"काव्य" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replacement - "शृंखला" to "श्रृंखला")
 
(4 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 11 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[चित्र:Tulsidas-Ramacharitamanasa.jpg|thumb|[[रामचरितमानस]] ([[प्रबन्ध काव्य]])]]
+
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=काव्य|लेख का नाम=काव्य (बहुविकल्पी)}}
 +
 
 +
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
 +
|चित्र=Tulsidas-Ramacharitamanasa.jpg
 +
|चित्र का नाम='रामचरितमानस' (प्रबन्ध काव्य)
 +
|विवरण='काव्य' वह वाक्य रचना है, जिससे चित्त किसी [[रस]] या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वह [[कला]] जिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है।
 +
|शीर्षक 1=शाब्दिक अर्थ
 +
|पाठ 1=काव्य या [[कविता]] का शाब्दिक अर्थ है- "काव्यात्मक रचना या [[कवि]] की कृति, जो छन्दों की श्रृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है।"
 +
|शीर्षक 2=प्रकार
 +
|पाठ 2=काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, 'ध्वनि', 'गुणीभूत व्यंग्य' और 'चित्र'।
 +
|शीर्षक 3=
 +
|पाठ 3=
 +
|शीर्षक 4=
 +
|पाठ 4=
 +
|शीर्षक 5=
 +
|पाठ 5=
 +
|शीर्षक 6=
 +
|पाठ 6=
 +
|शीर्षक 7=
 +
|पाठ 7=
 +
|शीर्षक 8=
 +
|पाठ 8=
 +
|शीर्षक 9=
 +
|पाठ 9=
 +
|शीर्षक 10=
 +
|पाठ 10=
 +
|संबंधित लेख=[[खंड काव्य]], [[कविता]], [[महाकाव्य]], [[प्रबोधक काव्य]], [[प्रबन्ध काव्य]]
 +
|अन्य जानकारी=हिंदी काव्य या पद्य साहित्य का इतिहास लगभग 800 साल पुराना है और इसका प्रारंभ तेरहवीं शताब्दी से समझा जाता है। हर [[भाषा]] की तरह [[हिंदी]] [[कविता]] भी पहले इतिवृत्तात्मक थी, यानि किसी [[कहानी]] को लय के साथ [[छंद]] में बांध कर [[अलंकार|अलंकारों]] से सजा कर प्रस्तुत किया जाता था।
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 +
}}
 
'''काव्य''' अथवा [[कविता]] या पद्य [[साहित्य]] की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। [[भारत]] में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ [[भरत मुनि]] से समझा जा सकता है।  
 
'''काव्य''' अथवा [[कविता]] या पद्य [[साहित्य]] की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। [[भारत]] में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ [[भरत मुनि]] से समझा जा सकता है।  
 
==शाब्दिक अर्थ==  
 
==शाब्दिक अर्थ==  
'''काव्य''' या '''कविता''' का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या [[कवि]] की कृति, जो [[छन्द|छन्दों]] की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी [[रस]] या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वह [[कला]] जिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। 'रसगंगाधर' में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता ([[शब्दालंकार]]) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। 'साहित्य दर्पणाकार' विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक माना गया है। उनके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है।' रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की [[आत्मा]] है।
+
'''काव्य''' या '''कविता''' का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या [[कवि]] की कृति, जो [[छन्द|छन्दों]] की श्रृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी [[रस]] या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वह [[कला]] जिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। 'रसगंगाधर' में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता ([[शब्दालंकार]]) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। 'साहित्य दर्पणाकार' विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक माना गया है। उनके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है।' रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की [[आत्मा]] है।
  
