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'''गन्धर्व''' [[वेद|वेदों]] में अकेला [[देवता]] था, जो स्वर्ग के रहस्यों तथा अन्य सत्यों का उद्घाटन किया करता था। वह सूर्याग्नि का प्रतीक भी माना गया है। वैदिक, [[जैन धर्म|जैन]], [[बौद्ध धर्म]] [[ग्रन्थ|ग्रन्थों]] में आदि में गन्धर्व और [[यक्ष|यक्षों]] की उपस्थिति बताई गई है। गन्धर्वों का अपना लोक है। पौराणिक साहित्य में गन्धर्वों का एक देवोपम जाति के रूप में उल्लेख हुआ है।
*गंधर्व [[यक्ष]], राक्षस, पिशच, [[सिद्ध |सिद्ध]], चारण, [[नाग]], किंनर आदि अंतराभसत्व <ref>शाश्वतकोश १०१</ref> में स्थित देवयोनियों में गंधर्वो की भी गणना है। <ref>[[अमरकोश]],१, २ ; क्षीरस्वामी : गंधर्वास्तुम्बुरुप्रभृतय: देवयोनय:; [[भागवत]], ३,३,११</ref>
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==नामकरण==
*गंधर्व शब्द की क्लिष्ट कल्पनाओं पर आश्रित अनेक व्युत्पत्तियाँ प्राचीन और अर्वाचीन विद्वानों ने दी हैं।
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जब गन्धर्व-संज्ञा जातिपरक हो गई, तब गन्धर्वों का अंतरिक्ष में निवास माना जाने लगा और वे [[देवता|देवताओं]] के लिए [[सोम रस]] प्रस्तुत करने लगे। नारियों के प्रति उनका विशेष अनुराग था और उनके ऊपर वे जादू-सा प्रभाव डाल सकते थे। [[अथर्ववेद]] में ही उनकी संख्या 6333 बतायी गई है। सोम रस के अतिरिक्त उनका सम्बन्ध औषधियों से भी था। वे देवताओं के गायक भी थे, इस रूप में [[इन्द्र]] के वे अनुचर माने जाते थे। [[विष्णु पुराण]] के अनुसार वे [[ब्रह्मा]] के पुत्र थे और चूँकि वे [[वाग्देवी|माँ वाग्देवी]] का पाठ करते हुए जन्मे थे, उनका नाम गन्धर्व पड़ा।
*सायण ने दो स्थानों पर <ref>[[ऋग्वेद]] ८,७७,५ और १,१६२,२</ref> दो प्रकार की व्याख्याएँ की हैं-प्रथम गानुदकं धारयतीति गंधवोमेघ और द्वितीय गवां रश्मीनां धर्तारं सूर्य।
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====पौराणिक उल्लेख====
*फ्रेंच विक्षन प्रिजुलुस्की <ref>इंडियन कल्चर ३,६१३-६२०</ref> में गंधर्वों का संबंध गर्दभों से जोड़ा है, क्योंकि गंधर्व गर्दभनादिन्‌ <ref>[[अथर्ववेद]] ८, ६</ref> हैं एवं गंर्दभों के समान ही गंधर्वो की कामुकता का वर्णन है।  
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विष्णु पुराण का ही उल्लेख है कि, वे [[कश्यप]] और उनकी पत्नी [[अरिष्टा]] से जन्मे थे। [[हरिवंशपुराण]] उन्हें ब्रह्मा की नाक से उत्पन्न होने का उल्लेख करता है। गन्धर्वों का प्रधान [[चित्ररथ गंधर्व|चित्ररथ]] था और उनकी पत्नियाँ [[अप्सरा|अप्सराएं]] थीं। विष्णुपुराण में कथा आयी है कि किस प्रकार गन्धर्वों ने पाताल के [[नाग|नागों]] से युद्ध कर उनका अनन्त धन और नगर छीन लिया था। नागों की प्रार्थना पर [[विष्णु]] ने पुरुकुत्स के रूप में जन्म लेकर उनकी रक्षा करने का वचन दिया। इस पर नागों ने अपनी भगिनी नर्मदा के साथ पाताल लोक जाकर गन्धर्वों का पराभव किया।
*एक परंपरा उज्जयिनि के राजा गंधर्वसेन को गर्दभिल्ल कहती है।  
 
