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'''जोधपुर रियासत''' [[मारवाड़]] क्षेत्र में सन 1250 से [[1949]] तक चलने वाली भारतीय [[रियासत]] थी। वर्ष [[1950]] में इसकी राजधानी [[जोधपुर]] नगर में रही। लगभग 34,963 वर्ग मील क्षेत्रफल के साथ, जोधपुर रियासत [[राजपूताना]] की सबसे बड़ी रियासत थी। इसके अन्तिम शासक ने इसके [[भारत]] में विलय पर हस्ताक्षर [[1 नवम्बर]], [[1956]] को किये थे।
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'''जोधपुर रियासत''' [[मारवाड़]] क्षेत्र में सन 1250 से [[1949]] तक चलने वाली [[रियासत|भारतीय रियासत]] थी। [[वर्ष]] [[1950]] में इसकी राजधानी [[जोधपुर|जोधपुर नगर]] में रही। लगभग 34,963 वर्ग मील क्षेत्रफल के साथ, जोधपुर रियासत [[राजपूताना]] की सबसे बड़ी रियासत थी। इसके अन्तिम शासक ने इसके [[भारत]] में विलय पर हस्ताक्षर [[1 नवम्बर]], [[1956]] को किये थे।
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==संक्षिप्त इतिहास==
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आज़ादी से पहले [[राजस्थान]] को '''राजपूताना''' के नाम से जाना जाता था। एकीकरण से पूर्व [[राजस्थान]] में उन्नीस रियासतें और तीन ठिकाने थे। इन रियासतों का एकीकरण सात चरणों में पूरा हुआ था और इसमें करीब 8 [[साल]] 7 [[महीने]] 14 [[दिन]] का समय लगा। [[30 मार्च]], [[1949]] में जोधपुर, जयपुर, [[जैसलमेर रियासत|जैसलमेर]] और [[बीकानेर रियासत|बीकानेर]] रियासतों का विलय होकर '''वृहत्तर राजस्थान संघ''' बना। वृहत्तर राजस्थान संघ के निर्माण के बाद ही राजस्थान का यह खाका अस्तित्व में आया था। यही वजह है कि [[30 मार्च]] को '[[राजस्थान दिवस]]' मनाया जाता है।
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==भारत विभाजन==
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विभाजन योजना के तहत [[भारत]] और पाकिस्तान को [[अंग्रेज़ी शासन]] से आज़ादी मिली थी, जिसके अनुसार [[मुस्लिम]] बाहुल्य इलाके [[पाकिस्तान]] और [[हिन्दू]] बाहुल्य इलाके '''हिंदुस्तान''' बताये गए। जबकि तत्कालीन समय में मौजूद देश में कुल '''562 रियासतों''' के लिए यह छूट दी गई कि वह पाकिस्तान या हिंदुस्तान में अपनी मर्ज़ी
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से शामिल हो सकती हैं या फिर जिन रियासतों की जनसंख्या 10 लाख व वार्षिक आय एक करोड़ [[रूपया|रूपये]] हो, वह रियासत स्वतंत्र भी रह सकती है। योजना की शर्तें पूरी करने वाली राजस्थान में चार रियासतें थीं, जिनका नाम क्रमश: [[बीकानेर रियासत|बीकानेर]], जोधपुर, [[जयपुर रियासत|जयपुर]] व [[उदयपुर रियासत|उदयपुर]] था। [[अलवर रियासत|अलवर]], [[भरतपुर रियासत|भरतपुर]], [[धौलपुर रियासत|धौलपुर]], [[डूंगरपुर रियासत|डूंगरपुर]], [[टोंक रियासत|टोंक]] और जोधपुर रियासतें राजस्थान में नहीं मिलना चाहती थीं। टोंक व जोधपुर रियासतें एकीकरण के समय पाकिस्तान में मिलना चाहती थीं। अलवर, भरतपुर व धौलपुर रियासतें एकीकरण के समय भाषायी समानता के आधार पर [[उत्तर प्रदेश]] में मिलना चाहती थीं।<ref name="a">{{cite web |url=https://m.dailyhunt.in/news/india/hindi/samacharjagat-epaper-samachar/rajasthan+divas+jodhapur+naresh+ko+marane+par+utaru+ho+gae+saradar+patel+padhe+itihas+ke+jharokhe+se+marudhara+se+jude+kuch+rochak+kisse-newsid-65771018 |title=राजस्थान दिवस: जोधपुर नरेश को मारने पर उतारू हो गए सरदार पटेल |accessmonthday=05 सितम्बर|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=m.dailyhunt.in |language=हिंदी }}</ref>
 
