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पैरालंपिक खेल

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पैरालंपिक खेल (अंग्रेज़ी:Paralympic Games) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली बहु-खेल प्रतियोगिता है जिसमें शारीरिक रूप अथवा मानसिक रूप से विकलांग खिलाड़ी भाग लेते हैं। पैरालंपिक खेलों का मौजूदा ग्लैमर द्वितीय विश्व युद्ध के घायल सैनिकों को फिर से मुख्यधारा में लाने के मकसद से हुई इसकी शुरुआत में है। स्पाइनल इंज्यूरी के शिकार सैनिकों को ठीक करने के लिए खास तौर इसे शुरू किया गया था। साल 1948 में द्वितीय विश्व युद्ध में घायल हुए सैनिकों की स्पाइनल इंजुरी को ठीक करने के लिए स्टोक मानडेविल अस्पताल में काम कर रहे नियोरोलोजिस्ट सर गुडविंग गुट्टमान ने इस रिहेबिलेशन कार्यक्रम के लिए स्पोर्ट्स को चुना था। इन खेलों को तब अंतरराष्ट्रीय व्हीलचेयर गेम्स का नाम दिया गया था।

शुरुआत

साल 1948 में लंदन में ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ, और इसी के साथ ही डॉक्टर गुट्टमान ने दूसरे अस्पताल के मरीजों के साथ एक स्पोर्ट्स कंपीटिशन की भी शुरुआत की। जिसे काफ़ी पसंद किया गया। फिर देखते ही देखते डॉक्टर गुट्टमान के इस अनोखे तरीके को ब्रिटेन के कई स्पाइनल इंज्यूरी युनिट्स ने अपनाया और एक दशक तक स्पाइनल इंज्यूरी को ठीक करने के लिए ये रिहेबिलेशन प्रोग्राम चलता रहा। 1952 में फिर इसका आयोजन किया है। इस बार ब्रिटिश सैनिकों के साथ ही डच सैनिकों ने भी हिस्सा लिया। इस तरह इसने पैरालंपिक खेल के लिए एक मैदान तैयार किया।

रोम ओलंपिक (1960)

वर्ष 1960 में रोम में पहले पैरालंपिक खेल हुए। इसमें सैनिकों के साथ ही आम लोग भी भाग ले सकते थे। पहले पैरालंपिक खेलों में 23 देशों के 400 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। शुरुआती पैरालंपिक खेलों में तैराकी को छोड़कर खिलाड़ी सिर्फ व्हीलचेयर के साथ ही भाग ले सकते थे लेकिन 1976 में दूसरे तरह के पैरा लोगों को भी पैरालंपिक में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। 1960 में रोम ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया। नियोरोलोजिस्ट डॉक्टर गुट्टमान 400 व्हीलचेयर लेकर ओलंपिक शहर में पहुंचे। जहां उन्होंने पैरा लोगों के लिए खेल का आयोजन किया। वहीं से शुरुआत हुई मॉर्डन पैरालंपिक खेलों की। ब्रिटेन के मार्गेट माघन पैरालंपिक खेलों में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले एथलीट बने। उन्होंने अर्चेरी इवेंट (तीरंदाज़ी) में गोल्ड मेडल जीता। अर्चेरी डॉक्टर गुट्टमान के ट्रीटमेंट का अहम हिस्सा था।

टोक्यो ओलंपिक (1964)

1964 में ओलंपिक जापान की राजधानी टोक्यो के पास गया और कुछ ही समय बाद जापान ने भी पैरालंपिक खेलों की मेजबानी में अहम भूमिका निभाई। ये पहला मौका था जब जापान में पैरा एथलीटों ने व्हीलचेयर के साथ कई खेलों में हिस्सा लिया था।

मैक्सिको ओलंपिक (1968)

जापान के बाद अब ओलंपिक की मेजबानी की बारी 1968 मेक्सिको की थी। वहीं पैरालंपिक इजराइल में आयोजन किया गया। फिर चार साल बाद हीडलबर्ग में आयोजित किया गया। इसके बाद ओलंपिक म्यूनिख में थे। जहां कुआर्डीपेलेजिक (quadriplegic) रीढ़ की हड्डी की चोटों वाले एथलीट पहली बार इस प्रतिस्पर्धा में उतरे। इसके अलावा नेत्रहीन एथलीटों ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इस ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले 44 देशों से 1000 से ज्यादा एथलीटों को खेल प्रेमियों के सामने अपना जोर अपना आजमाते हुए देखा। 1976 टोरंटो ओलंपिक में ऐम्प्युटी और मिक्सड पैरा एथलीटों के डेब्यू के साथ उनकी संख्या 1600 के पास पहुंच गई। ये पहला मौका था जब विशेष रेसिंग व्हीलचेयर टीम के लिए इस्तेमाल किया गया।

