"मौर्योत्तरकालीन विदेशी आक्रमण" के अवतरणों में अंतर

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पश्चिमोत्तर भारत में विदेशियों का आक्रमण सम्भवतः मौर्योत्तर काल में सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना थी। विदेशी आक्रमणकारियों की इस श्रृंखला में सबसे पहले 'बैक्ट्रिन ग्रीक' शासकों का नाम आता है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इन्हें 'यवन' के नाम से जाना जाता है। इतिहास के इस काल की जानकारी बौद्ध ग्रंथों, जैसे- बौद्ध जातक, दिव्यावदान, ललितविस्तर, मंजूश्रीमूलकल्प, मिलिन्दपन्ह, गार्गी संहिता, मालविकाग्निमित्रम् एवं कुछ अभिलेखों, सिक्कों तथा पुरातात्विक खोजों द्वारा प्राप्त होती हैं।

बैक्ट्रिया साम्राज्य

हिन्दुकुश पर्वत एवं 'ऑक्सस' के मध्य में स्थित 'बैक्ट्रिया' अत्यन्त ही उपजाऊ प्रदेश था। इसके उपजाऊपन के कारण ही 'स्ट्रैबो' ने इसे 'अरियाना गौरव' कहा। बैक्ट्रिया में यूनानी बस्तियों का प्रारम्भ 'एकेमेनिड काल' (लगभग 5 वीं शताब्दी ई.पू.) में हुआ। सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् बैक्ट्रिया पर सेल्युकस का अधिपत्य रहा, किन्तु आन्तियोकस द्वितीय के शासन काल में पार्थिया 'अर्सेक्स' के नेतृत्व में और बैक्ट्रिया 'डायोडोटस' के नेतृत्व में स्वतंत्र हो गया । डायोडोटस की मृत्यु के पश्चात् उसके अवयस्क पुत्र की हत्या कर 'यूथीडेमस' नामक एक महत्वकांशी व्यक्ति ने बैक्ट्रिया की सत्ता हथिया ली। सेल्यूकस वंश के 'आन्तियोकस तृतीय' ने 'यूथीडेमस' को बैक्ट्रिया का राजा मान लिया और 206 ई. पू. में भारत के विरूद्ध एक अभियान का नेतृत्व किया। यह अभियान हिन्दुकुश पर्वत को पार कर काबुल घाटी के एक शासक सुभगसेन के ख़िलाफ़ किया गया था। सुभगसेन को पॉलिबियस ने 'भारतीयों का राजा' कहा। सम्भवतः सुभगसेन द्वारा सांकेतिक समर्पण के बाद एण्ट्योकस ढेर सारे हाथी एवं हरजाने की बड़ी धनराशि लेकर वापिस चला गया। इस प्रकार भारत पर जिन प्रमुख यवन राजाओं ने आक्रमण किया, उनका विवरण इस प्रकार से है-

डेमेट्रियस

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यूथीडेमस की मृत्यु के बाद उसका पुत्र डेमेट्रियस राजा हुआ। सम्भवतः सिकन्दर के बाद डेमेट्रियस ही पहला यूनानी शासक था, जिसकी सेना भारतीय सीमा में प्रवेश कर सकी। उसने एक बड़ी सेना के साथ लगभग 183 ई.पू. में हिन्दुकुश पर्वत को पार कर सिंध और पंजाब पर अधिकार कर लिया। डेमेट्रियस के भारतीय अभियान की पुष्टि पतंजलि के 'महाभाष्य', 'गार्गी संहिता' एवं 'मालविकाग्निमित्रम्' से होती है। इस प्रकार डेमेट्रियास ने पश्चिमोत्तर भारत में 'इंडो-यूनानी' सत्ता की स्थापना की।

मीनेंडर

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मीनेंडर प्रथम पश्चिमी राजा था, जिसने बौद्ध धर्म अपनाया और मथुरा पर शासन किया। उसके राज्य की सीमा- बैक्ट्रिया, पंजाब, हिमाचल, तथा जम्मू से मथुरा तक थी। डेमेट्रियस के समान मीनेंडर नामक यवन राजा के भी अनेक सिक्के उत्तर - पश्चिमी भारत में उपलब्ध हुए हैं। मीनेंडर की राजधानी शाकल (सियालकोट) थी। भारत में राज्य करते हुए वह बौद्ध श्रमणों के सम्पर्क में आया और आचार्य नागसेन से उसने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। बौद्ध ग्रंथों में उसका नाम 'मिलिन्द' आया है। 'मिलिन्द पञ्हो' नाम के पालि ग्रंथ में उसके बौद्ध धर्म को स्वीकृत करने का विवरण दिया गया है।

भारतीय यूनानी संपर्क का परिणाम

एक तरफ़ जहाँ यूनानी लोगों ने भारतीय धर्म से बहुत कुछ सीखा, वहीं दूसरी ओर भारतीयों के कला, विज्ञान, मुद्रा, ज्योतिष आदि क्षेत्रों में यूनानियों से प्रेरणा ग्रहण की। धर्म एवं दर्शन के क्षेत्र में यूनानियों ने भारतीय धर्म और दर्शन को ग्रहण किया। सम्राट मीनेंडर ने नागसेन से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म ग्रहण किया। वहीं दूसरी ओर एण्टियाल किडास के राजदूत हेलियोडोरस ने भागवत धर्म को स्वीकार किया। उसने बेसनगर में गरुड़ध्वज की स्थापना की। शायद भोग एवं तपस्या की विधि यूनानी लोगों ने भारत से ग्रहण की। कला के क्षेत्र में यूनानी प्रभाव सर्वथा दृष्टिगोचर होता है। कला की गंधार शैली की नींव इसी समय पड़ी।

विज्ञान का क्षेत्र

विज्ञान के क्षेत्र में भारत स्पष्टतः यूनानियों से प्रभावित है। ज्योतिषशास्त्र से भारतीय लोग अधिक प्रभावित हुए। भारतीय ग्रंथों में ज्योतिष के पाँच सिद्धान्तों का वर्णन मिलता है। ये सिद्धाँत हैं-

  1. पितामह
  2. वशिष्ट
  3. सूर्य
  4. पोलिश और
  5. रोमक।

इनमें अन्तिम दो का जन्म यूनानी सम्पर्क से हुआ। टार्न महोदय के अनुसार, भारतीयों ने यूनानियों से निश्चत तिथि से काल गणना की प्रथा. संवतों का प्रयोग, सप्ताह के सात दिनों का विभाजन, विभिन्न ग्रहों के नाम आदि जाना।

सिक्का निर्माण

सिक्का निर्माण के क्षेत्र में भारत यूनानियों का ऋणी है। यूनानियों के सम्पर्क से पूर्व भारत में 'पंचमार्क' व 'आहत' सिक्के प्रयोग में लाए जाते थे। यूनानियों के प्रभाव के कारण भारतीय मुद्रायें सुडौल, लेखयुक्त एवं कलात्मक होने लगीं। यूनानियों ने यहाँ जो सिक्के जारी किए, उसमें एक ओर राजा की आकृति और दूसरी ओर किसी देवता की मूर्ति का चिन्ह बना होता था। सर्वप्रथम सिक्को पर लेख उत्कीर्ण करवाने एवं सोने के सिक्के के लिए प्रयुक्त शब्द यवानिका भारतीय संस्कृत नाटकों में प्रयुक्त 'पटाक्षे' के लिए यूनानी शब्द है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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