==तत्कालीन परिस्थितियाँ==
 
==तत्कालीन परिस्थितियाँ==
देश की आजादी के समय जोधपुर के तत्कालीन महाराजा हनुवंत सिंह ने जोधपुर को पाकिस्तान में मिलाने की तैयारी कर ली थी। पाकिस्तान के संस्थापक [[मोहम्मद अली जिन्ना]] की लच्छेदार बातों में आकर महाराजा एक बार पक्का मन बना चुके थे कि [[मारवाड़]] को पाकिस्तान में शामिल होना चाहिए। लेकिन [[सरदार पटेल]] की सूझबूझ, सख्त तेवर और अनुभव के साथ ही उनके सचिव [[वी. पी. मेनन]] के धैर्य से महाराजा का मन बदला और जोधपुर [[भारत]] में शामिल हो गया। इसको लेकर कई किस्से प्रचलित हैं।
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देश की आज़ादी के समय जोधपुर के तत्कालीन '''महाराजा हनुवंत सिंह''' ने जोधपुर को पाकिस्तान में मिलाने की तैयारी कर ली थी। पाकिस्तान के संस्थापक [[मोहम्मद अली जिन्ना]] की लच्छेदार बातों में आकर महाराजा एक बार पक्का मन बना चुके थे कि [[मारवाड़]] को पाकिस्तान में शामिल होना चाहिए। लेकिन [[सरदार पटेल]] की सूझबूझ, सख्त तेवर और अनुभव के साथ ही उनके सचिव [[वी. पी. मेनन]] के धैर्य से महाराजा का मन बदला और जोधपुर [[भारत]] में शामिल हो गया। इसको लेकर कई किस्से प्रचलित हैं।
  
जिन्ना ने भारत को कमजोर करने के लिए महाराजा हनुवंत सिंह पर डोरे डाले। इस काम में उनकी मदद अन्य महाराजाओं ने की। जिन्ना हर हालत में जोधपुर व [[जैसलमेर]] को अपने साथ रखना चाहते थे। इसके लिए वे इन दोनों स्थान के महाराजाओं की कोई भी शर्त मानने को तैयार थे। सरदार पटेल को जोधपुर के [[दीवान]] के मार्फत से हनुवंत सिंह के इरादों का पता चल गया था। सरदार के कहने पर ही [[लॉर्ड माउंट बेटन]] ने महाराजा हनुवंत सिंह को [[दिल्ली]] बुलाया। अब जोधपुर को बचाने का पूरा दारोमदार सरदार पटेल पर था। पटेल ने कहा- "देखो हनुवंत, तुम्हारे पिता उम्मेद सिंह जी हमारे दोस्त थे और उन्होंने तुम्हें हमारे देखरेख में छोड़ा है। अगर तुम रास्ते पर नहीं आए तो समझ लो कि मुझे तुम्हे अनुशासन में लाने के लिये पिता के रोल में उतरना पड़ जाएगा।" महाराजा ने कहा- "नहीं आपको ऐसा करने की जरुरत नहीं पड़ेगी। मैंने फैसला कर लिया है। मैं इसी वक्त लॉर्ड माउंट बेटन के पास जाकर इंस्ट्रूमेंट ऑफ एशेसन पर साइन कर दूंगा।" आखिरकार [[11 अगस्त]] को यानी आजादी से चार दिन पहले महाराजा हनुवंत सिंह ने इंस्ट्रूमेंट आफ एक्शेसन पर दस्तखत कर दिए। आजादी से महज 4 दिन पहले जोधपुर भारतीय संघ में शामिल हुआ।<ref>{{cite web |url=https://www.bhaskar.com/rajasthan/jodhpur/news/c-20-795445-jd0317-nor.html |title=राजस्थान दिवस: जोधपुर नरेश को मारने पर उतारू हो गए सरदार पटेल |accessmonthday=05 सितम्बर|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bhaskar.com|language=हिंदी }}</ref>
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जिन्ना ने भारत को कमजोर करने के लिए महाराजा हनुवंत सिंह पर डोरे डाले। इस काम में उनकी मदद अन्य महाराजाओं ने की। जिन्ना हर हालत में जोधपुर व [[जैसलमेर]] को अपने साथ रखना चाहते थे। इसके लिए वे इन दोनों स्थान के महाराजाओं की कोई भी शर्त मानने को तैयार थे। [[सरदार पटेल]] को जोधपुर के [[दीवान]] की मार्फत से हनुवंत सिंह के इरादों का पता चल गया था। सरदार के कहने पर ही [[लॉर्ड माउंट बेटन]] ने महाराजा हनुवंत सिंह को [[दिल्ली]] बुलाया। अब जोधपुर को बचाने का पूरा दारोमदार सरदार पटेल पर था। पटेल ने कहा- "देखो हनुवंत, तुम्हारे [[पिता]] उम्मेद सिंह जी हमारे दोस्त थे और उन्होंने तुम्हें हमारी देखरेख में छोड़ा है। अगर तुम रास्ते पर नहीं आए तो समझ लो कि मुझे तुम्हें अनुशासन में लाने के लिये पिता के रोल में उतरना पड़ जाएगा।" महाराजा ने कहा- "नहीं आपको ऐसा करने की जरुरत नहीं पड़ेगी। मैंने फैसला कर लिया है। मैं इसी वक्त लॉर्ड माउंट बेटन के पास जाकर इंस्ट्रूमेंट ऑफ एशेसन पर साइन कर दूंगा।" आखिरकार [[11 अगस्त]] को यानी आज़ादी से चार दिन पहले महाराजा हनुवंत सिंह ने इंस्ट्रूमेंट आफ एक्शेसन पर दस्तखत कर दिए। आज़ादी से महज 4 दिन पहले जोधपुर भारतीय संघ में शामिल हुआ।<ref>{{cite web |url=https://www.bhaskar.com/rajasthan/jodhpur/news/c-20-795445-jd0317-nor.html |title=राजस्थान दिवस: जोधपुर नरेश को मारने पर उतारू हो गए सरदार पटेल |accessmonthday=05 सितम्बर|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bhaskar.com|language=हिंदी }}</ref>
 
==जब पटेल ने तानी पिस्टल==
 
==जब पटेल ने तानी पिस्टल==
यह घटना [[1949]] की है, जब [[जयपुर]], [[जोधपुर]] को छोड़कर बाकी रियासतें [[राजस्थान]] में या तो शामिल हो चुकी थीं या शामिल होने पर सहमति दे चुकी थीं। जबकि [[बीकानेर रियासत|बीकानेर]] और [[जैसलमेर रियासत|जैसलमेर रियासतें]] जोधपुर नरेश की हां पर टिकी हुई थीं। उधर जोधपुर नरेश महाराजा हनुवंत सिंह उस वक़्त [[मोहम्मद अली जिन्ना|जिन्ना]] के संपर्क में थे। जिन्ना ने हनुवंत सिंह को पाकिस्तान में शामिल होने पर [[पंजाब]]-[[मारवाड़]] सूबे का प्रमुख बनाने का प्रलोभन दिया। तत्कालीन समय में जोधपुर से [[थार रेगिस्तान|थार]] के रास्ते [[लाहौर]] तक एक रेल लाइन हुआ करती थी, जिस से [[सिंध]] और राजस्थान की रियासतों के बीच प्रमुख व्यापार हुआ करता था। जिन्ना ने आजीवन उस रेल लाइन पर जोधपुर के कब्ज़े का प्रलोभन भी दिया, जिसके चलते हनुवंत सिंह ने पाकिस्तान में शामिल होने की हाँ कर दी थी।<ref>{{cite web |url=https://m.dailyhunt.in/news/india/hindi/samacharjagat-epaper-samachar/rajasthan+divas+jodhapur+naresh+ko+marane+par+utaru+ho+gae+saradar+patel+padhe+itihas+ke+jharokhe+se+marudhara+se+jude+kuch+rochak+kisse-newsid-65771018 |title=राजस्थान दिवस: जोधपुर नरेश को मारने पर उतारू हो गए सरदार पटेल |accessmonthday=05 सितम्बर|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=m.dailyhunt.in |language=हिंदी }}</ref>
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यह घटना [[1949]] की है, जब [[जयपुर]], [[जोधपुर]] को छोड़कर बाकी रियासतें [[राजस्थान]] में या तो शामिल हो चुकी थीं या शामिल होने पर सहमति दे चुकी थीं। जबकि [[बीकानेर रियासत|बीकानेर]] और [[जैसलमेर रियासत|जैसलमेर रियासतें]] जोधपुर नरेश की हां पर टिकी हुई थीं। उधर जोधपुर नरेश महाराजा हनुवंत सिंह उस वक़्त [[मोहम्मद अली जिन्ना|जिन्ना]] के संपर्क में थे। जिन्ना ने हनुवंत सिंह को पाकिस्तान में शामिल होने पर [[पंजाब]]-[[मारवाड़]] सूबे का प्रमुख बनाने का प्रलोभन दिया। तत्कालीन समय में जोधपुर से [[थार रेगिस्तान|थार]] के रास्ते [[लाहौर]] तक एक रेल लाइन हुआ करती थी, जिस से [[सिंध]] और [[राजस्थान]] की रियासतों के बीच प्रमुख व्यापार हुआ करता था। जिन्ना ने आजीवन उस रेल लाइन पर जोधपुर के कब्ज़े का प्रलोभन भी दिया, जिसके चलते हनुवंत सिंह ने पाकिस्तान में शामिल होने की हाँ कर दी थी।<ref name="a"/>
  
[[सरदार पटेल]] तब [[जूनागढ़ रियासत|जूनागढ़]] (तत्कालीन [[बम्बई]] और वर्तमान में [[गुजरात]]) के मुस्लिम राजा को समझा रहे थे। जैसे ही उनके पास यह सुचना पहुंची तो सरदार पटेल तत्काल हेलिकॉप्टर से जोधपुर के लिए रवाना हो गए। लेकिन रास्ते में [[सिरोही]]-[[आबू पर्वत|आबू]] के पास उनका हेलिकॉप्टर खराब हो गया, जिसके बाद एक रात तक स्थानीय साधनों से सफर करते हुए वे तत्काल जोधपुर पहुंचे। हनुवंत सिंह सरदार पटेल को [[उम्मेद महल जोधपुर|उम्मेद भवन]] में देख भौंचक्का रह गए। जब बात टेबल तक पहुंची तो हनुवंत सिंह ने सरदार पटेल को धमकाने के उद्देश्य से मेज पर ब्रिटिश पिस्टल रख दी। सरदार पटेल ने जोधपुर नरेश को मुस्लिम राष्ट्र में शामिल होने पर आगे चलकर होने वाली सारी परेशानियों के बारे में बताया, पर हनुवंत सिंह नहीं माने और उलटे सरदार पर राठौड़ों को डराने का आरोप लगाकर आसपास बैठे सामंतों को उकसाने लगे।
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[[सरदार पटेल]] तब [[जूनागढ़ रियासत|जूनागढ़]] (तत्कालीन [[बम्बई]] और वर्तमान में [[गुजरात]]) के मुस्लिम राजा को समझा रहे थे। जैसे ही उनके पास यह सूचना पहुंची तो [[सरदार पटेल]] तत्काल हेलिकॉप्टर से जोधपुर के लिए रवाना हो गए। लेकिन रास्ते में [[सिरोही]]-[[आबू पर्वत|आबू]] के पास उनका हेलिकॉप्टर खराब हो गया, जिसके बाद एक [[रात]] तक स्थानीय साधनों से सफर करते हुए वे तत्काल जोधपुर पहुंचे। हनुवंत सिंह सरदार पटेल को [[उम्मेद महल जोधपुर|उम्मेद भवन]] में देख भौंचक्का रह गए। जब बात टेबल तक पहुंची तो हनुवंत सिंह ने सरदार पटेल को धमकाने के उद्देश्य से मेज पर ब्रिटिश पिस्टल रख दी। सरदार पटेल ने जोधपुर नरेश को मुस्लिम राष्ट्र में शामिल होने पर आगे चलकर होने वाली सारी परेशानियों के बारे में बताया, पर हनुवंत सिंह नहीं माने और उलटे सरदार पर राठौड़ों को डराने का आरोप लगाकर आसपास बैठे सामंतों को उकसाने लगे।
  
