कर्नाटक युद्ध

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भारतीय इतिहास में कर्नाटक युद्ध के अन्तर्गत, कर्नाटक के तीन युद्ध लड़े गये हैं। ये युद्ध अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अंग्रेज़ों तथा फ़्राँसीसियों के बीच लड़े गये थे। ये युद्ध अंग्रेज़ों और फ़्राँसीसियों की प्रतिद्वन्द्विता के परिणामस्वरूप हुए थे, और उनकी यूरोप की प्रतिस्पर्द्धा से भी सम्बन्धित थे। ये युद्ध अठारहवीं शताब्दी के आंग्ल-फ़्राँसीसी युद्धों का ही एक भाग थे। इनको 'कर्नाटक युद्ध' इसलिए कहा जाता है कि, ये भारत के कर्नाटक प्रदेश में लड़े गये थे।

युद्ध

भारत के इतिहास में जो तीन कर्नाटक युद्ध लड़े गये, वे इस प्रकार थे-

  • प्रथम युद्ध (1746 - 1748 ई.)
  • द्वितीय युद्ध (1749 - 1754 ई.)
  • तृतीय युद्ध (1758 - 1763 ई.)

प्रथम युद्ध

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कर्नाटक का प्रथम युद्ध 'सेण्ट टोमे' के युद्ध के लिए स्मरणीय है। यह युद्ध फ़्राँसीसी सेना एवं कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन के मध्य लड़ा गया। झगड़ा फ़्राँसीसियों द्वारा मद्रास की विजय पर हुआ, जिसका परिणाम फ़्राँसीसियों के पक्ष में रहा, क्योंकि 'कैप्टन पेराडाइज' के नेतृत्व में फ़्राँसीसी सेना ने महफ़ूज ख़ाँ के नेतृत्व में लड़ रही भारतीय सेना को 'अदमार नदी' पर स्थित 'सेण्ट टोमे' नामक स्थान पर पराजित कर दिया।

द्वितीय युद्ध

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कर्नाटक के प्रथम युद्ध की सफलता से डूप्ले की महत्वाकांक्षा बढ़ गई थी। किन्तु कर्नाटक का दूसरा युद्ध हैदराबाद तथा कर्नाटक के सिंहासनों के विवादास्पद उत्तराधिकारियों के कारण हुआ। आसफ़जाह, जिसने दक्कन में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी, उसका उत्तराधिकारी बना। किन्तु उसके भतीजे मुजफ़्फ़रजंग ने इस दावे को चुनौती दी। दूसरी ओर कर्नाटक के नवाब अनवरुद्दीन तथा उसके बहनोई चन्दा साहब के बीच विवाद था। फ़्राँस तथा ब्रिटिश कम्पनियों ने एक-दूसरे के विरोधी गुट को समर्थन देकर इसे और भड़काना शुरू कर दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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