काग़ज़ उद्योग

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काग़ज़ मिल

काग़ज़ उद्योग भारत में प्राचीन काल से ही कुटीर उद्योग के स्तर पर किया जाता रहा है। काग़ज़ उद्योग कच्चा माल आधारित उद्योग है एवं इसके लिए बांस, वृक्षों की लकड़ियाँ, घास, गन्ने की खोई, कपड़े आदि का प्रयोग किया जाता है। 2007-08 में भारत में 4260 हज़ार मीट्रिक टन काग़ज़ का उत्पादन किया गया। देश के 50 प्रतिशत काग़ज़ का उत्पादन छोटी इकाईयों द्वारा किया जाता है। जबकि शेष उत्पादन 30 बड़ी इकाइयाँ करती हैं। भारत काग़ज़ के उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं है, विशेषकर अख़बारी काग़ज़ में। अतः हमें अपनी आवश्यकतापूर्ति के लिए नार्वे, स्वीडन, कनाडा, जापान, हालैण्ड, जर्मनी, आदि देशों से काग़ज़ का आयात करना पड़ता है।

चीन के हान राजवंश (206 ई. पू.-220 ई.) में काग़ज़ बनाने की प्रक्रिया
1. पेड़ की छाल या सन को पानी में भिगोना
2. लुगदी को उबालना
3. उबली लुगदी से काग़ज़ बनाना
4. काग़ज़ को गर्म करके सुखाना

काग़ज़ का आविष्कार

चीन में काग़ज़ ईसा की आरम्भिक सदियों में उपलब्ध हुआ। काग़ज़ के आविष्कार का श्रेय वहाँ के त्साइ-लुन नामक व्यक्ति को दिया जाता है। वह प्राचीन चीन के पूर्वी हान वंश (20-220 ई.) के राजदरबार में वस्तुओं के उत्पादन का अधिकारी था। पता चलता है कि त्साइ-लुन ने पेड़ों की छाल, सन के चिथड़ों और मछली पकड़ने के जालों से काग़ज़ बनाने के तरीक़े की 105 ई. में राजदरबार को जानकारी दी थी। परन्तु नये प्राप्त प्रमाणों से पता चलता है कि त्साइ-लुन से कम से कम दो सौ साल पहले काग़ज़ की जानकारी मिलती है। मगर रेशम, बाँस और काष्ठ-फलकों जैसी परम्परागत लेखन-सामग्री के स्थान पर वहाँ काग़ज़ का व्यापक इस्तेमाल ईसा की चौथी सदी से ही सम्भव हो सका।

सांगानेर (जयपुर के नज़दीक) में हाथ-काग़ज़ का निर्माण

काग़ज़ के कारखाने

  • आधुनिक ढंग का पहला कारख़ाना सन् 1716 में चेन्नई के समीप ट्रंकवार नामक स्थान पर डॉ. विलियम कोरे द्वारा स्थापित किया गया जो सफल नहीं हो सका।
  • इसी प्रकार 1870 में हुगली नदी[1] के किनारे एक कारख़ाना लगाया गया, जो पुनः असफल हो गया।
  • काग़ज़ उद्योग का प्रथमतः सफल कारख़ाना 1879 में लखनऊ में लगाया गया और 1881 में टीटागढ़ में भी सफल कारख़ाना लगा।
  • 2000-01 में भारत में काग़ज़ उद्योग के कारखानों की संख्या 515 थी जो वर्तमान में बढ़कर 600 से अधिक हो गई।

काग़ज़ निर्माण के केन्द्र


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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