इस माहौल में स्थिति ऐसी आ गयी कि सरदार पटेल ने वह पिस्टल उठा ली और हनुवंत सिंह की तरफ तानकर कहा कि- "[[राजस्थान]] में विलय पर हस्ताक्षर कीजिए नहीं तो आज हम दो सरदारों में से एक सरदार नहीं बचेगा।" सरदार पटेल के हाथों में पिस्तौल देख उनके सचिव [[वी. पी. मेनन|मेनन]] सहित सभा में उपस्थित सभी सामंत डर गए। अंततः हनुवंत सिंह को विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े और इस प्रकार [[जोधपुर]] सहित [[बीकानेर]] और [[जैसलमेर]] भी राजस्थान में शामिल हो गए। यही वजह रही कि सरदार पटेल ने वृहद राजस्थान के प्रथम महाराज प्रमुख हनुवंत सिंह को ना बनाकर [[उदयपुर]] के महाराणा भूपाल सिंह को बनाया।
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इस माहौल में स्थिति ऐसी आ गयी कि सरदार पटेल ने वह पिस्टल उठा ली और हनुवंत सिंह की तरफ तानकर कहा कि- "[[राजस्थान]] में विलय पर हस्ताक्षर कीजिए नहीं तो आज हम दो सरदारों में से एक सरदार नहीं बचेगा।" सरदार पटेल के हाथों में पिस्तौल देख उनके सचिव [[वी. पी. मेनन|मेनन]] सहित सभा में उपस्थित सभी सामंत डर गए। अंततः हनुवंत सिंह को विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े और इस प्रकार [[जोधपुर]] सहित [[बीकानेर]] और [[जैसलमेर]] भी राजस्थान में शामिल हो गए। यही वजह रही कि सरदार पटेल ने वृहद राजस्थान के प्रथम महाराज प्रमुख हनुवंत सिंह को ना बनाकर [[उदयपुर]] के '''महाराणा भूपाल सिंह''' को बनाया।
  
 
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09:21, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

जोधपुर रियासत मारवाड़ क्षेत्र में सन 1250 से 1949 तक चलने वाली भारतीय रियासत थी। वर्ष 1950 में इसकी राजधानी जोधपुर नगर में रही। लगभग 34,963 वर्ग मील क्षेत्रफल के साथ, जोधपुर रियासत राजपूताना की सबसे बड़ी रियासत थी। इसके अन्तिम शासक ने इसके भारत में विलय पर हस्ताक्षर 1 नवम्बर, 1956 को किये थे।

संक्षिप्त इतिहास

आज़ादी से पहले राजस्थान को राजपूताना के नाम से जाना जाता था। एकीकरण से पूर्व राजस्थान में उन्नीस रियासतें और तीन ठिकाने थे। इन रियासतों का एकीकरण सात चरणों में पूरा हुआ था और इसमें करीब 8 साल 7 महीने 14 दिन का समय लगा। 30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर वृहत्तर राजस्थान संघ बना। वृहत्तर राजस्थान संघ के निर्माण के बाद ही राजस्थान का यह खाका अस्तित्व में आया था। यही वजह है कि 30 मार्च को 'राजस्थान दिवस' मनाया जाता है।

भारत विभाजन

विभाजन योजना के तहत भारत और पाकिस्तान को अंग्रेज़ी शासन से आज़ादी मिली थी, जिसके अनुसार मुस्लिम बाहुल्य इलाके पाकिस्तान और हिन्दू बाहुल्य इलाके हिंदुस्तान बताये गए। जबकि तत्कालीन समय में मौजूद देश में कुल 562 रियासतों के लिए यह छूट दी गई कि वह पाकिस्तान या हिंदुस्तान में अपनी मर्ज़ी से शामिल हो सकती हैं या फिर जिन रियासतों की जनसंख्या 10 लाख व वार्षिक आय एक करोड़ रूपये हो, वह रियासत स्वतंत्र भी रह सकती है। योजना की शर्तें पूरी करने वाली राजस्थान में चार रियासतें थीं, जिनका नाम क्रमश: बीकानेर, जोधपुर, जयपुरउदयपुर था। अलवर, भरतपुर, धौलपुर, डूंगरपुर, टोंक और जोधपुर रियासतें राजस्थान में नहीं मिलना चाहती थीं। टोंक व जोधपुर रियासतें एकीकरण के समय पाकिस्तान में मिलना चाहती थीं। अलवर, भरतपुर व धौलपुर रियासतें एकीकरण के समय भाषायी समानता के आधार पर उत्तर प्रदेश में मिलना चाहती थीं।[1]

तत्कालीन परिस्थितियाँ

देश की आज़ादी के समय जोधपुर के तत्कालीन महाराजा हनुवंत सिंह ने जोधपुर को पाकिस्तान में मिलाने की तैयारी कर ली थी। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की लच्छेदार बातों में आकर महाराजा एक बार पक्का मन बना चुके थे कि मारवाड़ को पाकिस्तान में शामिल होना चाहिए। लेकिन सरदार पटेल की सूझबूझ, सख्त तेवर और अनुभव के साथ ही उनके सचिव वी. पी. मेनन के धैर्य से महाराजा का मन बदला और जोधपुर भारत में शामिल हो गया। इसको लेकर कई किस्से प्रचलित हैं।

जिन्ना ने भारत को कमजोर करने के लिए महाराजा हनुवंत सिंह पर डोरे डाले। इस काम में उनकी मदद अन्य महाराजाओं ने की। जिन्ना हर हालत में जोधपुर व जैसलमेर को अपने साथ रखना चाहते थे। इसके लिए वे इन दोनों स्थान के महाराजाओं की कोई भी शर्त मानने को तैयार थे। सरदार पटेल को जोधपुर के दीवान की मार्फत से हनुवंत सिंह के इरादों का पता चल गया था। सरदार के कहने पर ही लॉर्ड माउंट बेटन ने महाराजा हनुवंत सिंह को दिल्ली बुलाया। अब जोधपुर को बचाने का पूरा दारोमदार सरदार पटेल पर था। पटेल ने कहा- "देखो हनुवंत, तुम्हारे पिता उम्मेद सिंह जी हमारे दोस्त थे और उन्होंने तुम्हें हमारी देखरेख में छोड़ा है। अगर तुम रास्ते पर नहीं आए तो समझ लो कि मुझे तुम्हें अनुशासन में लाने के लिये पिता के रोल में उतरना पड़ जाएगा।" महाराजा ने कहा- "नहीं आपको ऐसा करने की जरुरत नहीं पड़ेगी। मैंने फैसला कर लिया है। मैं इसी वक्त लॉर्ड माउंट बेटन के पास जाकर इंस्ट्रूमेंट ऑफ एशेसन पर साइन कर दूंगा।" आखिरकार 11 अगस्त को यानी आज़ादी से चार दिन पहले महाराजा हनुवंत सिंह ने इंस्ट्रूमेंट आफ एक्शेसन पर दस्तखत कर दिए। आज़ादी से महज 4 दिन पहले जोधपुर भारतीय संघ में शामिल हुआ।[2]