*ये सारी व्युत्पत्तियाँ दूरारूढ़ कल्पनाजन्य हैं। <ref>खंडन के लिए देखिए, आ. बे. कीथ : ए न्यू एक्सप्लेनेशन ऑव द गंधर्वाज़, जर्नल ऑव इंडियन सोसाइटी ऑव ओरिएंटल आर्ट, ५, ३२-३९</ref>
 
*साधारणत: मान्य वयुत्पत्ति है-गंध संगीत वाद्यादिजनित प्रमोदं अर्वति प्राप्नोति गंधर्व: स्वर्गगायक: (शब्दकल्पद्रुम)।
 
*गंध और गंधर्व की सगंधता <ref>अथर्ववेद (१२,१,२,३)</ref> में भी व्यंजित है, फिर भी संगीतवाद्यदिजनित प्रमोद गंध का साधारण अर्थ नहीं, इसलिए यह व्युत्पत्ति भी संतोषप्रद नहीं।
 
*कुछ विद्वान ग्रीक केंतोरों (Kentauros) [[ईरान|ईरानी]] गंधरव, [[संस्कृत]] गंधर्व तथा पाली गंधब्ब को एक ही स्रोत से नि:सृत मानते हैं।
 
*[[ऋग्वेद]] में गंधर्व वायुकेश <ref>ऋक्‌ ३, ३८, ६</ref> सोमरक्षक, मधुर-भाषी <ref>तुलनीय, अथर्ववेद, २०, १२८, ३</ref>, संगीतज्ञ, <ref>ऋ० १०,११</ref> और स्त्रियों के ऊपर अतिप्राकृत रूप से प्रभविष्णु बतलाए गए हैं।
 
*अथर्ववेद <ref>अथर्ववेद (२,५,२)</ref> में गंधर्वों की गणना देवजन, पृथग्देव और पितरों के साथ की गई है।  
 
*विवाहसूक्त <ref>अथर्ववेद १४, २, ३४-३६</ref> में नवविवाहित दंपति के लिए गंधर्वों के आशीर्वचन की याचना की गई हैं।
 
*सिर पर शिखंड धारण किए अप्सराओं के पति गंधर्वों के नृत्यों का अनेकश: वर्णन है। <ref>आनृत्यत: शिखंडिन: गंधर्वस्याप्सरापते: ५,३७,७</ref>
 
*उनके हाथों में लोहे के भाले और भीम आयुध है 5,37,8 ।
 
*प्राचीन शिलालेखों में <ref>यथा राज्ञी बालश्री का नासिक में उपलब्ध अभिलेख, पंक्तियाँ 8-9, तालगुंड स्तंभाभिलेख, पद्य ३३ आदि में</ref> गंधर्वों के उल्लेख हैं, किंतु प्रतिमाओं से ही कुछ विशिष्ट सूचनाएँ उनके विषय में उपलब्ध होती हैं।
 
*विष्णुधार्मोतर पुराण <ref>विष्णुधार्मोतर पुराण ३,४२</ref> में उनके लिए शिखर से शोभित किंतु मुकुट से विरहित प्रतिमाओं का विधान है।
 
*[[मथुरा]], [[गांधार]], [[गुप्त]], [[चालुक्य]] और [[पल्लव]] कला केंद्रों में इनकी प्रतिमाएँ कुछ विभिन्नताओं के साथ मिलती हैं। <ref>द्रष्टव्य, आर. एस. पंचमुखी, गंधर्वाज़ ऐंड किन्नराज इन इंडियन आइकोनोग्राफ़ी, ३१-४९</ref><ref>मानसार ५८, ९-१०</ref>
 
*उनकी प्रतिमाओं की विशेषताओं का समाहार करता हुआ लिखता है : नृतं वा वैष्णंव वापि वैशाखं स्थानकंतु वा। गीतावीणा-विधानैश्च गंधर्वाश्चेति कथ्यते। [[रामायण]], [[महाभारत]] और [[पुराण|पुराणों]] में वे देवगायकों के रूप में चित्रित किए गए।
 