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
हिंदी काव्य या पद्य साहित्य का इतिहास लगभग 800 साल पुराना है और इसका प्रारंभ तेरहवीं शताब्दी से समझा जाता है। हर भाषा की तरह [[हिंदी]] [[कविता]] भी पहले इतिवृत्तात्मक थी। यानि किसी कहानी को लय के साथ छंद में बांध कर अलंकारों से सजा कर प्रस्तुत किया जाता था। [[साहित्य|भारतीय साहित्य]] के सभी प्राचीन ग्रंथ कविता में ही लिखे गए हैं। इसका विशेष कारण यह था कि लय और छंद के कारण कविता को याद कर लेना आसान था। जिस समय छापेखाने का आविष्कार नहीं हुआ था और दस्तावेज़ों की अनेक प्रतियां बनाना आसान नहीं था उस समय महत्त्वपूर्ण बातों को याद रख लेने का यह सर्वोत्तम साधन था। यही कारण है कि उस समय साहित्य के साथ साथ राजनीति, विज्ञान और आयुर्वेद को भी पद्य (कविता) में ही लिखा गया। [[भारत]] की प्राचीनतम कविताएं [[संस्कृत भाषा]] में [[ऋग्वेद]] में हैं जिनमें प्रकृति की प्रशस्ति में लिखे गए छंदों का सुंदर संकलन हैं। जीवन के अनेक अन्य विषयों को भी इन कविताओं में स्थान मिला है।
+
हिंदी काव्य या पद्य साहित्य का इतिहास लगभग 800 [[साल]] पुराना है और इसका प्रारंभ तेरहवीं शताब्दी से समझा जाता है। हर [[भाषा]] की तरह [[हिंदी]] [[कविता]] भी पहले इतिवृत्तात्मक थी, यानि किसी कहानी को लय के साथ [[छंद]] में बांध कर [[अलंकार|अलंकारों]] से सजा कर प्रस्तुत किया जाता था। [[साहित्य|भारतीय साहित्य]] के सभी प्राचीन [[ग्रंथ]] कविता में ही लिखे गए हैं। इसका विशेष कारण यह था कि लय और छंद के कारण कविता को याद कर लेना आसान था। जिस समय छापेखाने का आविष्कार नहीं हुआ था और दस्तावेज़ों की अनेक प्रतियां बनाना आसान नहीं था उस समय महत्त्वपूर्ण बातों को याद रख लेने का यह सर्वोत्तम साधन था। यही कारण है कि उस समय साहित्य के साथ साथ राजनीति, विज्ञान और आयुर्वेद को भी पद्य (कविता) में ही लिखा गया। [[भारत]] की प्राचीनतम कविताएं [[संस्कृत भाषा]] में [[ऋग्वेद]] में हैं जिनमें प्रकृति की प्रशस्ति में लिखे गए छंदों का सुंदर संकलन हैं। जीवन के अनेक अन्य विषयों को भी इन कविताओं में स्थान मिला है।
 +
 
 
==काव्य के प्रकार==
 
==काव्य के प्रकार==
काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिसमें शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत व्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या [[अलंकार]] वह है जिसमें बिना व्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम, और अधम भी कहते हैं। काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, [[नाटक]], प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं। कथा और आख्यायिका। चंपू, विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है।
+
काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र।  
 +
*ध्वनि वह है जिसमें शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो।  
 +
*गुणीभूत व्यंग्य वह है जिसमें व्यंग्य अर्थ अगूढ़ बन जाए तो ध्वनिकाव्य नहीं रहता, गुणोभूत व्यंग्य या मध्यम काव्य वह हो जाता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=त्रिलोचन के बारे में|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=वाणी प्रकाशन|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= गोबिन्द प्रसाद |पृष्ठ संख्या=174|url=}}</ref>
 +
*चित्र या [[अलंकार]] वह है जिसमें बिना व्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम, और अधम भी कहते हैं।<br />
 +
काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, [[रस]] के उद्रेक पर नहीं। काव्य दो प्रकार का माना गया है, '''दृश्य''' और '''श्रव्य'''। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, [[नाटक]], प्रहसन आदि। जो पढ़ने और सुनने योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के [[महाकाव्य]] और [[खंडकाव्य]] दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं। [[कथा]] और आख्यायिका। चंपू, विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है।
 
==पद्य काव्य के भेद==
 
==पद्य काव्य के भेद==
[[चित्र:Kamayani.jpg|thumb|[[कामायनी]] (पद्य काव्य)]]
 
 
काव्य के दो भेद किए गए हैं-
 
काव्य के दो भेद किए गए हैं-
 
# [[महाकाव्य]]  
 
# [[महाकाव्य]]  
 
# [[खंड काव्य]]
 
# [[खंड काव्य]]
==महाकाव्य==  
+
==महाकाव्य==
 +
[[चित्र:Kamayani.jpg|thumb|[[कामायनी]] (पद्य काव्य)]]
 
{{Main|महाकाव्य}}
 
{{Main|महाकाव्य}}
महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई [[देवता]], राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न [[क्षत्रिय]] होना चाहिए। उसमें शृंगार, [[वीर रस|वीर]] या [[शांत रस|शांत रसों]] में से कोई [[रस]] प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में [[करुण रस|करुणा]]; [[हास्य रस|हास्य]] इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, [[सूर्य]], [[चंद्रमा|चंद्र]], रात्रि, प्रभात, मृगया, [[पर्वत]], वन, ऋतु सागर, संयोग, विप्रलंभ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, [[विवाह]] आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए।  
+
महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई [[देवता]], राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न [[क्षत्रिय]] होना चाहिए। उसमें श्रृंगार, [[वीर रस|वीर]] या [[शांत रस|शांत रसों]] में से कोई [[रस]] प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में [[करुण रस|करुणा]]; [[हास्य रस|हास्य]] इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, [[सूर्य]], [[चंद्रमा|चंद्र]], रात्रि, प्रभात, मृगया, [[पर्वत]], वन, ऋतु सागर, संयोग, विप्रलंभ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, [[विवाह]] आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए।  
 
==खंड काव्य==
 
==खंड काव्य==
 
{{Main|खंड काव्य}}
 
{{Main|खंड काव्य}}

10:56, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

Disamb2.jpg काव्य एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- काव्य (बहुविकल्पी)


