कोलकाता

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कोलकाता शहर, पश्चिम बंगाल राज्य और भूतपूर्व ब्रिटिश भारत (1772-1912) की राजधानी है। यह भारत का सबसे बड़ा शहर है और प्रमुख बंदरगाहों में से एक हैं। यह शहर बंगाल की खाड़ी के मुहाने से 154 किमी. ऊपर को हुगली नदी के पूर्वी तट पर स्थित है, जो कभी गंगा नदी की मुख्य नहर थी। यहाँ पर जल से भूमि तक और नदी से समुद्र तक जहाज़ों की आवाजाही के केन्द्र के रूप में बंदरगाह शहर विकसित हुआ। मुख्य शहर का क्षेत्रफल लगभग 104 वर्ग किमी. है, हालाँकि महानगरीय क्षेत्र (कोलकाता शहरी संकेद्रण) काफ़ी बड़ा है और लगभग 1,380 किमी. में फैला है। वाणिज्य, परिवहन और निर्माण का शहर कोलकाता पूर्वी भारत का प्रमुख शहरी केन्द्र है। इस शहर का अंग्रेज़ी नाम कलकत्ता है।

  • कुछ लोगों के अनुसार कलीकाता की उत्पत्ति बांग्ला शब्द कालीक्षेत्र से हुई है, जिसका अर्थ है 'काली (देवी) की भूमि'।
  • कुछ कहते हैं कि शहर का नाम एक नहर (ख़ाल) के किनारे पर उसकी मूल बस्ती होने से पड़ा। तीसरा विचार यह है कि चूना (काली) और सिकी हुई सीपी (काता) के लिए बांग्ला शब्दों से मिलकर यह नाम बना है, क्योंकि यह क्षेत्र पकी हुई सीपी से उच्च गुणवत्ता वाले चूने के निर्माण के लिए विख्यात है।
  • एक अन्य मत यह है कि इस नाम की उत्पत्ति बांग्ला शब्द किलकिला (समतल क्षेत्र) से हुई है, जिसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।

भौतिक एवं मानव भूगोल

शहर का स्वरूप

उपनिवेशवादी अंग्रेज़ों के द्वारा भव्य यूरोपीय राजधानी के रूप में अभिकल्पित कोलकाता अब भारत के सबसे अधिक निर्धन और सर्वाधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक है। यह अत्यधिक विविधताओं और अंतर्विरोधों के शहर के रूप में विकसित हुआ है। कोलकाता को अपनी अलग पहचान पाने के लिए तीव्र यूरोपीय प्रभाव को आत्मसात करना था और औपनिवेशिक विरासत की सीमाओं से बाहर आना था। इस प्रक्रिया में शहर ने पूर्व और पश्चिम का एक संयोग बना लिया, जिसे 19वीं शताब्दी के कुलीन बंगालियों के जीवन कार्यों में अभिव्यक्ति मिली। इस वर्ग के सबसे विशिष्ट व्यक्तित्व थे, कवि और रहस्यवादि रवीन्द्रनाथ टैगोर। भारतीय शहरों में सबसे बड़ा और सबसे अधिक जीवन्त यह शहर अजेय लगने वाली आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक समस्याओं के बीच फला-फूला है। यहाँ के नागरिकों ने अत्यधिक जीवंतता दिखाई है, जो कला व संस्कृति में उनकी अभिरुचि और एक स्तर की बौद्धिक ओजस्विता में प्रदर्शित होती है। यहाँ की राजनीतिक जागरुकता देश में अन्यत्र दुर्लभ है। कोलकाता के पुस्तक मेलों, कला प्रदर्शनियों और संगीत सभाओं में जैसी भीड़ होती है, वैसी भारत के किसी अन्य शहर में नहीं होती। दीवारों पर वाद-विवाद का अच्छा-ख़ासा आदान-प्रदान होता है, जिसके कारण कोलकाता को इश्तहारों का शहर कहा जाने लगा है।

प्रबल जीवन शक्ति के बावजूद कोलकाता शहर में कई निवासी सांस्कृतिक पर्यावरण से बहुत दूर ख़ासी ख़राब स्थितियों में जीवन-यापन करते हैं। हालाँकि शहर की ऊर्जा, सबसे पिछड़ी झोपड़ियों तक भी प्रवाहित होती है, क्योंकि बहुत बड़ी संख्या में कोलकातावासी ऐसे लोगों की सहायता गम्भीरतापूर्वक करते हैं, जो ग़रीब व पीड़ित लोगों की मदद में जुटे हैं। संक्षेप में, कोलकाता विदेशियों के साथ-साथ अनेक भारतीयों के लिए भी रहस्यमय बना हुआ है। यह नवागतों के लिए पहेली है और वहाँ रहने वाले लोगों के मन में एक स्थायी लगाव उत्पन्न करता है।

भू-आकृति

शहर की अवस्थिति वास्तव में शहर के स्थान के चयन अंशतः उसकी आसान रक्षात्मक स्थिति और अंशतः उसकी अनुकूल व्यापारिक स्थिति के कारण किया गया प्रतीत होता है। अन्यथा निम्न, दलदली, गर्म व आर्द नदी तट पर शहर बसाने की बहुत कम परिस्थितियाँ उपलब्ध हैं। इसकी अधिकतम ऊँचाई समुद्र की सतह से लगभग नौं मीटर ऊपर है। हुगली नदी से पूर्व की ओर भूमि कीचड़ वाले और दलदली क्षेत्र की ओर ढालू होती जाती है। इसी तरह की स्थलाकृति नदी के पश्चिमी तट पर है, जिससे नदी के दोनों किनारों पर तीन से आठ किमी. चौड़ी पट्टी पर महानगरीय क्षेत्र परिसीमित है। शहर के पूर्वोत्तर किनारे पर स्थित साल्ट लेक क्षेत्र के विकास ने यह दर्शाया है कि शहर का विशेष विस्तार व्यावहारिक है और मध्य क्षेत्र के पूर्वी, दक्षिणी व पश्चिमी भाग में अन्य विकास परियोजनाएँ भी चलाई जा सकती हैं। कोलकाता के प्रमुख उपनगर हैं हावड़ा (पश्चिमी तट पर), उत्तर में बरानगर, पूर्वोत्तर में दक्षिणी दमदम, दक्षिण में दक्षिण उपनगरीय नगरपालिका (बेहाला), दक्षिण-पश्चिम में गार्डन रीच, सम्पूर्ण शहरी संकुल आपस में सामाजिक-आर्थिक रूप से जुड़ा हुआ है।