*[[जैन]] परंपरा में गंधर्वों को किंपुरु ष, महोरग आदि के साथ व्यंतरलोक के देवों के रूप में स्वीकार किया गया। <ref>द्र., कपाडिया, जाइगैंटिक फ़ेबुलस ऐनिमल्स इन जैन लिटरेचर, न्यू इंडियन ऐंटीक्वेरी, १९४६</ref> [[बौद्ध]]  
 
*अवदानों और जातकों में गंधर्वों के बहुविध उल्लेख हैं। <ref>ओ. एच. द. ए. विजेसेकर : वेदिक गंधर्व ऐंड पाली गंधब्ब, यूनीवर्सिटी ऑव सीलोन रिव्यू, ३ भी द्रष्टव्य है </ref>
 
*संगीतशास्त्र से प्रधानत: संबद्ध गंधर्वों की कल्पना ने तक्षण और [[वास्तुकला]] में अभिनव सौंदर्योंपचायक अभिप्रायों की अभिवृद्धि की।
 
*[[महाकाव्य]] और कथाओं में, विशेषत: पूर्वमध्ययुगीन जैन कथाओं में, विद्याधर और यक्षों के साथ गंधर्वकल्पना अतिरंजित, हृद्य और काल्पनिक कथावृत्तों के सर्जन और गुंफन में सहायक हुई।
 
  
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गंधर्व शब्द का प्रयोग पौराणिक विभिन्न संदर्भों में भी हुआ है, जैसे [[यक्ष]], राक्षस, पिशाच, [[सिद्ध |सिद्ध]], चारण, [[नाग]], किंन्नर आदि। अंतराभसत्व<ref>शाश्वतकोश, 101</ref> में स्थित देवयोनियों में गंधर्वो की भी गणना है।<ref>[[अमरकोश]],1, 2 ; क्षीरस्वामी : गंधर्वास्तुम्बुरुप्रभृतय: देवयोनय:; [[भागवत]], 3,3,11</ref> गंधर्व शब्द की क्लिष्ट कल्पनाओं पर आश्रित अनेक व्युत्पत्तियाँ प्राचीन और अर्वाचीन विद्वानों ने दी हैं। [[सायण]] ने दो स्थानों पर <ref>[[ऋग्वेद]] 8,77,5 और 1,162,2</ref> दो प्रकार की व्याख्याएँ की हैं- प्रथम 'गानुदकं धारयतीति गंधवोमेघ' और द्वितीय 'गवां रश्मीनां धर्तारं सूर्य।' फ्रेंच विद्वान् प्रिजुलुस्की की 'इंडियन कल्चर' पुस्तक में<ref>प्रिजुलुस्की, इंडियन कल्चर 3,613-620</ref> में गंधर्वों का संबंध गर्दभों से जोड़ा है, क्योंकि 'गंधर्व गर्दभनादिन्‌'<ref>[[अथर्ववेद]] 8, 6</ref> हैं एवं गंर्दभों के समान ही गंधर्वो की कामुकता का वर्णन है।
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==संगीत व ललित कला==
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गन्धर्वों के दूसरे नाम 'गातु' और 'पुलम' भी हैं। [[महाभारत]] में गन्धर्व नाम की एक ऐसी जाति का भी उल्लेख हुआ है, जो पहाड़ों और जंगलों में रहती थी। गन्धर्वों की रागबद्धता और संगीनतय जीवन तथा ललित कलाओं से उनके सम्बन्ध के उल्लेख से [[संस्कृत साहित्य]] भरा है, और [[अजन्ता की गुफा|अजन्ता]] आदि के भित्ति चित्रों में गगनचारी गन्धर्वों का बार-बार चित्रांकन भी हुआ है। प्राचीन भारतीय जनता का विश्वास जैसे भूतों और यखों (यक्षों) में था, वैसे ही इन गन्धर्वों में भी था। आज भी नर्तकियों के सम्बन्धी और उनके यह कलाकार अपने को गन्धर्व कहते हैं।
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*[[महाभारत]] के अनुसार [[अर्जुन]] गन्धर्वों से अस्त्र-शस्त्र प्राप्त करता है। उनसे अश्व प्राप्त करता है। [[कीचक]] का एक गन्धर्व वध करता है। [[ययाति]] से प्रश्न किया गया कि, क्या वह गन्धर्व है। चित्ररथ (अंगार पर्व) में अनेक गन्धर्वों के नाम गिनाए गए हैं।<ref>[[महाभारत]]., आदिपर्व, अध्याय 73, 10, 170 172, 225, वनपर्व, अध्याय 233, विराट्पर्व, अध्याय 22, 23, 71, उदयोग पर्व अध्याय 121.</ref>
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==मत-मतान्तर==
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एक परंपरा [[उज्जयिनि]] के राजा गंधर्वसेन को 'गर्दभिल्ल' कहती है। ये सारी व्युत्पत्तियाँ दूरारूढ़ कल्पनाजन्य हैं।<ref>आ. बे. कीथ : ए न्यू एक्सप्लेनेशन ऑव द गंधर्वाज़, जर्नल ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट, 5, 32-39</ref> साधारणत: मान्य व्युत्पत्ति है- 'गंध संगीत वाद्यादिजनित प्रमोदं अर्वति प्राप्नोति गंधर्व: स्वर्गगायक:।<ref>शब्दकल्पद्रुम</ref> गंध और गंधर्व की सगंधता<ref>अथर्ववेद 12,1,2,3</ref> में भी व्यंजित है, फिर भी संगीतवाद्यदिजनित प्रमोद गंध का साधारण अर्थ नहीं, इसलिए यह व्युत्पत्ति भी संतोषप्रद नहीं। कुछ विद्वान् ग्रीक केंतोरों [[ईरान|ईरानी]] 'गंधरव', [[संस्कृत]] 'गंधर्व' तथा [[पालि भाषा|पालि]] 'गंधब्ब' को एक ही स्रोत से नि:सृत मानते हैं।[[ऋग्वेद]] में गंधर्व वायुकेश<ref>ऋग्वेद 3, 38, 6</ref> सोमरक्षक, मधुर-भाषी<ref>तुलनीय, अथर्ववेद, 20, 128, 3</ref>, संगीतज्ञ<ref>ऋग्वेद  10,11</ref> और स्त्रियों के ऊपर अतिप्राकृत रूप से प्रभविष्णु बतलाए गए हैं। [[अथर्ववेद]]<ref>अथर्ववेद (2,5,2)</ref> में गंधर्वों की गणना देवजन, पृथग्देव और पितरों के साथ की गई है। विवाहसूक्त<ref>अथर्ववेद 14, 2, 34-36</ref> में नवविवाहित दंपति के लिए गंधर्वों के आशीर्वचन की याचना की गई हैं। सिर पर शिखंड धारण किए अप्सराओं के पति गंधर्वों के नृत्यों का अनेकश: वर्णन है।<ref>आनृत्यत: शिखंडिन: गंधर्वस्याप्सरापते: अथर्ववेद, 5,37,7</ref> उनके हाथों में लोहे के भाले और भीम आयुध है।<ref>अथर्ववेद, 5,37,8 </ref>
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====शिलालेख वर्णन====
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प्राचीन शिलालेखों में<ref>यथा राज्ञी बालश्री का नासिक में उपलब्ध अभिलेख, पंक्तियाँ 8-9, तालगुंड स्तंभाभिलेख, पद्य 33 आदि में</ref> गंधर्वों के उल्लेख हैं, किंतु प्रतिमाओं से ही कुछ विशिष्ट सूचनाएँ उनके विषय में उपलब्ध होती हैं। विष्णुधार्मोत्तर पुराण<ref>विष्णुधार्मोतर पुराण 3,42</ref> में उनके लिए शिखर से शोभित किंतु मुकुट से विरहित प्रतिमाओं का विधान है। [[मथुरा]], [[गांधार]], [[गुप्त]], [[चालुक्य]] और [[पल्लव]] कला केंद्रों में इनकी प्रतिमाएँ कुछ विभिन्नताओं के साथ मिलती हैं।<ref>आर. एस. पंचमुखी, 'गंधर्वाज़ ऐंड किन्नराज इन इंडियन आइकोनोग्राफ़ी', 31-49</ref> मानसार<ref>मानसार 58, 9-10</ref> उनकी प्रतिमाओं की विशेषताओं का समाहार करता हुआ लिखता है-
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गीतावीणा-विधानैश्च गंधर्वाश्चेति कथ्यते।</poem></blockquote>
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[[रामायण]], [[महाभारत]] और [[पुराण|पुराणों]] में गन्धर्व देवगायकों के रूप में चित्रित किए गए हैं। [[जैन]] परंपरा में गंधर्वों को 'किंपुरुष, महोरग' आदि के साथ व्यंतरलोक के [[देवता|देवों]] के रूप में स्वीकार किया गया।<ref>कपाडिया, जाइगैंटिक फ़ेबुलस ऐनिमल्स इन जैन लिटरेचर, न्यू इंडियन ऐंटीक्वेरी, 1946</ref> [[बौद्ध]] अवदानों और जातकों में गंधर्वों के बहुविध उल्लेख हैं।<ref>ओ. एच. द. ए. विजेसेकर : वेदिक गंधर्व ऐंड पाली गंधब्ब, यूनीवर्सिटी ऑव सीलोन रिव्यू, 3 भी द्रष्टव्य है</ref> संगीतशास्त्र से प्रधानत: संबद्ध गंधर्वों की कल्पना ने तक्षण और [[वास्तुकला]] में अभिनव सौंदर्योंपचायक अभिप्रायों की अभिवृद्धि की। [[महाकाव्य]] और कथाओं में, विशेषत: पूर्वमध्ययुगीन [[जैन]] कथाओं में, [[विद्याधर]] और [[यक्ष|यक्षों]] के साथ गंधर्वकल्पना अतिरंजित, [[हृदय]] और काल्पनिक कथावृत्तों के सर्जन और गुंफन में सहायक हुई।
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14:21, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

गन्धर्व वेदों में अकेला देवता था, जो स्वर्ग के रहस्यों तथा अन्य सत्यों का उद्घाटन किया करता था। वह सूर्याग्नि का प्रतीक भी माना गया है। वैदिक, जैन, बौद्ध धर्म ग्रन्थों में आदि में गन्धर्व और यक्षों की उपस्थिति बताई गई है। गन्धर्वों का अपना लोक है। पौराणिक साहित्य में गन्धर्वों का एक देवोपम जाति के रूप में उल्लेख हुआ है।

नामकरण

जब गन्धर्व-संज्ञा जातिपरक हो गई, तब गन्धर्वों का अंतरिक्ष में निवास माना जाने लगा और वे देवताओं के लिए सोम रस प्रस्तुत करने लगे। नारियों के प्रति उनका विशेष अनुराग था और उनके ऊपर वे जादू-सा प्रभाव डाल सकते थे। अथर्ववेद में ही उनकी संख्या 6333 बतायी गई है। सोम रस के अतिरिक्त उनका सम्बन्ध औषधियों से भी था। वे देवताओं के गायक भी थे, इस रूप में इन्द्र के वे अनुचर माने जाते थे। विष्णु पुराण के अनुसार वे ब्रह्मा के पुत्र थे और चूँकि वे माँ वाग्देवी का पाठ करते हुए जन्मे थे, उनका नाम गन्धर्व पड़ा।

पौराणिक उल्लेख

विष्णु पुराण का ही उल्लेख है कि, वे कश्यप और उनकी पत्नी अरिष्टा से जन्मे थे। हरिवंशपुराण उन्हें ब्रह्मा की नाक से उत्पन्न होने का उल्लेख करता है। गन्धर्वों का प्रधान चित्ररथ था और उनकी पत्नियाँ अप्सराएं थीं। विष्णुपुराण में कथा आयी है कि किस प्रकार गन्धर्वों ने पाताल के नागों से युद्ध कर उनका अनन्त धन और नगर छीन लिया था। नागों की प्रार्थना पर विष्णु ने पुरुकुत्स के रूप में जन्म लेकर उनकी रक्षा करने का वचन दिया। इस पर नागों ने अपनी भगिनी नर्मदा के साथ पाताल लोक जाकर गन्धर्वों का पराभव किया।

गंधर्व शब्द का प्रयोग पौराणिक विभिन्न संदर्भों में भी हुआ है, जैसे यक्ष, राक्षस, पिशाच, सिद्ध, चारण, नाग, किंन्नर आदि। अंतराभसत्व[1] में स्थित देवयोनियों में गंधर्वो की भी गणना है।[2] गंधर्व शब्द की क्लिष्ट कल्पनाओं पर आश्रित अनेक व्युत्पत्तियाँ प्राचीन और अर्वाचीन विद्वानों ने दी हैं। सायण ने दो स्थानों पर [3] दो प्रकार की व्याख्याएँ की हैं- प्रथम 'गानुदकं धारयतीति गंधवोमेघ' और द्वितीय 'गवां रश्मीनां धर्तारं सूर्य।' फ्रेंच विद्वान् प्रिजुलुस्की की 'इंडियन कल्चर' पुस्तक में[4] में गंधर्वों का संबंध गर्दभों से जोड़ा है, क्योंकि 'गंधर्व गर्दभनादिन्‌'[5] हैं एवं गंर्दभों के समान ही गंधर्वो की कामुकता का वर्णन है।

संगीत व ललित कला

गन्धर्वों के दूसरे नाम 'गातु' और 'पुलम' भी हैं। महाभारत में गन्धर्व नाम की एक ऐसी जाति का भी उल्लेख हुआ है, जो पहाड़ों और जंगलों में रहती थी। गन्धर्वों की रागबद्धता और संगीनतय जीवन तथा ललित कलाओं से उनके सम्बन्ध के उल्लेख से संस्कृत साहित्य भरा है, और अजन्ता आदि के भित्ति चित्रों में गगनचारी गन्धर्वों का बार-बार चित्रांकन भी हुआ है। प्राचीन भारतीय जनता का विश्वास जैसे भूतों और यखों (यक्षों) में था, वैसे ही इन गन्धर्वों में भी था। आज भी नर्तकियों के सम्बन्धी और उनके यह कलाकार अपने को गन्धर्व कहते हैं।

  • महाभारत के अनुसार अर्जुन गन्धर्वों से अस्त्र-शस्त्र प्राप्त करता है। उनसे अश्व प्राप्त करता है। कीचक का एक गन्धर्व वध करता है। ययाति से प्रश्न किया गया कि, क्या वह गन्धर्व है। चित्ररथ (अंगार पर्व) में अनेक गन्धर्वों के नाम गिनाए गए हैं।[6]

मत-मतान्तर

एक परंपरा उज्जयिनि के राजा गंधर्वसेन को 'गर्दभिल्ल' कहती है। ये सारी व्युत्पत्तियाँ दूरारूढ़ कल्पनाजन्य हैं।[7] साधारणत: मान्य व्युत्पत्ति है- 'गंध संगीत वाद्यादिजनित प्रमोदं अर्वति प्राप्नोति गंधर्व: स्वर्गगायक:।[8] गंध और गंधर्व की सगंधता[9] में भी व्यंजित है, फिर भी संगीतवाद्यदिजनित प्रमोद गंध का साधारण अर्थ नहीं, इसलिए यह व्युत्पत्ति भी संतोषप्रद नहीं। कुछ विद्वान् ग्रीक केंतोरों ईरानी 'गंधरव', संस्कृत 'गंधर्व' तथा पालि 'गंधब्ब' को एक ही स्रोत से नि:सृत मानते हैं।ऋग्वेद में गंधर्व वायुकेश[10] सोमरक्षक, मधुर-भाषी[11], संगीतज्ञ[12] और स्त्रियों के ऊपर अतिप्राकृत रूप से प्रभविष्णु बतलाए गए हैं। अथर्ववेद[13] में गंधर्वों की गणना देवजन, पृथग्देव और पितरों के साथ की गई है। विवाहसूक्त[14] में नवविवाहित दंपति के लिए गंधर्वों के आशीर्वचन की याचना की गई हैं। सिर पर शिखंड धारण किए अप्सराओं के पति गंधर्वों के नृत्यों का अनेकश: वर्णन है।[15] उनके हाथों में लोहे के भाले और भीम आयुध है।[16]

