> महाभारत, अनुशासन पर्व, 4,17</ref> में भी इसी कथा के प्रसंग में यह उल्लेख है-  
<poem>'अदूरे कान्यकुब्जस्य गंगायास्तीरमुत्तमम्,  
+
<blockquote><poem>'अदूरे कान्यकुब्जस्य गंगायास्तीरमुत्तमम्,  
अश्वतीर्थं तदद्यापि मानवै: परिक्ष्यते'।</poem>  
+
अश्वतीर्थं तदद्यापि मानवै: परिक्ष्यते'।</poem></blockquote>  
*पीछे कान्यकुब्ज का ही एक नाम अश्वतीर्थ पड़ गया था।  
+
*बाद में कान्यकुब्ज का ही एक नाम अश्वतीर्थ पड़ गया था।  
 
*वास्तव में यह दोनों स्थान सन्निकट रहे होंगे।  
 
*वास्तव में यह दोनों स्थान सन्निकट रहे होंगे।  
  

08:57, 20 अगस्त 2011 का अवतरण

'तत्रदेवान् पितृन विप्रांस्तर्पयित्वा पुन: पुन:,
कन्यातीर्थेऽश्वतीर्थे च गवां तीर्थे च भारत।'[1]

  • यह स्थान कान्यकुब्ज या कन्नौज, उत्तर प्रदेश के निकट गंगा कालिंदी संगम पर स्थित था।
  • कान्यकुब्ज को इस उल्लेख में कन्यातीर्थ कहा गया है। यहाँ गाधि का तपोवन था।
  • स्कंद पुराण[2] के अनुसार ऋचीक मुनि को वरुण ने एक सहस्त्र अश्व दिए थे जिनको लेकर उन्होंने गाधि की पुत्री सत्यवती से विवाह किया था।
  • इसी कारण इसे अश्वतीर्थ कहा जाता था-

'तत: प्रभृति विख्यातमश्वतीर्थं धरातले,
गंगातीरे शुभे पुण्ये कान्यकुब्जसमीपगम्'।

'अदूरे कान्यकुब्जस्य गंगायास्तीरमुत्तमम्,
अश्वतीर्थं तदद्यापि मानवै: परिक्ष्यते'।

  • बाद में कान्यकुब्ज का ही एक नाम अश्वतीर्थ पड़ गया था।
  • वास्तव में यह दोनों स्थान सन्निकट रहे होंगे।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वन पर्व महाभारत 95, 3
  2. स्कंद पुराण, नगरखण्ड 165,37
  3. महाभारत, अनुशासन पर्व, 4,17

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख