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*वर्तमान समय के तंजोर, त्रिचनापली और पुदुकोटा के प्रदेशों में प्राचीन समय में 'चोलमण्डल' का राज्य था। जिसका क्षेत्र उसके राजा की शक्ति के अनुसार घटता-बढ़ता रहता था।  
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*'''चोलों के विषय में''' प्रथम जानकारी [[पाणिनी]] कृत [[अष्टाध्यायी]] से मिलती है।
*इस राज्य की कोई एक राजधानी नहीं थी।  
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*चोल वंश के विषय में जानकारी के अन्य स्रोत हैं - [[कात्यायन]] कृत 'वार्तिक', '[[महाभारत]]', 'संगम साहित्य', 'पेरिप्लस ऑफ़ दी इरीथ्रियन सी' एवं टॉलमी का उल्लेख आदि।
*भिन्न-भिन्न समयों में उरगपुर (वर्तमान उरैयूर, त्रिचनापली के पास) तंजोर और गंगकौण्ड चोलपुरम (पुहार) को राजधानी बनाकर इसके विविध राजाओं ने शासन किया।  
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*चोल राज्य आधुनिक [[कावेरी नदी]] घाटी, कोरोमण्डल, त्रिचनापली एवं [[तंजौर]] तक विस्तृत था।
*चोलमण्डल का प्राचीन इतिहास स्पष्ट रूप से ज्ञान नहीं है।  
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*यह क्षेत्र उसके राजा की शक्ति के अनुसार घटता-बढ़ता रहता था।
*[[पल्लव वंश]] के राजा उस पर बहुधा करते रहते थे, और उसे अपने राज्य विस्तार का उपयुक्त क्षेत्र मानते थे।  
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*इस राज्य की कोई एक स्थाई राजधानी नहीं थी।
*वातापी के चालुक्य राजा भी दक्षिण दिशा में विजय यात्रा करते हुए आक्रान्त करते रहे। यही कारण है, कि नवीं सदी के मध्य भाग तक चोल मण्डल के इतिहास का विशेष महत्व नहीं है, और वहाँ कोई ऐसा प्रतापी राजा नहीं हुआ, तो कि अपने राज्य के उत्कर्ष में विशेष रूप से समर्थ हुआ हो।
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*साक्ष्यों के आधार पर माना जाता है कि, इनकी पहली राजधानी 'उत्तरी मनलूर' थी।
#[[विजयालय]]
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*कालान्तर में 'उरैयुर' तथा 'तंजावुर' चोलों की राजधानी बनी।
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*चोलों का शासकीय चिन्ह [[बाघ]] था।
#[[परान्तक]] (908-949)
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*चोल राज्य 'किल्लि', 'बलावन', 'सोग्बिदास' तथा 'नेनई' जैसे नामों से भी प्रसिद्व है।
#[[राजराज प्रथम]] 985 - 1012
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*भिन्न-भिन्न समयों में 'उरगपुर' (वर्तमान 'उरैयूर', 'त्रिचनापली' के पास) 'तंजोर' और 'गंगकौण्ड', 'चोलपुरम' (पुहार) को राजधानी बनाकर इस पर विविध राजाओं ने शासन किया।  
#[[राजेन्द्र प्रथम]] 1012 - 1044
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*चोलमण्डल का प्राचीन इतिहास स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है।  
#[[राजाधिराज]] 1044 - 1052
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*[[पल्लव वंश]] के राजा उस पर बहुधा आक्रमण करते रहते थे, और उसे अपने राज्य विस्तार का उपयुक्त क्षेत्र मानते थे।  
#[[राजेन्द्र द्वितीय]] 1052 - 1063
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*[[वातापी कर्नाटक|वातापी]] के [[चालुक्य वंश|चालुक्य]] राजा भी दक्षिण दिशा में विजय यात्रा करते हुए इसे आक्रान्त करते रहे।
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*यही कारण है कि, नवीं सदी के मध्य भाग तक चोलमण्डल के [[इतिहास]] का विशेष महत्व नहीं है, और वहाँ कोई ऐसा प्रतापी राजा नहीं हुआ, जो कि अपने राज्य के उत्कर्ष में विशेष रूप से समर्थ हुआ हो।
#[[अधिराजेन्द्र]] 1070
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==चोल वंश के शासक==
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#[[विजयालय]] (850 - 875 ई.)
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#[[परान्तक]] (908 - 949 ई.)
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12:22, 17 फ़रवरी 2011 का अवतरण

  • चोलों के विषय में प्रथम जानकारी पाणिनी कृत अष्टाध्यायी से मिलती है।
  • चोल वंश के विषय में जानकारी के अन्य स्रोत हैं - कात्यायन कृत 'वार्तिक', 'महाभारत', 'संगम साहित्य', 'पेरिप्लस ऑफ़ दी इरीथ्रियन सी' एवं टॉलमी का उल्लेख आदि।
  • चोल राज्य आधुनिक कावेरी नदी घाटी, कोरोमण्डल, त्रिचनापली एवं तंजौर तक विस्तृत था।
  • यह क्षेत्र उसके राजा की शक्ति के अनुसार घटता-बढ़ता रहता था।
  • इस राज्य की कोई एक स्थाई राजधानी नहीं थी।
  • साक्ष्यों के आधार पर माना जाता है कि, इनकी पहली राजधानी 'उत्तरी मनलूर' थी।
  • कालान्तर में 'उरैयुर' तथा 'तंजावुर' चोलों की राजधानी बनी।
  • चोलों का शासकीय चिन्ह बाघ था।
  • चोल राज्य 'किल्लि', 'बलावन', 'सोग्बिदास' तथा 'नेनई' जैसे नामों से भी प्रसिद्व है।
  • भिन्न-भिन्न समयों में 'उरगपुर' (वर्तमान 'उरैयूर', 'त्रिचनापली' के पास) 'तंजोर' और 'गंगकौण्ड', 'चोलपुरम' (पुहार) को राजधानी बनाकर इस पर विविध राजाओं ने शासन किया।
  • चोलमण्डल का प्राचीन इतिहास स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है।
  • पल्लव वंश के राजा उस पर बहुधा आक्रमण करते रहते थे, और उसे अपने राज्य विस्तार का उपयुक्त क्षेत्र मानते थे।
  • वातापी के चालुक्य राजा भी दक्षिण दिशा में विजय यात्रा करते हुए इसे आक्रान्त करते रहे।
  • यही कारण है कि, नवीं सदी के मध्य भाग तक चोलमण्डल के इतिहास का विशेष महत्व नहीं है, और वहाँ कोई ऐसा प्रतापी राजा नहीं हुआ, जो कि अपने राज्य के उत्कर्ष में विशेष रूप से समर्थ हुआ हो।

चोल वंश के शासक

  1. विजयालय (850 - 875 ई.)
  2. आदित्य (चोल वंश) (875 - 907 ई.)
  3. परान्तक (908 - 949 ई.)
  4. राजराज प्रथम (985 - 1014 ई.)
  5. राजेन्द्र प्रथम (1014 - 1044 ई.)
  6. राजाधिराज (1044 - 1052 ई.)
  7. राजेन्द्र द्वितीय (1052 - 1064 ई.)
  8. वीर राजेन्द्र (1064 - 1070 ई.)
  9. अधिराजेन्द्र (1070 ई.)
  10. कुलोत्तुंग (1070 - 1120 ई.)
  11. विक्रम चोल (1120 - 1133 ई.)
  12. कुलोत्तुंग द्वितीय (1133 - 1150 ई.)


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