शिलालेख वर्णन

प्राचीन शिलालेखों में[17] गंधर्वों के उल्लेख हैं, किंतु प्रतिमाओं से ही कुछ विशिष्ट सूचनाएँ उनके विषय में उपलब्ध होती हैं। विष्णुधार्मोत्तर पुराण[18] में उनके लिए शिखर से शोभित किंतु मुकुट से विरहित प्रतिमाओं का विधान है। मथुरा, गांधार, गुप्त, चालुक्य और पल्लव कला केंद्रों में इनकी प्रतिमाएँ कुछ विभिन्नताओं के साथ मिलती हैं।[19] मानसार[20] उनकी प्रतिमाओं की विशेषताओं का समाहार करता हुआ लिखता है-

नृतं वा वैष्णंव वापि वैशाखं स्थानकंतु वा।
गीतावीणा-विधानैश्च गंधर्वाश्चेति कथ्यते।

अन्य मत

रामायण, महाभारत और पुराणों में गन्धर्व देवगायकों के रूप में चित्रित किए गए हैं। जैन परंपरा में गंधर्वों को 'किंपुरुष, महोरग' आदि के साथ व्यंतरलोक के देवों के रूप में स्वीकार किया गया।[21] बौद्ध अवदानों और जातकों में गंधर्वों के बहुविध उल्लेख हैं।[22] संगीतशास्त्र से प्रधानत: संबद्ध गंधर्वों की कल्पना ने तक्षण और वास्तुकला में अभिनव सौंदर्योंपचायक अभिप्रायों की अभिवृद्धि की। महाकाव्य और कथाओं में, विशेषत: पूर्वमध्ययुगीन जैन कथाओं में, विद्याधर और यक्षों के साथ गंधर्वकल्पना अतिरंजित, हृदय और काल्पनिक कथावृत्तों के सर्जन और गुंफन में सहायक हुई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शाश्वतकोश, 101
  2. अमरकोश,1, 2 ; क्षीरस्वामी : गंधर्वास्तुम्बुरुप्रभृतय: देवयोनय:; भागवत, 3,3,11
  3. ऋग्वेद 8,77,5 और 1,162,2
  4. प्रिजुलुस्की, इंडियन कल्चर 3,613-620
  5. अथर्ववेद 8, 6
  6. महाभारत., आदिपर्व, अध्याय 73, 10, 170 172, 225, वनपर्व, अध्याय 233, विराट्पर्व, अध्याय 22, 23, 71, उदयोग पर्व अध्याय 121.
  7. आ. बे. कीथ : ए न्यू एक्सप्लेनेशन ऑव द गंधर्वाज़, जर्नल ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट, 5, 32-39
  8. शब्दकल्पद्रुम
  9. अथर्ववेद 12,1,2,3
  10. ऋग्वेद 3, 38, 6
  11. तुलनीय, अथर्ववेद, 20, 128, 3
  12. ऋग्वेद 10,11
  13. अथर्ववेद (2,5,2)
  14. अथर्ववेद 14, 2, 34-36
  15. आनृत्यत: शिखंडिन: गंधर्वस्याप्सरापते: अथर्ववेद, 5,37,7
  16. अथर्ववेद, 5,37,8
  17. यथा राज्ञी बालश्री का नासिक में उपलब्ध अभिलेख, पंक्तियाँ 8-9, तालगुंड स्तंभाभिलेख, पद्य 33 आदि में
  18. विष्णुधार्मोतर पुराण 3,42
  19. आर. एस. पंचमुखी, 'गंधर्वाज़ ऐंड किन्नराज इन इंडियन आइकोनोग्राफ़ी', 31-49
  20. मानसार 58, 9-10
  21. कपाडिया, जाइगैंटिक फ़ेबुलस ऐनिमल्स इन जैन लिटरेचर, न्यू इंडियन ऐंटीक्वेरी, 1946
  22. ओ. एच. द. ए. विजेसेकर : वेदिक गंधर्व ऐंड पाली गंधब्ब, यूनीवर्सिटी ऑव सीलोन रिव्यू, 3 भी द्रष्टव्य है

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