प्रणब मुखर्जी

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प्रणब मुखर्जी
Pranab mukherjee.jpg
पूरा नाम प्रणव मुखर्जी
अन्य नाम प्रणव दा
जन्म दिसंबर, 1935
जन्म भूमि पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के एक छोटे से गांव मिराटी (मिराती) में
पति/पत्नी शुभ्रा मुखर्जी
संतान दो बेटे- अभिजीत व इंद्रजीत और एक बेटी शर्मिष्ठा
नागरिकता भारतीय
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
शिक्षा इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर, कोलकता विश्वविद्यालय से लॉ

प्रणव मुखर्जी / प्रणव दा का जीवन परिचय

श्री प्रणव मुखर्जी का जन्म, पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के किरनाहर शहर के एक छोटे से गांव मिराटी (मिराती) में एक ब्राह्मण परिवार में 11 दिसंबर, 1935 में हुआ था। प्रणव मुखर्जी - कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के पुत्र हैं। ग्रामीण बंगाल के बीरभूम में पले-बढ़े प्रणब मुखर्जी अपने उपनाम पोल्टू के नाम से जाने जाते थे। प्रणव मुखर्जी की पत्नी का नाम शुभ्रा मुखर्जी है। उनके दो बेटे- अभिजीत व इंद्रजीत और एक बेटी शर्मिष्ठा है। उनका एक लड़का अभिजीत पश्चिम बंगाल विधानसभा में कांग्रेस पार्टी का सदस्य है, पिछली बार हुए चुनाव में उनके बेटे ने कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की थी।

उनके पिताजी, कामदा किंकर मुखर्जी क्षेत्र के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे और आजादी की लड़ाई में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के चलते वह 10 वर्षों से ज्यादा समय तक ब्रिटिश जेलों में कैद रहे। उनके पिताजी 1920 से इंडियन नेशनल कांग्रेस (अखिल भारतीय कांग्रेस) के एक सक्रिय कार्यकर्ता थे। देश की आजादी के बाद 1952 से लेकर 1964 तक पश्चिम बंगाल विधान परिषद के सदस्य रहे थे और वीरभूम पश्चिम बंगाल जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। पिता का हाथ पकड़ कर ही प्रणव ने राजनीति में प्रवेश किया।

परिवार के माहौल को देखते हुए यह प्राकृतिक तौर पर स्वाभाविक था कि वे अपने पिताजी के. के. मुखर्जी के पदचिन्हों पर चलते। तत्कालीन कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबंधित सूरी विद्यासागर कॉलेज से स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद प्रणव मुखर्जी ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से ही इतिहास (हिस्ट्री) और राजनीति विज्ञान (पॉलिटिकल साइंस) में स्नातकोत्तर (एम.ए.) की पढ़ाई संपन्न की। कोलकता विश्वविद्यालय से कानून की उपाधि (लॉ) की शिक्षा के बाद पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के एक कॉलेज में प्राध्यापक (प्रोफेसर) की नौकरी शुरू की। कॅरियर के शुरुआती दिनों में प्रणव मुखर्जी लंबे समय तक पहले शिक्षक और एक वकील के तौर पर काम किया। प्रणब ने अपना करियर कोलकाता में डिप्टी अकाउंटेंट जनरल के कार्यालय में क्लर्क के रूप में शुरू किया। इसके बाद उन्होंने पत्रकार के रूप में अपने कॅरियर को आगे बढ़ाया। उन्होंने जाने-माने बांग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक मातृभूमि की पुकार के लिए काम किया। इसके बाद वह बंगीय साहित्य परिषद के ट्रस्टी बने। बाद में निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी बने। यूनिवर्सिटी ऑफ वॉल्वरहैम्पटन ने प्रणव मुखर्जी को डी.लिट की उपाधि भी प्रदान की है।

प्रणव मुखर्जी का व्यक्तित्व

प्रणव मुखर्जी संजीदा व्यक्तित्व वाले नेता हैं। पार्टी के वरिष्ठतम नेता होने के कारण वह राजनीति की भी अच्छी समझ रखते हैं। बंगाली परिवार से होने के कारण उन्हें रबिंद्र संगीत में अत्याधिक रुचि है। प्रणव मुखर्जी को पश्चिम बंगाल के अन्य निवासियों की तरह ही मां दुर्गा का उपासक भी माना जाता है और दुर्गा पूजा के दौरान वे माता की उपासना भी करते हैं। प्रणव दा मृदुभाषी, गंभीर और कम बोलने वाले है। प्रणव को बागवानी, किताबें पढ़ना और संगीत पसंद है। प्रणव का पसंदीदा खाना है फिश करी। वह मंगलवार को छोड़कर करीब-करीब रोज ही फिश करी खाते हैं। वे रोज सुबह जल्दी उठते हैं। पूजा के बाद वह अपने काम पर लग जाते हैं। दिन में एक घंटा सोते भी हैं। रात को सोने से पहले वे पढ़ते हैं। प्रणव दा रोज 18 घंटे काम करते हैं। उन्हें पढ़ने, गार्डनिंग व संगीत सुनने का भी शौक है। उन्हें रबिन्द्र संगीत बेहद पसंद है।

प्रणव मुखर्जी का राजनैतिक सफर

प्रणव मुखर्जी के पिता कामदा मुखर्जी एक लोकप्रिय और सक्रिय कांग्रेसी नेता थे। वह वर्ष 1952 से 1964 तक बंगाल विधानसभा के सदस्य रहे थे। पिता का राजनीति से संबंध होने के कारण प्रणव मुखर्जी का राजनीति में आगमन सहज और स्वाभाविक था। प्रणव मुखर्जी के राजनैतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1969 में की, जब वह पहली बार राज्य सभा से चुनकर संसद में आए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री, इंदिरा गांधी ने इनकी योग्यता से प्रभावित होकर मात्र 35 वर्ष की अवस्था में, 1969 में कांग्रेस पार्टी की ओर से राज्य सभा का सदस्य बना दिया। उसके बाद वे, 1975, 1981, 1993 और 1999 में राज्यसभा के लिए फिर से निर्वाचित हुए।

उसके बाद वे 3 साल के अंदर ही वर्ष 1973 में केंद्र सरकार में प्रणव मुखर्जी ने कैबिनेट मंत्री रहते हुए औद्योगिक विकास (इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट) मंत्रालय में उप-मंत्री का पदभार संभाला। प्रणव मुखर्जी सन 1974 में केंद्र सरकार में वित्त राज्य मंत्री बने। प्रणब वर्ष 1982 से 1984 तक कई कैबिनेट पदों के लिए चुने जाते रहे। इसके बाद वर्ष 1984 में वह पहली बार भारत के वित्त मंत्री बने। प्रणव मुखर्जी ने सन 1982-83 के लिए पहला बजट सदन में पेश किया। वह 7 बार कैबिनेट मंत्री रहे। जिसमें 2 बार वाणिज्य मंत्री, 2 बार विदेश मंत्री और एक बार रक्षा मंत्री जैसे महत्वपूर्ण कैबिनेट पद शामिल हैं। 1982-84 में जब वे भारत के वित्त मंत्री थे तो यूरोमनी मैगजीन ने उनका मूल्यांकन विश्व के सबसे अच्छे वित्त मंत्री के तौर पर किया था।

इन्दिरा गांधी की हत्या के पश्चात, राजीव गांधी सरकार की कैबिनेट में प्रणव मुखर्जी को शामिल नहीं किया गया। इस बीच प्रणव मुखर्जी ने 1986 में अपनी अलग राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (राष्ट्रीय कांग्रेस समाजवादी दल) का गठन किया। लेकिन जल्द ही वर्ष 1989 में राजीव गांधी से विवाद का निपटारा होने के बाद प्रणव मुखर्जी ने अपनी पार्टी को राष्ट्रीय कांग्रेस में मिला दिया। पूर्व प्राधानमंत्री पीवी नरसिंह राव उन्हें पार्टी में दोबारा लेकर आये थे।

1991 में चुनाव प्रचार के दौरान, तमिलनाडु के श्री पेरंबदूर में तमिल आतंकवादियों लिट्टे के द्वारा आत्मघाती हमले के बाद राजीव गांधी की आकस्मिक मृत्यु के बाद, नरसिंह राव के नेतृत्व में जब कांग्रेस की सरकार ने केंद्र में सत्ता संभाली तो उन्हें एक बार फिर से 24 जून 1991 से 15 मई 1996 में योजना आयोग का उपाध्यक्ष और फिर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री बनाया गया। 1995-96 में नरसिंह राव के कार्यकाल के दौरान उन्हें पहली बार विदेश मंत्रालय का पदभार भी प्रदान किया गया। 1997 में उन्हें उत्कृष्ट सांसद चुना गया।

प्रणव मुखर्जी कांग्रेस पार्टी के सर्वोच्च निकाय (CWC) कार्य समिति के 1978 में सदस्य बने। वर्ष 1985 तक प्रणव मुखर्जी पश्चिम बंगाल कांग्रेस समिति के अध्यक्ष भी रहे, लेकिन काम का बोझ बढ़ जाने के कारण उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया था। प्रणव मुखर्जी पहली बार वह लोकसभा के लिए पश्चिम बंगाल के जंगीपुर निर्वाचन क्षेत्र से 13 मई 2004 को चुने गए थे और इसी क्षेत्र से दुबारा 2009 में भी लोकसभा के लिए चुने गए। इतने सालों तक, राज्यसभा के सदस्य के तौर पर राजनीति करने के बाद, प्रणव मुखर्जी पहली बार लोकसभा के उम्मीदवार के तौर पर खड़े हुए और, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस प्रत्याशी की ओर से सबसे अधिक 1, 28,252 मतों से जीतने वाले सदस्य रहे।

2004 में कांग्रेस पार्टी के दोबारा से सत्ता में आने के बाद से वे फिर से मंत्रिमंडल में वरिष्ठ सदस्य के तौर पर शामिल हुए। सन 2004 में जब कांग्रेस ने गठबंधन सरकार के अगुआ के रूप में सरकार बनाई तो कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सिर्फ एक राज्यसभा सांसद ही थे। इसलिए प्रणव मुखर्जी को लोकसभा में सदन का नेता बनाया गया। मुखर्जी की अमोघ निष्ठा और योग्यता ने उन्हें सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के करीब लाया। इस वजह से जब 2004 में पार्टी सत्ता में आई तो उन्हें भारत के रक्षा मंत्री के प्रतिष्ठित पद पर पहुंचने में मदद मिली। 24 अक्टूबर 2006 को उन्हें भारत का विदेश मंत्री नियुक्त किया गया। रक्षा मंत्रालय में उनकी जगह ए.के. एंटनी ने ली, जो कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और दक्षिणी राच्य केरल के भूतपूर्व मुख्यमंत्री रह चुके थे। वह यूपीए की सरकार में 24 जनवरी 2009 से वित्त मंत्रालय का पदभार संभाल रहे थे।

  • प्रणब मुखर्जी फरवरी 1973 से जनवरी 1974 तक केंद्र में उप मंत्री जनवरी 1974 से अक्तूबर 1974 तक उप मंत्री अक्तूबर 1974 से दिसंबर 1975 तक वित्त राज्य मंत्री दिसंबर 1975 से मार्च 1977 तक राजस्व और बैंकिंग मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जनवरी 1980 से जनवरी 1982 तक वाणिज्य मंत्री जनवरी 1982 से दिसबंर 1984 तक केंद्रीय वित्त मंत्री जनवरी 1993 से फरवरी 1995 तक वाणिज्य मंत्री फरवरी 1995 से मई 1996 तक विदेश मंत्री मई 2004 से अक्तूबर 2006 तक रक्षा मंत्री अक्तूबर 2006 से मई 2009 तक विदेश मंत्री जनवरी 2009 से अब तक केंद्रीय वित्त मंत्री