जलवायु

मानसून की मौसमी प्रवृत्ति के साथ कोलकाता की जलवायु उपोष्ण कटिबंधीय है। अधिकतम तापमान 42 डिग्री से. और न्यूनतम तापमान 7 डिग्री से. तक पहुँच जाता है। औसत वार्षिक वर्षा लगभग 1,625 मिमी होती है, जिसमें अधिकांश वर्षा मानसून काल के जून से सितम्बर के बीच होती है। ये महीने अत्यधिक आर्द्र और कभी-कभी उमस भरे होते हैं। अक्तूबर व नवम्बर के दौरान वर्षा कम होती जाती है। शीत ऋतु के महीनों में, लगभग नवम्बर के अन्त से फ़रवरी के अन्त तक मौसम खुशनुमा और वर्षारहित होता है। कभी-कभी इस मौसम में भोर के समय कोहरे व घुँध से कम दिखाई देता है। इसी प्रकार शाम को कोहरे की मोटी परत छाई रहती है। 1950 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों से वातावरण में प्रदूषण बढ़ गया है। कारख़ाने, वाहन और ताप बिजलीघर, जिनमें कोयला जलाया जाता है, इस प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं, किन्तु लोगों के लिए ताज़ी हवाएँ लाकर मानसूनी हवाएँ स्वच्छता कारक का काम करती हैं और जल प्रदूषण हटाने को तीव्रता प्रदान करती हैं।

नगर योजना

कोलकाता की नगर योजना का सबसे उल्लेखनीय पहलू, उसका उत्तर-दक्षिण दिशा में आयताकार अनुस्थापन है। केन्द्रीय क्षेत्र के अपवाद सहित, जहाँ पहले यूरोपीय रहते थे, शहर का बेतरतीब विकास हुआ है। कोलकाता शहर और हावड़ा उपनगर से मिलकर बने केन्द्रीय भाग के चारों ओर के बाहरी क्षेत्र में यह बेतरतीब विकास सबसे अधिक दिखाई पड़ता है। शहर की सभी प्रशासकीय और व्यावसायिक गतिविधियाँ बड़ा बाज़ार क्षेत्र के आसपास केन्द्रित होती हैं। जो मैदान<>एक बगीचा, जिसमें फ़ोर्ट विलियम और शहर की कई सांस्कृतिक व मनोरंजक सुविधाएँ विद्यमान हैं<> के उत्तर में एक छोटा-सा क्षेत्र है। इसकी वजह से एक दैनिक आवाजाही की व्यवस्था का विकास हुआ, जिससे कोलकाता की परिवहन प्रणाली, उपयोगिताएँ और अन्य नागरिक सुविधाओं पर अत्यधिक दबाव पड़ा। कोलकाता में मार्गों व सड़कों का तंत्र शहर के ऐतिहासिक विकास को दर्शाता है। आंतरिक मार्ग संकरे हैं। यहाँ केवल एक द्रुत राजमार्ग क़ाज़ी नज़रुल इस्लाम मार्ग है, जो कोलकाता से दमदम तक जाता है। प्रमुख सड़कें एक जाल बनाती हैं, मुख्यतः पुराने यूरोपीय भाग में, परन्तु शेष स्थानों पर मार्ग नियोजन अव्यवस्थित है। इसका कारण है, नदी पर पुलों का अभाव, और इसी वजह से अधिकांश सड़कें और प्रमुख मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हैं। जिन जलमार्गों और नहरों पर पुल बनाने की आवश्यकता है, वे भी मार्ग संरचना को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारक रहे हैं।

आवास

कोलकाता शहर में आवास की बहुत कमी है। जितने व्यक्ति कोलकाता महानगरीय ज़िले के संस्थागत आवासों में रहते हैं, उसमें से दो-तिहाई से भी अधिक लोग शहर में रहते हैं। नगर की लगभग तीन-चौथाई आवासीय इकाइयों का उपयोग केवल रहने के उद्देश्य से किया जाता है। यहाँ सैकड़ों बस्तियाँ या झोपड़पट्टियाँ हैं, जहाँ नगर की लगभग एक-तिहाई जनसंख्या रहती है। बस्ती को आधिकारिक रूप से इस प्रकार परिभाषित किया जाता है, 'कम से कम एक एकड़ भूमि के छठे भाग पर स्थित झोपड़ियों का समूह', यहाँ एक एकड़ के छठे भाग से भी कम स्थान पर निर्मित बस्तियाँ हैं। एक एकड़ के पन्द्रहवें भाग में अधिकतम झोपड़ियाँ छोटी, वायुरुद्ध और ज़्यादातर जीर्ण-शीर्ण एक मंज़िला कमरे हैं। यहाँ स्वास्थ्य सुविधाएँ बहुत कम हैं और खुला स्थान काफ़ी कम होता है। सरकार ने एक बस्ती सुधार कार्यक्रम प्रायोजित किया है।