जब पटेल ने तानी पिस्टल

यह घटना 1949 की है, जब जयपुर, जोधपुर को छोड़कर बाकी रियासतें राजस्थान में या तो शामिल हो चुकी थीं या शामिल होने पर सहमति दे चुकी थीं। जबकि बीकानेर और जैसलमेर रियासतें जोधपुर नरेश की हां पर टिकी हुई थीं। उधर जोधपुर नरेश महाराजा हनुवंत सिंह उस वक़्त जिन्ना के संपर्क में थे। जिन्ना ने हनुवंत सिंह को पाकिस्तान में शामिल होने पर पंजाब-मारवाड़ सूबे का प्रमुख बनाने का प्रलोभन दिया। तत्कालीन समय में जोधपुर से थार के रास्ते लाहौर तक एक रेल लाइन हुआ करती थी, जिस से सिंध और राजस्थान की रियासतों के बीच प्रमुख व्यापार हुआ करता था। जिन्ना ने आजीवन उस रेल लाइन पर जोधपुर के कब्ज़े का प्रलोभन भी दिया, जिसके चलते हनुवंत सिंह ने पाकिस्तान में शामिल होने की हाँ कर दी थी।[1]

सरदार पटेल तब जूनागढ़ (तत्कालीन बम्बई और वर्तमान में गुजरात) के मुस्लिम राजा को समझा रहे थे। जैसे ही उनके पास यह सूचना पहुंची तो सरदार पटेल तत्काल हेलिकॉप्टर से जोधपुर के लिए रवाना हो गए। लेकिन रास्ते में सिरोही-आबू के पास उनका हेलिकॉप्टर खराब हो गया, जिसके बाद एक रात तक स्थानीय साधनों से सफर करते हुए वे तत्काल जोधपुर पहुंचे। हनुवंत सिंह सरदार पटेल को उम्मेद भवन में देख भौंचक्का रह गए। जब बात टेबल तक पहुंची तो हनुवंत सिंह ने सरदार पटेल को धमकाने के उद्देश्य से मेज पर ब्रिटिश पिस्टल रख दी। सरदार पटेल ने जोधपुर नरेश को मुस्लिम राष्ट्र में शामिल होने पर आगे चलकर होने वाली सारी परेशानियों के बारे में बताया, पर हनुवंत सिंह नहीं माने और उलटे सरदार पर राठौड़ों को डराने का आरोप लगाकर आसपास बैठे सामंतों को उकसाने लगे।

इस माहौल में स्थिति ऐसी आ गयी कि सरदार पटेल ने वह पिस्टल उठा ली और हनुवंत सिंह की तरफ तानकर कहा कि- "राजस्थान में विलय पर हस्ताक्षर कीजिए नहीं तो आज हम दो सरदारों में से एक सरदार नहीं बचेगा।" सरदार पटेल के हाथों में पिस्तौल देख उनके सचिव मेनन सहित सभा में उपस्थित सभी सामंत डर गए। अंततः हनुवंत सिंह को विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े और इस प्रकार जोधपुर सहित बीकानेर और जैसलमेर भी राजस्थान में शामिल हो गए। यही वजह रही कि सरदार पटेल ने वृहद राजस्थान के प्रथम महाराज प्रमुख हनुवंत सिंह को ना बनाकर उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को बनाया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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