राजनीतिक जीवन की शुरुआत

  • सदस्य, कांग्रेस वर्किंग कमेटी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सबसे उच्च संस्था, जो पार्टी के लिए नीतियां निर्धारित करती हैं) के सदस्य 27 जनवरी 1978 से 18 जनवरी 1986 और फिर 10 अगस्त, 1997 से आज तक।
  • 1985 में पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रेसिडेंट और फिर, अगस्त 2000 से आज तक।
  • अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के केंद्रीय समिति के सदस्य 1978 से 1986 तक।
  • कोषाध्यक्ष, अखिल भारतीय कांग्रेस समिति, 1978-1979
  • कोषाध्यक्ष, कांग्रेस (आई) पार्टी इन पार्लियामेंट 1978-79
  • अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के आर्थिक सलाहकार के चेयरमैन- 1987-1989
  • 1984, 1991, 1996 और 1998 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी (जो संसद के लिए राष्ट्रीय स्तर पर चुनावों का संचालन करती है,) कैंपेन कमेटी के चेयरमैन।
  • 1998 से 1999 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव।
  • 28 जून, 1999 से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के केंद्रीय चुनाव समन्वय समिति के चेयरमैन।
  • पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष के तौर पर 12 दिसंबर, 2001 से अब तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य।

प्रणव मुखर्जी की उपलब्धियां और योगदान

  • प्रणव मुखर्जी को कई प्रतिष्ठित और हाई प्रोफाइल मंत्रालय संभालने जैसी विशिष्टता प्राप्त है। उन्होंने रक्षा मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, विदेश विषयक मंत्रालय, शिपिंग, राजस्व, नौवहन, यातायात, संचार, वाणिज्य और उद्योग, आर्थिक मामले जैसे लगभग सभी महत्वपूर्ण मंत्रालयों में अपनी सेवाएं दी हैं।
  • वह कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधायक दल के नेता भी रह चुके है। साथ-साथ वह लोकसभा में सदन के नेता, बंगाल प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मंत्रीपरिषद में केंद्रीय वित्त मंत्री रह चुके है।
  • लोकसभा चुनावों से पहले जब प्रधानमंत्री ने बाई-पास सर्जरी कराई, प्रणव, विदेश मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद राजनैतिक मामलों की कैबिनेट समिति के अध्यक्ष और वित्त मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री का अतिरिक्त प्रभार लेकर मंत्रिमंडल के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • पिछले कई सालों तक वह कांग्रेस के मिस्टर डिपेंडेबल रहे हैं। भारतीय राजनीति, आर्थिक मामलों व नीतिगत मुद्दों की गहरी समझ रखने वाले प्रणव को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की केबिनेट में सबसे अनुभवी माना जाता है। प्रणव को संपूर्ण राजनीतिज्ञ माना जाता है।
  • 10 अक्तूबर 2008 को मुखर्जी और अमेरिकी विदेश सचिव कोंडोलीजा राइस ने धारा 123 समझौते पर हस्ताक्षर किए।
  • प्रणव मुखर्जी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के विश्व बैंक (इंटरनेशन मॉनिटरी फंड), एशियाई विकास बैंक (एशियन डेवलपमेंट बैंक) और अफ्रीकी विकास बैंक (अफ्रीकन डेवलपमेंट बैंक) के अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के गवर्नरों से एक रह चुके हैं।
  • राजीव गांधी की मृत्यु के पश्चात जब सोनिया गांधी ने राजनीति में आने का निर्णय लिया तब प्रणव मुखर्जी ने उनके सलाहकार और मार्गदर्शक के रूप में भी अपनी सेवाएं दी। कांग्रेस के लिए अपनी प्रतिबद्धता दर्शाने के बाद ही सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा प्रणव मुखर्जी को वर्ष 2004 में रक्षा मंत्रालय सौंपा गया।
  • वर्ष 2005 में पेटेंट संशोधन अधिनियम के दौरान जब यूपीए सांसदों के भीतर मनमुटाव पैदा हो गया, जिसकी वजह से कोई राय नहीं बन पा रही थे, ऐसे समय में प्रणव मुखर्जी ने अपनी सूझबूझ और कुशल रणनीति का परिचय देकर, ज्योति बसु सहित कई पुराने गठबंधनों को मनाकर मध्यस्थता के कुछ नये बिंदू तय किये, जिसमे उत्पाद पेटेंट के अलावा और कुछ और बातें शामिल थीं। तब उन्हें, वाणिच्य मंत्री कमल नाथ सहित अपने सहयोगियों यह कहकर मनाना पड़ा कि कोई कानून नहीं रहने से बेहतर है एक अपूर्ण कानून बनना। अंत में 23 मार्च 2005 को बिल को मंजूरी दे दी गई।
  • मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में प्रणव मुखर्जी को दोबारा वित्त-मंत्रालय का कार्यभार प्रदान किया गया।
  • मुखर्जी की वर्तमान विरासत में अमेरिकी सरकार के साथ असैनिक परमाणु समझौते पर भारत-अमेरिका के सफलतापूर्वक हस्ताक्षर और परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत नहीं होने के बावजूद असैन्य परमाणु व्यापार में भाग लेने के लिए परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के साथ हुआ हस्ताक्षर शामिल है।
  • सन 2007 में उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा गया।
  • इन सबके बाद मनमोहन सिंह की दूसरी सरकार में भी श्री मुखर्जी ही भारत के वित्त मंत्री बने, जिस पद पर वे पहले 1980 के दशक में काम कर चुके थे। 6 जुलाई, 2009 को उन्होंने सरकार का सालाना बजट पेश किया। उन्होंने ऐलान किया कि वित्त मंत्रालय की हालत इतनी अच्छी है कि माल और सेवा कर लागू कर सके, जिसे महत्वपूर्ण कॉरपोरेट अधिकारियों और अर्थशास्त्रियों ने सराहा।
  • उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, लड़कियों की साक्षरता और स्वास्थ्य जैसे सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के लिए और धन का प्रावधान किया। इसके अलावा उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम, बिजलीकरण का विस्तार और जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन की तरह बुनियादी सुविधाओं वाले कार्यक्रमों का भी विस्तार किया। हालांकि, कई लोगों ने 1991 के बाद से सबसे अधिक बढ़ रहे राजकोषीय घाटे के बारे में चिंता व्यक्त की। श्री मुखर्जी ने कहा कि सरकारी खर्च में विस्तार केवल अस्थायी है और सरकार वित्तीय दूरदर्शिता के सिद्धांत के प्रति प्रतिबद्ध है।