स्थापत्य

समकालीन कोलकाता की रूपरेखा में कई स्थानों पर गगनचुम्बी इमारतें और ऊँचे बहुमंज़िला खण्ड विद्यमान हैं। नगर-पारिदृश्य तेज़ी से परिवर्तित हुआ है। मध्य कोलकाता का चौरंगी क्षेत्र, जो कभी भव्य आवासों की पंक्ति था, कार्यालयों, होटलों और दुकानों में बदल गया है। उत्तरी और मध्य कोलकाता में आज भी इमारतें मुख्यतः दो या तीन मंज़िल ऊँची होती हैं। दक्षिण व दक्षिण-मध्य कोलकाता में बहुमंज़िला इमारतें अधिक प्रचलित हो गई हैं। कोलकाता के स्थापत्य स्मारकों में पश्चिमी प्रभाव अधिक झलकता है। राजभवन (राज्यपाल का निवास स्थान) डर्बीशायर के केडलस्टोन हाल का प्रतिरूप है; उच्च न्यायालय इप्रेस, बेल्जियम के क्लाथ हाल से साम्य रखता है; डोरिक-हेलेनिक मण्डप के साथ टाउन हाल यूनानी शैली में है; सेन्ट पाल गिरजाघर स्थापत्य इंडो-गाथिक शैली में है, शीर्ष पर मूर्तियों के साथ राइटर्स बिल्डिंग गाथिक शैली का है; भारतीय संग्रहालय इतालवी शैली में; प्रधान डाकघर में भव्य गुम्बदों के साथ कोरिथियाई स्तम्भ हैं। शहीद मीनार (आक्टरलोनी मान्यूमेंट) के खूबसूरत स्तम्भ 50 मीटर ऊँचे हैं। इसका आधार मिस्र, स्तम्भ सीरियाई और गुम्बद तुर्की शैली में है। विक्टोरिया मेमोरियल पश्चिमी शास्त्रीय प्रभाव के मुग़ल स्थापत्य के साथ मिश्रण के प्रयास को प्रदर्शित करता है। नाखुदा मस्ज़िद, सिकन्दरा स्थित अकबर के मक़बरे के आधार पर बनाई गई है। बिड़ला तारागृह (प्लेनिटेरियम), सांची के स्तूप (बौद्ध अवशेष गोलक) पर आधारित है। पश्चिम बंगाल विधानसभा भवन आधुनिक स्थापत्य शैली की एक भव्य इमारत है। स्वतंत्रता पश्चात के निर्माण का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण, रामकृष्ण मिशन सांस्कृतिक संस्थान, पश्चिमोत्तर भारत की प्राचीन महल स्थापत्य शैली में बना है।

जनजीवन

कोलकाता शहर में जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक, लगभग 33,000 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है। शहर के कई इलाक़ों में भीड़भाड़ असहनीय अनुपात में पहुँच गई है। कोलकाता में लगभग एक सदी से अधिक समय से उच्च जनसंख्या वृद्धि दर रही है, किन्तु 1947 में भारत के विभाजन और 1970 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में हुए बांग्लादेश युद्ध ने जनसंख्या के अवक्षेप को तेज़ी से बढ़ाया। उत्तरी व दक्षिणी उपनगरों में बड़ी शरणार्थी बस्तियाँ एकाएक उभर आईं। इसके साथ ही, दूसरे राज्यों से बड़ी संख्या में आप्रवासी, अधिकांशतः पड़ोसी राज्य बिहार, उड़ीसा और पूर्वी उत्तर प्रदेश से रोज़गार की तलाश में कोलकाता आ गए। यहाँ की 4/5 भाग से अधिक जनसंख्या हिन्दू है। मुस्लिम और ईसाई सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय हैं, पर कुछ सिक्ख, जैन और बौद्ध मतावलंबी भी रहते हैं। मुख्य भाषा बांग्ला है, लेकिन उर्दू, उड़िया, तमिल, पंजाबी और अन्य भाषाएँ भी बोली जाती हैं। कोलकाता एक सर्वदेशीय नगर है; यहाँ पर रहने वाले अन्य समूहों में एशियाई (मुख्यतः बांग्लोदेशी और चीनी), यूरोपीय, उत्तर अमेरिकी और आस्ट्रलियाई लोगों की उपजातियाँ शामिल हैं। कोलकाता में प्रजातीय विभाजन ब्रिटिश शासन में प्रारम्भ हुआ, यूरोपवासी शहर के मध्य में रहते थे और भारतीय उत्तर और दक्षिण में रहते थे। यह विभाजन नए शहर में भी विद्यमान है, हालाँकि अब विभाजन के आधार पर धर्म, भाषा, शिक्षा और आर्थिक हैसियत हैं। झुग्गियाँ और निम्न आय आवासीय क्षेत्र सम्पन्न क्षेत्रों के साथ-साथ ही मौजूद हैं।

र्थव्यवस्था

भारत के एक मुख्य आर्थिक केन्द्र के रूप में कोलकाता की जड़ें उसके उद्योग, आर्थिक एवं व्यापारिक गतिविधियों और मुख्य बंदरगाह के रूप में उसकी भूमिका में निहित है; यह मुद्रण, प्रकाशन और समाचार पत्र वितरण के साथ-साथ मनोरंजनक का केन्द्र है। कोलकाता के भीतरी प्रदेश के उत्पादों में कोयला, लोहा, मैंगनीज़, अभ्रक, पेट्रोल, चाय और जूट शामिल हैं। 1950 के दशक से बेरोज़गारी एक सतत व बढ़ती हुई समस्या है। कोलकाता में बेरोज़गारी बहुत हद तक महाविद्यालय शिक्षा प्राप्त और लिपिक व अन्य सफ़ेदपोश व्यवसायों के लिए प्रशिक्षित लोगों की समस्या है।

उद्योग

विश्व में ज़्यादा जूट-प्रसंस्करण कोलकाता में किया जाता है। सर्वप्रथम 1870 के दशक में जूट उद्योग की स्थापना हुई थी और हुगली नदी के दोनों तटों पर शहर के केन्द्र उत्तर और दक्षिण तक जूट मिलें फैली हुई हैं। अभियांत्रिकी इस शहर का एक प्रमुख उद्योग है। इसके अतिरिक्त यहाँ कारख़ाने कई प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं, मुख्यतः खाद्य पदार्थ, पेय, तम्बाकू, वस्त्र और रसायनों का निर्माण व वितरण करते हैं। 1947 में भारत की आज़ादी के बाद से कोलकाता के उद्योगों का पतन हो रहा है। इसके मुख्य कारण हैं, स्वतंत्रता के समय पूर्वी बंगाल को खो देना, कोलकाता के समग्र औद्योगिक उत्पादकता में कमी और शहर में औद्योगिक वैविध्य का पतन।