काव्य
'रामचरितमानस' (प्रबन्ध काव्य)
विवरण 'काव्य' वह वाक्य रचना है, जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वह कला जिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है।
शाब्दिक अर्थ काव्य या कविता का शाब्दिक अर्थ है- "काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की श्रृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है।"
प्रकार काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, 'ध्वनि', 'गुणीभूत व्यंग्य' और 'चित्र'।
संबंधित लेख खंड काव्य, कविता, महाकाव्य, प्रबोधक काव्य, प्रबन्ध काव्य
अन्य जानकारी हिंदी काव्य या पद्य साहित्य का इतिहास लगभग 800 साल पुराना है और इसका प्रारंभ तेरहवीं शताब्दी से समझा जाता है। हर भाषा की तरह हिंदी कविता भी पहले इतिवृत्तात्मक थी, यानि किसी कहानी को लय के साथ छंद में बांध कर अलंकारों से सजा कर प्रस्तुत किया जाता था।

काव्य अथवा कविता या पद्य साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरत मुनि से समझा जा सकता है।

शाब्दिक अर्थ

काव्य या कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की श्रृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वह कला जिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। 'रसगंगाधर' में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दालंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। 'साहित्य दर्पणाकार' विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक माना गया है। उनके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है।' रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है।

इतिहास

हिंदी काव्य या पद्य साहित्य का इतिहास लगभग 800 साल पुराना है और इसका प्रारंभ तेरहवीं शताब्दी से समझा जाता है। हर भाषा की तरह हिंदी कविता भी पहले इतिवृत्तात्मक थी, यानि किसी कहानी को लय के साथ छंद में बांध कर अलंकारों से सजा कर प्रस्तुत किया जाता था। भारतीय साहित्य के सभी प्राचीन ग्रंथ कविता में ही लिखे गए हैं। इसका विशेष कारण यह था कि लय और छंद के कारण कविता को याद कर लेना आसान था। जिस समय छापेखाने का आविष्कार नहीं हुआ था और दस्तावेज़ों की अनेक प्रतियां बनाना आसान नहीं था उस समय महत्त्वपूर्ण बातों को याद रख लेने का यह सर्वोत्तम साधन था। यही कारण है कि उस समय साहित्य के साथ साथ राजनीति, विज्ञान और आयुर्वेद को भी पद्य (कविता) में ही लिखा गया। भारत की प्राचीनतम कविताएं संस्कृत भाषा में ऋग्वेद में हैं जिनमें प्रकृति की प्रशस्ति में लिखे गए छंदों का सुंदर संकलन हैं। जीवन के अनेक अन्य विषयों को भी इन कविताओं में स्थान मिला है।

काव्य के प्रकार

काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र।

  • ध्वनि वह है जिसमें शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो।
  • गुणीभूत व्यंग्य वह है जिसमें व्यंग्य अर्थ अगूढ़ बन जाए तो ध्वनिकाव्य नहीं रहता, गुणोभूत व्यंग्य या मध्यम काव्य वह हो जाता है।[1]
  • चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना व्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम, और अधम भी कहते हैं।

काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन आदि। जो पढ़ने और सुनने योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं। कथा और आख्यायिका। चंपू, विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है।

पद्य काव्य के भेद

काव्य के दो भेद किए गए हैं-

  1. महाकाव्य
  2. खंड काव्य

महाकाव्य

कामायनी (पद्य काव्य)

महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न क्षत्रिय होना चाहिए। उसमें श्रृंगार, वीर या शांत रसों में से कोई रस प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में करुणा; हास्य इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु सागर, संयोग, विप्रलंभ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए।

खंड काव्य

खण्ड काव्य में मुख्य चरित्र की किसी एक प्रमुख विशेषता का चित्रण होने के कारण अधिक विविधता और विस्तार नहीं होता। मुक्तक काव्य में कथा-सूत्र आवश्यक नहीं है। इसलिए उसमें घटना और चरित्र के अनिवार्य प्रसंग में भाव-योजना नहीं होती। वह किसी भाव-विशेष को आधार बना कर की गई स्वतंत्र रचना है। हिंदी साहित्य में खंडकाव्य प्रबंध काव्य का एक रूप है।

शैली के अनुसार काव्य के भेद

शैली के अनुसार काव्य के तीन भेद हैं-

  1. पद्य काव्य- इसमें किसी कथा का वर्णन काव्य में किया जाता है, जैसे जयशंकर प्रसाद का कामायनी
  2. गद्य काव्य- इसमें किसी कथा का वर्णन गद्य में किया जाता है, जैसे रवींद्रनाथ टैगोर की गीतांजलि। गद्य में काव्य रचना करने के लिए कवि को छंद शास्त्र के नियमों से स्वच्छंदता प्राप्त होती है।
  3. चंपू काव्य- इसमें गद्य और पद्य दोनों का समावेश होता है। मैथिलीशरण गुप्त की 'यशोधरा' चंपू काव्य है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. त्रिलोचन के बारे में |प्रकाशक: वाणी प्रकाशन |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: गोबिन्द प्रसाद |पृष्ठ संख्या: 174 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख