गगनेन्द्रनाथ टैगोर

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गगनेन्द्रनाथ टैगोर (अंग्रेज़ी: Gaganendranath Tagore, जन्म- 17 सितम्बर, 1867, कलकत्ता, पश्चिम बंगाल; मृत्यु- 1938) प्रसिद्ध भारतीय व्यंग्य चित्रकार (कार्टूनिस्ट) थे। वे अवनीन्द्रनाथ टैगोर के बड़े भाई और रविन्द्रनाथ टैगोर के भतीजे थे। गगनेन्द्रनाथ टैगोर और उनके भाई अवनीन्द्रनाथ भारत के आधुनिक कलाकारों में अग्रणी थे। उन्होंने भारतीय चित्रकला की महफिल में विदेशी रंग भरकर उसे घर-घर में परिचित करवाया। गगनेन्द्रनाथ भारतीय कार्टून जगत के अग्रदूतों में एक थे। चित्रकारी में तो उन्होंने महारथ हासिल की ही थी, वहीं कार्टून बनाने में भी उनके मुकाबले कोई नहीं था। 1915 से लेकर 1922 तक गगनेन्द्रनाथ के सवश्रेष्ठ कार्टूनों का निदर्शन पूरी दुनिया को देखने को मिला। उनके कार्टूनों में उस समय की विडंबनाओं का अत्यधिक चित्र अंकित था।

परिचय

गगनेन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 17 सितम्बर सन 1867 को ब्रिटिशकालीन भारत में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में जोरासांको के ठाकुर परिवार में हुआ था। इस परिवार की सृजनशीलता ने पूरे बंगाल की संस्कृति को नया रूप दिया। गगनेन्द्रनाथ टैगोर के पिता गुणेद्रनाथ टैगोर युवराज द्वारिकानाथ टैगोर के पोते थे। बंगाल की प्रगति व विकास में द्वारिका की अहम भुमिका रही। देखा जाए तो गगनेन्द्रनाथ ने किसी प्रकार की स्कूली शिक्षा नहीं ली थी और न ही उन्होंने किसी गुणी-ज्ञानी जैसी पढ़ाई की, लेकिन जलछविकार हरिनारायण बंदोपाध्याय से उन्हें प्रशिक्षण मिला। इसके बाद वे कला में परिपक्व होते गए।

इंडियन सोसाइटी ऑफ़ ओरियंटल आर्ट' की स्थापना

सन 1907 में अपने भाई अवनींद्रनाथ के साथ मिल कर गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने 'इंडियन सोसाइटी ऑफ़ ओरियंटल आर्ट' की स्थापना की। इसके बाद उनकी एक पत्रिका 'रूपम' प्रकाशित हुई, जो लोगों को अच्छी लगी। 1906 से 1910 के बीच गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने जापानी ब्रश तकनीक व अपने काम में सुदूर पूर्वी कला के प्रभाव का अध्ययन किया। कुछ सीखने की जिज्ञासा ने उन्हें विशेष ज्ञान दिलाया। विश्व कवि रविन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी 'जीवनस्मृति' से उनके कुछ कर दिखाने की जिद व सीखने की चाह ने उन्हें शिखर पर पहुंचा दिया। इसके बाद गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी दिशा बदल ली और व्यंग्यात्मक संसार की ओर कदम बढ़ा दिया।

व्यंग्य चित्र शृंखला

1917 में 'माडर्म रिव्यू' में गगनेन्द्रनाथ टैगोर के कुछ व्यंग चित्र प्रकाशित हुए। यह उनकी जिंदगी में एक नया मोड़ था। उस समय उनके व्यंग्य चित्र कुछ पुस्तकों की शृंखला में दिखाई दिए, जैसे- 'प्ले ऑफ़', 'रिल्म ऑफ़ द एब्सर्ड एंड रिफर्म सीम्स'। 1915 से लेकर 1922 तक गगनेन्द्रनाथ के सवश्रेष्ठ कार्टूनों का निदर्शन पूरी दुनिया को देखने को मिला। उनके कार्टूनों में उस समय की विडंबनाओं का आत्यधिक चित्र अंकित था। पंजाब के दर्दनाक जलियांवाला बाग़ के कांड पर आधारित उनकी कार्टून 'पीस रिस्टोर्ड इन पंजाब' (पंजाब में अमन की वापसी) एक कार्टून कलाकार का अतुल्य साहस था और समाज पर हो रहे अत्याचार को बरदाश्त न करने के भाव ने इसने समकालीन दर्शकों पर छाप छोड़ दिया। गगनेन्द्रनाथ टैगोर की कार्टून सीरीज 'दी स्ट्रीम' मील का पत्थर है।

चित्रकला अध्याय

पार्थ मित्तर गगनेन्द्रनाथ टैगोर के बारे में कहते हैं- "पश्चिम के प्रभाव से लुप्त बंगला संस्कृति सभी के व्यंग्य का मुख्य विषय थी। तो भला गगनेन्द्रनाथ इससे कैसे पीछे हटते। उनकी असाधारण चित्रकलाओं को 1917 के बाद तीन अध्याय में संजोया गया। वे हैं-

  1. विरूप बज्र (प्ले ऑफ़ अपोजिट)
  2. नव हुल्लोड़ (रिफार्म सीम्स)
  3. अद्भुत लोक (रिल्म ऑफ़ एवसर्ड)


इसके अलावा उन्होंने कुछ राजनीतिक व्यंग्य चित्र भी बनाए, हालांकि उनकी सामाजिक व्यंग्य में इतनी सच्चाई होती थी कि व्यंग्य के तीरों से कोई भी अन्यायी-अत्याचारी घायल हो जाता था। वे समाज की सड़ी-गली रीतियों का व्यंग्यात्मक तरीके से वर्णन करते थे। उनमें पाश्चात्य सज्यता की झलक दिखाई पड़ती थी। 1920 से 1925 के बीच उन्होंने आधुनिकतावादी चित्रकला संसार में नये प्रयोग किए। इसलिए पार्थ मित्तर कहते हैं कि 1940 के दशक से पहले वे अकेले भारतीय चित्रकार थे, जिन्होंने भाषा का इस्तेमाल बड़े ही रोचक ढंग से किया। उनके कार्टून के साथ शब्दों की युगलबंदी नासूर का काम करती थी। किताब: 'नाट्यशाला' के साथ उनका रिश्ता बहुत ही गहरा एवं बेहद अटूट था। बच्चों के लिए उनके मन में अपार स्नेह व श्रद्धा थी।उन्होंने बच्चों के लिए 'वोंदर बाहादुर' नामक पुस्तक की रचना भी कर डाली।


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