वित्त एवं व्यापार

देश के संगठित वित्त बाज़ार में कोलकाता शेयर बाज़ार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कोलकाता में विदेशी बैंकों का भी महत्वपूर्ण व्यापारिक आधार है, हालाँकि अंतराष्ट्रीय बैंकिग केन्द्र के रूप में शहर का दावा कमज़ोर हो गया है। कोयला खदानों, जूट मिलों और कई वृहद अभियांत्रिकी उद्योगों की नियंत्रक एजेंसियाँ कोलकाता में स्थित हैं। बंगाल उद्योग एवं व्यापार मण्डल (बेंगाल चेंबर आफ़ कामर्स ऐंड इंडस्ट्री), बंगाल राष्ट्रीय उद्योग एवं व्यापार मण्डल (बेंगाल नेशनल चेंबर आफ़ कामर्स ऐंड इंडस्ट्री) और भारतीय व्यापार मण्डल के मुख्यालय यहीं पर स्थित हैं। शहर की अर्थव्यवस्था मुख्यतः व्यापार पर आधारित है। यह इस तथ्य से स्पष्ट है, कि लगभग 40 प्रतिशत मज़दूर व्यापार एवं वाणिज्य गतिविधियों में संलग्न हैं। अन्य महत्वपूर्ण व्यवसायों में सार्वजनिक क्षेत्र में शासकीय विभाग, वित्तीय संस्थान और चिकित्सा एवं शिक्षा संस्थानों में सेवाएँ शामिल हैं। निजी क्षेत्र की सेवाओं में शेयर बाज़ार, चिकित्सा एवं शिक्षा सेवाएँ, लेखा एवं ऋणदाता संस्थाएँ, व्यापार मण्डल और विभिन्न उपयोगी सेवाएँ शामिल हैं।

परिवहन

कोलकाता शहर में सड़कों की हालत दचनीय है, हालाँकि यातायात का दबाव बहुत अधिक है। जन यातायात व्यवस्था मुख्य रूप में बसों और महानगरीय रेलवे (मेट्रो) पर निर्भिर है। बसें सरकार और निजी कम्पनियों के द्वारा चलाई जाती हैं। देश की पहली भूमिगत रेलवे प्रणाली, मेट्रो की शुरुआत 1986 में हुई थी, और अब यह नगर में यातायात का प्रमुख साधन है, जिससे लगभग 20 लाख यात्री प्रतिदिन यात्रा करते हैं।

अपने पश्चिमी पृष्ठ भाग से सम्बन्ध के लिए कोलकाता केवल हुगली नदी पर बने कुछ पुलों पर निर्भर है। हावड़ा पुल और सुदूर उत्तर में बाली और नैहाटी में बने पुल। कोलकाता को पृष्ठ भाग से जोड़ने वाली मुख्य कड़ी हावड़ा पुल पर वाहन यातायात की आठ पंक्तियाँ हैं और यह विश्व में अधिक उपयोग किए जाने वाले पुलों में से एक है। हावड़ा और कोलकाता के बीच एक दूसरे पुल, विद्यासागर सेतु का प्रयोग भी किया जाता है। ग्रैंड ट्रंक रोड (राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-2) भारत के सबसे पुराने मार्गों में से एक है। यह हावड़ा से कश्मीर तक जाता है और शहर को उत्तर भारत से जोड़ने वाला मुख्य मार्ग है। अन्य राष्ट्रीय राजमार्ग कोलकाता को भारत के पश्चिमी तट, उत्तरी बंगाल और बांग्लादेश की सीमाओं से जोड़ते हैं।

दो रेलवे टर्मिनल, पश्चिमी तट पर हावड़ा और पूर्व में सियालदह, उत्तर और दक्षिण के साथ-साथ पूर्व और पश्चिम में फैले रेलवे संजाल को संचालित करते हैं। कोलकाता का प्रमुख हवाई अड्डा दमदम में स्थित है, जहाँ से अंतराष्ट्रीय व घरेलू उड़ानों का आवागमन होता है। आकार के सन्दर्भ में कोलकाता बंदरगाह भारत के आयातित जहाज़ी माल के 1/10 भाग और उसके निर्यातित जहाज़ी माल के लगभग 1/12 भाग को नियंत्रित करता है। हालाँकि, कुछ अंशों में नदी से गाद निकालने की समस्या और अंशतः श्रमिक समस्याओं का सामना करने के कारण यातायात में कुछ कमी आई है। परिवहन, भण्डारण, थोक विक्रम और खेरची विक्रय, निर्यात और आयात सम्बन्धी आवश्यकताओं का संकेंद्रण कोलकाता और हावड़ा में है। कोलकाता बंदरगाह भारत के सबसे प्रमुख जहाज़ी माल नियंत्रक की 1960 के दशक की अपनी स्थिति अब खो चुका है, किन्तु आज भी यह और हल्दिया बंदरगाह (लगभग 64 किमी. नीचे की ओर) देश की विदेशी विनिमय मुद्रा का एक बड़ा भाग अर्जित करते हैं।

प्रशासन एवं सामाजिक विशेषताएँ

प्रशासन

कोलकाता शहर में शासन का दायित्व कोलकाता नगर निगम का है; शहर के 100 वार्डों से चुने हुए प्रतिनिधि निगम की सभा का निर्माण करते हैं। निगम पार्षद हर वर्ष एक महापौर, एक उपमहापौर और निगम की गतिविधियाँ चलाने के लिए कई समितयों का चुनाव करते हैं। निगम का कार्यकारी प्रमुख आयुक्त, निर्वाचित सदस्यों के प्रति उत्तरदायी होता है। शहर भी कोलकाता महानगर ज़िले का एक भाग है, जिसे क्षेत्रीय आधार पर योजना बनाने और विकास के पर्यवेक्षण के लिए बनाया गया था।

पश्चिम बंगाल की राजधानी होने के कारण कोलकाता शहर के ऐतिहासिक राजभवन में राज्यपाल निवास करते हैं। राज्य विधानसभी भी यहीं पर सचिवालय के साथ राइटर्स बिल्डिंग में स्थित है और कोलकाता उच्च न्यायालय भी यहीं पर है। कई राष्ट्रीय शासकीय संस्थाएँ कोलकाता में ही स्थित हैं, जिनमें नेशनल लाइब्रेरी, भारतीय संग्रहालय, भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण शामिल हैं।

