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'''नरसिंह वर्मन द्वितीय''' का समय सांस्कृतिक उपलब्धियों का रहा है। उसके महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्यो में [[महाबलीपुरम]] का समुद्रतटीय मंदिर, [[कांची]] का [[कांची कैलाशनाथार मंदिर|कैलाशनाथार मंदिर]] एवं ऐरावतेश्वर मंदिर की गणना की जाती है।
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'''नरसिंह वर्मन द्वितीय''' (695-720 ई.) का समय सांस्कृतिक उपलब्धियों का रहा है। उसके महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्यों में [[महाबलीपुरम]] का समुद्रतटीय मंदिर, [[कांची]] का [[कांची कैलाशनाथार मंदिर|कैलाशनाथार मंदिर]] एवं 'ऐरावतेश्वर मंदिर' की गणना की जाती है।
*[[परमेश्वर वर्मन प्रथम]] के प्रताप और पराक्रम से [[पल्लव वंश|पल्लवों]] की शक्ति इतनी बढ़ गई थी, कि जब सातवीं [[सदी]] के अन्त में उसकी मृत्यु के बाद नरसिंह वर्मन द्वितीय (695-720ई.)।
 
*[[कांची]] के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ, तो उसे किसी बड़े युद्ध में जुझने की आवश्यकता नहीं हुई।
 
  
*'राजसिंह', 'आगमप्रिय' एवं 'शंकर भक्त' उसकी सर्वप्रिय उपाधियां थी।
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*[[परमेश्वर वर्मन प्रथम]] के प्रताप और पराक्रम से [[पल्लव वंश|पल्लवों]] की शक्ति इतनी बढ़ गई थी, कि जब सातवीं [[सदी]] के अन्त में उसकी मृत्यु के बाद नरसिंह वर्मन द्वितीय [[कांची]] के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ, तो उसे किसी बड़े युद्ध में जुझने की आवश्यकता नहीं हुई।
*उसे 'राज सिद्धेश्वर मंदिर' भी कहा जाता था।
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*'राजसिंह', 'आगमप्रिय' एवं 'शंकर भक्त' की सर्वप्रिय उपाधियाँ नरसिंह वर्मन द्वितीय ने धारण की थीं।
*इसके अतिरिक्त प्रशस्तियों में इसे अन्यन्तकाम, रणंजय, श्रीभर, उग्रदण्ड, अपराजित, शिवचुड़मणि, यित्रकार्मुक, रणविक्रम, आमित्रमल, आहवकेशरी, परमचक्रमर्दन, पाथविक्रय, समरधनन्जय आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है।
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*नरसिंह वर्मन द्वितीय को 'राज सिद्धेश्वर' भी कहा जाता था।
*उसने मंदिर निर्माण शैली में एक नई शैली '''राज सिंह शैली''' का प्रयोग किया।
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*इसके अतिरिक्त प्रशस्तियों में इसे अन्यन्तकाम, रणंजय, श्रीभर, उग्रदण्ड, अपराजित, शिवचुड़मणि, यित्रकार्मुक, रणविक्रम, आमित्रमल, आहवकेशरी, परमचक्रमर्दन, पाथविक्रय, समरधनन्जय आदि उपाधियों से भी विभूषित किया गया है।
*महाकवि 'दण्डिन' संभवतः उसका समकालीन था। इसकी वाद्यविद्याधर, वीणानारद, अंतोदय-तुम्बुरु उपाधियां उसकी संगीत के प्रति रुझान की परिचायक हैं।
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*मंदिर निर्माण की शैली में नरसिंह वर्मन द्वितीय ने एक नई शैली 'राज सिंह शैली' का प्रयोग किया था।
*नरसिंहवर्मा द्वितीय का शासन काल शान्ति और व्यवस्था का काल था, और इसीलिए वह अपनी शक्ति को निश्चिन्तता पूर्वक मन्दिरों के निर्माण में लगा सका।  
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*महाकवि 'दण्डिन' संभवतः उसका समकालीन था। इसकी वाद्यविद्याधर, वीणानारद, अंतोदय-तुम्बुरु उपाधियाँ उसकी [[संगीत]] के प्रति रुझान की परिचायक हैं।
 
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06:45, 10 जून 2013 के समय का अवतरण

नरसिंह वर्मन द्वितीय (695-720 ई.) का समय सांस्कृतिक उपलब्धियों का रहा है। उसके महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्यों में महाबलीपुरम का समुद्रतटीय मंदिर, कांची का कैलाशनाथार मंदिर एवं 'ऐरावतेश्वर मंदिर' की गणना की जाती है।

  • परमेश्वर वर्मन प्रथम के प्रताप और पराक्रम से पल्लवों की शक्ति इतनी बढ़ गई थी, कि जब सातवीं सदी के अन्त में उसकी मृत्यु के बाद नरसिंह वर्मन द्वितीय कांची के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ, तो उसे किसी बड़े युद्ध में जुझने की आवश्यकता नहीं हुई।
  • 'राजसिंह', 'आगमप्रिय' एवं 'शंकर भक्त' की सर्वप्रिय उपाधियाँ नरसिंह वर्मन द्वितीय ने धारण की थीं।
  • नरसिंह वर्मन द्वितीय को 'राज सिद्धेश्वर' भी कहा जाता था।
  • इसके अतिरिक्त प्रशस्तियों में इसे अन्यन्तकाम, रणंजय, श्रीभर, उग्रदण्ड, अपराजित, शिवचुड़मणि, यित्रकार्मुक, रणविक्रम, आमित्रमल, आहवकेशरी, परमचक्रमर्दन, पाथविक्रय, समरधनन्जय आदि उपाधियों से भी विभूषित किया गया है।
  • मंदिर निर्माण की शैली में नरसिंह वर्मन द्वितीय ने एक नई शैली 'राज सिंह शैली' का प्रयोग किया था।
  • महाकवि 'दण्डिन' संभवतः उसका समकालीन था। इसकी वाद्यविद्याधर, वीणानारद, अंतोदय-तुम्बुरु उपाधियाँ उसकी संगीत के प्रति रुझान की परिचायक हैं।
  • नरसिंह वर्मन द्वितीय का शासन काल शान्ति और व्यवस्था का काल था, इसीलिए वह अपनी शक्ति को निश्चिन्तता पूर्वक मन्दिरों के निर्माण में लगा सका।


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