1980 के बाद मिली लोकप्रियता

राजनीतिक उथल-पुथल के चलते इसे 1980 में मॉस्को ने पैरालंपिक खेलों की मेजबानी से इनकार कर दिया। जिसके बाद हॉलैंड की राजधानी एम्सटर्डम को इन पैरालंपिक खेलों की मेजबानी का मौका दिया गया। जिसमें कुल 42 देशों के करीब 2500 पैरा एथलीटों ने हिस्सा लिया। पैरालंपिक आंदोलन में पहली बार दिमाग से कमज़ोर एथलीटों को पहली बार शामिल किया गया। जिसकी मेजबानी ब्रिटेन और अमेरिका ने मिलकर की। ये पहला मौका था जिसमें व्हीलचेयर मैराथन रेस को शामिल किया गया। 1988 ओलंपिक कोरिया की राजधानी सियोल पहुंचे। कोरिया ने पहली बार ओलंपिक खेलों के साथ पैरालंपिक खेलों का आयोजन किया गया। यहां पैरालंपिक कमेटी और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक ने इसे सफल बनाने के लिए जबरदस्त काम किया। 1992 बार्सिलोना ओलंपिक में पैरालंपिक एथलीटों की तादात एकदम से बढ़ गई। इस बार 82 देशों के 3500 एथलीटों ने अपना दावा ठोका। स्टेडियम खेल प्रेमियों से पूरी तरह से भरे नजर आए। 1996 अटलांटा ओलंपिक में रिकॉर्ड तोड़ देशों के कई एथलीटों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसके अलावा सिडनी ओलंपिक में 132 देशों ने पैरालंपिक खेलों में हिस्सा लिया। इन खेलों में पहली बार रग्बी और व्हीलचेयर बॉस्केटबॉल जैसे खेलों में लाया गया।

2004 एथेंस ओलंपिक

एथेंस ओलंपिक में रिकॉर्ड 135 देशों ने पैरालंपिक खेलों में हिस्सा लिया जिसमें 17 नए देश और 19 नए खेलों को शामिल किया गया और 4000 एथलीटों ने हिस्सा लिया। इस बार 304 वर्ल्ड रिकॉर्ड बने और 448 पैरालंपिक रिकॉर्ड। चीन ने पदक सूची में पहली बार टॉप किया जबकि ब्रिटेन 35 स्वर्ण पदक के साथ दूसरे स्थान पर रहा। दो ब्रिटिश तैराक डावे रोबर्टस और जिम एंडरसन ने चार स्वर्ण अपने नाम किए।[1]

पैरालंपिक में भारत का प्रदर्शन

भारतीय पैरा एथलीटों को व्यक्तिगत पदक लाने में 56 साल लगे। पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक हासिल करने के लिए भारत को 112 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा।

मुरलीकांत पेटकर ने जीता पहला स्वर्ण पदक

साल 1972 हैडिलवर्ग पैरालंपिक में भारत के मुरलीकांत पेटकर ने 50 मीटर फ्री स्टाइल 3 तैराकी में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा था। अपने फौलादी हौसले से पेटकर उन लोगों के लिए एक आदर्श बने जो किन्हीं वजहों से अक्षम हो जाते हैं। पेटकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने 1968 पैरालंपिक खेलों के टेबल टेनिस इवेंट में भी हिस्सा लिया था और दूसरे दौर तक पहुंचे थे लेकिन उन्हें यह अहसास हुआ कि वो तैराकी में ज्यादा बेहतर कर सकते हैं। पेटकर पैरा एथलीट होने से पहले भारतीय सेना के हिस्सा थे। एक फौजी होने के नाते पेटकर ने कभी हारना तो सीखा नहीं था। फिर हुआ भी कुछ ऐसा ही, तैराकी में वो सोने का तमगा जीत कर लौटे। ये भारतीय पैरा खेलों के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि थी। 1972 हैडिलवर्ग में ही भारत की ओर से तब तक सबसे ज्यादा तीन महिला ने भाग लिया था। पैरालंपिक में पहली भारतीय महिला तीरंदाज बनीं पूजा और शॉट पुट में दीपा मलिक ने अपने होने का अहसास कराया था। भारतीय पहलवान सुशील कुमार ही एकमात्र ऐसे एथलीट हैं जिन्होंने ओलंपिक में दो बार पदक जीते हैं लेकिन पैरालंपिक में एक बड़ा इतिहास दर्ज है। 1984 स्टोक मैंडाविल पैरालंपिक भारत का सबसे सफल पैरालंपिक रहा था।

जोगिंदर सिंह बेदी ने रचा था इतिहास

इसमें जोगिंदर सिंह बेदी ने एक रजत और दो कांस्य पदक अपने नाम किए थे। ये कारनामा उन्होंने गोला फेंक, भाला फेंक और चक्का फेंक इवेंट में किया था। इसके साथ ही इसी साल भीमराव केसरकार ने भी भाला फेंक में रजत जीता था। 2004 एथेंस पैरालंपिक में भारत देवेन्द्र झाझरिया ने भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीता। साथ ही राजिंदर सिंह राहेलु ने पॉवरलिफ्टिंग 56 किलोग्राम भारवर्ग में कांस्य पदक पर अपना हक जमाया। लंदन 2012 में गिरिशा नागाराजेगौड़ा ने ऊंची कूद में कमाल करते हुए रजत पदक अपने नाम किया था। ये वो भारतीय पैरा एथलीट हैं जिन्होंने अपने दमदार प्रदर्शन से देश का नाम रोशन किया।[2]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पैरालंपिक खेलों की शुरुआत (हिंदी) आजतक। अभिगमन तिथि: 15 सितंबर, 2016।
  2. ओलंपिक से ज्यादा पैरालंपिक में रहा है देश का भव्य रिकॉर्ड (हिंदी) आजतक। अभिगमन तिथि: 15 सितंबर, 2016।

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