सेवाएँ

कोलकाता शहर में पाल्टा स्थित मुख्य जल संयंत्र के साथ-साथ लगभग 200 मुख्य कुओं और 3,000 छोटे कुओं से स्वच्छ जल की आपूर्ति की जाती है। कोलकाता से 386 किमी. दूर गंगा नदी पर बना फरक्का बाँध सामान्यतः शहर में लवणयुक्त जलापूर्ति सुनिश्चित करता है। किन्तु जलापूर्ति की अपर्याप्तता के कारण गर्मी के महीनों में लवणता की समस्या बनी रहती है। इसके अतिरिक्त अग्निशमन को दिए जाने वाले अस्वच्छ जल का उपयोग भी यहाँ के अनेक निवासी अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करते हैं।

कोलकाता निगम क्षेत्र में सैकड़ों किमी. में मल निकासी व्यवस्था व सतही जल निकासी व्यवस्था है, लेकिन इसके अनेक हिस्सों में आज तक मल निकासी की उचित व्यवस्था नहीं है। गाद के जमाव ने कई निकासी नालियों को संकरा बना दिया है। कूड़ा हटाने और फेंकने की व्यवस्था भी संतोषजनक नहीं है। कोलकाता में बिजली की आपूर्ति विभिन्न स्रोतों से होती है, जिनमें कोलकाता विद्युत प्रदाय निगम, पश्चिम बंगाल राज्य विद्युत मण्डल, दुर्गापुर परियोजना, बंडल ताप बिजलीघर, संतालडीह बिजलीघर और दामोदर घाटी निगम ग्रिड शामिल हैं। हालाँकि अभी भी उत्पादन क्षमता और माँग के बीच अन्तर है, जिसे हाल के वर्षों में कुछ हद तक कम किया गया है। कोलकाता पुलिस बल का प्रशासन शहर के पुलिस आयुक्त के अधिकार क्षेत्र में है, वही उपनगरीय पुलिस बल को निर्देशित करता है। नगर को चार पुलिस क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। अग्निशमन मुख्यालय मध्य कोलकाता में है।

स्वास्थ्य

कोलकाता से चेचक का पूर्णतया उन्मूलन कर दिया गया है और मलेरिया व आंत्रशोथ से होने वाली मौतों को भी बहुत हद तक नियंत्रित कर लिया गया है। क्षयरोग के मामले भी कम हो गए हैं। कोलकाता नगर निगम और सेवार्थ न्यासों द्वारा चलाए जा रहे सैकड़ों अस्पताल, निजी चिकित्सालय, निःशुल्क औषधालय और राज्य द्वारा चलाए जा रहे बहुउद्देश्यीय अस्पताल (पालीक्लीनिक) कोलकाता क्षेत्र में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। 1979 में नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित मदर टेरेसा द्वारा 1948 में स्थापित एक संस्था, द आर्डर आफ़ मिशनरीज़ आफ़ चैरिटी, शहर के सबसे विपन्न वर्गों के नेत्रहीन, वृद्ध, मरणासन्न और कुष्ठ रोगियों की देखभाल करती है। शहर में चिकित्सकीय शोध केन्द्र के अतिरिक्त कई चिकित्सा महाविद्यालय भी हैं। प्रति 1,000 व्यक्तियों पर चिकित्सों की संख्या देश के अधिकांश भागों से कोलकाता में अधिक है, किन्तु उनका वितरण असमान है; चूँकि यह शहर भारत के सम्पूर्ण पूर्वोत्तर क्षेत्र का चिकित्सा केन्द्र है, अतः स्वास्थ्य सेवाओं पर हमेशा अत्यधिक दबाव रहता है।

शिक्षा

शिक्षा लम्बे समय से कोलकाता में उच्च सामाजिक स्तर का परिचायक रही है। यह शहर भारतीय शिक्षा के पुनर्जीवन काल से, जिसकी शुरुआत 19वीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में बंगाल में हुई, शिक्षा का एक केन्द्र रहा है। अंग्रेज़ी शैली का पहला विद्यालय, द हिन्दू कालेज (जो बाद में प्रेज़िडेंसी कालेज कहलाया) 1817 में स्थापित हुआ। शहर में प्राथमिक शिक्षा का संचालन पश्चिमी बंगाल शासन के द्वारा किया जाता है और नगर निगम द्वारा चलाए जा रहे विद्यालयों में यह निःशुल्क है। बहुत बड़ी संख्या में बच्चे निजी प्रबंधन द्वारा संचालित मान्यता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षा पाते हैं। अधिकांश उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, पश्चिम बंगाल माध्यमिक शिक्षा मण्डल के अधीन हैं और कुछ केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड व भारतीय माध्यमिक शिक्षा परिषद के अधीन हैं। कोलकाता में तीन बड़े विश्वविद्यालय हैं:-

  • कलकत्ता विश्वविद्यालय,
  • जादवपुर विश्वविद्यालय और
  • रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय।

1857 में स्थापित कोलकाता विश्वविद्यालय में 150 से अधिक सम्बन्धित महाविद्यालयों के साथ-साथ कला (मानविकी), वाणिज्य, विधि, चिकित्सा विज्ञान व तकनीक और स्नातकोत्तर शिक्षण एवं शोध महाविद्यालय शामिल हैं। जादवपुर विश्वविद्यालय में तीन धाराएँ हैं, कला (मानविकी), विज्ञान और अभियांत्रिकी और इसका मुख्य लक्ष्य एक ही परिसर में स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा प्रदान करना है। रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय मानविकी और ललित कलाओं में, जिनमें नृत्य, नाटक व संगीत शामिल हैं, विशेषज्ञता प्रदान करता है। शोध संस्थानों में भारतीय सांख्यिकी संस्थान, भारतीय विज्ञान परिष्करण संघ, बोस संस्थान (प्राकृतिक विज्ञान) और अखिल भारतीय स्वास्थ्य विज्ञान एवं जनस्वास्थ्य संस्थान शामिल हैं।