प्रणव मुखर्जी से जुड़े विवाद

  • आपातकाल के दौरान प्रणव मुखर्जी, इन्दिरा गांधी सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। इसी दौरान उन पर कई गलत व्यक्तिगत निर्णय लेने जैसे गंभीर आरोप लगे। प्रणव मुखर्जी के खिलाफ पुलिस केस भी दर्ज किया गया. लेकिन इन्दिरा गांधी के वापस सत्ता में आते ही वह केस खारिज हो गया।
  • विदेश मंत्री रहते हुए, विवादित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को घर में नजरबंद रख सुरक्षा प्रदान करने के प्रणव मुखर्जी के निर्णय पर लगभग सभी मुसलमान समुदायों ने आपत्ति उठाई और प्रणव मुखर्जी के खिलाफ प्रदर्शन किए। परिणामस्वरूप तस्लीमा नसरीन को 2008 में भारत से बाहर जाना पड़ा।
  • प्रणव मुखर्जी पर यह भी आरोप लगे कि उन्होंने निजी बैंकों को गुजरात में निवेश ना करने की धमकी दी है क्योंकि वहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है।
  • प्रणव मुखर्जी की तार्किक क्षमता और रणनीतियां बहुत प्रभावी हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी अर्थ और राष्ट्र के कल्याण से जुड़ा कोई भी फैसला लेने से पहले प्रणव मुखर्जी से विचार-विमर्श जरूर करते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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