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− | '''जुझार सिंह''' राजा वीरसिंह बुंदेला का पुत्र तथा उत्तराधिकारी था। [[जहाँगीर]]<ref>उस समय शाहजादा 'सलीम'</ref> के कहने से वीरसिंह बुंदेला ने ही [[अबुल फ़ज़ल]] को मार डाला | + | '''जुझार सिंह''' [[वीरसिंह बुंदेला|राजा वीरसिंह बुंदेला]] का पुत्र तथा उत्तराधिकारी था। [[जहाँगीर]]<ref>उस समय शाहजादा 'सलीम'</ref> के कहने से वीरसिंह बुंदेला ने ही [[अकबर]] के मित्र, विद्वान् और परामर्श [[अबुल फ़ज़ल]] को मार डाला था। 1605 ई. में जहाँगीर के [[मुग़ल]] तख्त पर बैठने और बादशाह बनने पर वह पुरस्कृत हुआ था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय इतिहास कोश |लेखक= सच्चिदानन्द भट्टाचार्य|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=171|url=}}</ref> |
− | *जब [[शाहजहाँ]] तख़्त पर बैठा, तब राजा वीरसिंह बुंदेला द्वारा छीने गए इलाकों के बारे में जाँच करने की बात चली। इस पर जुझार सिंह ने विद्रोह कर | + | *जब [[शाहजहाँ]] तख़्त पर बैठा, तब राजा वीरसिंह बुंदेला द्वारा छीने गए अनेक इलाकों के बारे में जाँच करने की बात चली। इस पर जुझार सिंह ने विद्रोह कर दिया। |
− | *जुझार सिंह ने बादशाह की सेवा करना स्वीकार कर लिया और कई वर्षों तक दक्खिन में रहा। | + | *शाही सेना ने शीघ्र ही विद्रोह को दबा दिया और जुझार सिंह को वश में कर लिया गया और हर्जाने के रूप में उसे बहुत-सा [[रुपया]] और ज़मीन देनी पड़ी। |
− | *जुझार सिंह के इस कृत्य से शाही फ़ौजों ने उस पर चढ़ाई कर दी और उसे शीघ्र ही हरा दिया। | + | *जुझार सिंह ने बादशाह की सेवा करना स्वीकार कर लिया और कई वर्षों तक दक्खिन में रहा। |
+ | *[[मुग़ल साम्राज्य]] की बहुमूल्य सेवा करते हुए जुझार सिंह को ऊँचा [[मनसब]] और राजा का ख़िताब मिला। इससे उसकी महत्वाकांक्षाएँ जाग उठी और उसने शाहजहाँ के हुक़्म के ख़िलाफ़ अपने पड़ोसी [[चौरागढ़]] के राजा पर हमला कर दिया और उसे मार डाला। | ||
+ | *जुझार सिंह के इस कृत्य से शाही फ़ौजों ने उस पर चढ़ाई कर दी और उसे शीघ्र ही हरा दिया। | ||
*शाही फ़ौजों द्वारा पीछा किये जाने पर जुझार सिंह पड़ोस के जंगल में भाग गया, जहाँ [[गोंड|गोंडों]] ने उसे मार डाला। | *शाही फ़ौजों द्वारा पीछा किये जाने पर जुझार सिंह पड़ोस के जंगल में भाग गया, जहाँ [[गोंड|गोंडों]] ने उसे मार डाला। | ||
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14:24, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
जुझार सिंह राजा वीरसिंह बुंदेला का पुत्र तथा उत्तराधिकारी था। जहाँगीर[1] के कहने से वीरसिंह बुंदेला ने ही अकबर के मित्र, विद्वान् और परामर्श अबुल फ़ज़ल को मार डाला था। 1605 ई. में जहाँगीर के मुग़ल तख्त पर बैठने और बादशाह बनने पर वह पुरस्कृत हुआ था।[2]
- जब शाहजहाँ तख़्त पर बैठा, तब राजा वीरसिंह बुंदेला द्वारा छीने गए अनेक इलाकों के बारे में जाँच करने की बात चली। इस पर जुझार सिंह ने विद्रोह कर दिया।
- शाही सेना ने शीघ्र ही विद्रोह को दबा दिया और जुझार सिंह को वश में कर लिया गया और हर्जाने के रूप में उसे बहुत-सा रुपया और ज़मीन देनी पड़ी।
- जुझार सिंह ने बादशाह की सेवा करना स्वीकार कर लिया और कई वर्षों तक दक्खिन में रहा।
- मुग़ल साम्राज्य की बहुमूल्य सेवा करते हुए जुझार सिंह को ऊँचा मनसब और राजा का ख़िताब मिला। इससे उसकी महत्वाकांक्षाएँ जाग उठी और उसने शाहजहाँ के हुक़्म के ख़िलाफ़ अपने पड़ोसी चौरागढ़ के राजा पर हमला कर दिया और उसे मार डाला।
- जुझार सिंह के इस कृत्य से शाही फ़ौजों ने उस पर चढ़ाई कर दी और उसे शीघ्र ही हरा दिया।
- शाही फ़ौजों द्वारा पीछा किये जाने पर जुझार सिंह पड़ोस के जंगल में भाग गया, जहाँ गोंडों ने उसे मार डाला।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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