सांस्कृतिक जीवन

कोलकाता भारत का सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक केन्द्र है। यह आधुनिक भारत के साहित्यिक एवं कलात्मक विचारों और भारतीय राष्ट्रवाद का जन्मस्थल है और यहाँ के नागरिकों द्वारा भारतीय संस्कृति व सभ्यता के संरक्षण के प्रयास की मिसाल देश में अन्यत्र नहीं मिलती। सदियों से पूर्व और पश्चिमी सांस्कृतिक प्रभावों के सम्मिमिश्रण ने असंख्य विविध संगठनों के निर्माण को प्रेरित किया, जिन्होंने कोलकाता के सांस्कृतिक जीवन में योगदान किया। इनमें एशियाटिक सोसाइटी, बंगीय साहित्य परिषद, रामकृष्ण मिशन सांस्कृतिक संस्थान, ललित कला अकादमी, बिड़ला कला एवं सांस्कृतिक अकादमी और महाबोधि सोसाइटी शामिल हें। नंदन, नज़रूल मंच और गिरीश मंच नई और सर्वाधिक सक्रिय संस्थाएँ हैं शहर का एक प्रमुख आकर्षण है, साइन्स सिटी, एशिया में अपने प्रकार का सबसे पहला शहर है।

संग्रहालय एवं पुस्तकालय

वृहद कोलकाता में 30 से अधिक संग्रहालय है, जो विविध विषयों पर आधारित हैं। 1814 में स्थापित इंडियन म्यूज़ियम भारत में सबसे पुराना और अपनी तरह का देश का सबसे बड़ा संग्रहालय है। पुरातत्व और मुद्राविषयक खण्डों में सबसे मूल्यवान संग्रह हैं। विक्टोरिया मेमोरियल में प्रदर्शित वस्तुएँ भारत के साथ ब्रिटेन के सम्बन्ध को दर्शाती हैं। कोलकाता विश्वविद्यालय में भारतीय कला का आशुतोष संग्रहालय अपने संग्रह में बंगाल की लोककला का प्रदर्शन करता है। मूल्यवान ग्रंथों का संग्रह एशियाटिक सोसाइटी, बंगीय साहित्य परिषद और कलकत्ता विश्वविद्यालय में विद्यमान हैं; नेशनल लाइब्रेरी भारत में सबसे बड़ी है और इसमें दुर्लभ ग्रंथों और हस्तलिपियों का श्रेष्ठ संग्रह है।

कला

कोलकाता वासी लम्बे समय से साहित्य व कला क्षेत्रों में सक्रिय रहे हैं। 19वीं शताब्दी के मध्य में यहाँ पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित साहित्यिक आन्दोलन का उदय हुआ, जिसने सम्पूर्ण भारत में साहित्यिक पुनर्जागरण किया। इस आन्दोलन के महत्वपूर्ण प्रणेताओं में से एक रवीन्द्रनाथ टैगोर थे, जिन्हें 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उनकी कविता, संगीत, नाटक और चित्राकला में उल्लेखनीय सृजनात्मकता ने शहर के सांस्कृतिक जीवन का समृद्ध किया।

कोलकाता पारम्परिक एवं समकालीन संगीत और नृत्य का भी केन्द्र है। 1937 में टैगोर ने कोलकाता में पहले अखिल बंगाल संगीत समारोह का उदघाटन किया था। तभी से प्रतिवर्ष यहाँ पर कई भारतीय शास्त्रीय संगीत समारोह आयोजित किए जाते हैं। कई शास्त्रीय नर्तकों का घर कोलकाता पारम्परिक नृत्य कला में पश्चिम की मंचीय तकनीक को अपनाने के उदय शंकर के प्रयोग का स्थल भी था। 1965 से उनके द्वारा स्थापित नृत्य, संगीत और नाटक शालाएँ शहर में विद्यमान हैं।

1870 के दशक में नेशनल थिएटर की स्थापना के साथ ही कोलकाता में व्यावसायिक नाटकों की शुरुआत हुई। शहर में नाटकों के आधुनिक रूपों की शुरुआत गिरीशचंद्र घोष और दीनबन्धु मित्र जैसे नाटककारों ने की। कोलकाता आज भी व्यावसायिक व शौक़िया रंगमंच और प्रयोगधर्मी नाटकों का एक महत्वपूर्ण केन्द्र है। यह शहर भारत में चलचित्र निर्माण का प्रारम्भिक केन्द्र भी रहा है। प्रयोगधर्मी फ़िल्म निर्देशक सत्यजीत राय और मृणाल सेन ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा पाई है। शहर में कई सिनेमाघर हैं, जिनमें नियमित रूप से अंग्रेज़ी, बांग्ला और हिन्दी फ़िल्में दिखाई जाती हैं।

मनोरंजन

कोलकाता नगर निगम 200 से अधिक बग़ीचों, चौराहों और खुले मैदानों की देखरेख करता है। हालाँकि शहर के भीड़ भरे हिस्सों में बहुत कम स्थान है। लगभग 3.2 किमी. लम्बा और 1.6 किमी. चौड़ा मैदान सबसे प्रसिद्ध खुला स्थान है। यहीं पर फुटबाल, क्रिकेट और हॉकी के प्रमुख मैदान हैं। मैदान से लगा हुआ है, विश्व के सबसे पुराने क्रिकेट मैदानों में से एक, ईडन गार्डस में रणजी स्टेडियम; चारदीवारी में खेले जाने वाले खेलों के लिए नेताजी स्टेडियम पास ही है। नगर के पूर्व में बने साल्ट लेक स्टेडियम में एक लाख दर्शक बैठ सकते हैं। शहर में दो घुड़दौड़ मैदान और दो गोल्फ़ मैदान हैं और नौका विहार के लिए लेक क्लब और बंगाल नौकायन संघ लोकप्रिय है। लगभग 20 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में चिड़ियाघर फैला हुआ है। गंगा नदी के पश्चिमी तट पर भारतीय वानस्पतिक उद्यान स्थित है। इसके वनस्पति संग्रहालयों में पौधों की लगभग 40 हज़ार प्रजातियाँ हैं।

