किष्किन्धा

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होसपेट स्टेशन से ढीई मील दूरी पर और बिलारी से 60 मील उत्तर की ओर रामायण में प्रसिद्ध, वानरों की राजधानी, किष्किंधा स्थित है। होस्पेट स्टेशन से दो मील की दूरी पर अंजनी (हनुमान की माता) के नाम से एक पर्वत है और इसके कुछ ही दूरी पर ऋष्यमूक स्थित है, जिसे घेर कर तुंगभद्रा नदी बहती है। नदी के दूसरी ओर हपीं— 16वीं शती ई. के ऐश्वर्यशाली नगर विजयनगर के विस्तृत खण्डहर स्थित हैं।

इतिहास

रामायण काल में 'किष्किन्धा' वानर राज बाली का राज्य था। किष्किन्धा संभवत: 'ऋष्यमूक' की भाँति ही पर्वत था। बाली ने अपने भाई सुग्रीव को किष्किन्धा से मार कर भगा दिया था और वह ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान आदि के साथ रहने लगा था। ऋष्यमूक पर बाली श्राप के कारण नहीं जा सकता था।

वाल्मीकि रामायण में यह कथा किष्किन्धा काण्ड में वर्णित है। रामायण के अनुसार किष्किंधा में बाली और तदुपरान्त सुग्रीव ने राज्य किया था। श्री रामचन्द्र जी ने बाली को मारकर सुग्रीव का अभिषेक लक्ष्मण द्वारा इसी नगरी में करवाया था। तदुपरान्त माल्यवान तथा प्रस्त्रवणगिरि पर जो किष्किंधा में विरूपाक्ष के मन्दिर से चार मील दूर है, उन्होंने प्रथम वर्षाऋतु बिताई थी-[1] 'एतद् गिरेमल्यिवतः पुरस्तादाविर्भवत्यम्बर लेखिश्रृंगम्, नवं पयो यत्र घनैर्मया च त्वद्धिप्रयोगाश्रु समं विसृष्टम्' [2] माल्यवान्-पर्वत के ही एक भाग का नाम प्रवर्षण (या प्रस्रवण) गिरि है। इसी स्थान पर श्रीराम ने वर्षा के चार मास व्यतीत किए थे- 'अभिषिक्ते तु सुग्रीवे प्रविष्टे वानरे गुहाम्, आजगाम सहभ्रात्रा रामः प्रस्रवर्ण गिरिम्, वाल्मीकि0 किष्किंधा 27,1 । पास ही स्फटिक शिला है, जहाँ पर अनेक मन्दिर हैं।

ऋष्यमूक पर्वत तथा तुंगभद्रा के घेरे को चक्रतीर्थ कहते हैं। मन्दिर के पास ही सूर्य, सुग्रीव आदि की मूर्तियाँ हैं। विरूपाक्ष मन्दिर से प्रायः दो मील पर तुंगभद्रा नदी के वामतट पर एक ग्राम अनेगुंडो है, जिसका अभिज्ञान किष्किंधा नगरी में किया गया है। पर परम ऐश्वर्यशाली नगरी का वर्णन वाल्मीकि रामायण में पर्याप्त विस्तार से है। इसका एक अंश इस प्रकार से है- 'स तां रत्नमयीं दिव्यां श्रीमान् पुष्पितकाननां, रम्यां रत्न-समाकीर्णा ददर्श महतीं गुहाम्। हर्म्यप्रासादसंबाधां नानारत्नोपशोभिताम्, सर्वकामफलैर्वृक्षैः पुष्पिशै रुपशोभिताम्। देवगंधर्वपुत्रश्च वानरैः कामरूपिभिः, दिव्यमाल्याम्बरधरैः शोभितां प्रियदर्शनैः। चन्दनागरुपद्यानां गंघैः सुरभिगंधितां, मैरेयाणां मधूनां च सम्मोदितमहापथां। विंध्यमेरु गिरिप्रख्यैः प्रासादैर्नैकभूमिभिः, ददर्श गिरिनद्यश्च विमलास्तत्र राघवः' किष्किंधा0 33,4-8. अर्थात लक्ष्मण ने उस विशाल गुहा को देखा जो कि रत्नों से भरी थी और आलौकिक दीख पड़ती थी, और उसके वनों में खूब फूल खिले हुए थे, हर्म्य प्रासादों से सघन, विविध रत्नों से शोभित और सदाबहार वृक्षों से वह नगरी सम्पन्न थी।

सम्बंधित लिंक

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  1. 'तथा स बालिनं हत्वा सुग्रीवमभिषच्य च वसन् माल्यवतः पृष्ठे रामो लक्ष्मणब्रवीत्', वाल्मीकि॰ किष्किंधा 27,1।
  2. रघु॰ 13,26।