इतिहास

प्रारम्भिक काल

कालीकाता नाम का उल्लेख मुग़ल बादशाह अकबर (शासन काल, 1556-1605) के राजस्व खाते में और बंगाली कवि बिप्रदास (1495) द्वारा रचित 'मनसामंगल' में भी मिलता है। एक ब्रिटिश बस्ती के रूप में कोलकाता का इतिहास 1690 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक अधिकारी जाब चार्नोक द्वारा यहाँ पर एक व्यापार चौकी की स्थापना से शुरू होता है। हुगली नदी के तट पर स्थित बंदरगाह को लेकर पूर्व में चार्नोक का मुग़ल साम्राज्य के अधिकारियों से विवाद हो गया था और उन्हें वह स्थान छोड़ने के लिए विवश कर दिया गया था। जिसके बाद उन्होंने नदी तट पर स्थित अन्य स्थानों पर स्वयं को स्थापित करने के कई असफल प्रयास किए। मुग़ल अधिकारियों ने ब्रिटिश कम्पनी के वाणिज्य से होने वाले लाभ को न खोने की चाह में जब चार्नोक को पुनः लौटने की अनुमति दी, तब उन्होंने कोलकाता को अपनी गतिविधियों के केन्द्र के रूप में चुना। स्थल का चुनाव सावधानीपूर्वक किया गया प्रतीत होता है, क्योंकि यह पश्चिम में हुगली नदी, उत्तर में ज्वार नद और पूर्व में लगभग चार किमी. की दूरी पर लवणीय झील द्वारा संरक्षित था। नदी के पश्चिमी तट पर ऊँचे स्थानो पर डच, फ़्राँसीसी व अन्य प्रतिद्वन्द्वियों की बस्तियाँ स्थित थीं। चूंकि यह हुगली के बंदरगाह पर स्थित था, इसलिए समुद्र से पहुँचने के मार्ग को कोई ख़तरा नहीं था। इस स्थल पर नदी चौड़ी और गहरी भी थी। केवल एक ही हानि थी कि यह अत्यन्त दलदली क्षेत्र था, जिससे यह जगह अस्वास्थ्यकार हो गई। इसके अतिरिक्त, अंग्रेज़ों के आने के पहले, तीन स्थानीय गाँवों, सुतानती, कालीकाता और गोबिन्दपुर, जो बाद में सामूहिक रूप में कोलकाता कहलाने लगे, का चयन उन भारतीय व्यापारियों के द्वारा बसने के लिए किया गया था, जो गाद से भरे सतगाँव के बंदरगाह से प्रवासित हुए थे। चार्नोक के स्थल चयन में इन व्यापारियों की उपस्थिति भी कुछ हद तक उत्तरदायी रही होगी।

1696 में निकटवर्ती बर्द्धमान ज़िले में एक विद्रोह होने तक मुग़ल प्रान्तीय प्रशासन का इस बढ़ती हुई बस्ती के प्रति दोस्ताना व्यवहार हो गया था। कम्पनी के कर्मचारियों ने जब व्यापार चौकी या फ़ैक्ट्री की क़िलेबन्दी की अनुमति माँगी, तब उनकी सुरक्षा की सामान्य शर्तों पर उन्हें इजाज़त दे दी गई। मुग़ल शासन ने विद्रोह को आसानी से दबा दिया, किन्तु उपनिवेशियों का ईंट व मिट्टी से बना सुरक्षात्मक ढाँचा वैसा ही बना रहा और 1700 में यह फ़ोर्ट विलियम कहलाया। 1698 में अंग्रेज़ों ने वे पत्र प्राप्त कर लिए, जिसने उन्हें तीन गाँवों के ज़मींदारी अधिकार (राजस्व संग्रहण का अधिकार, वास्तविक स्वामित्व) ख़रीदने का विशेषाधिकार प्रदान कर दिया।

शहर का विकास

1717 में मुग़ल बादशाह फ़र्रुख़सीयन ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को 3,000 रुपये वार्षिक भुगतान पर व्यापार की अनुमति दे दी। इस व्यवस्था ने कोलकाता के विकास को बहुत बढ़ावा दिया। बड़ी संख्या में भारतीय व्यापारी शहर में एकत्र होने लगे। कम्पनी के झण्डे के नीचे कम्पनी के कर्मचारी शुल्क-मुक्त निजी व्यापार करने लगे। 1742 में मराठों ने जब दक्षिण-पश्चिम से बंगाल के पश्चिमी­ज़िलों में मुग़लों के विरुद्ध आक्रमण शुरू किया, तब अंग्रेज़ों ने बंगाल के नवाब (शासक) अलीवर्दी ख़ाँ से शहर के उत्तरी और पूर्वी भाग में एक खाई खोदने की अनुमति प्राप्त कर ली। यह मराठा खाई के नाम से जानी गई। हालाँकि यह बस्ती के दक्षिण छोर तक पूरी तरह नहीं बन पाई, पर इसने शहर की पूर्वी सीमा का निर्माण किया।

1756 में नवाब के उत्तराधिकारी, सिराजुद्दौला ने क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया और शहर को लूटा। भारत में ब्रिटिश शक्ति के संस्थापकों में से एक राबर्ट क्लाइव और ब्रिटिश नौसेनाध्यक्ष चार्ल्स वाटसन ने जनवरी 1757 में कोलकाता पर फिर से अधिकार कर लिया। थोड़े समय के बाद पलासी (जून 1757) में नवाब हार गए। जिसके बाद बंगाल में ब्रिटिश राज सुनिश्चित हो गया। गोबिन्दपुर के जंगलों को काट दिया गया और हुगली की उपेक्षा कर वर्तमान स्थल कोलकाता पर नए फ़ोर्ट विलियम का निर्माण किया गया, जहाँ यह ब्रिटिश सत्तारोहण का प्रतीक बन गया। 1772 तक कोलकाता ब्रिटिश भारत की राजधानी नहीं बना, उस वर्ष प्रथम गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिग्ज़ ने प्रान्तीय मुग़ल राजधानी मुर्शिदाबाद से सभी महत्वपूर्ण कार्यालयों का स्थानान्तरण इस शहर में किया। 1773 में बंबई और मद्रास, फ़ोर्ट विलियम स्थित शासन के अधीन आ गए। ब्रिटिश क़ानून को लागू करने वाले उच्चतम न्यायालय ने अपना प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार शहर में मराठा खाई (वर्तमान आचार्य प्रफुल्ल चंद्र और जगदीश चंद्र बोस मार्गों) तक लागू करना प्रारम्भ कर दिया।

1706 में कोलकाता की जनसंख्या लगभग 10,000 से 12,000 थी। 1752 में यह लगभग 1,20,000 तक और 1821 में यह 1,80,000 तक पहुँची। श्वेत (ब्रिटिश) नगर का निर्माण उस भूमि पर किया गया, जो कई बार बसी और कई बार उजड़ी थी। ब्रिटिश भाग में इतने महल थे कि शहर का नाम ही 'महलों का शहर' पड़ गया। ब्रिटिश उपनगर के बाहर नवधनाढ्य लोगों के भव्य आवासों के साथ-साथ झोपड़ियों के समूह निर्मित किए गए। नगर के विभिन्न भागों के नाम, जैसे कुमारटुली (कुम्हारों का क्षेत्र) और सांकारीपाड़ा (शंख-सीप कारीगरों का क्षेत्र) अब भी अलग-थलग व्यावसायिक जातियों के लोगों को दर्शाते हैं, जो बढ़ते हुए महानगर के निवासी बन गए। दो अलग-अलग प्रजातियाँ, अंग्रेज़ और भारतीय, कोलकाता में एक साथ निवास करने लगीं।

उस समय कोलकाता को असुविधाजनक शहर माना जाता था। सड़कें बहुत ही कम थीं। जनकार्य में सुधार के लिए लाटरी के माध्यम से वित्त प्रबन्ध के लिए 1814 में एक लाटरी समिति का गठन किया गया, उसने हालत सुधारने के लिए 1814 से 1836 के बीच कई प्रभावी कार्य किए। 1814 में निगम की स्थापना की गई। यद्यपि 1864, 1867 और 1870 के चक्रवात ने निचले क्षेत्र में रह रहे ग़रीब लोगों को तबाह कर दिया। क्रमिक चरणों में जैसे-जैसे ब्रिटिश शक्ति का प्रायद्वीप में विस्तार होता गया, सम्पूर्ण उत्तर भारत कोलकाता बंदरगाह का पृष्ठ क्षेत्र बन गया। 1835 में आंतरिक चुंगी शुल्क समाप्त किए जाने से एक खुला बाज़ार निर्मित हुआ और रेलवे के निर्माण (प्रारम्भ 1854 में) ने व्यापार एवं उद्योग के विकास को और अधिक बढ़ावा दिया। इसी समय कोलकाता से पेशावर (अब पाकिस्तान) तक ग्रैंड ट्रंक रोड को पूरा किया गया। ब्रिटिश व्यापार, बैंकिग और बीमा व्यवसाय फले-फूले। कोलकाता का भारतीय उपक्षेत्र भी व्यवसाय का व्यस्त केन्द्र बन गया और भारत के सभी भागों और एशिया के कई अन्य भागों के लोगों से भर गया। कोलकाता प्रायद्वीप का बौद्धिक केन्द्र बन गया।

20वीं शताब्दी में कोलकाता

20वीं सदी में कोलकाता के दुर्भाग्य का उदय हुआ। भारत के वाइसराय लार्ड कर्जन ने 1905 में बंगाल को विभाजित किया व ढाका को पूर्व बंगाल और असम की राजधानी बनाया। विभाजन को रद्द करने के लिए तीव्र आन्दोलन किए गए। किन्तु 1912 में ब्रिटिश भारत की राजधानी कोलकाता से हटाकर दिल्ली लाई गई, जहाँ से सरकार अपेक्षाकृत शान्ति से चल सकती थी। 1947 में बंगाल का विभाजन अन्तिम प्रहार था। चूंकि कोलकाता की जनसंख्या बढ़ गई थी, यहाँ सामाजिक समस्याएँ भी तीव्र हो गईं और भारत के लिए स्वशासन की माँग भी। 1926 में साम्प्रदायिक दंगे हुए और जब 1930 में महात्मा गांधी ने अन्यायपूर्ण क़ानूनों की अवज्ञा करने का आह्वान किया, तब फिर से दंगे हुए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कोलकाता बंदरगाह पर हुए जापानी हवाई हमलों से बहुत नुकसान हुआ और जनहानि भी हुई। सबसे भयानक साम्प्रदायिक दंगे 1946 में हुए, जब ब्रिटिश भारत का विभाजन तय था और मुसलमानों और हिन्दुओं के बीच तनाव चरम पर था।

1947 में बंगाल के भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन से कोलकाता बहुत पिछड़ गया, क्योंकि यह अपने पूर्व पृष्ठभाग के एक हिस्से का व्यापार खोकर, केवल पश्चिम बंगाल की राजधानी बनकर रह गया। इसी समय पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्ला देश) से हज़ारों शरणार्थी कोलकाता आ गए, जिससे सामाजिक समस्याएँ व जनसंख्या और भी बढ़ गई, जो पहले ही चिंताजनक अनुपात में पहुँच चुकी थी। 1960 के दशक के मध्य तक आर्थिक गतिहीनता ने नगर के सामाजिक व राजनीतिक जीवन में अस्थिरता को बढ़ा दिया और शहर से पूँजी के निकास को बढ़ावा दिया। राज्य शासन ने कई कम्पनियों का प्रबन्ध अपने हाथों में लिया। विशेषकर 1980 के दशक में बड़ी संख्या में लोक निर्माण कार्यक्रम और केन्द्रीकृत क्षेत्रीय योजनाओं ने शहर की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के सुधार में योगदान दिया।

जनसंख्या

कोलकाता की जनसंख्या (2001 की गणना के अनुसार) 45,80,544 है।